गरीबी क्या है परिभाषा व्याख्या कीजिए | गरीबी किसे कहते है समझाइये गरीब कौन है Poverty in hindi

Poverty in hindi definition meaning in india गरीबी क्या है परिभाषा व्याख्या कीजिए | गरीबी किसे कहते है समझाइये गरीब कौन है ?

दक्षिण एशिया में गरीबी
कई सरकारी संस्थाएँ, समाजशास्त्री तथा संगठन दक्षिण एशिया में गरीबी पर अध्ययन करने के कार्य में जुटे हैं। इस क्षेत्रा में गरीबी के आकलनों में व्यापक भिन्नता है किन्तु मूल तथ्य यह है कि बड़े पैमाने पर गरीबी दक्षिण एशिया के सभी सात देशों में जड़ों तक फैली है। आय की दृष्टि से इस क्षेत्रा में विश्व की ४० प्रतिशत से अधिक गरीबी है। यहां पर एक तिहाई से लेकर लगभग आधी ग्रामीण जनसंख्या निर्धन है। मालदीव इसका अपवाद है जहाँ की २२ प्रतिशत से भी कम जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है। हालांकि गरीबी कम करने में कुछ सफलता प्राप्त हुई है तथापि अभी भी गरीब जनसंख्या का अनुपात और उनकी कुल संख्या अत्यधिक है ।

गरीबी की व्यापकता से संबंधित सभी अध्ययन दो प्रमुख परिमापों पर आधारित है – कैलोरी की गणना तथा कैलोरी की न्यूनतम आवश्यकता की प्राप्ति के लिए आय का स्तर। जीवन की अन्य आवश्यकताओं पर ध्यान नहीं दिया गया है। जैसाकि हमने इकाई २ में देखा कि मानव गरीबी आय संबंधी गरीबी से कहीं अधिक है। यह मनुष्य के गुजर बसर की आवश्यकताओं की कमी से भी अधिक है। मानव गरीबी दीर्घ, स्वास्थ्यकर, कलात्मक जीवन और अच्छे रहन-सहन के स्तर के विकल्पों और अवसरों की अनुपलब्धता है। आय के अतिरिक्त गरीबों और धनिकों के मध्य सार्वजनिक सेवाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल तथा बिजली इत्यादि तक पहुंच मध्य का अन्तर है। इस परिप्रेक्ष्य से मानव गरीबी के स्तर चैंकाने वाले हैं। यू एन डी पी मानव विकास सूचकांक के अनुसार मूल मानव विकास की औसत उपलब्ध्यिों की दृष्टि से उप-सहारा अफ्रीका को छोड़कर दक्षिण एशिया अन्य सभी क्षेत्रों से भिन्न है। भारत के संदर्भ में महबूब-उल-हक द्वारा १९९७ में लिखी गई पुस्तक श्श्भ्नउंद क्मअमसवचउमदज पद ैवनजी ।ेपंश्श् में कहा गया है – “मानव वंचन की सीमा चैंका देने वाली हैः १३५ मिलियन लोग मूल स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैय २२६ मिलियन लोगों को सुरक्षित पेय जल मुहैया नहीं हैय भारत की लगभग आधी वयस्क जनसंख्या निरक्षर है ………….. विश्व की अत्यंत निर्धन जनसंख्या में से लगभग एक तिहाई भारत में हैं।‘‘

दक्षिण एशिया में गरीबी मूलतः ग्रामीण समस्या है। इस क्षेत्रा के सभी देशों में गरीबी अनौपचारिक । रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सघन है। अधिकांश निर्धन या तो कृषि अथवा संबंधित व्यवसायों से जुड़े हैं। ग्रामीण निर्धन अधिकांशतः छोटे किसान और भूमिहीन श्रमिक हैं। भूमि तथा अन्य उत्पादक संसाधनों तक उनकी पहुंच सीमित, अन्यथा लगभग शून्य है। निर्धन ग्रामीण घरों में बड़े परिवार हैं, निर्भरता का अनुपात अधिक है, शिक्षा का स्तर निम्न है तथा निम्न अल्प रोजगार है। गरीबों के पास जल, स्वच्छता तथा बिजली जैसी मूल सुविधाएँ नहीं हैं। ऋण, निवेश तथा प्रौद्योगिकी तक उनकी पहुंच सीमित है। सामाजिक और भौतिक आधारभूत ढांचे का स्तर निम्न होने के कारण गरीबों को न केवल सूखा और महामारी जैसी प्राकृतिक विपदाओं बल्कि आर्थिक उतार-चढ़ाव की मार भी झेलनी पड़ती है।
दक्षिण एशिया में ग्रामीण तथा शहरी घरों में गरीब
देश/ वर्ष निर्धनों का वितरण
ग्रामीण शहरी
भारत (१९९४) ८६.२ १३.८
पाकिस्तान (१९९०-९१) ७५.० २५.०
बांग्लादेश (१९९५-९६) ५७.८ ४२.२
नेपाल (१९९५-९६) ९४० ६.०

भूटान में गरीबी तथा आय के वितरण के संबंध में कोई प्रामाणिक और स्वतंत्रा अध्ययन नहीं हुआ है तथापि अनुमान लगाया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली ७५ प्रतिशत से अधिक जनसंख्या में से अधिकांश निर्धन हैं। भूमिजोतों के आकार की दृष्टि से विषम वितरण है। कैलोरी ग्रहण तथा उपयोग व्यय के आधार पर भूटान के गरीबी के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। मानव विकास सूचकांकों की गणना करते समय भी भूटान राष्ट्रीय मानव विकास २००० में प्रति व्यक्ति आय की अपेक्षा प्रति व्यक्ति धन को आधार माना गया है। भूटान के योजना आयोग द्वारा प्रकाशित गरीबी मूल्यांकन एवं विश्लेषण रिपोर्ट २००० में बताया गया है कि ३३ प्रतिशत से अधिक लोगों की घरेलू आय राष्ट्रीय औसत से कम है। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ‘‘लगभग १२०० नू की औसत प्रति व्यक्ति घरेलू आय, लगभग ४० नू प्रति व्यक्ति प्रतिदिन औसत आधार पर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एक डालर से भी कम है। विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार इससे यह पता चलता है कि जनसंख्या का ऋऋ बहुत बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे रहता है।

भारत की ७२ प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। कृषि देश के सकल घरेलू उत्पाद का २८ प्रतिशत है। भारत में सभी रूपों में गरीबी अत्यंत चैंकाने वाली है। पहली पंचवर्षीय योजना (१९५१-५६) से लेकर गरीबी उन्मूलन का मुद्दा नियोजन प्रक्रिया का केन्द्र रहा है। यद्यपि कई अर्थशास्त्री तथा संगठन भारत में गरीबी की अवस्था पर निरन्तर अध्ययन करते रहे हैं तथापि प्रणाली से जुड़े प्रमुख प्रश्न जैसे गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की पहचान, नमूने, भौगोलिक फैलाव तथा आवर्तिता गरीबी संबंधी अध्ययनों में सदैव प्रमुख रहे हैं। गरीबी संबंधी परिदृश्य में १९७० के दशक के मध्य के बाद के वर्षों में कमी की प्रवृत्ति देखी गई और अब इसने विशेषकर १९९० के दशक में पेचीदा रूप ले लिया है। दसवीं योजना के दस्तावेज (२००२-०७) के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के प्रतिशत और कुल संख्या में १९९९-२००० में १९७३-७४ की तुलना में कमी ५४.८८ प्रतिशत (३२१.३ मिलियन) से २६.१० प्रतिशत (२६०.३ मिलियन) रही। १९७३-७४ में ग्रामीण जनसंख्या की सघनता कुल जनसंख्या का ८१ प्रतिशत थी जोकि १९९९-२००० तक धीरे-धीरे कम होकर ७७ प्रतिशत रह गई। इस सरकारी दावे पर कि गरीबी लगातार कम हो रही है, मौजूदा आर्थिक सुधारों के मद्देनजर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। योजना आयोग के अनुमानों की विशेषज्ञों और संस्थाओं ने विवादास्पद समीक्षा की है।

गरीबी के वितरण में क्षेत्रीय असंतुलन हैं। ये असंतुलन १९८० के दशक के दौरान धीरे-धीरे कम हो गए तथा १९९० के दशक के आरम्भिक वर्षों में शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद इस असंतुलन में अत्यधिक वृद्धि हुई। २००६-२००७ में १०वीं पंचवर्षीय योजना की समाप्ति पर राज्यों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के प्रक्षेपण में अत्यधिक अंतराल रहने की संभावना है। यह गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा पंजाब राज्यों में २ प्रतिशत तथा उड़ीसा और बिहार में क्रमशः ४१ और ४३ प्रतिशत है।

मालदीव द्वीप राज्य में प्रवालद्वीपों में अहितकर समूहों में रहने वाले लोग निर्धन हैं। यद्यपि देश में पूर्ण रूप से निर्धनता नहीं है तथापि लगभग २२ प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या निर्धन है। मालदीव के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि विकास का लाभ राष्ट्र की कम सघन जनसंख्या को बराबर-बराबर मिले।

नेपाल में आज भी कृषि का राष्ट्रीय आय में ४० प्रतिशत से अधिक का योगदान है। कृषि का विकास कम है तथा शहरी गरीबी की तुलना में ग्रामीण गरीबी कहीं अधिक है। नवी योजना (१९९७-२००२) के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली जनसंख्या १९९६ में ४२ प्रतिशत थी। इसमें से भी २४.९ प्रतिशत का निर्धन और शेष १७.१ का अनुमान अत्यंत निर्धन के रूप में लगाया गया है। नेपाल में प्रति व्यक्ति उपयोग के स्तर को मापदण्ड बनाया गया है। १९९६ में केन्द्रीय सांख्यिकी संस्था द्वारा आरम्भ किए गए जीवन स्तर सर्वेक्षण में २१२४ कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की आवश्यकता निर्धारित की गई। इसके आधार पर खाद्य के समकक्ष निर्धारित कैलोरी की खरीद के लिए प्रति व्यक्ति वार्षिक व्यय २६३७ रूपये रहा। यदि गैर खाद्य मदों पर होने वाला व्यय भी इसमें जोड़ दिया जाए तो प्रति व्यक्ति वार्षिक व्यय का आकलन ४४०४ रु किया गया है। पहाड़ी तथा तराई क्षेत्रों की अपेक्षा पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक निर्धन हैं।

पाकिस्तान की ६४ प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है। देश के सकल घरेलू उत्पाद का २६ प्रतिशत कृषि से आता है। ग्रामीण-शहरी असमानता में प्रारम्भिक पर्याप्त कमी अब रुक गई है और हाल ही में असमानता में वृद्धि आरम्भ हो गई है। ग्रामीण निर्धनता अब कहीं अधिक है। हाल ही में हुए आर्थिक सर्वेक्षण (२००३) में जोर देकर कहा गया है कि गरीबी में उल्लेखनीय तथा निरन्तर वृद्धि हुई है जोकि १९८७-८८ के २६.१ प्रतिशत से बढ़कर वर्ष २००१ में ३२.१ प्रतिशत हो गई। आय की असमानता प्रवृत्ति में भी गिनी गुणांक बढ़कर १९८५-८६ के ०.३५५ की तुलना में १९९८-९९ में ०.४१० हो गया जिससे पाकिस्तान में असमानता की स्थिति में सुदृढ़ता परिलक्षित होती है। आय समूह में ऊपर के २० प्रतिशत लोगों को लगभग ५० प्रतिशत जबकि नीचे के २० प्रतिशत को आय का केवल ६ प्रतिशत प्राप्त होता है। दक्षिण पंजाब तथा बलूचिस्तान के ग्रामीण क्षेत्रा अत्यंत निर्धन हैं। सामाजिक विकास पर हुए विश्व सम्मेलन में पाकिस्तान सरकार ने माना कि १९८८ में पहले संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों के आरम्भ होने के बाद से गरीबी और असमानता में वृद्धि हुई है।

१९९० के दशक के दौरान उत्तर और पूर्व को छोड़कर पूरे श्रीलंका में तीन घरेलू आय एवं व्यय सर्वेक्षण किए गए। जनगणना एवं सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि उच्च निर्धनता रेखा के अनुसार पूर्ण गरीबी में ३३ से ३९ प्रतिशत और निम्न निर्धनता दर के अनुसार २० से २५ प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई। जनगणना एवं सांख्यिकी विभाग ने २००२ में घरेलू आय एवं व्यय सर्वेक्षण भी कराया। ४०,००० घरों पर किए गए तीन महीने के सर्वेक्षण आंकड़ों के आधार पर तैयार प्रारम्भिक रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि लगभग २८ प्रतिशत जनसंख्या उपभोग गरीबी का सामना कर रही है। यह परिणाम हालांकि अस्थायी हैं तथापि इससे पता चलता है कि १९९० के दशक के मध्य के बाद के वर्षों में गरीबी के स्तर में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं आया।

विश्व बैंक के गरीबी मूल्यांकन में पाया गया कि गरीबी के स्तर में भारतीय तमिलों को छोड़कर, जिनमें से अधिकांश को निर्धन की श्रेणी में रखा गया है, प्रमुख संजातीय समूहों (सिंहली, श्रीलंकाई तमिलों, भारतीय किसानों तथा मुस्लिमों) में भिन्नता है। भारतीय तमिल (जिन्हें प्रायः एस्टेट तमिल कहा जाता है) श्रीलंका के सबसे निर्धन लोगों में से हैं।

श्रीलंका १९८२-२००१ (लगभग १९ वर्ष) तक युद्ध में लगा रहा। युद्ध का मानवतावादी, सामाजिक और आर्थिक प्रभाव प्रत्यक्ष तौर पर उत्तर और पूर्व तथा इनके आसपास के सीमावर्ती क्षेत्रों की जनसंख्या पर पड़ा। विवाद के कुछ प्रभाव इस प्रकार पड़ेः नागरिक जीवन की क्षति और मनोवैज्ञानिक आघात, आधारभूत ढांचे और घरों को क्षति, विस्थापन, देश के कुछ हिस्सों में सीमित आवाजाही, स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में अवरोध, सामुदायिक एवं संस्थागत नेटवर्कों में अवरोध, राहत पर अत्यधिक निर्भरता, जनसंख्या के स्वास्थ्य के स्तर में गिरावट तथा जनसंख्या में व्याप्त अभेद्यता और असुरक्षा।

के अन्य भागों की अपेक्षा युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में अधिक विकराल है। सबसे अधिक प्रभावित समूहों में वे घर हैं जो विवादों अथवा उनके जन्म स्थानों पर खतरे के कारण कई बार लगातार विस्थापित हुए हैं। विस्थापित परिवारों की उत्पादक परिसम्पत्तियां भी खो गई हैं जिनमें कुछ मामलों में विस्थापित होने से पहले की उनके द्वारा कृषित भूमि भी है। श्रीलंका समेकित सर्वेक्षण (ैस्प्ै) में पाया गया कि युद्ध के कारण विस्थापित हुए उत्तर-पूर्व के लगभग सभी घरों (९७ प्रतिशत) को सम्पत्ति की क्षति उठानी पड़ी।

बोध प्रश्न १
नोट: अपने उत्तर के लिए कृपया दिए गए स्थान को उपयोग में लाएँ। अपने उत्तर की जांच इस
अध्याय के अंत में दिए गए उत्तर से करें ।
१) निम्नलिखित दक्षिण एशियाई देशों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का क्या प्रतिशत है?

देश भारत पाकिस्तान श्रीलंका नेपाल
गरीबी का स्तर
२) दक्षिण एशिया में गरीबों की आर्थिक और जनसांख्यिकीय विशेषताएँ क्या हैं?

बोध प्रश्न १ उत्तर
देश भारत पाकिस्तान श्रीलंका नेपाल
गरीबी का स्तर २६ प्रतिशत
से अधिक ३२ प्रतिशत
से अधिक २८ प्रतिशत ४२ प्रतिशत

२) दक्षिण एशिया के ग्रामीण निर्धनों की पहुँच भूमि और अन्य उत्पादक संसाधनों तक नहीं है अथवा बहुत कम है। उनके परिवार बड़े हैं, निर्भरता अनुपात उच्च है, शिक्षा का स्तर निम्न है और बेरोजगारी अधिक है। गरीब लोगों को मूल सुविधाओं जैसे- जल आपूर्ति, स्वच्छता एवं बिजली की कमी है। ऋण, निवेश व प्रौद्योगिकी तक उनकी पहुँच अत्यंत सीमित है।