कर्मकांडों का विरोध किसे कहते है | कर्म काण्डों का विरोध करना क्या है कर्मकाण्ड निषेध anti ritualism in hindi
anti ritualism in hindi कर्मकांडों का विरोध किसे कहते है | कर्म काण्डों का विरोध करना क्या है कर्मकाण्ड निषेध क्यों किया जाता है ?
कर्मकांडों का विरोध (Anti-ritualism)
वीरेशैववाद ने ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म द्वारा शाश्वत बना दिये गये अनेक कर्मकांडों के विरुद्ध भी आवाज उठाई। यह मंन्दिरों में की जाने वाली पूजा, बलि तथा तीर्थ के खिलाफ था।
वीरशैववादियों का उन मंदिरों में प्रवेश भी निषेध कर दिया गया, जिनमें शिवलिंग की मूर्ति स्थापित हों। उन्हें ऐसी पूजा बलि के समारोहों में भाग लेने के प्रति निरुत्साहित किया गया, जिनमें जीव हत्या की जाती हो तथा देवी-देवताओं को व्यापक सामग्री भेंट की जाती हो, मंदिरों का वृतिदान किये जाने का भी निषेध किया गया, क्योंकि वीरशैववाद यह मानते थे कि इस तरह के कृत्य एक भक्त का दूसरे से भेद करने और असमानता को बढ़ावा देते हैं। वीरशैववादियों ने पवित्र स्थानों पर भ्रमण करने को भी निरुत्साहित किया, क्योंकि इस तरह के भ्रमण आन्तरिक शुद्धता को सुनिश्चित नहीं करते। वीरशैववादियों के लिये तीर्थ स्थलों का दौरा करना कोई कर्मकांडी महत्व नहीं रखता था। आज तक भी लिंगायत एक समूह के तौर पर कुंभ मेला त्योहारों में भाग नहीं लेते हैं जो कि हिन्दू समाज में अनेक शैववादी समूहों का खास आकर्षण है। वीरशैववादी अपने अनुयायियों को खून की प्यासी ग्रामीण दैवी शक्तियों के पत्थरों की पूजा करने से निरुत्साहित करते हैं। मांस खाना व शराब पीना वर्जित था। देववाणी सुनना, ग्रामीण प्रेत की प्रभावोत्पादकता पर यकीन करना तथा जादू टोने के कर्मकांडों में भागीदारी करना भी वर्जित था।
कर्मकांड विरोधी वीरशैववाद की प्रकृति उस सरल आचार में भी देखी जा सकती है जो कि उसने अपने सदस्यों के लिए निर्धारित की थी। प्रत्येक लिंगगायत में इष्टलिंग की अपनी बलि दैनिक प्रार्थनाएँ करने के जरिये यह आशा की जाती थी कि वह पुजारियों के मंदिर की मदद अथवा बलि के बिना शान्ति एवं मुक्ति प्राप्त करें। वीरशैववाद ने शाकाहारी भोजन का पक्ष लिया तथा उसने कालक्रम में जो भी कर्मकांड निश्चित किये वे किसी जाति अथवा व्यवसाय से जुड़े पुरुषों व स्त्रियों के लिए एक समान थे। लिंग धारण करने वाले सभी लोग जन्म से लेकर मृत्यु तक समान रूप से मुक्त एवं पवित्र थे। यह बात हमें एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता तक ले जाती है और वह है वीरशैववाद की प्रदूषण विरोधी विचारधारा ।
प्रदूषण विरोधी विचारधारा (Anti-pollution Ideology)
वीरशैववादी विचारधारा ने अपने सदस्यों पर ‘पंच सूतक‘ अथवा पाँच प्रदूषणों जो किः प) जन्म, पप) मृत्यु, पपप) मासिक धर्म, पअ) थूक पड़ जाना, तथा अ) जाति संसर्ग अर्थात तथाकथित निम्न जाति से स्पर्श हो जाना का खंडन करने को कहा है। ये पाँच प्रदूषण ब्राहमवादी हिन्दू धर्म की विश्वास प्रणाली तथा प्रचलनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। सभी हिन्दुओं पर जन्म एवं मृत्यु के दौरान शुद्धता के लिये होने वाले संस्कारों को पूरा करने की निश्चित बाध्यता थी। हालांकि, किसी लिंगायत महिला की प्रसूति जन्म के प्रदूषण से मुक्त होती है और इसी तरह जिस माँ ने बच्चे को जन्म दिया है, वह भी पवित्र होती है। वीरशैववाद के अनुसार, मृत्यु को भगवान शिव में विलीन हो जाने के रूप में देखा जाता था। यह एक ऐसी घटना हुआ करती थी जिसका शोक न मनाये जाने पर बल दिया गया, एक ऐसी घटना जिसके शुद्धीकरण की वीरशैववादी को कोई जरूरत नहीं थी। जो भी अपने शरीर पर लिंग धारण करता था, वह मानसिक व शारीरिक रूप से शुद्ध था। आज तक लिंगायत मुर्दो को जलाया नहीं जाता बल्कि दफन किया जाता है।
मासिक धर्म संबंधी प्रदूषण का पालन किया जाना वीरशैववाद में भगवान शिव की दैनिक उपासना में बाधक के रूप में देखा जाता था, जो कि प्रत्येक स्त्री, बच्चे तथा पुरूष के लिये अनिवार्य था। अनेक रूढ़िवादी हिन्दू समूहों के बीच महिलाओं को उनके मासिक धर्म की अवधि के दौरान ईश्वर तक पहुंचने तथा उनके मासिक धर्म के दौरान धार्मिक एवं अन्य सामाजिक गतिविधियों से अलग रखने के पक्ष में नहीं था।
थूक पड़ जाने संबंधी प्रदूषण की भी, जो कि खासतौर पर ब्राह्मणों द्वारा तब पालन किया जाता था जब थूक से उनका स्पर्श हो जाए। वीरशैववादियों ने इसे पुनः गैर जरूरी माना।
शिव की नजरों में सभी बराबर थे, अतः एक आदमी दूसरे आदमी को वैसे भी अपवित्र नहीं मध कर सकता था। इस तरह जाति स्पर्श प्रदूषण तथा रूढ़िवादी विश्वास व प्रचलन को भी वीरशैववादियों ने पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया।
वीरशैववादी मानसिक शुद्धता में विश्वास करता था जो कि निजी अमरत्व प्राप्त करने के लिये आवश्यक थी। वीरशैववाद के अनुसार, यह मानसिक शुद्धता किसी कर्मकाण्डी शुद्धता पर आधारित नहीं थी, जैसा कि रूढ़िवादी हिन्दू धर्म माँग करता था।
बॉक्स 25.03
बसवा तथा उनके अनुयायियों के अनेक वचन इन पाँच कर्मकाण्डों प्रदूषणों का पालन किये जाने से मानव के मस्तिष्क तथा शरीर को सीमाओं में बाँध देने की हकीकत की ओर इंगित करते हैं। उदाहरण के लिये उच्च जातियों द्वारा पालन किये जाने वाले जन्म व मृत्यु व्यापक शुद्धता संस्कार अत्यंत खर्चीले होते थे तथा अक्सर भारी आर्थिक दबावों की तरफ ले जाते थे। आर्थिक दबाव खासतौर पर गरीब एवं मध्यवर्गीय परिवारों द्वारा महसूस किये जाते थे। वीरशैववादी शिक्षाओं का मूलमंत्र ब्राह्मणवादी हिन्दूधर्म के कर्मकाण्डी प्रदूषण की अवधारणा को मान्यता देने से उनका इनकार ही था। किसी लिंगायत द्वारा धारण किया गया ‘इष्टलिंग‘ ही कर्मकाण्डी पवित्रता को सुनिश्चित करता था। वीरशैववाद के ये पहलू उनके मत में निरंतर एवं मौलिक स्वरूप के थे और अमरत्व की प्राप्ति के लिये अनिवार्य थे।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics