ऑगस्ट कॉम्टे के समाजशास्त्र की परिभाषा | के सिद्धांत जीवन परिचय Auguste Comte in hindi जनक

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ऑगस्ट कॉम्ट (1798-1857)
कॉम्ट का जन्म 1798 में हुआ जब फ्रांसीसी क्रांति में उबाल आ रहा था। उस समय ऐसी बहुत सी घटनाएं घटित हो रही थीं जिन्होंने आधुनिक विश्व की नींव रखने का काम किया था।

आपने पूर्ववर्ती इकाई में देखा कि फ्रांसीसी क्रांति के बाद यूरोप की सामाजिक व्यवस्था में कितने विध्वंसकारी परिवर्तन हो रहे थे। कॉम्ट के विचारों को पूरी तरह से समझने के लिए हमें इस बात पर गौर करना होगा कि कॉम्ट का अपने समय के लोगों और समाज के सामने आने वाली समस्याओं से कितना परजोश सरोकार था। आइए, अब उसके जीवन परिचय पर एक दृष्टिपात करें।

 जीवन परिचय
फ्रांसीसी समाजशास्त्री ऑगस्ट कॉम्ट (1798-1857) का जन्म एक कैथोलिक परिवार में फ्रांस के मौंटपेलियर नामक स्थान में हुआ था। उसके माता-पिता फ्रांस की शाही सत्ता के समर्थक थे। वर्ष 1814 में उसने फ्रांस के एक सर्वाधिक प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान, ईकोल पोलीटेकनीक (म्बवसम चवसलजमबीदपब) में प्रवेश लिया। यहां के अधिकांश प्रोफेसर गणित तथा भौतिकी के प्रतिष्ठित विद्वान थे। उनकी समाज के अध्ययन में कोई खास रुचि नहीं थी। लेकिन युवा कॉम्ट क्रांति के कारण फ्रांस में व्याप्त सामाजिक अव्यवस्था के प्रति काफी संवेदनशील था और इसीलिए उसकी मानव व्यवहार तथा समाज के अध्ययन में काफी दिलचस्पी थी। कॉम्ट ने ईकोल पोलीटेकनीक में विद्यार्थी आंदोलन में भाग लिया और इसीलिए उसे वहां से निष्कासित कर दिया गया।

ईकोल पोलीटेकनीक में वह एल.जी. बोनाल्ड तथा जोसफ द मैत्रे जैसे परंपरावादी सामाजिक दार्शनिकों के प्रभाव में आया। उसने मानव समाज के विकास को संचालित करने वाली व्यवस्था के बारे में धारणा उन्हीं दार्शनिकों से ली। फ्रांस के एक अन्य प्रमुख दार्शनिक कोन्डरसेट (जिनका बाद में शिरोच्छेद (इमीमंकमक) कर दिया गया) से उसने यह विचार ग्रहण किया कि यह विकास मानव समाजों में हुई प्रगति के साथ-साथ होता रहता है। वर्ष 1824 में ऑगस्ट कॉम्ट सेंट साइमन का सचिव बन गया। सेंट साइमन जन्म से तो अभिजात्य किंतु विचारों से यूटोपियाई समाजवादी (नजवचपंद ेवबपंसपेज) था। कॉम्ट जल्दी ही सेंट साइमन का घनिष्ठ मित्र तथा शिष्य बन गया और साइमन की प्रेरणा से कॉम्ट की रुचि अर्थशास्त्र में हो गई। इसी समय कॉम्ट ने समाज के विज्ञान की एक सामान्य अवधारणा का प्रतिपादन किया जिसे उसने समाजशास्त्र की संज्ञा दी।

कॉम्ट की मुख्य आकांक्षा मानव समाज का राजनीतिक पुनर्गठन करने की थी। उसका विचार था कि इस तरह के पुनर्गठन को समाज की आध्यात्मिक तथा नैतिक एकता पर निर्भर होना डोगा। इसके लिए सेंट साइमन के साथ मिलकर कॉम्ट ने कई प्रमुख विचारों को प्रतिपादित किया। कॉम्ट तथा साइमन की यह मित्रता लंबे समय तक नहीं चली और उनकी आपस में अनबन हो गई। बाद में कॉम्ट ने अपने कुछ व्याख्यानों को ‘‘कोर्स द फिलोसॉफी पॉजिटिव‘‘ (ब्वनते कम चीपसवेवचीपम चवेपजपअम, पेरिस 1830-42) में प्रकाशित किया। इस कृति में उसने तीन अवस्थाओं के नियम के बारे में लिखा और समाज के विज्ञान से जुड़ी अपनी अवधारणा को व्यक्त किया। इस कृति पर काम करते हुए उसने दिमागी सफाई (बमतमइतंस ीलहपमदम) के सिद्धांत की खोज की जिसके परिणामस्वरूप उसने अपने दिमाग को दूषण से बचाने के लिए अन्य विद्वानों की कृतियां पढ़ना बंद कर दिया।

1851-1854 के बीच कॉम्ट ने सिस्टम आफ पॉजिटिव पॉलिटिक्स (4 खंडों में) नामक शोध प्रबंध लिखा। इस प्रबंध के द्वारा उसने सैद्धांतिक समाजशास्त्र की खोजों को अपने समाज की सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु प्रयुक्त करने की चेष्टा की। इसी अवधि के दौरान उसकी क्लोटिल्डे द वा से मुलाकात हुई और वह कॉम्ट की घनिष्ठ मित्र बन गई। मुलाकात के एक वर्ष बाद ही 1846 में उसकी मृत्यु हो गई। क्लोटिल्डे की मृत्यु ने कॉम्ट के विचारों को इस हद तक प्रभावित किया कि वह रहस्यवाद तथा धर्म की ओर मुड़ गया। सिस्टम्स आफ पॉजिटिव
तीन अवस्थाओं के नियम
प) विज्ञानों का श्रेणीक्रम
प) स्थैतिक एवं गतिशील समाजशास्त्र
पप) सकारात्मक पद्धति चित्र
चित्र 2.1ः ऑगस्ट कॉम्ट (1798-1857)
पॉलिटिक्स में प्रतिपादित उसके विचार आंशिक रूप से प्रत्यक्षवाद से हटकर मानव धर्म की संरचना की ओर अग्रसर हो गए। विचारों में आए इस परिवर्तन के कारण उसके बहुत से शिष्य तथा बौद्धिक मित्र जैसे इंग्लैंड के जे.एस. मिल उससे विमुख हो गए। उसने सामाजिक पुनरुत्थान के मसीहा की अपनी भूमिका को इतनी गंभीरता से लिया कि उसने रूस के राजा को समाज के पुनर्गठन के संबंध में अपने विचारों की एक योजना बनाकर भेज दी। लेकिन उसकी कृतियों को उसके जीवनकाल में फ्रांस में कोई मान्यता नहीं मिली। उसकी मृत्यु के पश्चात् 1857 में, (जो भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण वर्ष है) पहले इंग्लैंड में और फिर फ्रांस तथा जर्मनी में उसके विचारों को बहुत लोकप्रियता मिली। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के फ्रांसीसी वैज्ञानिक आंदोलन में कॉम्ट विचारधारा की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। इस आंदोलन का प्रतिनिधित्व टेने, रेनान, बर्थलोट और इंग्लैंड के जे.एस. मिल जैसे चिंतकों ने किया था।

 कॉम्ट का सामाजिक परिवेश
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों के दौरान फ्रांस का बौद्धिक वातावरण नए, समालोचन तथा तर्क आधारित विचारों के विकास के अनुकूल था। प्राकृतिक विज्ञानों और गणित के क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियां गौरव की वस्तु थीं तथा नई पद्धतियों के उपयोग तथा अनुप्रयोग में एक नए विश्वास का संचार हुआ था। आपको यह मालूम ही है कि प्रबोधन दार्शनिकों (म्दसपहीजमदउमदज चीपसवेवचीमते) ने प्रगति तथा मानव तर्कबुद्धि के विचारों को बहुत महत्व दिया था।

ऑगस्ट कॉम्ट फ्रांसीसी क्रांति द्वारा हुए सामाजिक विनाश से भी प्रभावित हुआ था। वह फ्रांसीसी क्रांति के परिणामों के बीच रह रहा था। वह उस समय की अव्यवस्था और जनता की भौतिक तथा सांस्कृतिक निर्धनता से लगातार परेशान और बेचैन रहता था। उसकी मौलिक और जीवनपर्यन्त धुन यह रही कि अव्यवस्था की जगह व्यवस्था कैसे प्रतिस्थापित हो और समाज की आमूल पुनर्रचना कैसे की जाए।

उसके विचार में फ्रांसीसी क्रांति मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ की द्योतक है। पुरातन प्रणाली समाप्त हो चुकी थी और उस समय का मौजूदा समाज वैज्ञानिक जानकारी तथा औद्योगीकरण के क्षेत्र में हुए नए विकासों को अपनाने में अक्षम था। परिवर्तनों के अनुरूप सामाजिक संस्थाओं की नई व्यवस्था के पैर अभी नहीं जम पाए थे। अव्यवस्था की इस स्थिति में जनता भी चकरा रही थी। लोगों के विचार भी दिशाभ्रमित थे। विश्वास तथा ज्ञान के बीच चैड़ी खाई थी। दूसरे शब्दों में इस अवधि के दौरान पारंपरिक मूल्य व्यवस्था गड़बड़ा गई थी। लोगों के सांस्कृतिक मूल्यों तथा लक्ष्यों में न तो संगति थी, न आत्मविश्वास और न कोई निश्चित उद्देश्य । पुरानी वफादारियां खत्म हो चुकी थीं और नई वफादारियों की जड़ें नहीं जमी थीं इसलिए लोग बड़े भ्रम की स्थिति में थे। नए जटिल, औद्योगिक समाज के लिए एक नई नीति, चिंतन तथा कर्म की एक नई व्यवस्था की जरूरत थी। लेकिन इस पुनर्रचना के लिए ज्ञान के एक विश्वसनीय आधार की जरूरत थी।

कॉम्ट ने यह प्रश्न उठाया कि ज्ञान के इस महल को किस तरह बनाया जाए। इस बारे में कॉम्ट का उत्तर था कि लोगों को इस दिशा में खुद पहल करनी होगी और एक ऐसे विज्ञान को ढूँढना होगा जो उन्हें विश्व के प्रति एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करे।

अब यह संभव नहीं था कि देवताओं, धार्मिक तथा पारभौतिक शक्तियों, विश्वास तथा कर्म के पारंपरिक तरीकों का सहारा ढूँढा जाए। अब लोग अपने भाग्य के लिए खुद ही जिम्मेदार थे और इसीलिए उन्हें अपना समाज स्वयं ही तैयार करना था।

नये उत्तर देने के प्रयास में ही कॉम्ट ने समाजशास्त्र से संबंधित अपने मुख्य विचारों का प्रतिपादन किया। कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित मुख्य विचारों का अध्ययन करने से पूर्व आइए, हम आपको कॉम्ट के चिन्तन पर सेंट साइमन के विचारों के प्रभाव के विषय में बताएं देखेंय कोष्ठक 2.1ः सेंट साइमन (1760-1825)। सेंट साइमन (1760-1825) के बारे में जानना इसलिए भी जरूरी है कि कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित बहुत से विचारों की जड़ें सेंट साइमन की रचनाओं में देखने को मिलती है। वास्तव में कॉम्ट ने जब सेंट साइमन के सचिव के रूप में कार्य किया था तभी दोनों ने मिलकर समाज के विज्ञान का विचार प्रतिपादित किया था।

बोध प्रश्न 1
प) निम्नलिखित में से किस किस को कॉम्ट के सिद्धांत का एक हिस्सा माना गया है ?
क) विकास की तीन अवस्थाओं का नियम
ख) प्राकृतिक विज्ञानों के अनुरूप समाज के विज्ञान की रचना पर बल देना
ग) समाज के विकास की तीन अवस्थाओं में से एक लोकतांत्रिक अवस्था है।
घ) विकास की अंतिम अवस्था सकारात्मक अवस्था है।
ड़) सबसे पहले जन्म लेने वाले विज्ञानों में से एक विज्ञान समाजशास्त्र है।
च) तत्वमीमांसक अवस्था में मस्तिष्क किसी घटना को प्रकृति समान अमूर्त अस्तित्व के माध्यम से विवेचित करता है।
छ) सकारात्मक विज्ञान का काम नियमों की खोज करना है।
ज) प्रत्यक्षवाद को परिवर्तन का आधार भी समझा गया है।
पप) कॉम्ट के समाजशास्त्र की तीन मुख्य धारणाएं बताइए।
पपप) समाज में श्रम विभाजन पर कॉम्ट के विचारों का विवेचन करिए। उत्तर तीन पंक्तियों में दीजिए।
पअ) समाज का विज्ञान जिसे समाजशास्त्र कहा जाता है लोगों के प्रारंभिक विचारों से कैसे भिन्न है? तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए।

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) क, ख, घ, च, छ, ज
पप) क) कॉम्ट समाज के वैज्ञानिक नियमों का निर्माण करना चाहता था।
ख) कॉम्ट ने स्थैतिकी तथा गतिशीलता दोनों पर ध्यान केन्द्रित किया अर्थात् वह सामाजिक व्यवस्था का विश्लेषण तथा समय और स्थान में परिवर्तन होने वाले रूपों का अध्ययन करना चाहता था।
ग) कॉम्ट ने विज्ञानों के एक श्रेणीक्रम की रचना की, जिसमें समाजशास्त्र शिखर पर था।
पपप) ऑगस्ट कॉम्ट ने समाज में श्रम विभाजन को सामाजिक विकास की प्रक्रिया में एक ताकतवर शक्ति के रूप में देखा। उसके अनुसार श्रम विभाजन का जनसंख्या वृद्धि के साथ घनिष्ठ संबंध होता है। समाज में जितना श्रम विभाजन होगा समाज उतना ही जटिल और विकसित होगा।
पअ) समाज के बारे में पूर्वकालीन विचारों के विपरीत समाजशास्त्र एक ऐसे विज्ञान के रूप में विकसित हुआ जिसमें प्रेक्षण तथा प्रमाण के आधार पर समाज का व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।