सूक्ष्म प्रवर्धन किसे कहते हैं | (Definition of micropropagation in hindi meaning) सूक्ष्म प्रवर्धन की परिभाषा

(Definition of micropropagation in hindi meaning) सूक्ष्म प्रवर्धन किसे कहते हैं | सूक्ष्म प्रवर्धन की परिभाषा ?

सूक्ष्म प्रवर्धन व संश्लिष्ट बीज
(Micropropagation and Synthetic Seeds)
परिचय (Introduction)
आवृतबीजी पादपों में सामान्यतः सभी पादप विषमयुग्मजी (heterozygous) होते हैं। इनमें से वांछित गुणों युक्त शोभाकारी या अन्य आर्थिक दृष्टि से उपयोगी पादप होते हैं उनका प्रवर्धन (grafting) कलिका रोपन (budding), दाब लगाना (layering) आदि विभिन्न कायिक जनन की विधियों द्वारा किया जाता है। इस विधि द्वारा जनक पादपों के उन्नत गुण संतति पादपों में गमन कर जाते हैं। उपरोक्त विधि द्वारा संतति प्राप्त करने में काफी लम्बा समय लगता है अतः कम समय में वांछित पादप तैयार करने हेतु वर्तमान में वैज्ञानिक सूक्ष्म प्रवर्धन की सहायता लेते हैं।
सूक्ष्म प्रवर्धन की परिभाषा (Definition of micropropagation)
सूक्ष्म प्रवर्धन उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें पादप के कायिक भागों के छोटे कर्तोतकों (explants) को संवर्धन माध्यम पर उगा कर पादप तैयार किये जाते हैं। यह पूर्ण रूप से जनक पादपों के समान होते हैं।
उपरोक्त प्रकार से उत्पन्न पादपों की संख्या ज्यादा होती है जो कम समय में तैयार हो जाते हैं यही कारण है कि आर्थिक रूप से लाभदायक पादप जैसे केला, इलायची, शोभाकारी पादपों का व्यापारिक स्तर पर उत्पादन हो रहा है। शोभाकारी पादपों को निर्यात किया जाता है व विदेशी कम्पनियों की मांग पर ही वांछित संख्या में पादप तैयार किये जाते हैं।
संतति पादपों का जीनप्ररूप (genotype) वांछित विभेद के जनक पादपों के समान ही होता है जैसा कि कायिक प्रवर्धन के दौरान देखा जाता है। सूक्ष्म प्रवर्धन में निम्न विधियाँ अपनाई जाती हैं-
(प) कक्षस्थ कलिका का प्रचुरण (Proliferation of axillary buds)
(पप) अपस्थानिक कलिका, शल्ककंद व घनकन्द आदि द्वारा प्रचुरण
(Proliferation by axillary buds, bulbs and protocorms)
(पपप) कायिक भ्रूणजनन (Somatic embryogenesis)
(प) कक्षस्थ कलिका का प्रचुरण (Proliferation of axillary buds)
वांछित पादप का छोटा सा कर्तोतक (explant) लेकर (प्ररोह का शीर्षस्थ भाग (shoot tip) या के पर्वसंधि वाले भाग (nodal segment)) ऐसे पोष पदार्थ (nutrient medium) पर संवर्धन करते हैं जिस ऑक्सिन या साइटोकाइनिन (1-3 mg/l) उपस्थित होता है।
साइटोकाइनिन की उपस्थिति में कर्तोतकों में उपस्थित कलिकायें प्ररोह में वद्धि कर लेती हैं। इन प्ररोह में उपस्थित जितनी भी पर्ण होती है प्रत्येक के कक्ष में एक छोटी कलिका निर्मित हो जाती है। कुछ जातियों में पर्ण के कक्ष में उपस्थित कलिका भी एक प्ररोह में परिवर्धित हो जाती है। इस तरह एक कर्तोतक से लगभग 5 सप्ताह में 5-6 तक प्ररोह परिवर्धित हो जाते हैं। एक साल तक अगर प्ररोह बनते रहें तो वर्ष के अन्त तक लगभग 510 – 610 प्ररोह प्रारम्भिक कर्तोतक से प्राप्त किये जा सकते हैं।
(पप) अपस्थानिक कलिका, शल्ककंद व घनकन्द आदि द्वारा प्रचुरण
(Proliferation by axillary buds, bulbs and protocorms)
अपस्थानिक कलिका पादप के वह भाग होते हैं जो नया पादप बनाने की पूर्ण क्षमता रखते हैं। इस प्रकार पुनर्जनित पादपों के आनुवंशिक लक्षण जनक पादपों के समान होते हैं।
कायिक क्लोनीय विविधता (Somaclonal variation)
जब सूक्ष्म प्रवर्धन की प्रक्रिया सम्पन्न की जाती है तब इस बात का ध्यान रखा जाता है कि अधिक कैलस नहीं बनें क्योंकि ज्यादा कैलस बन जाने से क्लोनीय विविधता उपस्थित हो सकती हैं जैसे तेल ताड़ के भ्रूणजनन के द्वारा जो पादपक उत्पन्न हुये उनमें 5ः पादपों में मादापन पाया गया जिससे पादपों की उत्पादकता घट गई। जितनी अवधि तक कैलस बनने दिया गया यह समस्या उतनी ही बढ़ती गयी अतः इससे उबरने के लिए कक्षस्थ कलिका के विकास पर आधारित प्रवर्धन विधियां अधिक उपयुक्त मानी जाती हैं। कुछ पादप जातियों में जिनमें कायिक जनन पाया जाता है उनमें कर्तोतकों से आदि घनकन्द, शल्ककंदिका पुनर्जनन अथवा बिना कैलस निर्मित हुए प्ररोह कलिका पर आधारित विधियां प्रचलित हैं। कक्षस्थ शाखन विधियों में कायिक क्लोनीय विविधता कम पायी जाती है अतः व्यवसायिक रूप में 4-5 चक्रों तक सूक्ष्म प्रवर्धन करने के पश्चात् वापस नया संवर्धन आरम्भ करते हैं। नवीन संवर्धन खेतों में मूल्यांकन किये गये पादपों से प्राप्त कर्तोतकों (explants) से आरम्भ किये जाते हैं।
सूक्ष्म प्रवर्धन की विधियाँ
सूक्ष्म प्रवर्धन के लिए संवर्धन माध्यम पर स्वस्थ कैलस से निम्न चरणों में सूक्ष्म प्रवर्धन किया जाता है-
पहला चरणरू इसमें एक स्वस्थ मातृ पादप का चयन किया जाता है तथा इसके निर्जमित कर्तोतक तैयार करके उपयुक्त पोष पदार्थ पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है। अगर एकबीजपत्री का पुनर्जनन करना हो तो 2ए4क् का इस्तेमाल करना चाहिए अन्यथा नहीं । प्ररोह बनाने वाले संवर्धन को प्रकाश की उपस्थित में 12 से 16 घंटा प्रतिदिन 2500 लक्स में रखा जाता है।
दूसरा चरणरू इस चरण में प्ररोह बनाते हुए कर्तोतक लिये जाते हैं। पात्रे उत्पादित प्ररोहों से पुनः कर्तोतक का उपयोग किया जाता है जिससे अधिक संख्या में प्ररोह बन जाते हैं।
प्ररोह को किसी भी कर्तोतक जैसे कक्षस्थ कलिका, अपस्थानिक कलिका अथवा कायिक भ्रूणजननध्आर्किड में प्ररोहों का उत्पादन आदि घनकंद (protocorm) द्वारा किया जाता है।
पहले व दसरे चरण में एक ही पदार्थ का पोष पदार्थ इस्तेमाल किया जाता है। प्ररोह अधिक निर्मित करने के लिए हालांकि इनमें कुछ अधिक मात्रा में साइंटोकाइनिन व नाइट्रोजन मिला दिया जाता है।
तृतीय चरणरू पूर्ण पादपकों का उत्पादन विलग करे हुए प्ररोह में जड़ों अथवा कायिक भ्रूण के अकुरण से प्राप्त कर सकते हैं जड़ों के उत्पादन के लिए एक विशेष लम्बाई के प्ररोहों की जरूरत है जिन्हें पोष पदार्थ के घटकों में बदलाव करके किया जा सकता है। उचित आकार के प्ररोह प्राप्त करने के पश्चात जडें उत्पन्न करने हेतु उन्हें पोष पदार्थ पर स्थानन्तरित कर देते हैं। कुछ स्थितियों में कुछ सैकण्ड से लेकर कछ मिनट तक ऑक्सिन की अधिक सान्द्रता वाले विलयन में प्ररोह का निचला हिस्सा कुछ समय तक डुबोकर ऐसे पोष पदार्थ पर स्थानान्तरित करते हैं जिसमें ऑक्सिन अनुपस्थित होता है।
कुछ वृक्ष की जातियां जिनमें जड़े उत्पन्न करना कठिन होता है उनके पोष पदार्थ तथा वाता में निम्न बदलाव किये जा सकते हैं-
(ं) सक्रियत (activated) चारकोल मिश्रित करना ।
(इ) तरल पोष पदार्थ पर फिल्टर पेपर को सेतु के रूप में रखकर जड़े उत्पन्न करवाना
(ब) तापक्रम उच्च रखना
जड़े उत्पन्न करने के लिए संवर्धन को कम प्रकाश 200 से 1000 लक्स पर रखते हैं या कल्चर आधारी भाग को काले कागज से ढक देते हैं जिससे जड़ें आसानी से उत्पन्न हो सके। अगर पोल माध्यम में लवणों की मात्रा कम होगी तब जड़ें आसानी से उत्पन्न हो सकती हैं। कुछ पादप जारी जो कायिक जनन करने में सक्षम होती हैं उनमें प्ररोह के आधारी भाग को ऑक्सिन के घोल में डुबोकर गमले में लगाने पर जड़ें शीघ्र ही आसानी से उत्पन्न होकर कायिक जनन में सहायता प्रदान करती है।
चतुर्थ चरणरू इस चरण में पादपक (plantlets) का कठोरीकरण करके उसको गमले या खेत में लगाया जाता है। कठोरीकरण से वह कम नमी व अधिक ताप सहने में सक्षम होते हैं। कठोरीकरण करने हेतु पादपकों को पोष पदार्थ युक्त पात्र से बाहर निकाल कर जल से धोते हैं ताकि उस पर लगा हुआ अगार हट जाये। इन पादपकों को 1 : 2 मिश्रण युक्त वर्मीक्यूलाइट में स्थानान्तरित करके आर्द्र घर म रख दिया जाता है जहां इनके गमलों में पोष पदार्थ का तनु (dilute) विलयन डाला जाता है। धीरे धीरे इन गमलों की आर्द्रता कम करते रहते हैं ताकि इनकी ऊपरी सतह पर क्यूटिकल निर्मित हो सके व कठोरीकरण की प्रक्रिया पूरी हो जाये । कुछ समय पश्चात् पादपक युक्त इन गमलों को ग्रीन हाउस में रख दिया जाता है जहां ताप को नियंत्रित नहीं किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर इन गमला से पादपकों को खेत या जहां आवश्यक हो वहां स्थानान्तरित किया जा सकता है।
सक्ष्म प्रवर्धन व संश्लिष्ट बीज
सूक्ष्म प्रवर्धन के उपयोग
1. इसके द्वारा एक साल में काफी संख्या में पादप प्राप्त कर सकते हैं।
2. इसमें छोटे कर्तोतक इस्तेमाल करते हैं अतः कम ऊतक की उपलब्धता पर भी संवर्धन संभव होता है।
3. इस विधि से स्वस्थ, रोगरहित पादप तैयार किये जा सकते हैं।
4. पादप छोटे होने के कारण इनको आसानी से पैक कर सकते हैं।
5. एकलिंगी पादपों में जिस पादप का चाहें उसका गुणन कर सकते हैं।
6. शोभाकारी पादपों में सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा प्राप्त पादपों की वृद्धि अच्छी होती है। फूल ज्यादा बनते हैं व अधिक समय तक ताजा रहते हैं।
7. सूक्ष्म प्रवर्धन की प्रक्रिया वर्ष भर चलती रहती है।
सूक्ष्म प्रवर्धन की सीमायें
1. उत्पादन लागत काफी अधिक होती है।
2. कुछ आर्थिक महत्व के पादप जैसे आम, नारियल आदि के लिए अनुपयोगी है।
3. कैलस अधिक बनने पर कायिक क्लोनीय विविधता का भय रहता है।
4. कुछ जातियों में भंगुर पादप बन सकते हैं जो आगे पूर्ण रूप से वृद्धि नहीं कर पाते हैं।
कायिक भ्रूणजनन (Somatic embryogenesis)
कायिक भू्रणजनन या तो संवर्धन माध्यम में कर्तोतक (explant) पर अथवा इससे उत्पन्न कैलस पर निर्मित होते हैं। कैलस से उत्पन्न कायिक भ्रूण जनन (somatic embryogenesis) द्वारा क्लोनीय विविधता उत्पन्न होने से आनुवंशिक स्थिरता (genetic stability) निश्चित नहीं रहती है। कोशिका संवर्धन में संपुटन (encapsulation) द्वारा संशलिष्ट बीज (synthetic seeds) बनाने हेतु कायिक भू्रणजनन का काफी महत्व है क्योंकि जैव रिएक्टर (bioreactors) में सोपानन के लिए यह बहुत उपयोगी होते हैं । इस विधि से उन फसलों व पादपों के बीज बनाये जाते हैं जिनमें आनुवंशिक स्थिरता की बहुत आवश्यकता नहीं होती है।
कुछ पादप जैसे डॉकस केरोटा, ऐल्फा ऐल्फा आदि में जैव रिएक्टर में कायिक भू्रणजनन की विधि का मानकीकरण कर लिया गया है। इसके लिए स्वचालित (automatic) विधि भी विकसित कर ली गयी है तथा यह शल्ककंदिकाओं (bulblets) सूक्ष्म कंदों के लिए तथा पादपकों (plantlets) के प्रतिरोपण के लिए भी प्रयुक्त की जाती है।
यैलो पॉपलर में कायिक भ्रूण बनने के लिए इसे निलबंन कोशिक समूहों को अल्ट्रासीव से छान कर 38-140 um के भू्रणजनन (embrogenic) कोशिका समूहों को अलग करके फिल्टर पेपर पर रख कर वृद्धि नियामक रहित अगार पोष माध्यम पर संवर्धित कर लेते हैं जिससे कायिक भू्रण उत्पन्न हो जाते हैं। कायिक भू्रण द्वारा सलिष्ट बीज बनाये जाते हैं।
कायिक भू्रणजनन की समस्या
(1) बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव नहीं होता
(2) कायिक भू्रण कम गुणवत्ता युक्त होते हैं।
(3) यह खर्चीली तकनीकी है।
(4) कायिक क्लोनिंग विविधता जाती है।