जैव चिकित्सा तकनीके (bio medical technologies in hindi) , रक्त की जाँच , हीमोग्लोबिन की जाँच

(bio medical technologies in hindi) जैव चिकित्सा तकनीके :
प्रश्न : जैव चिकित्सा तकनीक किसे कहते है ?
उत्तर : ऐसी तकनीक या तकनीकों का समूह जिनकी सहायता से शरीर में उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों का पता लगाया जा सके , जैव चिकित्सा तकनीक के नाम से जानी जाती है।
सामान्यत: एक रोग का पता लगाने हेतु रुधिर मूत्र , मल आदि का परिक्षण किया जाता है तथा इन परीक्षणों को संपन्न करने हेतु विभिन्न तकनीको का उपयोग किया जाता है तथा इन तकनीकों के उपयोग से कम समय में अधिक सटीक तथा विश्वसनीय परिणाम प्राप्त होते है।

रक्त की जाँच

मनुष्य के शरीर में पाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण घटक रक्त है जो मुख्यतः रक्त कणिकाओं तथा प्लाज्मा से निर्मित होता है।
रक्त की सहायता से शरीर के विभिन्न उत्तक तथा कोशिकाओ तक पोषक पदार्थ तथा अनावश्यक पदार्थ परिवहन किये जाता है।
शरीर के किसी भी उत्तक या कोशिका में होने वाली संरचनात्मक या क्रियात्मक असमानता रक्त में परिरक्षित होती है अत: रक्त का परिक्षण करके ऐसी असमानताओं का पता लगाया जाता है।
रक्त की जांच के फलस्वरूप शरीर की किसी भी असमानता का पता लगाया जा सकता है।
रक्त से सम्बंधित अनेक परिक्षण उपलब्ध है परन्तु कुछ सामान्य व प्रमुख परिक्षण निम्न प्रकार से है –
1. रक्त में हीमोग्लोबिन की जाँच : हीमोग्लोबिन मनुष्य के शरीर में पाया जाने वाला एक सामान्य संगठन है जो रासायनिक रूप से एक प्रकार का क्रोमोप्रोटीन है तथा यह क्रोमो प्रोटीन शरीर ऑक्सीजन को पहुंचाता है।
मनुष्य की विभिन्न अवस्थाओ में रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा पृथक पृथक पायी जाती है जो निम्न सारणी में दर्शायी है –
 मनुष्य की विभिन्न अवस्थाएँ
 हेमोग्लोबिन की मात्रा (ग्राम/100 ml रक्त)
 वयस्क नर
 15.5 ± 2.5
 व्यस्क मादा
 14.0 ± 2.5
 शिशु (3 माह)
 11.5 ± 2.5
 बालक (3 – 6 साल)
 12.0 ± 1.0
 बालक (10 से 12 साल)
 13.0 ± 1.5
सामान्यत: रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी के फलस्वरूप मनुष्य एनीमिया नामक विकार से पीड़ित होता है।
मनुष्य के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा का पता लगाने के लिए सामान्यतया हीमोग्लोबिन मीटर का उपयोग किया जाता है जिसे साहली हीमोग्लोबिनमीटर के नाम से भी जाना जाता है।
इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन की मात्रा का पता लगाने हेतु photo hemoglobinometer या autoanalyzer का उपयोग किया जाता है।
हीमोग्लोबिन की मात्रा ज्ञात करने के लिए साहली हीमोग्लोबिनो मीटर का उपयोग किया जाता है जिसके अंतर्गत एक मापक नलिका दो मैचिंग नलिका स्टैंड पिपेट , N/10 HCl , आसुत जल , काँच जू छड का उपयोग किया जाता है।
उपरोक्त विधि के द्वारा हीमोग्लोबिन की मात्रा ज्ञात करने हेतु सर्वप्रथम रक्त का नमूना लिया जाता है तत्पश्चात मापक नलिका में उसके शून्य चिन्ह तक N/10 एचसीएल भरा जाता है। तत्पश्चात pipete की सहायता से लिए गए रक्त के नमूने में से 20 ul तक या 0.02 ml रक्त मापक नलिका में मिलाया जाता है।
काँच की छड की सहायता से घोले जाने पर विलयन का रंग भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है अर्थात एक अन्य पदार्थ Haematine का निर्माण हो जाता है।  इसके पश्चात् मापक नलिका को स्टैंड में रखी गयी दो मचिंग नलिका के मध्य रखा जाता है।
तत्पश्चात बूंद बूंद आसुत जल मापक नलिका में मिलाया जाता है व परिवर्तित होने वाले रंग का मचिंग नलिकाओं से मिलान किया जाता है।  मिलान होने पर मापक नलिका के पाठ्यांक को नोट कर लिया जाता है।  नोट किया गया पाठ्यांक लिए गए रक्त के नमूने में उपस्थित हीमोग्लोबिन की मात्रा को दर्शाता है।
नोट : मनुष्य के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के कारण मनुष्य रक्त अल्पता से पीड़ित होता है तथा यह रक्त अल्पता कई कारणों से उत्पन्न होती है जैसे किसी दुर्घटना में अधिक रक्त बहने के कारण , कुपोषण , ऑलिक अम्ल आयरन आदि के कारण या किसी आनुवांशिक विकार के कारण भी हो सकती है।

2. कुल श्वेताणु गणना (total lymphocyte count) (TLC)

मनुष्य के रक्त में प्रतिरक्षी क्रियाओ में सहायता करने हेतु एक विशेष प्रकार का घटक पाया जाता है जिसे WBC या श्वेत रक्ताणु के नाम से जाना जाता है।
एक सामान्य मनुष्य में प्रति घन मिलीमीटर श्वेत रक्ताणु की संख्या 5 हजार से 10 हजार पायी जाती है।  यदि मनुष्य के रक्त में wbc की संख्या इस सामान्य स्तर से अधिक हो जाए तो यह विकार leukocytosis के नाम से जाना जाता है तथा यह संख्या सामान्य से कम होने पर leucopenia के नाम से जानी जाती है।
रक्त में उपस्थित श्वेत रक्ताणु की संख्या को ज्ञात करने के लिए एक विशेष यन्त्र का उपयोग किया जाता है जिसे चिकित्सकीय भाषा में Haematocytomer के नाम से जाना जाता है या इसे neubarr’s chaubar के नाम से भी जाना जाता है।
मनुष्य के शरीर में पाए जाने वाले श्वेत रक्ताणु सामान्यत: निम्न प्रकार के होते है –
(A) न्युट्रोफिल्स : (40% – 75%)
(B) इयोसिनोफिल : (6-6.4%)
(C) बेसोफिल्स : (0 – 2%)
(D) लिम्फोसाइट्स : (20 – 47%)
(E) मानोसाइट्स (2 – 10%)
एक newbar’s chamber का चित्रित निरूपण निम्न प्रकार है –

TLC ज्ञात करने हेतु निम्न चरणों का उपयोग किया जाता है –
1. सर्वप्रथम पिपीट की सहायता से 0.5 अंक तक रक्त लिया जाता है तथा इसे 11.0 अंक तक लिए गए श्वेताणु तनुकारी विलयन के साथ मिश्रित किया जाता है।
cover slip की सहायता से newbarr’s chamber का ढका जाता है।
कवर स्लिप से ढकने के पश्चात् new barr’s चैम्बर के प्रत्येक बड़े खाने में उपस्थित 16 , 64 खाने में उपस्थित WBC की मात्रा को ज्ञात कर लिया जाता है।
New barr’s chamber में विलयन को डालने के पश्चात् 5 मिनट तक विलयन को स्थिर रखा जाता है।
4 बड़े खानों में उपस्थित 64 खानों में कुल WBC की संख्या ज्ञात करने हेतु निम्न सूत्र का उपयोग किया जाता है।
कुल WBC = चार बड़े खानों में उपस्थित WBC की संख्या x तनुता x कक्ष की गहराई 
प्रत्येक घन मिली मीटर में WBC की संख्या ज्ञात करने हेतु निम्न सूत्र का उपयोग किया जाता है।
TLC = no.  of wbc in /mm3 = कुल WBC x 20 x 10 x 0.1
उपरोक्त गणित संख्या के आधार पर मनुष्य के शरीर में होने वाले परिवर्तनों का पता लगाया जा सकता है जैसे रक्त कैंसर में WBC की संख्या कई गुना बढ़ जाती है , वही टाइफाइड , T.B. , कसरा , डेंगू , काला ज्वर आदि में WBC की संख्या कम हो जाती है।

differential leukocyte count (DLC)

इसे विभेदक श्वेताणु गणना के नाम से भी जाना जाता है।
DLC , TLC की तुलना में अधिक प्रभावी परिक्षण है क्योंकि इस प्रकार के परिक्षण की सहायता से रक्त में उपस्थित विभिन्न प्रकार के स्वेताणुओं को ज्ञात किया जा सकता है तथा इनकी संख्या में वृद्धि या कमी के आधार पर एक विशेष प्रकार के रोग का पता लगाया जा सकता है।  इस प्रकार के परिक्षण के अन्तर्गत सर्वप्रथम एक व्यक्ति के रक्त का नमूना प्राप्त किया जाता है तत्पश्चात Dropper की सहायता से कांच की स्लेट पर रक्त की एक बूंद प्राप्त की जाती है। स्लेट पर रक्त की बून्द प्राप्त करने के पश्चात् दूसरी स्लाइड की सहायता से रक्त की बूंद के फैलाया जाता है इसे smear या आलेप के नाम से जाना जाता है।
तैयार किये गए आलेप को एक विशेष प्रकार के अभिरंजक leishmann’s stain के द्वारा या Geimsa stain के द्वारा अभिरंजित किया जाता है।  अभिरंजित स्लाइड को सुखाने के पश्चात् स्लाइड पर उपस्थित WBC की संख्या की गणना की जाती है।
WBC की गणना ब्लड काउंटर मशीन की सहायता से की जाती है जिसके फलस्वरूप गणना की गयी 100 WBC में विभिन्न प्रकार की WBC का प्रतिशत ज्ञात किया जाता है तथा ज्ञात WBC की संख्या के आधार पर उत्पन्न होने वाले विकार का पता लगाया जाता है।
विभिन्न प्रकार की WBC में होने वाले परिवर्तन के आधार पर निम्न विकारों का पता लगाया जा सकता है –
 विभिन्न प्रकार के WBC की असामान्य प्रकृति
 संभावित रोग का संकेत
 1. न्युट्रोफिल की संख्या में वृद्धि
 इसके फलस्वरूप सामान्य मवाद का संक्रमण होने का संकेत मिलता है।  इसके अतिरिक्त प्रदाह क्रिया का संकेत मिलता है।
 2. इयोसिनोफिल्सकी वृद्धि
 वृद्धि के कारण किसी परजीवी का संक्रमण या अतिसंवेदनशील संक्रमण या एलर्जी होने का संकेत मिलता है।
 3. बेसोफिल की वृद्धि
 चिकन पोक्स रोग
 4. लिम्फोसाइड की संख्या में वृद्धि
 कुकर खाँसी
 5. मोनोसाइड की संख्या में वृद्धि
 T.B रोग उत्पन्न होने का संकेत
 6. T4 Lymphocyde की संख्या में वृद्धि
 एड्स उत्पन्न होने का संकेत
नोट : सामान्य टीएलसी परिक्षण के द्वारा T4 – लिम्फोसाइड की संख्या ज्ञात नहीं की जा सकती है।