बफर विलयन या उभय प्रतिरोधी विलयन buffer solution in hindi , गुण , अम्लीय क्षारीय बफर विलयन

(buffer solution in hindi) बफर विलयन या उभय प्रतिरोधी विलयन : शुद्ध जल की pH 7 होती है परन्तु इसे खुला छोड़ने पर वायुमण्डल की कार्बन डाई ऑक्साइड इसमें घुल जाती है जिससे H2CO3 (कार्बोनिक अम्ल) बनने के कारण शुद्ध जल की pH 7 से कम हो जाती है।  साथ ही यह काँच के पात्र से क्रिया कर जाता है , अत:

वे विलयन जिनकी pH स्थिर हो तथा समय के साथ साथ pH में कोई परिवर्तन न हो तो उसे बफर विलयन कहते है।

बफर विलयन के गुण

  • pH का मान स्थिर रहता है।
  • वायुमण्डल में खुला छोड़ने पर PH के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • विलयन को तनु करने पर भी pH के मान में परिवर्तन नहीं होता है।
  • विलयन में प्रबल अम्ल या प्रबल क्षार की थोड़ी सी मात्रा डालने पर भी pH में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

बफर विलयन के प्रकार (types of buffer solution)

बफ़र विलयन दो प्रकार का होता है –

(1) सामान्य बफर विलयन (simple buffer solution)

(2) मिश्रित बफर विलयन (mixed buffer solutions)

(1) सामान्य बफर विलयन (simple buffer solution) : दुर्बल अम्ल व दुर्बल क्षार से बने लवण का विलयन सामान्य बफर विलयन कहलाता है।

उदाहरण : CH3COONH4 का विलयन।

सामान्य बफर विलयन की क्रियाविधी : अमोनिया एसिटेट निम्न प्रकार से आयनित होता है –

CH3COONH4 ⇌  CH3COO–  + NH4+

उपरोक्त विलयन में प्रबल अम्ल डालने पर अर्थात H+ डालने पर ये एसिटेट आयनों से क्रिया कर लेते है जिससे अतिरिक्त H+ की सान्द्रता नष्ट हो जाती है अत: विलयन की pH में कोई परिवर्तन नही होता।

CH3COO  + H+ ⇌ CH3COOH (अल्प आयनित)

उपरोक्त विलयन में प्रबल क्षार डालने पर अर्थात OH डालने पर अतिरिक्त OH , NH4+ से क्रिया कर लेते है जिससे अतिरिक्त OH की सांद्रता नष्ट हो जाती है अत: विलयन की pH में परिवर्तन नहीं होता है।

NH4+ + OH–  ⇌ NH4OH (अल्प आयनित)

(2) मिश्रित बफर विलयन (mixed buffer solutions) : ये दो प्रकार के होते है –

(i) अम्लीय बफर विलयन : दुर्बल अम्ल व इसी अम्ल में प्रबल क्षार से बने लवण के विलयनों को मिलाने से अम्लीय बफर विलयन बनता है।

उदाहरण : CH3COOH व CH3COONa का विलयन अम्लीय बफर विलयन की तरह कार्य करता है।

अम्लीय बफर विलयन की कार्यविधि : CH3COOH व CH3COONa निम्न प्रकार से आयनित होते है –

CH3COOH ⇌  CH3COO + H+ (अल्प आयनिक)

CH3COONa ⇌  CH3COO–  + Na+ (पूर्ण आयनिक)

उपरोक्त विलयन में प्रबल अम्ल डालने पर अतिरिक्त H+ , CH3COO से क्रिया कर लेते है , जिससे अतिरिक्त H+ की  मात्रा नष्ट हो जाती है अत: विलयन की pH में कोई परिवर्तन नहीं होता।

CH3COO  + H+ ⇌ CH3COOH

उपरोक्त विलयन में प्रबल क्षार डालने पर अतिरिक्त OH , CH3COOH से क्रिया कर लेते है जिससे अतिरिक्त OH  की मात्रा नष्ट हो जाती है अत: विलयन की pH में कोई परिवर्तन नहीं होता।

CH3COOH + OH  ⇌ CH3COO + H2O

अम्लीय बफर विलयन की pH ज्ञात करना :

CH3COOH व CH3COONa निम्न प्रकार से आयनित होते है –

CH3COOH ⇌  CH3COO + H+ (अल्प आयनिक)

CH3COONa ⇌  CH3COO–  + Na+ (पूर्ण आयनिक)

Ka = [CH3COO][H+]/[CH3COOH]

[H+] = Ka x [CH3COOH]/[CH3COO]

दोनों तरफ log लेने पर

Log [H+] = log { Ka x [CH3COOH]/[CH3COO] }

Log [H+] = Log Ka + log[CH3COOH]/[CH3COO]

(-) से गुणा करने पर

– Log [H+] = – Log Ka – log[CH3COOH]/[CH3COO]

PH = PKa + log[CH3COO]/[CH3COOH]

नोट : अधिकतर CH3COO आयन लवण से प्राप्त होते है अत: CH3COO आयन की सांद्रता के स्थान पर लवण की सान्द्रता लिख सकते है।

PH = PKa + log[लवण]/[अम्ल]

उपरोक्त समीकरण को हैण्डरेन्स समीकरण कहते है।

(ii) क्षारीय बफर विलयन : दुर्बल क्षार व इसी क्षार में प्रबल अम्ल से बने लवण के विलयनों को मिलाने से क्षारीय बफर विलयन बनता है।

उदाहरण : NH4OH व NH4Cl का विलयन।

क्षारीय बफर विलयन की क्रियाविधि : NH4OH व NH4Cl निम्न प्रकार से आयनित होते है –

NH4OH ⇌ NH4+  + OH (अल्प आयनित)

NH4Cl ⇌ NH4+ + Cl  (पूर्ण आयनित)

उपरोक्त विलयन में प्रबल अम्ल डालने पर अतिरिक्त H+ , NH4OH से क्रिया कर लेते है जिससे अतिरिक्त H+ की  मात्रा नष्ट होने के कारण pH के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता।

H+ + NH4OH ⇌ NH4+ + H2O

उपरोक्त विलयन में प्रबल क्षार डालने पर अतिरिक्त OH , NH4+ से  क्रिया कर लेते है जिससे अतिरिक्त OH  की मात्रा नष्ट होने के कारण pH के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता।

क्षारीय बफर विलयन की pH ज्ञात करना :

NH4OH व NH4Cl निम्न प्रकार से आयनित होते है –

NH4OH ⇌ NH4+  + OH (अल्प आयनित)

NH4Cl ⇌ NH4+ + Cl  (पूर्ण आयनित)

Kb = [NH4+][OH]/[NH4OH]

[OH] = Kb x [NH4OH]/[NH4+]

दोनों तरफ log लेने पर

Log [OH] = log Kb + log{ [NH4OH]/[NH4+]}

(-) से गुणा करने पर

-Log [OH] = – log Kb – log{ [NH4OH]/[NH4+]}

POH = PKb + log[NH4+]/[NH4OH]

नोट : अधिकतर NH4+ आयन लवण से प्राप्त होते है अत: NH4+ आयन की सांद्रता के स्थान पर लवण की सांद्रता लिख सकते है।

अत:

POH = PKb + log[लवण]/[क्षार]

चूँकि हम जानते है –

PH + POH = 14

इसलिए

PH = 14 – POH

मान  रखने पर

PH = 14 – {PKb + log[लवण]/[क्षार]}

नोट : जब अम्ल या क्षार की आधी मात्रा उदासीन हो जाती है तो इस क्रिया को अधिकतम उभय प्रतिरोधी की क्रिया कहते है , अधिकतम उभय प्रतिरोधी की क्रिया में लवण तथा अम्ल या क्षार दोनों की सांद्रताए समान होती है , अत: अधिकतम उभय प्रतिरोधी की क्रिया के लिए –

(A)  PH = PKa + log[लवण]/[अम्ल]

चूँकि

[लवण] = [अम्ल]

PH = PKa + log1/1

PH = PKa + log1

चूँकि log 1 = 0

अत:

PH = PKa

(B)   POH = PKb + log[लवण]/[क्षार]

चूँकि

[लवण] = क्षार

POH = PKb + log1/1

POH = PKb + log1

चूँकि log 1 = 0

अत:

POH = PKb

नोट : किसी लवण या अम्ल व क्षार की सांद्रता को 10 गुने से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता क्यूंकि ज्यादा सांद्रता बढ़ाने से यह विलयन बफर विलयन नहीं रहता है।

(A) लवण की सांद्रता 10 गुना बढ़ाने पर :-

PH = PKa + log[लवण]/[अम्ल]

PH = PKa + log10/1

PH = PKa +  [log 10 – log 1]

चूँकि log 10 = 1 और log 1 = 0

अत:

PH = PKa +  [1 – 0]

PH = PKa +  1

(B) अम्ल की सांद्रता 10 गुना बढ़ाने पर :-

PH = PKa + log[लवण]/[अम्ल]

PH = PKa + log1/10

PH = PKa + [log 1 – log 10]

चूँकि log 10 = 1 और log 1 = 0

अत:

PH = PKa + [0 – 1]

PH = PKa – 1

अत: बफर विलयन में अम्ल या क्षारों के ग्राम तुल्यांकी वह संख्या जो बफर विलयन के PH में 1 इकाई की वृद्धि या कमी कर दे उसे बफर विलयन की परास कहते है अत: बफर विलयन की परास :-

PH = PKa ± 1

या

PH = 14 – [PKb ± 1]