austerity and indebtedness in hindi meaning मितव्ययिता और अपमितव्ययिता की परिभाषा क्या है | किसे कहते है ?
मितव्ययिता : अधिक से अधिक पैसे आदि बचाने का प्रकृति को मितव्ययिता और अंधाधुंध धन (पैसे) आदि को खर्च करने की प्रवृति को अपमितव्ययिता कहते है | ये दोनों शब्द एक दुसरे के पर्यायवाची है |
फर्म के आकार को प्रभावित करने वाले घटक
फर्म के अनुकूलतम आकार को निर्धारित करने वाला घटक बड़े पैमाने की मितव्ययिता का अस्तित्व है। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि फर्म का अनुकूलतम आकार (प) बड़े पैमाने की मितव्ययिता और (पप) बड़े पैमाने की अपमितव्ययिता पर निर्भर करता है।
जब तक किसी उत्पादन इकाई को अपने उत्पादन क्षमता में विस्तार से बड़े पैमाने की मितव्ययिता का लाभ पहुँचता है तब तक इसका दीर्घकालीन उत्पाद फलन पैमाने की उत्पत्ति वृद्धि नियम के अधीन होगा। ऐसी उत्पादन इकाई के दीर्घकालीन औसत लागत वक्र में निरंतर अधोमुखी गिरावट आएगी। यदि एक उत्पादन इकाई इस प्रकार के उत्पादन प्रणाली के अधीन है तो इसे क्षमता का विस्तार करने, कम लागत पर उत्पादन करने तथा अपना उत्पाद कम मूल्य पर बिक्री के लिए पेश करने एवं तैयार उत्पाद के लिए और अधिक माँग पैदा करने से सदैव लाभ होगा।
किंतु जैसा कि हम नीचे देखेंगे, अधिकांशतया क्षमता की एक सीमा से आगे जिस पर उत्पाद फलन पैमाने के ह्रासमान उत्पत्ति नियम के अधीन हो जाता है, आदान और निर्गत के बीच तकनीकी संबंध बदलता है। इस बिंदु से आगे, बड़े पैमाने की मितव्ययिता का स्थान बड़े पैमाने की अपमितव्ययिता ले लेती है। आदान में प्रत्येक वृद्धि के परिणामस्वरूप निर्गत में समानुपातिक से कम वृद्धि होती है, उत्पादन के दीर्घकालीन औसत लागत में वृद्धि होने लगती है।
पैमाने की उत्पत्ति वृद्धि और पैमाने की उत्पत्ति ह्रास दोनों स्थितियों के बीच क्षमता का एक ऐसा बिंदु (अथवा सीमित क्षेत्र) हो सकता है जहाँ बड़े पैमाने की मितव्ययिता और बड़े पैमाने की अपमितव्ययिता में संतुलन स्थापित हो जाता है अर्थात पैमाने का स्थिर उत्पादन होने लगता है। इसी बिंदु (अथवा सीमित क्षेत्र में) पर दीर्घकालीन औसत लागत न्यूनतम है। इसे न्यूनतम दक्षता पैमाना (एम ई एस) की अवधारणा भी कहा जाता है।
यह बिन्दु एक फर्म से दूसरे फर्म में, एक उत्पाद से दूसरे उत्पाद में, एक उद्योग से दूसरे उद्योग में, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में अलग-अलग हो सकता है। इस अंतर के कारण क्या हैं?
हम एक फर्म द्वारा उत्पादन का पैमाना बढ़ाने पर फर्म को होने वाली बड़े पैमाने की मितव्ययिता अथवा अपमितव्ययिता के कारणों का अध्ययन करेंगे।
एक फर्म के लिए अनुकूलतम आकार के सभी पैमाना घटकों अथवा निर्धारकों को उनकी प्रकृति के आधार पर छः श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। ये इस प्रकार हैं:
प) तकनीकी घटक, जो किसी फर्म का तकनीकी दृष्टि से अनुकूलतम आकार निर्धारित करते हैं।
पप) प्रबन्धकीय घटक, जो फर्म को एक अनुकूलतम प्रबन्धकीय इकाई बनाने के लिए प्रासंगिक होते हैं।
पपप) वित्तीय घटक, जो फर्म को अनुकूलतम वित्तीय इकाई बनाने के लिए प्रासंगिक होते हैं।
पअ) विपणन घटक जो फर्म को अनुकूलतम बिक्री इकाई बनाते हैं।
अ) जोखिम और उतार-चढ़ाव घटक जो परिवर्तनशील अनिश्चित औद्योगिक परिवेश में अस्तित्त्व बनाए रखने के लिए फर्म को पर्याप्त रूप से सुदृढ़ बनाते हैं।
अप) बड़ी इकाइयों को होने वाली आर्थिक लाभों सहित अन्य घटक ।
यहाँ पर, विद्यार्थियों के लाभ के लिए हम यह भी बता दें कि यह आवश्यक नहीं है कि यह सभी पैमाना घटक लगभग समरूप आकार का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इस तरह की विरोधाभासी परिस्थितियाँ भी हो सकती हैं जिसमें कोई घटक बड़े आकार का तो कोई घटक छोटे आकार की हिमायत करता है। कुछ संतुलनकारी समायोजन भी करना होगा ताकि किन्हीं परिस्थितियों में बड़ा आकार लाभप्रद हो तो वही कुछ भिन्न परिस्थितियों में लघु आकार लाभप्रद हो। हमारे पास इन अलग-अलग परिस्थितियों पर विचार करने का अवसर होगा।
इस समय हम यह मान लेते हैं कि संयंत्र के आकार और बड़े पैमाने की मितव्ययिता के बीच स्पष्ट संबंध है। भारत में विभिन्न उद्योगों की लागत संरचना में अन्तर-आकार भिन्नता के संबंध में एम. मेहता के शोध निष्कर्षों से पुष्टि होती है कि आकार में वृद्धि के साथ लागत में गिरावट का रुझान दिखाई पड़ता है, हालांकि गिरावट की दर सभी आकार श्रेणियों में बराबर हो, यह आवश्यक नहीं। संक्षेप और सरल प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से हम सभी छः श्रेणियों को दो समूहों में रखेंगे:
क) तकनीकी घंटक; और
ख) अन्य निर्धारक।
तकनीकी घटक
यह घटकों की मुख्य श्रेणी है जिसके कारण उत्पादन में बड़े पैमाने की वास्तविक मितव्ययिता आती है और यह हमारे द्वारा फर्म के अनुकूलतम आकार के निर्धारण में सहायक होती है। तकनीकी घटक अधिकांशतया फर्म का आकार बढ़ाने के पक्ष में सक्रिय रहते हैं। फर्म के आकार में वृद्धि से विभिन्न तकनीकी घटकों का अधिकतम लाभ उठाया जा सकता है।
श्रम विभाजन और विशेषज्ञता
श्रम की यथेष्ट विशेषज्ञता के और बड़े पैमाने पर उत्पादन में कार्यों को छोटे-छोटे खंडों में बाँटना सुगम हो जाता है जिसे इसी उद्देश्य के लिए विशेष रूप से डिजायन किए गए मशीनों से किया जा सकता है। यदि इस प्रकार का श्रम विभाजन अपनाया जाए तो इससे तीन विशेष लाभ हो सकते हैं। ये निम्नवत् हैं:
प) प्रत्येक कर्मकार की कार्यकुशलता में वृद्धि;
पप) एक कर्मकार को एक काम से हटाकर दूसरे काम में लगाने और औजारों तथा उपकरणों को लाने ले जाने में समय की होने वाली बर्बादी की बचत; और
पपप) बड़ी संख्या में विशेषीकृत मशीनों का आविष्कार जिससे श्रम सुगम होता है और एक ही व्यक्ति कई कार्य करने में समर्थ हो जाता है।
अविभाज्यता
उत्पादन के सिद्धान्त में, हम मान लेते हैं कि उत्पादन के घटक जैसे मानव और मशीन पूर्णतया विभाज्य हैं। तथापि, व्यवहार में इस प्रकार के घटक अविभाज्य होते हैं। इस प्रकार के घटकों से विशेषकर अल्पकाल में उनके पूर्ण उपयोग किए जाने तक, उन पर अतिरिक्त व्यय किए बिना बढ़ते हुए निर्गत से मितव्ययिता प्राप्त होती है।
अविभाज्यता तत्त्व को केवल उत्पादन के घटकों तक सीमित रखने की आवश्यकता नहीं है। यह फर्म के प्रकार्यात्मक क्षेत्रों जैसे अनुसंधान और डिजायन इकाई, मरम्मत और रखरखाव इकाई, विपणन, वित्त, प्रसंस्करण इत्यादि में भी विद्यमान रह सकता है। फर्म के अनुकूलतम आकार के निर्धारण में इन सभी का पर्याप्त महत्त्व है।
बड़ी मशीनों की मितव्ययिता
यदि फर्म पर्याप्त रूप से बड़ी है, तो यह उत्पादन में लाभप्रद रूप से बड़ी मशीनों और उपकरणों का उपयोग कर सकती है।
पूँजी का आदान बढ़ते हुए आकार के साथ मितव्ययितापूर्ण प्रचालन के लिए सर्वोत्तम अवसर उपलब्ध कराता है क्योंकि यह पैमाने के उत्पादन में वृद्धि करने का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रकट स्रोत है । पूँजी के कुछ मद जैसे सड़क, विद्युत-लाइन इत्यादि विविधतापूर्ण निर्गत के लिए स्थिर रह सकते हैं। इस संबंध में एक सूत्र विकसित किया गया है जिसे दशमलव छः (0.6) नियम के नाम से जाना जाता है। इस नियम के अनुसार 0.6 में बताए गए
समान दर पर पूँजी लागत में वृद्धि होती है; अर्थात् निर्गत में वृद्धि की दर की तुलना में अधिक धीमी गति से वृद्धि होती है। यह नियम उन औद्योगिक प्रक्रियाओं पर अधिक स्पष्ट रूप से लागू होता है जहाँ पूँजीगत उपकरणों के प्रमुख मदों में गोलाकार अथवा बेलनाकर वस्तुएँ शामिल हैं जैसे भट्ठा, ग्लास फर्नेस, स्टोरेज टैंक इत्यादि। इस बात के प्रमाण हैं कि दशमलव छः (0.6) नियम कम से कम अनेक उद्योगों, जिनमें अल्यूमिनियम, इन्गॉट (धातु पिंड), सीमेन्ट विनिर्माण, ऑक्सीजन का उत्पादन, सिन्थेटिक अमोनिया और रसायन शोधन की अन्य शाखाओं, बेहतर रसायनों का उत्पादन और सागर में जाने वाले बड़े टैंकर सम्मिलित है, में कम से कम प्रमुख प्रक्रियाओं पर लागू होता है।
कई अन्य उदाहरण भी हैं जो इस तर्क की पुष्टि करते हैं कि बड़ी मशीनें या संयंत्र अधिक दक्ष होते हैं। इसलिए, एक फर्म अपने आकार के चयन में अधिक सचेत रहेगा तथा इसका चयन इस प्रकार से करेगा कि उसे भी बड़ी मशीनों और संयंत्र के उपयोग से होने वाली बड़े पैमाने की मितव्ययिता का लाभ प्राप्त हो।
प्रचालन में मितव्ययिता
फर्म के प्रकार्यात्मक क्षेत्रों के साथ कतिपय अविभाज्यता सम्बद्ध होते हैं जो दक्षता के लिए बृहत् आकार का हिमायत करते हैं। दो विशेष क्षेत्र हैं जहाँ हम प्रचालन खर्चों पर फर्म के आकार के यथेष्ट प्रभाव की आशा कर सकते हैं, वे हैं आवश्यक सामग्रियों का भण्डार और प्रसंस्करण इकाई में उत्पादन प्रक्रिया की दीर्घावधि। फर्म का आकार जितना बड़ा होगा, आदानों का इकाई स्टॉक लागत (यूनिट इन्वेंटरी कॉस्ट) और उत्पाद स्टॉक लागत (प्रोडक्ट इन्वेंटरी कॉस्ट) दोनों कम होगा।
सम्बद्ध प्रक्रियाओं में मितव्ययिता
जब विभिन्न विजातीय प्रक्रियाएँ एक ही छत के नीचे स्थित होती हैं, तब फर्म को इस व्यवस्था से लाभ होता है। इससे फर्म की विपणन लागतों, परिवहन लागतों, तापक और प्रशीतक लागतों तथा पैकेजिंग लागतों इत्यादि जैसी कतिपय महत्त्वपूर्ण लागतों में बचत होती है।
सीखने का प्रभाव
यह सामान्यतः मान लिया जाता है कि समय बीतने के साथ कर्मकार जैसे-जैसे ‘‘काम करने के साथ सीखता‘‘ जाता है उसकी दक्षता बढ़ती जाती है और समय बीतने के साथ संयंत्र की कार्य कुशलता भी साथ-साथ बढ़ती जाती है। इसे ही हम कार्यकुशलता के संदर्भ में ‘‘सीखने का प्रभाव‘‘ कहते हैं।
बोध प्रश्न 2
1) आप बड़े पैमाने की मितव्ययिता और अपमितव्ययिता से क्या समझते हैं?
2) विनिर्माण संयंत्र के लिए बड़े पैमाने की मितव्ययिता के कुछ महत्त्वपूर्ण स्रोतों का उल्लेख
कीजिए।
3) दशमलव छः (0.6) नियम क्या है?