सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं | सर्वहारा को परिभाषित करो क्रान्ति की परिभाषा क्या है proletariat in hindi

proletariat in hindi सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं | सर्वहारा को परिभाषित करो क्रान्ति की परिभाषा क्या है ?

वर्ग संघर्ष में सर्वहारा
मार्क्स ने सर्वहारा को वर्ग संघर्ष में एक उभरते हुए वर्ग के रूप में माना है। उसने यह दावे से कहा है कि एक वर्ग का दूसरे वर्ग पर विजित होना समाज की प्रगति का आधार रहा है। मार्क्स के जीवन का उद्देश्य ही सर्वहारा वर्ग को प्रभावी बनाना था। एक तरह से वह वर्ग संघर्ष के अभियान का नायक बन गया था। पूंजीपति व्यवस्था को समाप्त करने के लिए मार्क्स ने समाज व इतिहास को नियमित करने के तरीकों पर विशेष ज्ञान अर्जित किया। अपनी मुख्य कृति, कैपीटल (1861-1879) में मार्क्स ने वर्ग संघर्ष के वाद-विवादों पर ध्यान नहीं दिया है। यहां पर उसने इस वाद-विवाद को व्यर्थ माना है। तात्कालिक चर्चा में मार्क्स ने भावुकतावाद, मानवतावाद तथा आदर्शवाद आदि दार्शनिक विचारधाराओं से कोई लगाव नहीं दर्शाया है। उसकी मान्यता थी कि वर्ग संघर्ष हर स्तर पर होता है अतः उसने ऐसी राजनैतिक पार्टी के गठन की आवश्यकता पर जोर दिया जो प्रभावी हो तथा विजित वर्ग बन सके।

सर्वहारा वर्ग की क्रांति
मार्क्स के अनुसार यह परिवर्तन क्रांतिकारी परिवर्तन होगा और सर्वहारा वर्ग की यह क्रांति पिछली हुई सभी क्रांतियों से भिन्न होगी। विगत क्रांतियां अल्प संख्यक लोगों द्वारा अल्प संख्यक लोगों के लाभ के लिये की गई थीं, परन्तु सर्वहारा वर्ग की क्रांति बहुसंख्यक समुदाय द्वारा की जायेगी और इसका लाभ सभी को मिलेगा। इस प्रकार सर्वहारा क्रांति के फलस्वरूप पूंजीवादी समाज का तख्ता पलट जायेगा और एक वर्गविहीन समाज की स्थापना होगी, जिसमें सम्पति का निजी स्वामित्व नहीं होगा और न ही किसी प्रकार की असमानता होगी अथवा शोषण होगा। सर्वहारा वर्ग का सामूहिक रूप से स्वामित्व होगा तथा उत्पादन समाज के सभी सदस्यों में समान रूप से वितरित होगा। इस अवस्था को सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व (कपबजंजवतेीपच व िचतवसमजंतपंज) कहा गया। यह अवस्था कालांतर में राज्यविहिन समाज में परिणित हो जायेगी, जिसके अंतर्गत अंततः साम्यवादी अवस्था स्थापित होगी। इसके साथ-साथ सभी प्रकार के सामाजिक वर्ग और वर्ग संघर्ष भी समाप्त हो जायेंगे। इस अवस्था में सर्वहारा वर्ग का अलगाव (ंसपमदंजपवद) भी समाप्त हो जाएगा। अलगाव की अवधारणा मार्क्सवाद की प्रमुख धारा समझी जाती है। बोध प्रश्न 3 के बाद अगले भाग (8.4) में अलगाव की अवधारणा के बारे में तथा मार्क्स के वर्ग-विश्लेषण में इसकी महत्ता के बारे में भी कुछ चर्चा की जाएगी।

बोध प्रश्न 3
प) साम्यवाद की प्रमुख विशेषताओं को तीन पंक्तियों में लिखिये।
पप) निम्नलिखित कथनों के सामने सही अथवा गलत पर निशान लगाइए।
अ) सम्पत्ति का निजी स्वामित्व साम्यवाद में समाप्त नहीं होगा। सही/गलत
ब) साम्यवाद में राज्यविहीन, वर्गविहीन समाज होगा। सही/गलत

बोध प्रश्न 3 उत्तर
प) इसमें एक ऐसा वर्ग विहीन समाज होगा जिसमें उत्पादन के साधनों का निजी स्वामित्व नहीं होगा तथा राज्यविहीन समाज होगा।
पप) अ) गलत
ब) सही

 सारांश
इस इकाई में हमने मानव समाज के ऐतिहासिक विकास के संदर्भ में कार्ल मार्क्स द्वारा दी गई वर्ग एवं वर्ग संघर्ष की अवधारणाओं का अध्ययन किया है। मार्क्स ने वर्ग को समाज के सदस्यों की वर्ग चेतना और उनके उत्पादन के साधनों के संबंध के संदर्भ में परिभाषित किया है। मार्क्स के शब्दों में ‘‘आज तक के समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है।‘‘ इसका तात्पर्य यह है कि दास प्रथा के समय से ही सामाजिक असमानता और शोषण का युग प्रारंभ हो गया था। इस अवस्था में शोषण और असमानता बने रहते हैं। ऐसा समाज परस्पर विरोधी दो वर्गों में बंटा रहता है, जिसमें एक बुर्जुआ वर्ग और दूसरा सर्वहारा वर्ग कहलाता है। वर्ग संघर्ष और उत्पादन के तरीकों में परिवर्तन के कारण समाज के इतिहास में विभिन्न अवस्थायें परिवर्तन के दौर से गुजरी हैं, जिसमें एक दास प्रथा से सामंतवादी प्रथा और सामंतवादी से पूंजीवादी व्यवस्था तक परिवर्तन हुआ है। मार्क्स के अनुसार अंतिम सामाजिक क्रांति पूंजीवादी व्यवस्था को समाजवादी अवस्था में परिवर्तित कर देगी, जिसमें न तो सामाजिक असमानता होगी और न वर्ग तथा वर्ग संघर्ष होंगे। वर्गविहीन तथा राज्यविहीन समाज की संरचना होगी जिसमें अलगाव की स्थिति भी दूर हो जाएगी।

 प्रस्तावना
आपने इससे पूर्ववर्ती दो इकाइयों (6 और 7) में, समाज और ऐतिहासिक विकास पर मार्क्स के विचारों को पढ़ा है। इस इकाई में हमने मार्क्स द्वारा प्रयुक्त वर्ग की अवधारणा पर ध्यान केन्द्रित किया है। हमने यहां वर्ग को परिभाषित किया है और इसके साथ-साथ यह बताया है कि किन-किन स्थितियों में, किन आधारों पर किसी जनसमूह को वर्ग कहा जाता है। यहाँ इस पर भी चर्चा की जाएगी कि विभिन्न वर्गों के मध्य संघर्ष क्यों और कैसे होता है। यह समझने की कोशिश की जाएगी कि वर्ग संघर्षों का समाज के ऐतिहासिक विकास पर क्या प्रभाव होता है।

इस इकाई के पहले भाग (8.2) में वर्ग संरचना की चर्चा की गई है, और समाज के इतिहास में वर्ग संघर्ष और उनके आधार पर किये गये समाज के वर्गीकरण का विवरण दिया गया है। इसके बाद हमने भाग 8.2 में पूँजीवादी व्यवस्था के अन्तर्गत वर्ग संघर्ष किस प्रकार बढ़ता जाता है, इसकी विवेचना की है। अन्ततः हमने वर्ग तथा वर्ग संघर्ष, वर्ग संघर्ष एवं क्रांति की चर्चा के उपराँत मार्क्स की अलगाव की अवधारणा पर भाग 8.3 में आपका ध्यान केन्द्रित किया है।

वर्ग एवं वर्ग संघर्ष
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
वर्ग संरचना
वर्ग निर्धारण के प्रमुख आधार
इतिहास में समाजों का वर्गीकरण एवं वर्गों का उदय
पूँजीवाद के अन्तर्गत वर्ग संघर्ष की तीव्रता
वर्ग एवं वर्ग संघर्ष
वर्ग संघर्ष एवं क्रांति
वर्ग संघर्ष में सर्वहारा
वर्ग संघर्ष के विचार का संक्षिप्त इतिहास
सर्वहारा वर्ग की क्रांति
मार्क्स की ‘अलगाव‘ की अवधारणा
अलगाव की प्रक्रिया
अलगाव दूर करना
अलगाव की अवधारणाः विश्लेषण का आधार
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के पश्चात् आपके द्वारा संभव होगा
ऽ वर्ग की अवधारणा की व्याख्या करना
ऽ वर्ग सरंचना हेतु विभिन्न आधारों को वर्णित करना
ऽ वर्ग संघर्ष अथवा उत्पादन के तरीकों में परिवर्तन के कारण समाज के इतिहास की विभिन्न अवस्थाओं को समझना
ऽ सामाजिक क्रांति क्या है तथा इतिहास में यह घटित कैसे होगी इसकी व्याख्या करना, तथा
ऽ मार्क्स की ‘‘अलगाव‘‘ की अवधारणा को समझना।