erythrocyte sedimentation rate (ESR) रक्ताणु अवसादन दर , ECG (electro cardio gram) electrocardiography

रक्ताणु अवसादन दर erythrocyte sedimentation rate (ESR) :
चिकित्सा के क्षेत्र में रक्त में पाए जाने वाले रक्ताणु या रक्त कोशिकाओं के अवसादन की दर को ज्ञात करने की क्रिया रक्ताणु अवसादन दर के नाम से जानी जाती है।
इस दर को ज्ञात करने हेतु सामान्यत: दो विधियों का उपयोग किया जाता है जो निम्न है –
(A) Westergen method
(B) Urnte robe
सामान्यत: प्रयोगशाला में रक्ताणु अवसादन दर को ज्ञात करने हेतु westergen method का इस्तेमाल किया जाता है जिसके अन्तर्गत अवसादन की दर को ज्ञात करने की विधि निम्न प्रकार है –
1. सर्वप्रथम रोगी के रक्त के नमूने को प्राप्त किया जाता है तत्पश्चात उसमे उचित मात्रा में प्रति स्कन्धक जैसे tri sodium citrate मिश्रित किया जाता है।
2. इस क्रिया के पश्चात् नलिका को ESR स्टैंड में रखा जाता है तथा एक घंटे में अवसादित रक्ताणुओं की मात्रा को ज्ञात किया जाता है।
नोट : एक सामान्य मनुष्य में ESR का मान 0 – 16 mm प्रति घंटा होता है वही मादा में ESR का मान 0-20 mm/hr होता है।
ESR ज्ञात करने हेतु उपयोग किया जाने वाली westergen नलिका का चित्रित निरूपण निम्न प्रकार से है –

रक्ताणु अवसादन दर की मात्रा में वृद्धि होने पर शरीर में कई प्रकार के जीर्ण रोग जैसे तपेदित तथा प्रदाह उत्पन्न करने वाले रोग जैसे Rhcumatrid Arthritis , myloma या Tymour लसिकाभ अबुर्द आदि उत्पन्न होने के संकेत मिलते है।
सामान्यत: ESR या रक्ताणु अवसादन दर आयु में वृद्धि होने के साथ साथ गर्भकाल के समय तथा रक्त अल्पता जैसी स्थिति में इनकी संख्या में वृद्धि हो सकती है।
रक्ताणु अवसादन दर ज्ञात करने की पारम्परिक विधि के उपयोग से 25-30% त्रुटी होने की संभावना होती है क्योंकि इस विधि के अन्तर्गत तापमान को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
वर्तमान समय में रक्ताणु अवसादन दर ज्ञात करने हेतु एक अन्य विधि का उपयोग किया जाता है जिसे ऑटोमेटेड मिनी ESR तकनीक के नाम से जाना जाता है।  इसमें तापमान नियंत्रित किये जाने के पश्चात् होने वाली त्रुटी की सम्भावना कम होती है।
नोट : वर्तमान समय में रक्त की कार्य की उसमे पाए जाने वाले रक्ताणुओं की संख्या TLC , ESR , रक्ताणुओं का आकार हीमोग्लोबिन की मात्रा , रक्त में यूरिया की मात्रा , कोलेस्ट्रोल की मात्रा , ग्लूकोज की मात्रा , प्रोटीन एंजाइम आदि की मात्रा को ज्ञात करने हेतु कम्प्युटर द्वारा नियंत्रित एक विकसित यन्त्र का उपयोग किया जाता है जिसे auto analizer या स्वचालित विशेषक के नाम से जाना जाता है।
स्वचलित विशेषक सामान्यत: एक अत्यंत उपयोगी यन्त्र है क्योंकि इसके द्वारा एक ही समय में विभिन्न रक्त परिक्षण ज्ञात किये जा सकते है।  इसके अतिरिक्त इस विशेषक में त्रुटी होने की सम्भावना नगण्य होती है जिसके फलस्वरूप आसानी से शरीर में होने वाले विकार का पता लगाया जा सकता है।
रक्त से सम्बन्धित कुछ जैव रासायनिक परिक्षण करवाए जाते है जिनका अपना महत्व तथा उपयोगिता है ऐसे कुछ परिक्षण तथा उनकी उपयोगिता निम्न प्रकार से है –

 रक्त / प्लाज्मा / सीरम का पैरामीटर
 उपयोगिता
 1. रक्त शर्करा या रक्त ग्लूकोज
 इसका स्तर रक्त में सामान्य से अधिक होने पर hyperglycemia का संकेत मिलता है या मधुमेह रोग का संकेत मिलता है।
 2. सीरम कोलेस्ट्रोल
 यदि रक्त में इसकी मात्रा सामान्य से अधिक हो तो एक व्यक्ति वक से सम्बन्धित रोगों से पीड़ित हो सकता है , इसके अतिरिक्त मधुमेह से पीड़ित हो सकता है।  उपरोक्त स्तर की अधिकता से कुछ विशिष्ट विकास myxedema atheroscleros , रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम होने पर शरीर में विभिन्न प्रकार के संक्रमण रक्त अल्पता व hyperthyroidism नाम विकार उत्पन्न हो सकता है।
 3. रक्त में पाया जाने वाला latic dehydrogenase iso – enzyme की मात्रा का मापन (Ld1 , Ld2)
 रक्त में Ld1 तथा Ld2 की अधिकता होने पर ह्रदय सम्बन्धित एक विशिष्ट रोग मायोकार्डियल infraction का पता लगाया जा सकता है।
Ld4 व Ld5 की अधिकता से हेपेटाइटिस का शुगर
 4. रक्त में पाया जाने वाला SGOT / Seriun glutamic oxaloactic एसिड trans-aminese
 रक्त में इसकी मात्रा सामान्य व अधिक होने पर यकृत की असमानता तथा मायोकार्डियल infaraction का सूचक होता है।
5. रक्त में पाए जाने वाले SGPT
इसकी मात्रा रक्त में सामान्य से अधिक होने पर सम्बन्धित व्यक्ति संक्रमित से सम्बन्धित हेपेटाइटिस से पीड़ित हो सकता है , इसका अतिरिक्त Trosic हेपेटाइटिस भी हो सकता है। इसके अलावा मनुष्य परिसंचरण आघात से पीड़ित हो सकता है।
6. रक्त में पाया जाने वाला रक्त यूरिया
सामान्य से अधिक होने पर वृक्क सम्बन्धित विकार Nethritic उत्पन्न होता है।
7. Serum Bilirudin
इसकी मात्रा रक्त में सामान्य से अधिक होने पर सम्बन्धित मनुष्य अपघटनी पीलिया से ग्रसित होता है।  इसके अलावा एक विशेष प्रकार की रक्त की अल्पता उत्पन्न हो सकती है इसे Pernicious एनीमिया के नाम से जाना जाता है।
8. Elisa test (एंटीजन एंटीबॉडी प्रतिक्रिया पर आधारित)
इस सामान्यत: संक्रामक रोग जैसे एड्स हेपेटाइटिस Rebulla थायराइड ग्रंथि की असामान्यता तथा लैंगिक संचिलित रोगों की जांच हेतु उपयोगकिया जाता है।
9. WIDAL टेस्ट
टाइफाइड रोग जैसे रोगों के उपचार हेतु उपयोग में लाया जाता है।  इसकी सहायता से आंतरिक ज्वर का पता लगाया जाता है।

नोट : SEOT को AST (Aspartate transaminase) के नाम से भी जाना जाता है।
SGPT को ALT (Alanine tranase) के नाम से भी जाना जाता है।
Lactic dehydrogenese iso एंजाइम एक सामान्य मनुष्य के शरीर में Ld , Ld2 , Ld3 . Ld4 , Ld5 के रूप में पाया जाता है।

ECG (electro cardio gram)

ECG चिकित्सा विज्ञान की एक महत्वपूर्ण तकनीक है जिसकी सहायता से ह्रदय की कार्यशील अवस्था में तंत्रिकाओं तथा पेशियों के द्वारा उत्पन्न विद्युत संकेतो का अध्ययन करके उनको रिकॉर्ड किया जाता है।
इस कार्य हेतु उपयोग किये जाने वाले उपकरण को Electro Cardio gram के नाम से जाना जाता है , वही एक कागज पर इसका ग्राफीय निरूपण प्राप्त करने को ” इलेक्ट्रो कार्डियो ग्राम ” के नाम से जाना जाते है।
इस तकनीक में तीन इलेक्ट्रोडो का उपयोग किया जाता है जिन्हें संचलन जैली की सहायता से मरीज के वक्ष भाग पर , कलाई पर तथा पैरो पर लगाये जाते है।  इनको लगाने से प्राप्त वि. संकेत अत्यधिक shede प्रकृति के होते है।  इन्हें उपकरण में लगी प्रणाली की सहायता से अभिवृद्धित किया जाता है जिसके फलस्वरूप ऐसे संकेतो को संवेदी चार्ट रिकॉर्ड में रिकॉर्ड किया जाता है।
उत्पन्न होने वाली प्रत्येक तरंग ह्रदय की किसी विशिष्ट क्रिया को अंकित करती है।
नोट : मनुष्य के ह्रदय में दायें आलिंग में उपस्थित SA – node के द्वारा वि. संकेत उत्पन्न किये जाते है।  जिसके फलस्वरूप दाएं तथा बाएं आलिन्द में संकुचन होता है इसे Depolarication के नाम से जाना जाता है।  इस संकुचन से P तरंग प्राप्त होती है।
दाए तथा बाए आलिंद में संकुचन के फलस्वरूप रक्त दाए तथा बाए निलय में पहुँचता है तथा इनमे पुन: संकुचन होता है जिसे दायें तथा बाएं निलय का Depolarication कहते है परन्तु इसी समय दाये तथा बाये आलिन्द अपनी पूर्व अवस्था में या सामान्य अवस्था में आ जाते है।
इसे QRS तरंग के द्वारा निरुपित किया जाता है।
कुछ समय पश्चात् दायाँ तथा बायाँ निलय पुन: अपनी सामान्य अवस्था में आ जाते है , इसे T तरंग के द्वारा निरुपित किया जाता है अत: Elctro cardio gram पर एक ह्रदय चक्र को PQRST तरंग के द्वारा निरुपित किया जाता है।
एक सामान्य मनुष्य का ह्रदय चक्र लगभग 1000 मिली सेकंड में पूरा होता है अर्थात एक सेकंड में पूरा होता है अत: 1 मिनट पर ECG पर PQRST का 60 से 100 बार ग्राफीय निरूपण प्राप्त होता है।
S.A नोड के द्वारा 1 मिली वाल्ट का वि. आवेश उत्पन्न किया जाता है जिसे ECG पर प्राप्त कर लिया जाता है अत: इलेक्ट्रो कार्डियो ग्राम पर QRS तरंग की ऊँचाई SA नोड से प्रवाहित होने वाली वि. आवेश का सूचक होती है।  जिसके तथा PQRST की संख्या को ज्ञात करके ह्रदय सम्बन्धित विकारों का पता लगाया जा सकता है।

इलेक्ट्रो कार्डियो ग्राम की सहायता से ह्रदय धमनी सम्बन्धित रोग (coronary artery) ह्रदयघात , trachycordia , Brachy cardia , Myco cordia आदि का पता लगाया जाता है।
वर्तमान समय में एक आधुनिक ECG का उपयोग किया जाता है जिसमे 12 इलेक्ट्रोड होते है जिन्हें शरीर पर विभिन्न 6 भागो पर लगाकर त्रिविमीय चित्र प्राप्त किया जाता है , इसे वेक्टर कार्डियो ग्राफी के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान समय में अल्ट्रा साउंड तरंगो की सहायता से ह्रदय की संरचना के प्रतिबिम्ब प्राप्त किये जाते है , यह तकनीक इको कार्डियो ग्राफी के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान समय में ऐसी तकनीक का उपयोग किया जाता है जिसकी सहायता से ह्रदय से गुजरने वाले रक्त के प्रवाह के वेग को अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त किया जाता है।
इसे doppler echo कार्डियो ग्राफी के नाम से जाना जाता है।