पुमंग और जायांग क्या है | पादप या पुष्प में पुमंग और जायांग किसे कहते है , परिभाषा androecium and gynoecium in hindi

androecium and gynoecium in hindi पुमंग और जायांग क्या है | पादप या पुष्प में पुमंग और जायांग किसे कहते है , परिभाषा ?

पुमंग (Androecium)

पुष्प की नर जनन संरचना जिनकी इकाई पुंकेसर होते है |

पुंकेसर (stamen) : पुष्प का वह अंग जो पराग पैदा करता है तथा सामान्यतया परागकोश और पुंतन्तु से बनता है |

बन्ध्य पुंकेसर (staminode) : एक बन्ध्य अथवा निष्क्रिय पुंकेसर या पुंकेसर के समान दिखाई देने वाली संरचना जो कि पुष्प के पुंकेसरी स्थान में उत्पन्न होती है , जैसे – स्टीलेरिया में |

पुंकेसरों का ससंजन (cohesion of stamens) :

पृथक पुंकेसरी (Polyandrous) : ऐसा पुमंग जिसके पुंकेसर (परागकोश और पुंतुन्तु) पूर्णतया मुक्त हो , जैसे – पैपेवर |

एकसंघी (Monadelphous) : जब सभी पुंकेसरों के पुंतन्तु परस्पर जुड़कर एक समूह बनाते है , लेकिन उनके परागकोष पृथक रहते है , जैसे – गुड़हल और एकाइरेंथस |

द्विसंघी (Diadelphous) : जब पुंकेसरों के पुंतन्तु जुड़कर दो समूह बनाते है लेकिन परागकोश पृथक रहते है , जैसे – मटर |

बहुसंघी (Polyadelphous) : जब पुंकेसरों के पुंतन्तु दो से अधिक समूहों में जुड़ जाते है लेकिन परागकोष पृथक रहते है , जैसे – सेमल |

युक्तकोशी (syngenesious) : पुंकेसरों के परागकोश परस्पर जुड़ जाते है लेकिन पुंतन्तु मुक्त रहते है तथा वर्तिका के चारों तरफ एक बेलनाकार संरचना बनाते है , जैसे – ट्राइडेक्स |

सम्पुमंगी (synandrous) : समस्त पुंकेसर ऊपर से नीचे तक अपने पुंतन्तुओं और परागकोष दोनों के द्वारा परस्पर जुड़ जाते है | जैसे – कुकुरबिटा |

पुंतन्तुओं की लम्बाई (length of stamens) :

  1. समदीर्घी (Homodynamous) : जब सभी पुंकेसरों के पुंतंतु समान लम्बाई के होते है |
  2. विषमदीर्घी (heterodynamous) : जब पुंतन्तुओ की लम्बाई अलग अलग और बिना किसी अनुपात के होती है |
  3. द्विदीर्घी (Didynamous) : जब पुमंग के चार पुंकेसर हो और इनमें दो के पुन्तन्तु लम्बे और दो के छोटे होते है , जैसे – तुलसी |
  4. चतुर्दीर्घी (Tetradynamous) : जब पुमंग में 6 पुंकेसर हो , इनमें चार के पुंतन्तु लम्बे और दो के छोटे होते है , जैसे – सरसों |
  5. निसृत (Exerted) : जब पुंकेसर दलपुंज से बाहर निकलते हुए हो , जैसे – क्लेरोडेन्ड्रम |
  6. आलग्न (Inserted) : जब पुंकेसर दलपुंज से बाहर निकलते हुए नहीं हो , जैसे – आइपोमिया पामेट |

पुंकेसरों का आसंजन (Adhesion of stamens) : पुंकेसरों के अन्य किसी भी संरचना (जैसे दल अथवा जायांग) से जुड़े रहने की स्थिति को आसंजन कहते है |

  1. दललग्न (Epipetalous) : जब पुंतन्तु दल से संयुक्त हो |
  2. पुंजायांगी (Gynandrous) : जब पुंकेसर जायांग से लगा हुआ हो |
  3. पुंवर्तिकाग्रछत्र (Gynostegium) : जब पुंकेसर जायांग का एक रक्षात्मक छत्र (आवरण) है जिसका निर्माण वर्तिकाग्र और पुंकेसरों से होता है परन्तु ये किसी भी प्रकार से संयुक्त नहीं होते , जैसे – आँकड़ा |

पुंकेसरों के चक्रो की संख्या और व्यवस्था (numbers and arrangement of whorls of stamens) :

  1. एकान्तरदलीय (Alternipetalous) : जब पुन्केसरों की संख्या दलपत्रों के के बराबर हो और ये दलपत्रों से एकान्तरित अर्थात दो दलों के संधि स्थल पर हो |
  2. दलाभिमुख (Antipetalous) : पुंकेसर एक चक्र में , संख्या दलों के बराबर और दल के सम्मुख स्थित हो |
  3. द्विचक्रपुंकेसरी (Diplostemonous) : जब पुंकेसरों के दो चक्रों हो , बाहरी चक्र के पुंकेसर बाह्यदलाभिमुख और भीतर चक्र के दलाभिमुख हो , जैसे – मुराया |
  4. दलाभिमुख द्विचक्रपुंकेसरी अथवा द्विवर्त पुंकेसरी (Obdiplostemonous) : जब पुंकेसरों के दो चक्र हो और बाह्य चक्र दलाभिमुख और भीतरी चक्र में पुंकेसर बाह्यदलाभिमुख हो | जैसे – स्परजुला |
  5. बहुचक्र पुंकेसरी (Polystemonous) : जब पुंकेसरों के दो से अधिक चक्र हो , जैसे – पोटेंटीला |

परागकोष में कोष्ठों की संख्या (number of chambers in pollensac)

  1. एककोष्ठी (monothecous) : एक पराग पुट में एक ही प्रकोष्ठ हो , जैसे – यूफोर्बिया और गुड़हल |
  2. द्विकोष्ठी (Dithecous) : जब एक परागपुट में दो प्रकोष्ठ हो अत: परागकोष में चार प्रकोष्ठ दिखाई देते है | इस प्रकार के परागकोष अधिकतर आवृतबीजी पादपों में पाए जाते है |

परागकोष की स्फुटन सतह की स्थिति (orientation of dehiscing surface) :

  1. बहिर्मुख (Extrorse) : कलिकावस्था में परागकोष की स्फुटन सतह दल की तरफ हो , जैसे – रेननकुलस |
  2. अन्तर्मुख (Introrse) : कलिकावस्था में परागकोष की स्फुटन सतह जायांग की तरफ हो , जैसे – आइपोमिया |

पुंतन्तु पर – परागकोष का संलग्नन (Attachement of anther to filament) :

  1. आधारलग्न (Basifixed or innate) : जब पुंतन्तु परागकोष के आधारीय भाग पर जुड़ता है , जैसे – सरसों और केसिया |
  2. पृष्ठलग्न (Dorsifixed) : जब पुंतन्तु परागकोष की पृष्ठ सतह पर जुड़ा हो , जैसे – बाहिनिया |
  3. संलग्न (Adnate) : जब पुंतन्तु परागकोष की पिछली सम्पूर्ण सतह पर आधार से शीर्ष तक जुड़ा हो , जैसे – माइकेलिया |
  4. मुक्तदोली (Versatile) : जब पुंतन्तु परागकोष की पिछली सतह पर एक बिंदु पर संयुक्त हो जिससे परागकोष मुक्त रूप से दोलन कर सकता है , जैसे – तुलसी और घास प्रजातियाँ |
  5. पुमांगधर (Androphore) : जब पुष्पासन के दलपुंज और पुमंग के मध्य का पर्व सुदिर्घित हो , जैसे – केपेरिस |

जायांग (Gynoecium)

यह पुष्प की मादा जनन संरचना है जो एक पुष्प के सभी स्त्रीकेसरों को सामूहिक अर्थ में निरुपित करती है लेकिन पुष्प में केवल एक ही स्त्रीकेसर होने पर स्त्रीकेसर और जायांग दोनों समान अर्थ रखते है |

अंडप (Carpel) – एकपत्री के सदृश संरचना , जिसमें उपान्त के साथ बीजाण्ड लगे होते है | एक यौगिक स्त्रीकेसर संरचना की इकाई |

अंडपों का ससंजन (cohesion of carpels) :

सरल जायांग (simple gynoecium) : जब केवल एक स्त्रीकेसर हो , जैसे – मटर |

  1. एकअंडपी (Monocarpellary) : जब जायांग में केवल एक ही अंडप हो , जैसे – मटर |

यौगिक जायांग (compound gynoecium) : जब अनेक स्त्रीकेसर मिलकर पुंज बना लेते है |

  1. द्विअंडपी (bicarpellary) : एक जायांग में दो अंडप हो , जैसे – पिटुनीया |
  2. त्रिअंडपी (Tricarpellary) : एक जायांग में तीन अंडप , जैसे – स्टीलेरिया |

इसी प्रकार रेम्नेसी कुल में चार , मेलिया में पांच और एल्थिया में बहुअंडपी जायांग पाया जाता है |

पृथकांडपी (Apocarpous) : जब जायांग में दो अथवा दो से अधिक अंडप हो और वे परस्पर स्वतंत्र रहते है , जैसे – रेननकुलस |

युक्तांडपी (Syncarpous) : जब जायांग में दो अथवा दो से अधिक अंडप हो और वे परस्पर पूर्णतया आंशिक रूप से जुड़े हो , जैसे – गुड़हल |

अंडाशय में कोष्ठों की संख्या (number of locules in ovary) : एक अंडाशय में एक , दो , तीन , चार अथवा पाँच अथवा अधिक संख्या में प्रकोष्ठ हो सकते है , ऐसे अंडाशयों को क्रमशः एककोष्ठी , द्विकोष्ठी , त्रिकोष्ठी , चतुष्कोष्ठी , पंचकोष्ठी और बहुकोष्ठी कहते है |

अंडाशय की स्थिति (position of ovary) :

  1. उच्चवर्ती अथवा उधर्ववर्ती (superior) : जब अंडाशय पुष्पासन पर सबसे शीर्ष पर स्थित हो , अर्थात पुष्प अधोजायांगी होता है , जैसे – निम्बू |
  2. अधोवर्ती (Inferior) : जब अंडाशय पुष्पासन से संयुक्त और अन्य चक्र ऊपर हो , अर्थात परिजायांगी होता है , जैसे – ट्राइडेक्स |
  3. अर्द्ध अधोवर्ती अथवा अर्द्ध उच्चवर्ती (Half inferior or half superior) : जब अंडाशय प्यालेनुमा पुष्पासन के भीतर केंद्र में स्थित हो परन्तु पुष्पासन और अंडाशय संयुक्त नहीं होते अर्थात पुष्प परिजायांगी होता है |