विवाह संस्कार में क्या-क्या होता है हिन्दुओं में विवाह संस्कार (Marriage Rites Among Hindus in hindi)
(Marriage Rites Among Hindus in hindi) विवाह संस्कार में क्या-क्या होता है हिन्दुओं में विवाह संस्कार कैसे होते है ?
विवाह संस्कार (Marriage Rites)
विवाह में किसी समाज का सामाजिक जीवन प्रतिबिम्बित्त होता है। सरस्वती (1977) के अनुसार हिन्दू समाज में जन्म, मृत्यु और विवाह को पूर्व नियत माना जाता है। सरस्वती के अनुसार हिन्दुओं के लिए विवाह सामाजिक अनुबंध न होकर एक धार्मिक संस्कार होता है। विवाह गृहस्थ व्यक्ति का एक कर्तव्य होता है। विवाह की मदद से दुबारा जन्मा व्यक्ति अपने धार्मिक कर्तव्यों और दायित्वों का पालन करता है। विवाह स्त्री के लिए एक आवश्यक संस्कार होता है।
हिन्दुओं में विवाह संस्कार (Marriage Rites Among Hindus)
सरस्वती (1977) के अनुसार लड़के को अपने स्तर की लड़की से विवाह करना चाहिए। विवाह उसी जाति में होना चाहिए। विवाह आठ प्रकार का होता हैः ब्रह्म, दैव, अर्स, प्रजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पिशाच। इनमें से पहले चार प्रकार के विवाह प्रशस्त या मान्य होते हैं और अंतिम चार प्रकार के विवाह अप्रशस्त या अमान्य होते हैं (पांडेः 1976)। ऐसे विवाहों की ई.एस.ओ.-12 के खंड 4 की इकाई 15 में चर्चा की गई है।
अब हम विवाह के संस्कारों और उनके प्रतीकों की चर्चा करेंगे। संस्कारों से आपको पता चलेगा कि वैन जेनेप का विच्छेद, संक्रांति और समावेशन का वर्गीकरण अभी मौजूद है। हिन्दुओं के विवाह में अक्सर निवास का परिवर्तन भी होता है जिसके संस्कार में संक्रांति का तत्व भी जुड़ जाता है। सरस्वती के अनुसार ब्रह्म विवाह में दो प्रकार के संस्कार होते हैंः शास्त्राचार और लोकाचार। शास्त्राचार का पालन शास्त्रों में दिए गए नियमों के अनुसार होता है। मौखिक रूप से दिए संस्कार लोकाचार होते हैं । गंधर्व या पिशाच विवाह में पहले ही शारीरिक संबंध स्थापित हो जाता है, वहाँ भी विवाह को वैध करने के लिए शास्त्र संबंधी संस्कार किए जाते है। वैसे स्त्रियों और गांव वालों को लोकाचार भी पूरा करना होता है। सरस्वती (वही) के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों और गाँवों में अनेक प्रथाएँ होती हैं। जिनका पालन विवाह के समय होता है।
शास्त्राचार की मुख्य विशेषताएँ ये हैं कि उसमें लिखित पाठ, शास्त्रीय अधिकारिकता होती है और संस्कार के संपादन का काम पुरुष पुरोहित करता है। इसमें मंत्र आवश्यक होते हैं और घी का प्रयोग किया जाता है। विवाह में भी मुख्य रूप से शुद्धीकरण के माँगलिक संस्कार होते हैं। संस्कारों के लिए शुभ घड़ी का होना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसमें नियमों का परिपालन लोकाचार की तुलना में अधिक व्यापक होता है। इसमें शास्त्रीय परंपरा का सम्मान होता है और वर तथा दोनों के घरों पर उसका पालन होता है। ये संस्कार विवाह को और उसके परिणामस्वरूप होने वाले बच्चों को वैधता प्रदान करने के लिए आवश्यक होते हैं।
आइए अब लोकाचार के बारे में जानकारी प्राप्त करें। इसमें मौखिक ज्ञान का उपयोग होता है। लोकाचार में स्त्रियों का वर्चस्व होता है सांस्कारिक समारोहों में वे ही आगे रहती हैं। इसमें गीत और जादू-टोना होता है, किन्तु बलि नहीं होती। इसमें भी संस्कार जादुई तत्व लिए होते हैं। इसमें संस्कारों का एक निश्चित क्रम होता है। इसके नियम स्मृति में और मुख्य रूप से स्थानीय प्रकृति के होते हैं। लोकाचार की मौखिक परंपरा वर और वधू के लिए अलग-अलग होती है। मौखिक अनुष्ठान अनिवार्य या आवश्यक तो नहीं होते हैं, किन्तु उनमें अर्थ और भावना की गहनता होती है। पद्धति (च्ंककींजपे) और प्रयोग ग्रंथों (च्तंलवहंहतंदजींे) में नजर आने वाले विवाह संबंधी संस्कारों का अब हम नीचे वर्णन करेंगे (सरस्वती, वही)
प) वधू को मौखिक रूप से वर को सौंपना
पप) वधू का औपचारिक चुनाव
पपप) विवाह मंडप का निर्माण
पअ) विवाहोत्सव के लिए समय तय करना
अ) विवाह के कुछ दिन पूर्व अंकुर उगाने के लिए मिट्टी लाना
अप) हल्दी का उबटन लगाना
अपप) गणेश पूजा करना
अपपप) विवाह के दिन जलघड़ी लगाना
पग) पितरों और देवी की पूजा करना
ग) वधू के ससुर का देवी गौरी की पूजा करना
गप) इंद्र की पत्नी साचि की पूजा करना
गपप) गोत्र और परिवार के साथ वर और वधू के पितरों की घोषणा करना और उसके बाद कन्यादान की रस्म निभाना
गपपप) रक्षा धागे का बांधा जाना ।
गपअ) वर के गमछे के एक सिरे को वधू की साड़ी के छोर से बाँधना, उसके बाद सप्तपदी की रस्म निभाना
गअ) वधू की माँग में सिंदूर भरना
गअप) फिर वर चावलों के ढेर पर बैठता है। वर और वधू एक दूसरे पर चावल फेंकते हैं।
गअपप) वर का वधू के गले में चाबी बाँधना
गअपप) वर की माँ वधू के घर वालों को बाँस की एक तश्तरी देती है।
ये अनुष्ठान एक ही समारोह के पक्ष हैं और कभी-कभी कई दिन तक चलने के बावजूद ये विच्छेद के संस्कार ही होते हैं।
लेकिन वास्तव में सब कुछ इस तरह नहीं होता है। सरस्वती (1977) के अनुसार, शास्त्रीय (ऊपर दिए गए अनुसार) और प्रासंगिक रूप में अंतर होता है। फिर, विशिष्ट क्षेत्रों की मार्गनिर्देशक पोथियाँ भी अलग-अलग होती हैं और वे सभी क्षेत्रों के लिए नहीं होती। लोकाचार की परंपराएं भी भिन्न होती हैं।
पांडे (1976) ने एक पद्धति को उद्धृत्त किया है। इसके अनुसार, ‘‘कन्यादान‘‘ का अर्थ कन्या का दान होता है । केवल पिता को ही कन्यादान करने का अधिकार होता है, उसके न होने की स्थिति में कोई और यह रस्म पूरी कर सकता है। इस तरह, दादा, भाई और माँ सहित अन्य लोगों को कन्यादान का अधिकार होता है। संकल्प बोलने के बाद औपचारिक रूप से कन्या का दान कर दिया जाता है। पांडे द्वारा उद्धृत पद्धति की तुलना में सरस्वती (1977) द्वारा उद्धृत पद्धति में सप्तपदी को अधिक महत्व दिया गया है। यह सात कदमों की रस्म होती है और इसके बिना विवाह अधूरा रहता है। वर और वधू उत्तर की दिशा में सात कदम चलते हैं। यह भी लोकाचार की ही एक रस्म होती है कि वर-वधू पवित्र अग्नि के सात फेरे लगाते हैं। वधू की साड़ी वर की पगड़ी से बंधी होती है और वह वर के पीछे चलते हुए राई बिखेरती है। यह सांस्कारिक रस्म वर-वधू को विवाह सूत्र में विधिवत बांध देती है। सप्तपदी तो गृह सूत्रों में सामान्य है, किन्तु कन्यादान नहीं हैं अब हम सरस्वती (वही) की बताई विवाह की प्रतीकात्मकता की चर्चा करेंगे। शास्त्र विवाह को एक पवित्र संस्कार मानते हैं और इसके लिए उनमें धार्मिक अनुष्ठान दिए गए हैं। इसमें दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद लिया जाता है। जब वर, वधू को चक्की के पाट पर खड़ा करता है, तो इसका उद्देश्य होता है विवाह को दृढ़ और मजबूत बनाना। इसी तरह, विवाह के सभी संस्कारों और मंत्रों का उपयोग आशीर्वाद प्राप्त करने और एक मजबूत रचनात्मक संबंध बनाने के लिए किया जाता है। मंत्र भी इसी उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। इसके अलावा जैवीय प्रतीक भी होता हैं, जैसे- वधू पर सुरा का छिड़का जाना । इससे वह आकर्षक हो जाती है। यह उर्वरता के लिए किया जाता है। जादुई अनुष्ठानों या तंत्र-मंत्र का उपयोग स्त्री के लिए शारीरिक संपर्क के बाद के समय को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से किया जाता है। कुमाऊँ में हिन्दुओं के विवाह में पद्धति का उपयोग होने के बावजूद पारगमन के अनुष्ठानों का विभाजन अत्यंत स्पष्ट होता है। संक्षेप में, समय और तिथि तय करने, हल्दी लगाना और गाँव के तालाब में स्नान करने सहित विवाह से पहले के सभी कार्यविच्छेद के संस्कार या पूर्व सांक्रांतिक संस्कार होते हैं। गाँव से वर का जाना और खाली डोली या गाड़ी का ले जाया जाना संस्कार के सांक्रांतिक पक्ष का अंग है। उत्तर सांक्रांतिक या समावेशन के अनुष्ठान तब होते हैं, जब दुल्हन डोली में होती है और बारात वापस जाती है (कपूर, 1988)ः
यह कहा जा सकता है कि हिन्दू विवाह एक अत्यंत जटिल संस्कार होता है और इसमें शास्त्रीय और प्रासंगिक दोनों ही पक्ष दिखाई देते हैं। सीरियाई ईसाइयों में विवाह के संस्कारों पर चर्चा करने से पहले हम लोकाचार के कुछ संस्कारों पर दृष्टिपात करेंगे। विवाह के लिए अपने घर से चलने से पहले दूल्हा अपनी माँ की गोद में बैठता है और वह उसका मुख अपने स्तनों से लगाती है। कन्यादान के समय दुल्हन अपने पिता की गोद में बैठती है। इस तरह की रस्में बहुत अधिक पाई जाती हैं और सरस्वती (1977) का मानना है कि वे. पुरानी रस्में हैं पर आज भी प्रचलन में हैं। वास्तव में हम कह सकते हैं कि शास्त्रीय और प्रासंगिक पक्षों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। ऐसा शायद ही कोई विवाह समारोह होगा, जहाँ शास्त्राचार और लोकाचार का संगम न हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि अनुष्ठान और रस्में दोनों साथ-साथ चलते हैं और एक दूसरे को समृद्ध करते हैं। विवाह की प्रतीकात्मकता में बहुत-सी चीजें आ जाती हैं। पहले, यह दैवीय कृपा चाहने वाले स्त्री और पुरुष के एकीकरण का एक पक्ष है (सरस्वती, 1977) वधू को चक्की पाट पर चलाया जाता है, जो दृढ़ता का प्रतीक है। इसके कुछ जैवीय प्रतीक भी होते हैं । विवाह का संबंध प्रजनन से होता है और यह एक अनुष्ठान होता है, जिसमें वधू पर सुरा छिड़की जाती है। ऐसा उसे आर्कषक या नशीला बनाने के लिए किया जाता है। जहाँ तक पुराने रिवाजों के बचे रहने का प्रश्न है, हम उनमें से कुछ का उल्लेख ऊपर कर चुके हैं। ऐसे रिवाज या प्रथाएँ हैं और हम यह उल्लेख कर चुके हैं कि कन्यादान की रस्म के समय दुल्हन अपने पिता की गोद में बैठती है। इसी तरह एक अन्य रस्म में उसका मामा उसे अपनी गोद में लेता है। मालाओं के आदान-प्रदान के समय वर वधू दोनों वधू की माँ की गोद में बैठते हैं और वह उन्हें दूध-केला खिलाती है। उसी समय वधू के गले में मंगलसूत्र पहनाया जाता है। घर छोड़ने से पहले वधू को उसको पिता अपनी पीठ पर लेकर आता है। सरस्वती के अनुसार यह बाल विवाह की प्रथा का प्रतीक है। इन संस्कारों से विवाह के अनुष्ठानों में भाग लेने वाले पक्षों के बीच एक मजबूत बंधन बन जाता है । इनसे देखने वालों को समाजीकरण, धार्मिक गुण, मौखिक और अमौखिक संवाद और उपचार इत्यादि का संदेश भी मिलता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि प्रथाओं और अनुष्ठानों के प्रभाव में एक नियंत्रित और सुसंगत तरीके से तनाव बनता, बढ़ता और समाप्त होता है। अब हम ईसाई धर्म में विवाह संस्कार की चर्चा करेंगे।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics