एपोसाइनेसी कुल क्या है | (apocynaceae family in hindi) के पौधों के नाम लक्षण गुण वर्गीकरण प्रकार

(apocynaceae family in hindi) एपोसाइनेसी कुल क्या है | के पौधों के नाम लक्षण गुण वर्गीकरण प्रकार पुष्पसूत्र बताइए ?

एपोसाइनेसी कुल (apocynaceae family) : 

(dogbane family ; Gr. apo = from , kynos = dog , अर्थात वह पादप जो कुत्तों के लिए विषैला हो।)

वर्गीकृत स्थिति : बेन्थम और हुकर के अनुसार –

प्रभाग – एन्जियोस्पर्मी

उपप्रभाग – डाइकोटीलिडनी

वर्ग – गेमोपेटेली

श्रृंखला – बाइकारपेलिटी

गण – जेन्शियेनेल्स

कुल – एपोसाइनेसी

कुल एपोसाइनेसी के विशिष्ट लक्षण (salient features of family apocynaceae)

  1. अधिकांश सदस्य काष्ठीय आरोही या क्षुप , वृक्ष अथवा शाकीय सदस्य कम।
  2. पौधों के समस्त अंगों में रबड़क्षीर की उपस्थित।
  3. पर्ण सरल और अननुपर्णी की उपस्थिति।
  4. पुष्पक्रम आवश्यक रूप से ससीमाक्षी।
  5. दलपुंज दीवटाकार अथवा चक्राकार अथवा कीपाकार , विन्यास व्यावर्तित।
  6. पुंकेसर 5 , दललग्न।
  7. जायांग द्विअंडपी , अंडाशय स्वतंत्र लेकिन वर्तिका संयुक्त या पूर्णतया युक्तांडपी , बीजांडविन्यास सीमांत।
  8. फल – फालिकल।

प्राप्तिस्थान और वितरण (occurrence and distribution)

द्विबीजपत्री पौधों के इस रोचक कुल में लगभग 195 वंश और 2150 प्रजातियाँ सम्मिलित है जो मुख्यतः विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त कुछ सदस्य शीतोष्ण प्रदेशों में भी पाए जाते है। भारत में इस कुल के 29 वंश और 60 प्रजातियों के पौधे मिलते है जो पूर्वी हिमालय और प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में अधिकांशत पाए जाते है।

कायिक लक्षणों का विस्तार (range of vegetative characters)

प्रकृति और आवास : इस कुल के अधिकांश सदस्य मुख्यतः कठलताएँ जैसे – वैलेरिस , इक्नोकार्पस और एलामेंडा आदि वृक्ष जैसे – राइटिया और प्लूमेरिया क्षुप जैसे – नेरियम और थेवेटिया भी बहुतायत से पाए जाते है लेकिन शाकीय सदस्य जैसे – केथेरेंथस अपेक्षाकृत कम संख्या में पाए जाते है।

मूल : शाखित मूसला जड़।

स्तम्भ : शाकीय या काष्ठीय , उधर्व अथवा आरोही , कुछ सदस्यों जैसे करौंदा में तना शूलमय होता है। तने और पत्ती में दूधिया रबड़क्षीर की उपस्थिति इस कुल का प्रमुख लक्षण है। इनमें से कई प्रजातियों जैसे पीली कनेर और लाल कनेर में टहनियों के द्वारा कायिक प्रजनन की क्षमता होती है। स्तम्भ की शारीरिकी में उभयफ्लोएमी बंडलों की उपस्थिति भी इस कुल का एक रोचक लक्षण है।

पर्ण : सामान्यतया समुख क्रॉसित या चक्रीय , थिवेटिया में एकान्तरित , सरल और अननुपर्णी लेकिन चाँदनी में अंतरावृन्तक अनुपर्ण पाए जाते है।

पुष्पीय लक्षणों का विस्तार (range of floral characters)

पुष्पक्रम : मूलतः इस कुल में पुष्पक्रम ससीमाक्षी प्रकार का पाया जाता है , लेकिन कुछ विविधताएँ भी यहाँ दृष्टिगोचर होती है , जैसे केथेरेन्थस में एकल कक्षस्थ , कैरिसा में समशिख ससीमाक्ष , प्लूमेरिया में अन्तस्थ ससीमाक्ष और छटीन अथवा एल्सटोनिया में छत्रकी यौगिक ससीमाक्ष प्रकार का पुष्पक्रम पाया जाता है।

पुष्प : पूर्ण , नियमित , त्रिज्यासममित , सहपत्री , सामान्यतया पंचतयी , अधोजायांगी लेकिन प्लूमेरिया में परिजायांगी से लेकर उपरिजायांगी होते है।

बाह्यदलपुंज : बाह्यदल प्राय: 5 , संयुक्त , हरे , चिरलग्न , विन्यास कोरछादी पंचकी , बाह्यदलों के आधार पर ग्रंथियाँ उपस्थित।

दलपुंज : सामान्यतया 5 दल , संयुक्तदली , विभिन्न प्रारूपों में जैसे – टेबरनेमोंटाना में दीवटाकार , घंटिकाकार जैसे एलामेंडा में अथवा कीपाकार जैसे नेरियम में होते है। विन्यास दक्षिणावर्त व्यावर्तित जैसे प्लूमेरिया में अथवा वामावर्त व्यावर्तित जैसे कैरिसा में होता है।

पुमंग : सामान्यतया पुंकेसर 5 और दललग्न होते है और दलपुंज नलिका के मुख पर अंत:स्थापित होते है। जैसे दलपत्रों की और पुंकेसरों की संख्या बराबर होती है। परागकोष बाणाकार , आधारलग्न , द्विकोष्ठीय और अंतर्मुखी होते है। पुंकेसर बाह्यदलाभिमुख क्रम में व्यवस्थित होते है।

जायांग : प्राय: द्विअंडपी , पृथकांडपी या युक्तांडपी , अंडाशय उच्चवर्ती लेकिन प्लूमेरिया में अधोवर्ती और वैलेरिस में अर्ध अधोवर्ती होता है। दोनों अंडपों द्वारा निर्मित अंडाशय स्वतंत्र या वर्तिका के आधार पर जुड़े रहते है।

थेवेटिया , एलामेंडा और केरिसा में जायांग पूर्णतया युक्तांडपी होता है , बीजांडविन्यास वियुक्तांडपी अंडाशय जैसे – नेरियम में सीमांत और युक्तांडपी जायांग जैसे केरिसा स्तम्भीय , एलामेंडा में भित्तिय बीजांडन्यास पाया जाता है। जायांग के आधारीय भाग के पास चारों तरफ एक चक्रिका अथवा डिस्क पायी जाती है।

फल और बीज : उन सदस्यों में जहाँ अंडाशय स्वतंत्र होते है , वहां फल फोलिकल के जोड़ें के रूप में पाया जाता है जैसे केथेरेंथस में , लेकिन संयुक्त अवस्था में विभिन्न प्रकार के फल पाए जाते है , जैसे केमेरिया में समारा का पुंज , कैरिसा में बेरी और थेवेटिया में यह डुप होता है। बीज अभ्रूणपोषी होते है।

परागण : प्राय: कीटों द्वारा होता है।

पुष्पसूत्र :

बंधुता और जातिवृतीय सम्बन्ध : एपोसाइनेसी की एसक्लेपियेडेसी कुल से बहुत अधिक समानता है लेकिन एसक्लेपियेडेसी में गायनोस्टेजियम , ट्रांसलेटर और पोलीनिया आदि विशिष्ट संरचनाएँ होती है , जो एपोसाइनेसी में नहीं पायी जाती , अत: इन दोनों कुलों को सरलता से अलग किया जा सकता है।

एपोसाइनेसी और एसक्लेपियेडेसी में अन्तर (difference between apocynaceae and asclepiadaceae)

 एपोसाइनेसी  एसक्लेपियेडेसी
 1. कोरोना अक्सर अनुपस्थित  कोरोना सामान्यतया उपस्थित।
 2. पुंकेसर 5 , स्वतंत्र  पुंकेसर 5 , वर्तिकाग्र से जुड़े हुए।
 3. परागकोष चतुष्कीबीजाणुक (tetrasporangiate)  परागकोष द्विबीजाणुक (bisporangiate)
 4. परागकण पृथक  चतुष्कों अथवा पोलीनिया में।
 5. पोलीनिया अनुपस्थित  पोलीनिया उपस्थित।
 6. गाइनोस्टेजियम अनुपस्थित  गाइनोस्टेजियम उपस्थित।
 7. ट्रांसलेटर अनुपस्थित  ट्रांसलेटर उपस्थित।
 8. डिस्क सामान्यतया उपस्थित।  डिस्क सामान्यतया अनुपस्थित।

आर्थिक महत्व (economic importance)

  1. सजावटी पौधे:
  2. थेवेटिया पेरूवियेना – पीली कनेर।
  3. केथेरेन्थस रोजियस – सदाबहार।
  4. प्लूमेरिया रूब्रा – देशी चंपा।
  5. टेबरनेमोंटाना डाइवेरिकेटा – चाँदनी।
  6. एल्सटोनिया स्कोलेरिस – छटिन।
  7. नेरियम इंडिकम – लाल कनेर।
  8. एलामेंडा केथारटिका
  9. ब्यूमोंटिया ग्रेन्डीफ्लोरा।
  10. औषधियाँ:

इस कुल के पौधों से प्राप्त रबड़क्षीर अथवा लेटेक्स से विभिन्न एल्कलाइड्स प्राप्त होते है जो विभिन्न औषधियों में काम में आते है। मुख्य औषधीय पादप निम्नलिखित है –

  1. रावोल्फिया सरपेन्टिना – सर्पगंधा , इसकी सुखी जड़ों से प्राप्त औषधि उच्च रक्तचाप और तनाव के उपचार में प्रयुक्त होती है।
  2. होलारिना ऐटीडिसेंट्रिका – कुटज अथवा इंद्राजो , इस वृक्ष की छाल और जड़ें पेचिस और अन्य उदर रोगों में लाभदायक होती है।
  3. केथेरेंथस रोजियस – सदाबहार , इस पौधे की पत्तियों से प्राप्त विनक्रिस्टीन एल्कलाइड कैंसर के उपचार में प्रभावी होता है , इसके अतिरिक्त , पत्तियाँ और पुष्प मधुमेह के उपचार में गुणकारी होते है।
  4. राइटिया टोमेन्टोसा – दूधी , इस वृक्ष की छाल सर्पविष प्रतिकारक के रूप में प्रयुक्त की जाती है।
  5. सेरबेरा मेंघास – इस पादप के लेटेक्स से सरबेरिन नामक एल्कलाइड प्राप्त होता है जो वमनकारी और रेचक होता है।

III. काष्ठ :

  1. राइटिया टोमेन्टोसा – दुधी के वृक्ष से अत्यन्त लचीली और मुलायम लकड़ी प्राप्त होती है जिसका उपयोग खराद के काम और नक्काशी के लिए करते है।
  2. एल्सटोनिया स्कालेरिस – छटिन अथवा छटिंग से प्राप्त काष्ठ ब्लेकबोर्ड , संदूक और तख्ते बनाने में काम आती है।
  3. अन्य उपयोग:
  4. केरिसा केरेन्डास – करौंदा इस क्षुप के प्राप्त फल , अचार और सब्जी बनाने के काम आते है और पूरी तरह पके हुए फलों का उपयोग जैली और पुडिंग बनाने के काम में लिया जाता है।
  5. राइटिया टिन्क्टोरिया – दुधी के बीजों से नील के समान रंजक प्राप्त होता है।
  6. इक्नोकारपस फ्रूटीसेंस – दूधिलता , इस काष्ठीय आरोही पादप के तने को टोकरियाँ और रस्से बनाने में काम लेते है।
  7. एल्सटोनिया स्कोलेरिस का उपयोग बोनसाईं लघु पादप के रूप में भी किया जाता है।

एपोसाइनेसी कुल के प्रारूपिक पादपों का वानस्पतिक विवरण (botanical description of a typical plant from apocynaceae)

केथेरेंथस रोजियस जी डॉन. (catharanthus roseus g. don) :

स्थानीय नाम – सदाबहार , बारामासी।

प्रकृति – उद्यानों में उगाया जाने वाला बहुवर्षीय शाक।

मूल – शाखित मूसला जड़।

स्तम्भ – उधर्व , बेलनाकार , ठोस , शाखित और हरा , लेटेक्स , उपस्थित।

पर्ण – स्तम्भीय और शाखीय , सम्मुख और क्रॉसित , सरल लगभग अवृंत , अननुपर्णी , अंडाकार , चिकनी गहरी हरी , अच्छिनकोर , निशिताग्र , शिराविन्यास एकशिरीय जालिकावत।

पुष्पक्रम – ससीमाक्षी , कक्षस्थ युग्मों में अथवा एकल कक्षस्थ।

पुष्प : सहपत्री , सवृन्त , पूर्ण , उभयलिंगी , नियमित , त्रिज्यासममित , पंचतयी , चक्रिक , अधोजायांगी , गुलाबी अथवा सफ़ेद रंग के।

बाह्यदलपुंज : बाह्यदल 5 , आधारीय भाग पर , संयुक्त ऊपर से पृथक , विन्यास कोरस्पर्शी , प्रत्येक बाह्यदल के आधारीय भाग पर ग्रंथिल संरचना उपस्थित।

दलपुंज : दलपत्र – 5 , संयुक्तदली , दीवटरूपी , गुलाबी अथवा सफ़ेद रंग के , विन्यास दक्षिणावर्त व्यावर्तित।

पुमंग : पुंकेसर 5 , पृथक पुंकेसरी , दललग्न , बाह्यदलाभिमुख , पुंतन्तु छोटे , परागकोष द्विकोष्ठीय , पृष्ठलग्न , अंतर्मुखी।

जायांग : द्विअंडपी , अंडाशय पृथक लेकिन वर्तिका संयुक्त अंत:युक्तांडपी , अंडाशय उच्चवर्ती , बीजांडविन्यास सीमांत , वर्तिका लम्बी , वर्तिकाग्र डम्बल की आकृति के।

फल : सुदीर्घित फोलिकल का जोड़ा।

पुष्प सूत्र :

प्रश्न  और उत्तर

प्रश्न 1 : एपोसाइनेसी में पुष्प क्रम पाया जाता है –

(अ) ससीमाक्षी

(ब) समशिख

(स) एकल

(द) असीमाक्षी

उत्तर : (अ) ससीमाक्षी

प्रश्न 2 : एपोसाइनेसी कुल के पौधों में परागण होता है –

(अ) वायु द्वारा

(ब) कीटों द्वारा

(स) जल द्वारा

(द) चींटी द्वारा

उत्तर : (ब) कीटों द्वारा

प्रश्न 3 : एपोसाइनेसी कुल का प्रमुख औषधीय पादप है –

(अ) नेरियम

(ब) थेवेटिया

(स) रावोल्फिया

(द) एल्सटोनिया

उत्तर : (स) रावोल्फिया

प्रश्न 4 : ऐल्सटोनिया है –

(अ) काष्ठ उत्पादक पादप

(ब) औषधीय पादप

(स) खाद्योउपयोगी पादप

(द) सजावटी पादप

उत्तर : (द) सजावटी पादप

प्रश्न 5 : नेरियम में जायांग है –

(अ) वियुक्तांडपी

(ब) युक्तांडपी

(स) आंशिक युक्तांडपी

(द) आंशिक पृथकांडपी

उत्तर : (स) आंशिक युक्तांडपी