(air pollution in hindi) वायु प्रदूषण , वायु प्रदूषण किसे कहते हैं , कारण , प्रकार , निवारण , क्या है ? :
प्रस्तावना : वायुमंडल में लगभग 20% से लेकर 20.93% तक ऑक्सीजन , 78.09% नाइट्रोजन , 0.03% कार्बन डाई ऑक्साइड और लगभग 0.2% अन्य निष्क्रिय गैसें होती है।
वायुमण्डल की गैसों का अनुपात जब तक संतुलित बना रहता है , तब तक सभी जीवधारियों के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहती है। विभिन्न प्राकृतिक चक्र तथा वनस्पतियाँ ऑक्सीजन , कार्बन डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन का संतुलन बनाये रखती है। लेकिन आधुनिक उद्योगों से अनेकों विषैली गैसें निकलकर वायुमंडल में मिलती रहती है , जिनसे जीवन उपयोगी गैसों का संतुलन बिगड़ जाता है। इनके अतिरिक्त औद्योगिक गैसों से प्राकृतिक चक्र भी नष्ट हो जाते है। कार्बन मोनोऑक्साइड , सल्फर डाइ ऑक्साइड , सल्फर ट्राई ऑक्साइड , अमोनिया , हाइड्रोजन सल्फाइड आदि का वायु में पाया जाना वायु प्रदूषण का संकेत है।
वायु में विषैली गैसों की मिलावट को ही वायु प्रदूषण कहते है। जिसके गंभीर तथा विनाशकारी परिणाम का सर्वोत्तम उदाहरण 3 दिसम्बर 1984 की भयानक रात है। इस दिन को भारतवर्ष के लोग प्रदूषण के इतिहास में काला दिवस के रूप में याद रखेंगे। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में इस रात अचानक यूनियन कार्बाइड नामक उद्योग के एक टैंक से मिक (मैथिल आइसो सायनेट) नामक गैस निकलकर वायुमंडल में मिल गयी थी तथा इस प्रदूषित वायु के सेवन से तत्काल दो हजार व्यक्ति अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। आज तक सारी क्षेत्रीय जनसंख्या आँखे , फेंफडे तथा अन्य रोगों से पीड़ित है। पशुओं की दूध देने की क्षमता पर भी इसका प्रभाव पड़ा है।
उपरोक्त विवरण से हम सरलतापूर्वक वायु प्रदुषण को समझ सकते है। इसी आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एक सर्वमान्य परिभाषा देकर वायु प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया है –
“वायु में उपस्थित हानिकारक पदार्थो की उस मात्रा को जो मानव और उसके पर्यावरण के लिए हानिकारक हो , को वायु प्रदूषक और इस प्रक्रिया को वायु प्रदूषण कहेंगे। ”
वायु प्रदूषण मुख्य रूप से गैसीय , ठोस और तरल कणों वाले प्रदूषणों द्वारा होता है। वायु के प्रदूषकों में मुख्य है – कार्बन डाइ ऑक्साइड फ्लूरोकार्बन , नाइट्रोजन ऑक्साइड , सल्फर कंपाउंड्स , अपशिष्ट ऊष्मा , जल वाष्प , अमोनिया , हाइड्रोकार्बन , मिथेन , मैथिल ब्रोमाइड , क्रिप्टोन – 85 , एयरोसोल आदि।
उल्लेखनीय है कि प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषकों (जैसे – ज्वालामुखी धूलि और राख , वायु द्वारा उड़ाई गयी धूलि , पौधों की पत्तियों से उत्सर्जित वाष्प , वस्तुओं के सड़ने गलने से निस्सृत दुर्गन्ध और गैस , फूलों के पराग आदि) द्वारा वायु का प्रदूषण अधिक महत्वपूर्ण नहीं होता है।
क्योंकि एक तरफ तो प्रकृति अपने होमियोस्टेटिक प्रक्रिया द्वारा इन प्रदूषकों को आत्मसात कर लेती है तथा दूसरी तरफ प्राकृतिक स्रोतों वाले प्रदूषकों का वायु विश्व के समस्त वायुमंडल में विसरण कर देती है। इसके विपरीत मानव जनित वायु प्रदूषक स्थान विशेष के वायुमंडल में ही केन्द्रित होते है (जैसे विश्व के अत्यधिक औद्योगिकृत और नगरीकृत क्षेत्रों में) जिस कारण मानव जनित वायु प्रदुषण अधिक हानिकारक होता है।
वायु प्रदूषण के प्रकार
वायु प्रदूषण का वर्गीकरण दो आधारों पर किया जा सकता है –
1. प्रदूषकों के प्रकार के आधार पर
2. प्रदूषकों के स्रोत के आधार पर
वायु के प्रदूषकों के आधार पर सामान्य तौर पर वायु प्रदूषण को दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया जाता है –
(अ) गैसी वायु प्रदूषण
(ब) कणिकीय वायु प्रदूषण
प्रदूषकों के स्रोत के आधार पर वायु प्रदूषण को निम्न प्रकारों में विभाजित किया जाता है –
(अ) स्वचालित वाहनों से जनित वायु प्रदूषण
(ब) औद्योगिक वायु प्रदूषण
(स) तापीय वायु प्रदुषण
(द) नगरीय वायु प्रदूषण
(य) ग्रामीण वायु प्रदूषण
(र) नाभिकीय वायु प्रदूषण
वायु प्रदुषण का विवेचन कई रूपों में किया जा सकता है।
जैसे –
(i) वायु प्रदूषकों के आधार पर
(ii) प्रदूषण स्रोत के आधार पर आदि।
1. कार्बन मोनोक्साइड और वायु प्रदूषण : कार्बन मोनोक्साइड (CO) का जनन प्रमुख रूप से जीवाश्म इंधनों (कोयला और खनिज तेल) और लकड़ी के कोयले के अपूर्ण जलाने से होता है। पेट्रोलियम और डीजल के चलने वाले स्वचालित वाहन कार्बन मोनोक्साइड के उत्पादन के सर्वप्रमुख स्रोत है। इसके अलावा तेल शोधन शालाओं , धातु शोधन प्रक्रियाओं और कई प्रकार के दहन इंजनों से भी कार्बन मोनोक्साइड की उत्पत्ति होती है।
2. क्लोरोफ्लूरोकार्बन और ओजोन की अल्पता : क्लोरोफ्लोरोकार्बन को सामान्य तौर पर CFC नाम से जाना जाता है। ये क्लोरिन , फ्लुओरीन और कार्बन तत्वों के साधारण यौगिक होते है। ये धरातल पर अपेक्षाकृत स्थिर यौगिक होते है और मूलरूप में जीवों के लिए विषाक्त नहीं होते है। स्प्रे कैन्स , एयरकंडीशनर , रेफ्रीजरेटर , फोम प्लास्टिक , अग्नि शामक (इससे हैंलन गैस निकलती है ) , प्रसाधन की सामग्रियों आदि से क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उत्सर्जन और उनके वायुमंडल में पहुँचने के कारण समतापमण्डलीय ओजोन गैस और परत का क्षय प्रारंभ हो जाता है।
3. कार्बन डाइ ऑक्साइड और वायु प्रदूषण : कार्बन डाई ऑक्साइड गैस अपने आप में हानिकारक नहीं होती है वरन यह महत्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि हरे पौधे कार्बन डाई ऑक्साइड के माध्यम से अपना आहार निर्मित करते है। कार्बन डाई ऑक्साइड का जब वायुमंडल में सांद्रण बढ़ जाता है तो अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है।
4. कणिकीय वायु प्रदूषण : कणिकिय पदार्थो के अंतर्गत धूम्र , कालिख , एयरोसोल , धूलि और कुहासा को शामिल किया जाता है। एयरोसोल ठोस , तरल अथवा ठोस-तरल कण होते है। जिनका व्यास 0.0005 से 500 माइक्रोमीटर तक होता है लेकिन सामान्य रूप से एक माइक्रोमीटर व्यास वाले कणों को एयरोसोल के अंतर्गत शामिल किया जाता है। एयरोसोल से छोटे कणों को धूम्र और कालिख की श्रेणी में रखा जाता है जबकि एयरोसोल से बड़े कणों को ठोस होने पर धूलि और तरल होने पर कुहासा कहा जाता है।
उत्पत्ति के दृष्टिकोण से ठोस कणिकाओं , जैसे – धूलि को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है –
(i) धात्विक धूलि कणिकीय पदार्थो की उत्पत्ति औद्योगिक , खनन , निर्माण और धातु शोधन के कार्यो के समय होती है। इसके अंतर्गत एल्युमिनियम , सीसा , ताम्बा , लौहा , जस्ता आदि के कणों को शामिल किया जाता है।
(ii) अधात्विक धूलि कणिकीय पदार्थों के अंतर्गत सीमेन्ट , काँच , सिरेमिक्स , असबेस्टस आदि की धूलि अथवा कणों को शामिल किया जाता है। सीसे के कण मुख्य रूप से पेट्रोल से उत्पन्न होते है।
5. मिथेन : मीथेन गैस की वायुमंडल के हरितगृह प्रभाव में वृद्धि करती है। इसके उत्पादन का प्रमुख स्रोत जीविय प्रक्रियाएं है। उदाहरण के लिए मवेशियों , भेड़ बकरियों और अन्य जानवरों में आन्त्रिक खमीर (अंतड़ियों में उठने वाली खमीर अथवा किण्वन) , धन के खेतों और तर भूमियों में वायुविहीन दशा (वायु का पूर्ण अभाव) और मानव कार्यो जैसे – बायोमास और जीवाश्म इंधनों के जलाने आदि से मीथेन का उत्पादन होता है। समतापमण्डल में मीथेन के सांद्रण में वृद्धि होने से जलवाष्प में वृद्धि होती है जिस कारण अन्य कारकों के अनुकूल होने पर वायुमंडल के हरितगृह प्रभाव में वृद्धि होती है।
6. सल्फर डाइऑक्साइड और वायु प्रदूषण : सल्फर डाई ऑक्साइड गैस का निर्माण प्राकृतिक और मानव जनित स्रोतों दोनों से होता है। कार्बन डाई ऑक्साइड के बाद सल्फर डाई ऑक्साइड वायु प्रदूषण का द्वितीय सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रदूषक है क्योंकि वायुमंडल में समस्त वायु प्रदूषकों के सकल भार का लगभग 20% भाग सल्फर डाई ऑक्साइड का होता है। ज्ञातव्य है कि स्वल्प मात्रा में गंधक पौधों और जन्तुओ के लिए आवश्यक तत्व है लेकिन वायुमंडल में जब इसका सांद्रण बढ़ जाता है तो यह पौधों और जंतुओं दोनों के लिए हानिकारक हो जाता है क्योंकि गंधक की मात्रा में वृद्धि के कारण जल का pH काफी कम हो जाता है और जल की अम्लता में भारी वृद्धि हो जाती है।
7. घरेलु वायु प्रदूषण : घरेलु वायु प्रदुषण के अंतर्गत नगरी और ग्रामीण क्षेत्रों में घरों और कार्यालयों और सामाजिक संस्थाओं और प्रतिष्ठानों से उत्सर्जित प्रदूषकों द्वारा होने वाले वायु प्रदूषण को सम्मिलित करते है। घरों से उत्पन्न होने वाले प्रमुख वायु प्रदूषक इस प्रकार है – सिगरेट , बीडी , सिगार और अन्य प्रकार के धूम्रपान , कोयला , जलावन लकड़ी , गोबर से निर्मित उपले , किरोसिन तेल , द्रवित पेट्रोलियम गैस आदि के जलाने से उत्पन्न धूम्र।
वायु प्रदूषकों के स्रोत
1. ईंधन के जलने से :
(1) भारत जैसे अत्यधिक घनी आबादी वाले देश में घरेलु धुंए में कार्बन डाइऑक्साइड एवं अनेकों अन्य घातक गैसें होती है। ये गैसें वायुमंडल की गैसों का अनुपात बिगाड़ने के अतिरिक्त जलवाष्प से प्रतिक्रिया करके घातक रासायनिक पदार्थ बनाती है। ठंड के दिनों में घरेलु धुआं ऊपर नहीं उठ पाता है तथा सीधा श्वसन तंत्र तथा आँखों को प्रभावित करता है। चाहे वह घरों में जले अथवा कारखानों में , होने वाला वायु प्रदूषण ईंधन के प्रकार और उसके जलाने की विधि पर निर्भर होता है। कोयले तथा खनिज तेल के जलने पर अन्य वस्तुओं के साथ सल्फर डाई ऑक्साइड भी बनती है जो जलने के स्थान (आमतौर से कारखानों) के आसपास के वातावरण में पाई जाती है। वायु में उपयुक्त अवस्थाओं में यह पहले सल्फर ट्राईऑक्साइड तथा फिर सल्फ्यूरिक एसिड में परिवर्तित हो जाती है। यह एसिड द्रव के रूप में वायु में छोटी छोटी बूंदों में व्याप्त हो जाता है।
पूर्ण दहन होने पर ईंधन कार्बन डाइऑक्साइड तथा पानी में परिवर्तित हो जाते है , पर अपूर्ण दहन में कार्बन मोनोऑक्साइड बनती है। साथ ही अंशत: जल हाइड्रोकार्बन भी वायु में मिल जाते है। कार्बन मोनोऑक्साइड एक विषैली गैस है तथा हमारे लिए घातक सिद्ध हो सकती है। अधजले हाइड्रोकार्बन में कई प्रकार के भारी अंध होते है जो अनेक प्रकार के कालिख अथवा काजल उत्पन्न करते है। उनमे 3-4 बैंजपाईरिन एक मुख्य कालिख है।
एक अनुमान के अनुसार सन 2001 तक कार्बन मोनोऑक्साइड सात गुना और हाइड्रोकार्बन नौ गुना वायु में बढ़ जायेंगे और अन्य प्रदूषक 5 गुना बढ़ जाएँगे।
2. अनेकों उद्योगों जैसे आयरन फाउंड्री , ताप बिजलीघर , तेल शोधक कारखाने , धातु फोर्जिंग उद्योग आदि से निरंतर धुआं निकलता रहता है। इस धुंए में विभिन्न घातक गैसों के साथ साथ विभिन्न प्रकार की धातुओं की कणयुक्त धुल भी होती है। इन उद्योगों की चिमनियाँ सल्फर डाइ ऑक्साइड , कार्बन मोनोऑक्साइड , हाइड्रोजन सल्फाइड आदि गैस , हाइड्रोर्बान एवं धातु कण धुल उगलती रहती है लेकिन रासायनिक उद्योगों से निकलने वाली वाष्प और भी अधिक घातक प्रदूषण करती है। इनसे निकलती वाष्प में गंधक तथा नमक का अम्ल , क्लोरिन एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस और ताम्बा , जिंक , सीसा तथा आर्सेनिक आदि घातक धातुकण होते है।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी के अनुसार सल्फर डाइऑक्साइड की अधिकतम मात्रा 362 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर वायु में हो सकती है लेकिन मुंबई के नव शैवा औद्योगिक क्षेत्र में सन 1971-1972 में इसकी मात्रा 700 माइक्रोग्राम प्रतिदिन वायुमंडल में मिल रही है। मुंबई का चेम्बूर क्षेत्र तो अब गैस चैंबर कहलाता है। इसी प्रकार औद्योगिक नगर भीषण वायु प्रदूषण की चपेट में आ गए है।
कारखानों से निकलने वाले व्यर्थ पदार्थ कारखानों के उत्पादन पर निर्भर होते है। आर्सेनिक युक्त खनिजों का उपयोग करने वाली फाउंड्रीयो के आसपास आर्सेनिक युक्त वाष्प तथा एल्युमिनियम का सुपर फास्फेट बनाने वाली फैक्ट्रियो के आसपास फ्लोराइड धुआं पाया जाता है।
2. मोटर वाहनों से : मोटर वाहनों की बढती हुइ संख्या भी वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण बन गयी है। मोटर वाहनों में चाहे पेट्रोल इस्तेमाल किया जाए या डीजल , उनसे निकलने वाले प्रदूषक पदार्थ एक ही प्रकार के होते है , यद्यपि उनकी मात्राएँ अलग अलग होती है। डीजल पेट्रोल की अपेक्षा कम वाष्पशील होता है। उसके दहन के लिए अधिक वायु की जरुरत होती है। डीजल इंजन का एग्जास्ट आमतौर से काले धुंए के रूप में होता है जिसमे लगभग एक माइक्रोन आकार के कार्बन कण होते है जिनकी सान्द्रता 0.5 ग्राम प्रति घनमीटर से अधिक हो जाती है। डीजल इंजन से निकलने वाली गंध चिड़चिड़ापन तथा क्षोभ उत्पन्न करती है। क्षोभकारी गैस उस समय अधिक निकलती है जब गाडी में भार अधिक अथवा कम होता है अथवा जब गाडी “आइडिलिंग” या उसके उपरान्त के त्वरण के दौरान होती है। डीजल इंजन के एग्जास्ट में कार्बन डाइऑक्साइड , कार्बन मोनोऑक्साइड , विभिन्न हाइड्रोकार्बन , नाइट्रोजन एवं गंधक के विभिन्न यौगिक होते है।
हालाँकि पेट्रोल इंजन का एग्जास्ट सामान्य अवस्था में रंगहीन होता है लेकिन उसमे कार्बन मोनोऑक्साइड और हानिकारक पदार्थो की मात्रा काफी होती है। जब मोटर , कार , स्कूटर आदि के सामान्य से अधिक अथवा कम गति पर चलने पर इंजन पर्याप्त दक्षता से कार्य नहीं करता तो ईंधन का अपेक्षित दहन नहीं होता। इससे अंशत: जले उत्पाद एग्जास्ट के साथ बाहर निकलने लगते है। अच्छे किस्म के पेट्रोल की ऑक्टेन संख्या बढाने के लिए उसमे टेट्राएथिल लैड मिलाये जाते है। इनके विघटन में एग्जास्ट के साथ सीसा भी वायुमंडल में पहुँच जाता है , प्रयोगों में पाया गया है कि एक हजार गैलन पेट्रोल का उपयोग करने में निम्नलिखित विषैले पदार्थ वायुमंडल में उत्सर्जित हो जाते है –
कार्बन मोनोऑक्साइड 3200 पौंड , कार्बनिक वाष्प 200-400 पौंड , नाइट्रोजन के ऑक्साइड 20-75 पौंड , विभिन्न एल्डिहाइड 18 पौंड , गंधक यौगिक 17 पौंड , कार्बनिक अम्ल 2 पौंड , सीसा , धातुओं के ऑक्साइड आदि 0.3 पौंड।
एक गैलन पेट्रोल के जलने पर लगभग तीन पौंड कार्बन मोनोऑक्साइड उत्पन्न होती है , जो 800000 से ;लेकर 2000000 घन सेंटीमीटर वायु को प्रदूषित करने के लिए पर्याप्त है। यह आप देखते है कि हजारों वाहन प्रतिदिन लाखों गैलन पेट्रोल और डीजल जलाते है। मुंबई , दिल्ली , कानपुर , कोलकाता , जयपुर , फरीदाबाद आदि बड़े नगरों में स्थिति और भी ज्यादा गंभीर है।
मोटर वाहनों से होने वाले प्रदूषण के बारे में एक अच्छी बात यह है कि वह अधिक दूरी तक नहीं फैलता। वह गाडी से केवल कुछ ही मीटर की दूरी तक फैलता है। डीजल गाड़ी द्वारा छोड़े गए धुंए की मात्रा उससे 40 मीटर की दूरी पर , केवल 10% रह जाती है। इस कारण धुंए में निहित पदार्थों की तेजी से ऑक्सीकृत होने की प्रवृति होती है। वायु को प्रदूषित करने में ध्वनि से तेज चलने वाले अतिध्वन विमानों का भी योग है। अपनी पूरी शक्ति से उड़ता हुआ यह विमान एक घंटे में 66 टन जल , 72 टन कार्बन डाई ऑक्साइड , 4 टन कार्बन मोनोऑक्साइड एवं 4 टन नाइट्रिक ऑक्साइड उत्पन्न करता है।
3. मौसम का योग : वायुमंडल में उपस्थित प्रदूषकों की विषाणुता को बढाने में कई बार मौसम भी योग देता है। धुंध और कोहरे के दिनों में जब पृथ्वी से आरम्भ होने वाले विकिरण अन्तरिक्ष में नहीं पहुँच पाते जिससे ऊपरी वायुमंडल का ताप निचले वायुमंडल से अधिक हो जाता है तब विभिन्न प्रदूषक पृथ्वी से ऊपर नहीं उठ पाते। निचे ही फैलने लगते है। यदि उनमे धुंए की मात्रा अधिक होती है तो स्मोग (smog) बन जाता है। हालाँकि हमारे देश में स्मोग की समस्या गंभीर नहीं होती जबकि ठण्डे देशो में विशेष रूप से ठंडी जलवायु वाले बड़े औद्योगिक नगरों में स्मोग के कारण बहुत हानि होती है। धुंए एवं कोहरे (स्मोक + फोग) से मिलकर बना स्मोग यातायात को एकदम ठप कर देता है। साथ ही हमारी श्वसन नलिकाओं पर भी दुष्प्रभाव डालता है।
इसके अलावा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायुमंडल में उपस्थित कार्बनिक यौगिक तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड परस्पर क्रिया करके क्षोभकारी ओजोन और परऑक्सी एसिटल नाइट्रोजन यौगिक बनाते है।
4. परमाणु परीक्षणों से : अनेक देशों द्वारा समय समय पर किये जाने वाले परमाणु बम परीक्षणों से वायुमंडल में घातक रेडियोधर्मी कणों की मात्रा बढती जा रही है। ये कण दैहिक ओर आनुवांशिक दोनों रूप से हमें हानि पहुंचाते है। इनसे ऐसे अनेक रोगों की उत्पत्ति हुई है जिनका उपचार ज्ञात नहीं है।
परीक्षणों एवं दुर्घटनाओं में रेडिओधर्मी धुल सीधे वायुमंडल में मिलकर अति घातक वायु प्रदूषण करती है। 28 अप्रैल 1986 को चेरनोबिल (सोवियत संघ) के एक परमाणु बिजलीघर की दुर्घटना ने न केवल चेरनोबिल नगर की आबादी को प्रभावित किया था बल्कि सोवियत संघ की सीमा से लगे अनेकों यूरोपीय एशियाई देशों के लिए भी खतरा उत्पन्न कर दिया था।
5. घरेलू बिजली जनरेटर : बढती जनसंख्या की बिजली की आपूर्ति की समस्या ने घरेलु जनरेटर को एक विकल्प के रूप में घरों तथा बाजारों में फैला दिया है। जगह जगह पेट्रोल , मिट्टी के तेल एवं डीजल के जनरेटर वायु प्रदूषण के साथ साथ ध्वनि प्रदूषण भी करते है। यह जनरेटर दुकानों तथा घरों , विशेषकर घनी आबादी क्षेत्रों में अधिक घातक सिद्ध होते है। इनका धुआं सीधा श्वसन को प्रभावित करता है।