मिजोरम किसे कहते है | मिजोरम में कौन सी भाषा बोली जाती है what is mizoram in hindi defintion meaning

what is mizoram in hindi defintion meaning मिजोरम किसे कहते है | मिजोरम में कौन सी भाषा बोली जाती है ?

परिभाषा : यह पूर्वोत्तर भारत का एक राज्य है तथा इस राज्य की राजधानी “आइजोल” है , इस राज्य में मिजो भाषा बोली जाती है |

मिजोरम
मिजो लोगों में पहचान बनने की प्रक्रिया लगभग 15 स्थानीय जनजातियों द्वारा एक विशिष्ट मिजो पहचान धारण कर लेने से शुरू हुई। लुशाई पहाड़ियों में राजनीतिक जागरुकता प्रथम विश्व युद्ध से मिजो सैनिकों की वापसी से आंरभ हुई। मगर उनमें राजनीतिक सुस्पष्टता का स्तर कम था और राजनीतिक एकता की अभिव्यक्ति साइमन कमीशन के साथ हुई। यह क्षेत्र 1935 के अधिनियम के अंतगर्त एक अपवर्जित क्षेत्र बना रहा। इधर, द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ भारत की स्वतंत्रता की संभावनाएं भी बढ़ गईं। इसी बीच मिजो लोगों में शिक्षित ईसाई लोगों का एक संपन्न तबका भी खड़ा हो चुका था जो अपने सरदारों की तानाशाही पूर्ण कार्यशाली में घुटन महसूस कर रहा था। इन लोगों ने 1946 में मिजो कॉमन पीपुल्स फ्रंट और मिजो यूनियन के नाम से दो संगठन बना लिए। इन्होंने अपने सरदारों के बराबर वोट डालने का अधिकार मांगा। जैसे-जैसे ये लोग संगठित और मजबूत होते गए ये अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक विशिष्टता को स्थापित करने के साथ-साथ आत्मनिर्णय के अधिकार और अपनी पहचान को बचाए रखने के लिए कई तरह के लाभों की मांग करने लगे। साधारण मिजोवासियों को डिस्ट्रिक्ट कान्फ्रेंस में स्थान मिल गया। इससे भी साधारण लोगों और सरदारों में दूरी बढ़ गई क्योंकि सरदार अपने को उपेक्षित महसूस करने लगे थे। सरदारों ने 5 जुलाई 1947 के दिन यूनाइटेड मिजो फ्रीडम ऑर्गनाइजेशन के नाम से अपना अलग से एक राजनीतिक दल बना लिया और इस मंच से मिजो क्षेत्रों को बर्मा में मिलाने की मांग आई। मगर मिजो यूनियन के नेताओं को महसूस होता था कि वे भारत से जुड़े हैं इसलिए उन्होंने भारत में रहने का निर्णय लिया मगर इसके साथ उन्होंने यह शर्त भी रखी कि वे जब चाहेंगे भारत से स्वतंत्र होने की उन्हें छूट रहेगी। इसके प्रत्युत्तर में भारत सरकार ने मिजो जनजातियों को छठी अनुसूची की सुरक्षा प्रदान की और जिला परिषद् सहित लुशाई पहाड़ियों को कुछ विशेषाधिकार भी दिए ।

 मिजो पहचान
असम सरकार ने जब असमी को राजकीय भाषा घोषित किया तो इसने मिजो लोगों में अपनी विशिष्ट पहचान को लेकर जो आशंका, जो भय था, उसे और गहरा कर दिया। इसके बाद यूनाइटेड मिजो फ्रीडम ऑप्रेनाइजेशन ने ईस्टन इंडिया ट्राइबल यूनियन से हाथ मिला लिया और असम से पृथक होने की मांग उठाई। उनके इस प्रयास में उन्हें ऑल पार्टी हिल लीडर्स कॉन्फ्रेंस से भी समर्थन मिला।

मिजो असंतोष का तात्कालिक कारण 1959 में बांस में फूलों का खिलना था जिसके फलस्वरूप पूरे क्षेत्र में भारी अकाल पड़ गया। समस्या से निपटने में सरकारी अकर्मण्यता, किसानों का दमन और राहत के अपर्याप्त उपायों कारणों ने पृथक राज्य के मुद्दे में आग में घी का काम किया। इस स्थिति से निपटने के लिए मिजो सांस्कृतिक सोसाइटी को मिजो नेशनल फैमाइन फ्रंट (मिजो राष्ट्रीय अकाल मोर्चा) में बदल दिया गया। कालांतर में यह संगठन 1963 में लालडेंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट के रूप में उभरा। इस संगठन को व्यापक जनसमर्थन मिला और इसने अपने संघर्ष के लिए पाकिस्तान से सहायता मांगी। फिर 20 फरवरी 1966 को ‘ऑपरेशन जेरिको‘ अभियान के तहत मिजोरम को एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य घोषित करके सभी प्रमुख सरकारी भवनों, प्रतिष्ठानों इत्यादि पर कब्जा कर लिया गया। इस विद्रोह को दबाने के लिए भारतीय वायु सेना और थल सेना को बुला लिया गया। मिजोरम नेशनल फ्रंट को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया जिससे विद्रोही सरकारश् को भूमिगत होना पड़ा। भारत सरकार ने मिजोरम को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया। इसके पश्चात भारतीय सुरक्षा नियम अधिनियम और सार्वजनिक व्यवस्था अनुरक्षण अधिनियम के अंतगर्त 1967 और 1970 के बीच चार चरणों में गांवों को समूहों में बांटने की रणनीति पर अमल किया गया।

बोध प्रश्न 2
1) पूर्वोत्तर में हुए नागा आंदोलन के बारे में दस पंक्तियों में बताइए।
2) मणिपुर में हुए जनजातीय आंदोलनों के बारे में दस पंक्तियां लिखिए।

मिजो नेशनल फ्रंट और इसके नेता लालडेंगा भूमिगत हो गए। सरकार ने गांवों का विसमूहन किया और फिर मिजोरम को एक केन्द्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया। एक लंबे और कठोर मगर निष्फल संघर्ष के बाद लालडेंगा ने समझौते के लिए हाथ बढ़ाए और सरकार और आपसी सहमति से एक ‘शांति समझौते‘ पर 1 जुलाई 1976 को हस्ताक्षर हुए। समझौते के तहत मिजो नेशनल फ्रंट सशस्त्र विद्रोह को समाप्त करने, आत्म समर्पण करने और मलूतीय संविधान के तहत राजनीतिक समझौते के लिए राजी हो गया। मगर भूमिगत आंदोलन नहीं थमा और सशस्त्र सेनाओं और आंदोलनकारियों के बीच संघर्ष फिर से छिड़ गया। इसके बाद दमन और समझौता वार्ता के कई दौर चले । सुलह वार्ता अंततरू एक औपचारिक समझौते में समाप्त हुई जिस पर 30 जून 1986 को लालडेंगा, लालथन वालो और भारत सरकार के प्रतिनिधि प्रधान ने हस्ताक्षर किए। आखिरकर भारतीय संघ में मिजोरम को एक पृथक राज्य का दर्जा दे दिया गया।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
1) नागा आंदोलन को जन्म देने वाले कई कारक महत्वपूर्ण थे। इनमें सबसे मुख्य अंग्रेजों से मिले विशेषाधिकारों के हर लिए जाने की आशंका और उनकी जातीय पहचान में भारी हास था। नागा जातीय पहचान को ठोस अभिव्यक्ति 1918 में नागा क्लब की स्थापना से मिली थी। वर्ष 1947 में असम के गवर्नर ने नागा नेशनल काउंसिल के साथ एक समझौता किया। लेकिन नागाओं ने 1952 के चुनावों और जिला परिषद योजना का बहिष्कार किया। फिर 1975 में शिलांग समझौता हुआ जिसके तहत भूमिगत नागा गुरिल्ला संगठनों ने भारतीय संविधान को स्वीकार कर लिया। मगर 1980 के दशक में भी नेशनलिस्ट सोशलिस्ट कांउसिल ऑफ इंडिया ने संप्रभु राज्य की स्थापना के लिए अपना संघर्ष नहीं छोड़ा था।

2) मणिपुर में जनजाति संघर्ष का एक लंबा इतिहास है, जेलियांगोंग नागा विद्रोह (1930-32) और कुकी विद्रोह (1917-19) इसकी दो कड़ियां हैं। इन विद्रोह के कई कारण बताए गए हैं, जिनमें मुख्य थे पहचान का संकट, भारत की कमजोर राजनीतिक व्यवस्था, हर तरह का शोषण, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी। इसी तरह 1967 में एक स्वतंत्र मणिपुर के लिए मैती स्टेट कमेटी के नेतृत्व में भी आंदोलन हुआ था। कमेटी ने 1971 में हथियार डाल दिए। इस आंदोलन के असफल होने का कारण शिक्षा की कमी और सांगठनिक कमजोरी थी। मणिपुर का ककी विद्रोह (1917-19) अंग्रेजों के खिलाफ था। अन्य संगठनों में प्रमुख मणिपुर नेशनल फ्रंट है जिसका लक्ष्य मंगोल विरासत को फिर से जगाना है। अंत में लिपि भाषा और साहित्य मैतियों को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करती है।