भरतनाट्यम किस राज्य का नृत्य है। bharatnatyam dance which state in hindi भरतनाट्यम की पोशाक

bharatnatyam dance which state in hindi भरतनाट्यम किस राज्य का नृत्य है। भरतनाट्यम की पोशाक ?

आधुनिक भारतीय संगीत एवं प्रदर्शन कला
भारतीय शास्त्रीय नृत्य
प्रश्न: भरतनाट्यम
उत्तर: भरतनाट्यम तमिलनाडु का नृत्य है। यह भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित है। इसका विकास और आविर्भाव दक्षिण भारत के मंदिरों में देवदासियों द्वारा हुआ था। यह महिलाओं द्वारा प्रदर्शित गायन नृत्य है।
प्रश्न: कथकली
उत्तर: कथकली केरल की सबसे परिष्कृत और विस्तृत नियमावली वाली नृत्य शैली है। यह एक मूक नृत्य है, जिसमें नर्तक केवल हस्तमुद्राओं, चेहरे के हाव-भावों एवं नृत्य द्वारा अपने भावों से हिंदू पौराणिक कथाओं के मानवीय गुणों के विषय में बताते हैं।
प्रश्न: कुचिपुड़ी
उत्तर: यह आंध्रप्रदेश की नृत्य नाटिका है। इसकी विषय-वस्तु रामायण तथा महाभारत आदि से ली गयी है। कुचिपुड़ी नृत्य का आधार भागवत एवं पुराण हैं। यह नृत्य, नृत्य और अभिनय का मिश्रित स्वरूप है। यह पुरुषों का नृत्य है।
प्रश्न: कत्थक
उत्तर: कत्थक उत्तर भारत का मुख्य शास्त्रीय नृत्य है। जिसका विकास भारतीय संस्कृति पर मुगलों के प्रभावों से हुआ। कत्थक का मूल आधार महाकाव्यों की कथाएं हैं। इसका केन्द्र जयपुर, लखनऊ तथा बनारस है।
प्रश्न: ओडिसी
उत्तर: ओडिसी नाट्यशास्त्र पर आधारित उड़ीसा की लोकप्रिय नृत्य शैली है। यह नृत्य पहले मंदिरों में होता था, किंतु अब कलाकार इसका प्रदर्शन बहुविध कर रहे हैं। यह नृत्य अत्यंत शालीन एवं सुसंस्कृत है और भंगी (भंगिमाए) और करण इसके प्रमुख तत्त्व हैं।
प्रश्न: मणिपुरी
उत्तर: मणिपुरी नृत्य मणिपुर का है और इसकी शैली कोमल एवं प्रतीकात्मक है। इस नृत्य के द्वारा प्रकृति के विभिन्न परिवर्तनों को दर्शाया जाता है।
प्रश्न: मोहिनीअट्टम
उत्तर: यह केरल का मुख्य नृत्य है। यह देवदासी नृत्यों की ही एक शैली है, जो क्षीर सागर मंथन और भस्मासुर वध के प्रसंगों से प्रेरित है। यह मूलतः एकल नृत्य है।
भारत के प्रमुख लोक नृत्य एवं नाट्य
प्रश्न: चाक्यारक्रून्तु
उत्तर: केरल में आरंभ में आये आर्यों द्वारा इस शैली को शुरू किया गया था। यह मनोरंजन की परंपरागत शैली का नृत्य है। इसे केवल मंदिर में किया जाता था।
प्रश्न : छाऊँ नृत्य
उत्तर: यह नृत्य बंगाल में पुरूलिया, बिहार में सरई केला एवं उड़ीसा में मयूरभंज में छऊँ के नाम से जाना जाता है। सिर्फ पुरूलिया और सरई केला छऊँ में ही मुखौटा का प्रयोग किया जाता है। इसका आयोजन चैत्र पर्व पर किया जाता है। इसका आयोजन आदिवासी खेतिहर खुशहाली एवं शिकार के समय देवी-देवताओं की स्तुति हेतु करते हैं।
प्रश्न: भांड पाथेर
उत्तर: कश्मीर घाटी में मनोरजंन का सबसे लोकप्रिय माध्यम भांडेर पाथेर है। विशेषकर यह रंगमंच नाटक से संबंधित है जो वाद्य, नृत्य एवं नाटक का मिलाजुला रूप है।
प्रश्न: स्वांग
उत्तर: स्वांग राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं मालवा क्षेत्र में लोकप्रिय नृत्य, संगीत से जुड़ा नाटक है। नाटक के साथ-साथ स्वांग किया जाता है।
प्रश्न: माघ
उत्तर: मध्य प्रदेश का परंपरागत लोक नाटक जिसमें नृत्य, संगीत मिले हुये हैं। नाटकों के मुख्य चरित्र ऐतिहासिक तथा लोकप्रिय राजाओं एवं योद्धाओं से जुड़े होते हैं।
प्रश्न: भाओना
उत्तर: असम का लोकप्रिय नृत्य नाटक है। महान सुधारक एवं शिक्षाविद् शंकर देव इसके जनक माने जाते हैं।
प्रश्न: मुडिबेट्टू
उत्तर: दक्षिण एवं मध्य केरल के भद्रकाली मंदिरों में मनाया जाने वाला नृत्य-नाटक है। यह दारीकवा धाम की कथा जिसमें दारिका दानव की हत्या की जाती है, पर आधारित है।
प्रश्न: दशावातारं
उत्तर: यह गोवा एवं कोंकण क्षेत्र का सबसे विकसित नाट्यरूप है। मंचनकर्ता सृजन एवं संरक्षण के देवता विष्णु के दस रूपों का चित्रण किया जाता है।
प्रश्न: बिहू नृत्य
उत्तर: यह पूर्वोत्तर भारत में असम राज्य का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह मीरी, कचारी एवं खासी जनजाति के लोगों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। इस नृत्य का आयोजन वर्ष में तीन बार किया जाता है।
प्रश्न: रउफ
उत्तर: यह जम्मू-कश्मीर राज्य का सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है। इस नृत्य को स्त्रियां फसलों की कटाई हो जाने के पश्चात् करती हैं। इसमें नाचने वाली स्त्रियां आमने-सामने दो पंक्तियों में खड़ी होकर एक-दूसरे के गले में बाहें डालकर नृत्य करती हैं। इस नृत्य हेतु किसी भी वाद्ययंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता हैं।
प्रश्न: बैम्बू नृत्य
उत्तर: यह नागालैंड के आदिवासियों द्वारा किया जाने वाला प्रसिद्ध लोक नृत्य है। इसमें लकड़ी के बड़े-बड़े डंडी को लेकर नृत्य किया जाता है।
प्रश्न: यक्षगान
उत्तर: यह नृत्य की एक विधा है, जिसमें नृत्य के माध्यम से लोक कलाओं को प्रस्तुत किया जाता है। इसका प्रारंभ विजय नगर काल (14-15 सदी) में कलाकारों ने किया था।
प्रमुख गायन शैली
प्रश्न: ध्रुपद गायन शैली
उत्तर: यह गायन की प्राचीनतम एवं सर्वप्रमुख शैली है जिसका ‘उद्भव‘ ‘ध्रुव‘ नामक रूपक-प्रबंध से हुआ है।
ध्रुपद गायन की विभिन्न शैलियों को बानियां कहते हैं, जिसके चार भाग हैं –
1. गोवरहार: ग्वालियरवासी तानसेन की बानी
2. डागुर: डागर प्रदेश के ब्रजचंद की बानी
3. खंडार: खंडहार प्रदेशवासी श्रीचंद की बानी
4. नोहार: नोहर (राजस्थान) के मोहक चन्द की बानी ।
प्रश्न: ख्याल गायन शैली
उत्तर: यह एक स्वर प्रधान गायन शैली है। ‘ख्याल‘ एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ ‘कल्पना‘ होता है। 15वीं शताब्दी में सुल्तान मोहम्मद शाह शर्की की कोशिशों से इसको प्रसिद्धि मिली।
प्रश्न: ठुमरी गायन शैली
उत्तर: स्वरूप की दृष्टि से ठुमरी हल्की और प्रायः विषयासक्त है। यह एक भावप्रधान तथा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधान गीत है। इसमें कोमल शब्दावली तथा कोमल रागों का प्रयोग होता है।
प्रश्न: तराना गायन शैली
उत्तर: यह एक ककर्श प्राकृतिक राग है। इसमें अर्थहीन शब्दों की रचना होती है। इस शैली का भी प्रारंभ अमीर खुसरो ने किया था।
प्रश्न: टप्पा गायन शैली
उत्तर: यह हिन्दी मिश्रित पंजाबी भाषा का श्रृंगार प्रधान गीत है। यह एक कठिन तथा सूक्ष्म गायन शैली है। जिसकी उत्पत्ति पंजाब के पहाड़ी भागों में हुई। इसके विकास में शोरी मियां तथा उनके शिष्यों मियां गम्मू और ताराचंद का योगदान उल्लेखनीय है।
प्रश्न: धमार गायन शैली
उत्तर: इसका गायन होली के अवसर पर होता है जिसमें उछल-कूद एवं नाच-गान होता है। इसमें सबसे पहले वैष्णव संतों द्वारा रचित विशिष्ट पद गाए जाते हैं। धमार दो प्रकार के होते हैं – प्रकाश और गुप्त।
प्रश्न: गजल गायन शैली
उत्तर: गजलों का जनक ‘‘मिर्जा गालिब‘‘ को माना जाता है। गजलें विषयासक्त होने के कारण अधिक लोकप्रिय हैं। इसमें विशेष रूप से उर्दू भाषा में लिखित रचना को गाया जाता है।
प्रश्न: यक्षगान (नृत्य-नाट्य) के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर: यक्षगान कर्नाटक राज्य का लोक नृत्य है। यह भारत का अत्यन्त प्राचीन शास्त्रीय पृष्ठभूमि वाला एक अनूठा पारम्परिक नृत्य-नाट्य रूप है। इस नृत्य-नाट्य रूप का मुख्य तत्व धर्म से इसकी संलग्नता है, जो इसके नाटकों को सर्वाधिक सामान्य विषय-वस्तु प्रदान करता है। इसका प्रदर्शन भगवान गणेश की वंदना से प्रारम्भ होता है, जिसके उपरान्त एक हास्य अभिनय होता है। साथ ही साथ तीन सदस्यों के दल द्वारा बजाए जा रहे ‘चेन्दा‘ और ‘मेडाले‘ तथा एक ताल (घण्टियां) का पाश्र्व संगीत होता है। वाचक, जो दल का ही एक भाग होता है, भगवान कहलाता है तथा अनुष्ठान का मुखिया होता है। उसका प्राथमिक कार्य गीतों के माध्यम से कथा का वाचन, चरित्रों का परिचय देना, और यदाकदा उनसे वार्तालाप करना है। इसकी एक और विलक्षण विशेषता संवादों का नितान्त अनभ्यस्त और अलिखित प्रयोग है, जो इसे इतना विशेष बनाता है।
प्रश्न: नृत्य की शास्त्रीय शैलियां |
इन सभी नृत्यों ने एक व्यापक आधार तैयार किया है जिससे शास्त्रीय नृत्य की पुष्टि हुई है। शास्त्रीय नृत्य शैलियां प्रमुख रूप से सात प्रकार की हैं- तमिलनाडु और कर्नाटक का भरतनाटट्यम, केरल का शास्त्रीय नृत्य-नाटक कथकली, मणिपुर का मणिपुरी, उत्तर प्रदेश का कथक, ओडिशा का ओडिशी और आन्ध्र प्रदेश का कुचीपुड़ी तथा असम का सत्रिया, जिसे हाल ही में शास्त्रीय नृत्यों की सूची में शामिल किया गया है, प्रसिद्ध है। इनके वर्तमान स्वरूप से इनके दो से तीन सौ वर्षों से भी अधिक पुराने इतिहास का पता नहीं लगाया जा सकता है लेकिन इन सभी का भारत की प्राचीन और मध्यकालीन साहित्यिक, मूर्तिकलात्मक तथा संगीतात्मक परम्पराओं से एवं अपने क्षेत्र विशेष से संबंध है। ये सभी द्वितीय शताब्दी ईसवी में नाटट्यशास्त्र में निर्धारित शास्त्रीय नृत्य के सिद्धांतों का सतत पालन करते प्रतीत होते हैं। नाटट्यशास्त्र का श्रेय भरत मुनि को जाता है और यह माना जाता है कि इस बारे में भरत मुनि को सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने बताया था।
लोक रंगशाला और नृत्य-नाटक की जड़ें शास्त्रीय नृत्य तथा रंगशाला के समान ही थीं, इन दोनों की परम्पराओं के बारे में नाटट्यशास्त्र में विस्तार से बताया गया है। कालिदास भारत के सबसे प्रसिद्ध कवि और नाटककार हैं तथा इनके नाटकों का आज भी मंचन किया जाता है। अवध के अन्तिम शासक, नवाब वाजिद अली शाह एक जाने-माने नाटककार थे और उन्होंने अपने राजदरबार में नाटकों का व्यापक रूप से मंचन कराया था।
प्रश्न: मुहम्मदशाह रंगीला का संगीत कला में योगदान
उत्तर: संगीत भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग रहा है। अनादिकाल से इसकी कई परंपराएं बनती चली गई हैं, जिनका स्थाई मूल्य है। आधुनिक युग में भारतीय संगीत के विकास के विभिन्न चरणों का अध्ययन करते समय औरंगजेब के बाद के अंधकारमय दिनों को याद रखना होगा। कहा जाता है कि सम्राट मुहम्मद शाह रंगीला जो 1719 ई. में सिंहासन पर बैठे, संभवतः अंतिम मुगल सम्राट थे जिनके दरबार में ‘अदारंग‘ और ‘सदारंग‘ जैसे महान संगीतज्ञ थे। उन दिनों के एक
विख्यात गायक ‘शोरी‘ ने हिंदुस्तानी शैली की गायिकी का विकास किया, जिसका नाम ‘टप्पा शैली‘ है।