पहले मनुष्य की तीन आवश्यकता होती थी रोटी , कपड़ा , मकान और आजकल विधुत भी इनमे से एक है। आज विधुत मनुष्य की एक बहुत ही महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गई है। बिना इलेक्ट्रिसिटी के मनुष्य का कोई भी उपकरण कम नहीं कर सकता हैं।
विद्युत (Electricity) एक प्रकार की उर्जा (energy) है जिसका उपयोग जीवन को बेहतर बनाने में किया जा सकता है।
जिस प्रकार नदी या समुद्र में पानी का बहाव जल धारा कहलाती है, हवा का प्रवाह हवा की धारा कहलाती है उसी तरह किसी सुचालक (conductor) में विधुत आवेश (धन आवेशित तथा ऋण आवेशित) का प्रवाह विधुत धारा (current) कहलाती है।
ऐसे पदार्थ जिसमे विधुत धारा का प्रवाह हो सके या विद्युत आवेश एक स्थान से दुसरे स्थान पर जा सके सुचालक कहलाते है। धातु विधुत के सुचालक होते है अर्थात इसमें विधुत धारा का प्रवाह होता है यही कारण है की बिजली के तार धातुओं जैसे की ताम्बे तथा अल्युमिनियम के बने होते हैं। अधातु विधुत के कुचालक होते है अर्थात इसमें विधुत धारा का प्रवाह नहीं होता है।
प्राचीन काल से ही लोगों को ज्ञात था कि अम्बर नाम के पदार्थ को बिल्ली की खाल से रगड़ा जाता है तो अम्बर में छोटे छोटे पदार्थों यथा बाल, कागज के टुकड़ों आदि को आकर्षित करने का गुण आ जाता है।
विलियम गिलबर्ट ने 1600 ईसा पूर्व में विधुत के बारे में अध्ययन किया तथा तथा एक नये लैटिन शब्द ELECTRICUS द्वारा इसे दर्शाया गया। गिलबर्ट ने शब्द ELECTRICUS को अम्बर नाम के पदार्थ से लिया। ग्रीक में अम्बर के लिये ELEKTRON शब्द का उपयोग होता था। ELECTRICUS शब्द से ही अंगरेजी का शब्द ELECTRIC या ELECTRICITY अस्तित्व में आया।
विधुत आवेश
जब किसी काँच की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ा जाता है, तो काँच की छ्ड़ में कागज के छोटे छोटे टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण आ जाता है। ऐसा इसलिये होता है क्योकि काँच की छ्ड़ पर विद्युत आवेश आ जाते है या काँच की छ्ड़ विधुत आवेशित हो जाती है। उसी तरह जब एक कंघी से सूखे बाल को झाड़ा जाता है तो कंघी में विधुत आवेश आ जाता है तथा कंघी कागज के छोटे छोटे टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने लगता है।
ऐसा इसलिये होता है कि काँच की छड़ को सिल्क के कपड़े या बिल्ली के खाल से रगड़ने पर काँच की छड़ से कुछ इलेक्ट्रॉन सिल्क के कपड़े या बिल्ली के खाल पर स्थानांतरित हो जाता है जिसके कारण सिल्क के कपड़े या बिल्ली के खाल पर ऋण आवेश (negative charge) आ जाता है। काँच की छड़ पर धन आवेश (positive charge) आ जाता है और काँच की छड़ में कागज के छोटे छोटे टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण आ जाता है। इसी प्रकार ठीक समान स्थिति उत्पन्न होती है जब कंघी से सूखे बाल को रगड़ा जाता है।
धन आवेशित तथा ऋण आवेशित वस्तुएँ
किसी भी वस्तु पर दो तरह के आवेश हो सकते है
1. धनावेश (+)
2. ऋणावेश (-)
दो समान प्रकार के अर्थात् दो धन आवेशित या दो ऋण आवेशित वस्तुएँ एक दूसरे को विकर्षित (दूर) करती हैं जबकि दो अलग अलग प्रकार के आवेश अर्थात् एक धन आवेशित तथा एक ऋण आवेशित वस्तुएँ एक दूसरे को आकर्षित करती हैं। समान आवेश वाली वस्तुएँ एक दूसरे को विकर्षित तथा विपरीत आवेश वाली वस्तुएँ एक दूसरे को आकर्षित करती हैं।
विद्युत आवेश तथा आधुनिक दृष्टिकोण
सभी पदार्थ अणुओ जो की परमाणु (Atom) से बने हैं से बने होते है। किसी भी पदार्थ का परमाणु जो की इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्युट्रॉन से बना होता हैं। इलेक्ट्रॉन पर ऋण आवेश (-) तथा प्रोटॉन पर धनावेश (+) होता है जबकि न्युट्रॉन पर कोई भी आवेश नहीं होता है। सभी परमाणु में इलेक्ट्रॉन की संख्या प्रोटॉन की संख्या के बराबर होती है। अर्थात् धनावेश, ऋण आवेश के बराबर होते है जिसके कारण परमाणु विधुत रूप से उदासीन होता है क्योंकि बराबर ऋणावेश तथा धनावेश एक दूसरे को उदासीन बना देते हैं। अर्थात् परमाणु पर कोई भी आवेश नहीं होता है जो की एक जगह से दुसरे जगह पर जा सके ।
लेकिन किसी विशेष परिस्थिति के कारण परमाणु पर इलेक्ट्रॉन की संख्या प्रोटॉन की संख्या से ज्यादा हो जाती है तो परमाणु ऋण (-) आवेश आ जाता है तथा जब प्रोटॉन की संख्या इलेक्ट्रॉन की संख्या से ज्यादा हो जाती है तो उस पर धन आवेश (+) आ जाता है। ऋण आवेशित या धन आवेशित परमाणु आयन (ion) कहलाता है। धन आवेशित (+) परमाणु को धनायन या कैटायन (cation) तथा ऋण आवेशित (-) परमाणु को ऋणायन या एनायन (anion) कहते हैं।
आवेश का मात्रक (SI unit of charge)
आवेश की एस. आई. मात्रक (SI unit) कूलाम्ब (Coulomb) होती है जिसे “C” से दर्शाया जाता है। आवेश को “Q” से दर्शाया जाता है।
प्रोटॉन पर आवेश
एक प्रोटॉन पर 1.6 x 10 –19 कूलाम्ब (coulomb) आवेश होता है।
इलेक्ट्रॉन पर आवेश
एक इलेक्ट्रॉन पर – 1.6 x 10 –19 कूलाम्ब (Coulomb) आवेश (Charge) होता है।
न्युट्रॉन पर आवेश
न्युट्रॉन पर कोई भी आवेश (charge) नहीं होता है अर्थात न्युट्रॉन उदासीन (neutral) होता है।