गैल्वनोमीटर , galvanometer in hindi , विद्युत चुंबकीय प्रेरण Electromagnetic induction in hindi

वह युक्ति जो किसी विधुत परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को विपरित कर देती है उसे दिक़परिवर्तक कहते हैं। विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिकपरिवर्तक के समान कार्य करता है। विद्युत मोटर में विद्युत धारा की दिशा के विपरीत हो जाने से दोनों भुजाओ AB और CD पर लगने वाले बल की दिशा भी विपरीत हो जाती है। इस्सी प्रकार कुंडली की भुजा AB जो की पहले अधोमुखी धकेली गई थी अब उपरिमुखी धकेली जाती है तथा कुंडली की भुजा CD जो पहले उपरिमुखी धकेली गई अब अधोमुखी धकेली जाती है। अतः कुंडली तथा धुरी उसी दिशा में अब आधा घूर्णन और पूरा कर लेती हैं। प्रत्येक आधे घूर्णन (धुमने) के बाद विद्युत धारा की दिशा पहले वाले की दिशा के विपरीत हो जाती है जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा धुरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है।

व्यावसायिक मोटरों में स्थायी चुंबकों की जगह पर विद्युत चुंबक का प्रयोग किया जाता हैं क्योकि विद्युत चुंबक में विधुत धारा की दिशा को विपरीत कर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को भी विपरीतकिया जा सकता है। विद्युत धारावाही कुंडली में फेरों की संख्या अत्यधिक होती है तथा कुंडली नर्म लौह-क्रोड पर लपेटी जाती है। वह नर्म लौह-क्रोड जिस पर कुंडली को लपेटा जाता है तथा कुंडली दोनों मिलकर आर्मेचर कहलाते हैं। इससे मोटर की शक्ति में वृद्धि होती है।

विद्युत चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic induction in hindi)

जब कोई विद्युत धारावाही चालक को किसी चुंबकीय क्षेत्र में इस प्रकार रखा जाये कि चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत हो तो वह चालक एक बल का अनुभव करता है। इस बल के कारण वह चालक गति करने लगता है। चालक किसी चुंबकीय क्षेत्र में गति कर रहा है या किसी स्थिर चालक के चारों ओर का चुंबकीय क्षेत्र परिवर्तित हो रहा है का क्या अर्थ है इसका अध्ययन सर्वप्रथम सन् 1831 ई- में माइकेल फैराडे ने किया था।

फैराडे के अनुसार किसी स्थिर चालक को किसी चुंबकीय क्षेत्र जो की गति कर रहा है में रखा जाये तो तो उस चालक में विधुत धारा को धारा उत्पन्न किया जा सकता है। अत: किसी गतिशील चुंबक का उपयोग किस प्रकार विद्युत धारा उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।

इस प्रभाव को समझने के लिए हम एक प्रयोग करते है 

तार की अनेक फेरो वाली एक कुंडली AB लेते है कुंडली के सिरों को गैल्वेनोमीटर से जोड़ा जाता है। एक प्रबल छड़ चुंबक लेते है जिसके उत्तर-ध्रुव को कुंडली के सिरे B की ओर ले जाते है तथा इसकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं करते तो हम यह देख़ते है की गैल्वेनोमीटर की सुई में बहुत कम परिवर्तन आता हैं जिसकी दिशा दाई और मानी जा सकती है जैसे जैसे हम छड़ चुंबक की गति में परिवर्तन करते है तो गैल्वेनोमीटर की सुई में परिवर्तन होता है और इसकी दिशा बाई ओर मानी जाती है और जैसे ही छड़ चुंबक रुक जाता है गैल्वेनोमीटर की सुई जीरो पर आ जाती है। इससे हम यह पाते है की विधुत परिपथ में विधुत धारा की दिशा विपरीत हो जाती है। इस बार हम कुंडली के निकट किसी चुंबक को स्थिर अवस्था में इस प्रकार रख़ते है कि चुंबक का उत्तर ध्रुव कुंडली के सिरे B की ओर हो। कुंडली को चुंबक के उत्तर ध्रुव की ओर ले जाने पर गैल्वेनोमीटर की सुई में दाई ओर परिवर्तन होता है इस प्रकार से कुंडली को चुंबक के उत्तर ध्रुव से दूर ले जाने पर गैल्वेनोमीटर की सुई में बाई ओर परिवर्तन होता है और कुंडली को चुंबक के सापेक्ष स्थिर रखने पर गैल्वेनोमीटर की सुई में कोई परिवर्तन नहीं होता है

इसी प्रकार से चुंबक के दक्षिण ध्रुव को कुंडली के B सिरे की ओर गति कराते हैं तो गैल्वेनोमीटर में विक्षेपण पहली स्थिति के विपरीत होगा। अत: जब कुंडली तथा चुंबक दोनों स्थिर होते हैं तब गैल्वेनोमीटर में कोई विक्षेपण नहीं होता अतः इस क्रियाकलाप से यह स्पष्ट है कि कुंडली के सापेक्ष चुंबक की गति एक प्रेरित विभवांतर उत्पन्न करती है, जिसके कारण परिपथ में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है।

गैल्वनोमीटर 

गैल्वनोमीटर एक ऐसा उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति को संसूचित करता है। यदि इससे प्रवाहित विद्युत धारा शून्य है तो इसका संकेतक शून्य पर रहता है। यह अपने शून्य चिह्न के या तो बाईं ओर अथवा दाईं ओर विक्षेपित हो सकता है, यह विक्षेप विद्युत धारा की दिशा पर निर्भर करता है।

गतिमान चुंबक को ऐसी विद्युत धारावाही कुंडली से प्रतिस्थापित करते हैं जिसमें विद्युत धारा के परिमाण को परिवर्ती किया जाता है

ताँबे के तार की दो भिन्न कुंडलियाँ लेते है जिनमें फेरों की संख्या अलग अलग होती है। ऐसे कुंडली जिसमे फेरो की संख्या अधिक होती है उससे कुंडली 1 से प्रदशित करते है तथा जिसमे फेरो की संख्या कम होती है उसे कुंडली 2 से प्रदशित करते है इन कुंडलियों को किसी विद्युतरोधी खोखले बेलन पर चढाते है। कुंडली-1 जिसमें फेरों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है को श्रेणीक्रम में बैटरी तथा प्लग कुंजी से जोड़ते है। अन्य कुंडली-2 गैल्वेनोमीटर से संयोजित करते है। जैसे ही कुंजी को प्लग में लगाते है गैल्वेनोमीटर की सुई तुरंत ही एक दिशा में तीव्र गति से विक्षेपित होकर उसी गति से शीघ्र वापस शून्य पर आ जाती है। इससे कुंडली-2 में क्षणिक विद्युत धारा का उत्पन्न होना पता चलता है।