धर्म की भूमिका पर निबंध लिखिए | समाजीकरण में समाज में धर्म की भूमिका role of religion in society in hindi
role of religion in society in hindi धर्म की भूमिका पर निबंध लिखिए | समाजीकरण में समाज में धर्म की भूमिका क्या है ?
दर्खाइम और वेबरः तुलना
प्रत्येक चिंतक की विचारपद्धति उसे एक दृष्टिकोण प्रदान करती है जिससे उसे व्यावहारिक मुद्दों का अध्ययन करने में मदद मिलती है। खंड की पहली इकाई में आपने पढ़ा है कि किस प्रकार दर्खाइम सामाजिक तथ्यों को बाहरी वस्तुओं की तरह देखता है। समाज का स्वतंत्र अस्तित्व (sui generis) है, समाज व्यक्ति के पहले भी था, और व्यक्ति के बाद भी रहेगा। व्यक्ति को समाज का अंग बनाने के लिये समाज उस पर कुछ प्रतिबंध लगाता है।
दूसरी और वेबर व्यक्ति या कर्ता पर ध्यान केन्द्रित करता है। कर्ता की आचार पद्धति उसके मूल्यों और विश्वासों पर आधारित होती है। वेबर के अनुसार बोध अथवा जर्मन शब्द फर्टेहन (verstehen) द्वारा इनका अध्ययन करना समाजशास्त्री का उद्देश्य होना चाहिएं। दर्खाइम तथा वेबर की इन विपरीत विचारधाराओं का प्रयास धर्म के अध्ययन द्वारा स्पष्ट होता है।
आइए, सबसे पहले दर्खाइम और वेबर की विश्लेषण की इकाइयाँ देखें। उन्होंने बहुत ही भिन्न धर्म-व्यवस्थाओं को चुना जिनकी सामाजिक पृष्ठभूमि भी बहुत भिन्न है।
विश्लेषण की इकाइयाँ
जैसे कि आपने पढ़ा है, दर्खाइम ने धर्म के सरलतम रूप का अध्ययन किया। उसने जनजातीय समाजों का अध्ययन किया है जिनमें सामूहिक जीवन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। समान मान्यताएँ और भावनाएँ ऐसे समाजों को एकात्म करती हैं। इन समाजों का कोई लिखित इतिहास नहीं होता है। धर्म और कुल (clan) व्यवस्था का गहरा संबंध होता है। इस प्रकार दर्खाइम धर्म को एक सामूहिक तथ्य के रूप में देखता है जिससे सामाजिक बंधन और अधिक मजबूत बनते हैं।
दूसरी ओर वेबर के विश्लेषण की इकाई में विश्व के विकसितं धर्म के अध्ययन हैं। उनके ऐतिहासिक आधार और आर्थिक गतिविधियों में उनके योगदान पर उसका अपना ध्यान आकृष्ट होता है। वह विश्व के इन महान धर्मों को समकालीन सामाजिक परिस्थितियों की प्रतिक्रियाओं के रूप में देखता है। उदाहरण के लिये बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने जाति व्यवस्था का विरोध किया गया। यहूदी धर्म शोषित फिलिस्तीनी ग्रामवासियों का धर्म था। प्रोटेस्टेंट धर्म कैथोलिक चर्च की विलासिताओं के प्रति विरोध का प्रतीक था। संक्षेप में दर्खाइम सरलतम धर्मों के अध्ययन द्वारा धर्म को सामाजिक व्यवस्था बनाये रखने में सहायक मानता है। दूसरी ओर वेबर देखता है कि किस प्रकार आचार-विचार के नये तरीके विकसित करने में धर्म की रचनात्मक भूमिका होती है।
धर्म की भूमिका
यह कहा जा सकता है कि दर्खाइम धर्म को सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति मानता है। टोटम की पूजा का वास्तविक अर्थ है, कुल (बसंद) की पूजा। इस प्रकार कुल द्वारा सम्मानित विचार और विश्वास व्यक्तिगत चेतना के अंग बन जाते हैं। पवित्र और लौकिक क्षेत्रों के बीच मध्यस्थता अनुष्ठानों द्वारा की जाती है। कुछ महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में कुल के सारे सदस्य भाग लेते हैं, जिससे सामूहिक उत्साह उत्पन्न हो जाता है। व्यक्ति सामाजिक बंधनों में बाँधे जाते हैं, समाज की महानता और शक्ति का उन्हें अहसास दिलाया जाता है। दूसरी ओर, वेबर धर्म को आर्थिक, राजनैतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखना चाहता है। समाज की अन्य व्यवस्थाओं से उसका पारस्परिक संबंध किस प्रकार का है? समाज और धर्म एक दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
प्रत्येक समाज की अलग-अलग सांस्कृतिक विशेताओं पर वेबर ध्यान देता है। धर्म को वह उस व्यापक ऐतिहासिक प्रक्रिया का अंग मानता है, जिसके अंतर्गत पूँजीवाद, औद्योगीकरण और तर्कसंगति का विकास शामिल है। इस खंड की इकाई 21 में इस मुद्दे पर और अधिक विस्तार से चर्चा की जायेगी।
आपने पढ़ा कि किस प्रकार इन चिंतकों के विश्लेषण की इकाइयाँ भिन्न थीं। धर्म की भूमिका के संबंध में भी उनके विचार भिन्न-भिन्न थे। परिणामस्वरूप दर्खाइम और वेबर द्वारा इस्तेमाल की गई परिकल्पनाओं और अवधारणाओं में भी अंतर है। वेबर बिना झिझक के उन परिकल्पनाओं का प्रयोग करता है जिन्हें दर्खाइम ने हमेशा दूर रखा। आइए इस बात पर आगे और अधिक विस्तार से चर्चा करें।
सोचिए और करिए 3
विश्व के मानचित्र पर
प) भारत
पप) चीन
पपप) फिलिस्तीन
पअ) आस्ट्रेलिया को अंकित कीजिए। इन देशों में व्याप्त धर्मों की सूची बनाइए।
देवता, भूत-प्रेत और पैगम्बर
दर्खाइम इस बात से सहमत नहीं है कि देवताओं, भूत-प्रेतों जैसी रहस्मय बातों से धर्म संबंधित है। वह मानता है कि स्वयं समाज को ही पूजा जाता है, जिसे प्रतीकात्मक वस्तुओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। वेबर देवताओं और भूत-प्रेतों के बारे में लिखने से नहीं हिचकता। याद रखें, वह ऐसे धर्मों का अध्ययन करता है जिनका विकास जनजातीय धर्मों की तुलना में बहुत देर से हुआ। इन धर्मों में व्यक्तिगत गुणों का समावेश है, और उनमें एक प्रकार की अमूर्तता है। अमूर्तता का संबंध प्रतीकात्मकता से होता है।
आइए, इस संदर्भ में टोटमवाद का उदाहरण लें। दर्खाइम के अनुसार, टोटम कुल का प्रतीक है। वेबर ऐसे टोटम का उदाहरण देता है जिसकी पूजा भी होती है, साथ-साथ उसकी आहुति देकर उसे खाया भी जाता है। ऐसी दावत में जनजाति के देवताओं और भूत-प्रेतों को भी बुलाया जाता है। टोटम प्राणी को खाने से कुल के सदस्यों में एकात्मता की भावना उत्पन्न होती है। वे मानते हैं कि प्राणी की आत्मा उनमें प्रवेश करती है। इस प्रकार के टोटम को एक चिन्ह या प्रतीक मात्र नहीं मानते हैं बल्कि उसका सार-तत्व आपस में बाँटकर (जो कि न सिर्फ हाड़-माँस अपितु आत्मा भी है) कुल के सारे सदस्य एकात्म हो जाते हैं।
दर्खाइम की तुलना में वेबर पैगम्बरों की भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण मानता है। यहूदी धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म के इतिहास में अनेक नैतिक पैगम्बरों का उल्लेख है जिन्हें लोग ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे, और यह मानते थे कि ईश्वर के साथ पैगम्बरों का सीधा सम्पर्क है। इस संदर्भ में इब्राहीम, मूसा, मुहम्मद, ईसा जैसे करिश्माई नेतृत्व वाले व्यक्तियों के नाम गिने जा सकते हैं, जिन्होंने लोगों को अत्यधिक आकृष्ट किया।
संक्षेप में, दर्खाइम इस बात को नकारता है कि धर्म मूलतरू भूत-प्रेतों और देवताओं से संबंधित है। वह मानता है कि धर्म के द्वारा स्वयं समाज को ही पूजा जाता है ताकि सामाजिक बंधन और अधिक मजबूत बनें और व्यक्ति समाज की शक्ति और अमरत्व को अनुभव कर सकें। वेबर धर्म के प्रतीकात्मक पक्ष पर ध्यान देता है। भूत-प्रेत और देवताओं जैसी अमूर्त कल्पनाएं इन्ही प्रतीकात्मक विचारों के उदाहरण होते हैं। धार्मिक विश्वासों का स्वरूप बदलने और पुननिर्मित करने में करिश्माई व नैतिक पैगम्बरों के योगदान के संबंध में भी वह चर्चा करता है।
आइए, अब धर्म और विज्ञान के अंतर्संबध के बारे में दखाईम और वेबर के विचारों पर एक नजर डालें।
धर्म और विज्ञान
जैसा कि आपने पढ़ा है, दर्खाइम धर्म और विज्ञान दोनों को सामूहिक प्रतिनिधान मानता है। वैज्ञानिक वर्गीकरण मूलतः धर्म से लिया जाता है। इस प्रकार, धर्म और विज्ञान के बीच कोई संघर्ष या भेद नहीं हो सकता है। वेबर इससे सहमत नहीं है। विश्व के धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा उसने स्थापित किया कि किस प्रकार भारतीय और चीनी नेताओं ने पूँजीवाद को पनपने का अवसर नहीं दिया। प्रोटेस्टेंट धर्म ने ही तर्कसंगत पूँजीवाद के पनपने के लिये उपयुक्त विचारधारा प्रदान की। वेबर के अनुसार विज्ञान तर्कसंगति का प्रतीक है जो कि धर्म की रहस्यवादी और परंपरागत मान्यताओं को चुनौती देता है। विज्ञान मनुष्य को आनुभाविक जानकारी देता है और उसे अपने परिवेश को समझने में और उस पर नियंत्रण करने में सहायता देता है। इस प्रकार, वेबर मानता है कि धर्म और विज्ञान एक दूसरे से विपरीत हैं।
इन चिंतकों के विचारों की तुलना करना आसान नहीं है जिन समाजों की वे बात कर रहे हैं, वे इतने भिन्न हैं कि उनके निष्कर्ष में अंतर होना स्वाभाविक ही है। फिर भी कुछ बातें उल्लेखनीय है। दर्खाइम धर्म को वह माध्यम मानता है, जिसके द्वारा व्यक्ति समाज की भौतिक और नैतिक शक्ति को स्वीकार करता है। धर्म वस्तुओं और परिकल्पनाओं के वर्गीकरण का एक प्रयास है। विज्ञान का उद्गम इसी से होता है।
वेबर धर्म का अध्ययन अनुयाईयों द्वारा दिये गये अर्थों और उनके क्रियाकलापों और अन्य सामाजिक गतिविधियों पर उसके प्रभाव के संदर्भ में करता है, विज्ञान धर्म को चुनौती देता है, और भूत-प्रेतों को भगाकर उनकी जगह प्रयोगसिद्ध जानकारी स्थापित करता है।
धर्म के अध्ययन हेतु विचार दर्शन की दृष्टि से दर्खाइम एवं वेबर में तुलना करते हुए तालिका 19.1 में दिखाया गया है कि इन दोनों विचारकों ने किस प्रकार धर्म को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा।
एमिल दर्खाइम का विचार दर्शन मैक्स वेबर के विचार दर्शन
प) प्राचीन धर्मों का अध्ययन विश्व के विकसित धर्मों का अध्ययन
पप) धर्म सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति है धर्म, राजनीति, अर्थव्यवस्था, इतिहास
आदि अंतर्संबंधित हैं
पपप) “देवता‘‘, ‘‘भूत-प्रेत‘‘, “पैगम्बर‘‘
जैसी परिकल्पनाओं की उपेक्षा इन्हीं परिकल्पनाओं का भरपूर इस्तेमाल
पअ) धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक है।
अतःइनके बीच संघर्ष नहीं है। धर्म और विज्ञान विपरीत हैं।
तालिका 19.1ः धर्म के अध्ययन हेतु विचार दर्शन
बोध प्रश्न 4
निम्नलिखित वाक्यों को पूरा करें।
क) दर्खाइम धर्म के ………………….. रूप का अध्ययन करता है, जबकि वेबर ………………का अध्ययन करता है।
ख) ईसा, मूसा, ईब्राहीम और मोहम्मद …………………………..थे।
ग) भूत-प्रेत और देवता की कल्पनाएं……………………….. का परिणाम है।
सारांश
इस इकाई में हमने देखा कि एमिल दर्खाइम और मैक्स वेबर ने किस प्रकार धर्म को सामाजिक तथ्य मानकर उसका अध्ययन किया। सबसे पहले हमने दर्खाइम के विचारों पर चर्चा की। सरलतम धर्म का अध्ययन करने में उसका उद्देश्य, धर्म की व्याख्या, टोटमवाद का अध्ययन, धर्म और विज्ञान के बीच अंतर्संबधं के पक्षों पर हमने नजर डाली।
इसके पश्चात् हमने वेबर के योगदान की चर्चा की। “प्रोटेस्टेंट एथिक‘‘ संबंधित उसके विचार न दोहराते हुए भी बार-बार उसका उल्लेख किया गया। हमने देखा कि किस प्रकार वेबर ने भारतीय और चीनी धर्मों और प्राचीन यहूदी धर्म का अध्ययन किया, और पूँजीवाद के उदय के संदर्भ में उसने किस प्रकार धर्म और अन्य सामाजिक उप-व्यवस्थाओं के बीच अंतर्संबंध को स्थापित किया।
अंत में हमने इन चिंतकों के विचारों में निम्नलिखित पक्षों में अंतर देखा।
1) विश्लेषण की इकाइयाँ
2) धर्म की भूमिका
3) परिकल्पनाओं और अवधारणाओं में अंतर
4) धर्म और विज्ञान का अंतसंबंध।
शब्दावली
दैवीकरण दिव्य स्तर प्रदान करना
ईश्वरीय आह्वान काम काज को न सिर्फ आर्थिक आवश्यकता बल्कि धार्मिक कर्तव्य मानना
सामूहिक उत्तेजना सामूहिक उत्साह की भावना। इससे व्यक्तियों के आपसी बंधन और अधिक मजबूत बन जाते हैं, और जिससे वे समाज में अपनी सदस्यता पर गर्व करते हैं।
सामूहिक प्रतिनिधान इससे दर्खाइम का तात्पर्य है समाज के वे सभी विचार, कल्पनाएं और परिकल्पनाएं जो समान होती हैं। उदाहरण के लिये सौंदर्य, सत्य, सही, गलत आदि।
नैतिक पैगम्बर ये लोगों को प्रभावशाली उपदेश देते हैं, जो अक्सर धार्मिक होते हैं। वे पुरानी सामाजिक व्यवस्था का पतन चाहते हैं जिसे वे बुरा मानते हैं। वे अनुयायियों को एक नयी दिशा देते हैं और ईश्वर से संपर्क सिद्ध करने के प्रयास करते हैं। यहूदी धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम पैगम्बरों के धर्म हैं।
आनुभाविक अनुभव, प्रेक्षण पर आधारित
जादू-टोना प्रकृति को व्यक्तिगत स्वार्थ्य हेतु प्रभावित करने का प्रयास। लगभग सभी सरल समाजों में और कई विकसित समाजों में भी यह पाया जाता है।
पूर्व नियति एक कैल्विविनिवादी (प्रोटेस्टैंट) विश्वास। इसके अनुसार यह माना जाता है कि व्यक्ति को मुक्ति के लिये ईश्वर द्वारा चुना जाता है। चुनाव ईश्वर की इच्छा पर आधारित है, और व्यक्ति इस संबंध में कुछ नहीं कर सकता है।
तर्क संगति पाश्चात्य सभ्यता का मुख्य लक्षण। इसके द्वारा जीवन को नियंत्रित, नियमबद्ध बनाया जाता है। व्यक्ति अपने परिवेश का गुलाम न रहकर उसका मालिक बन जाता है।
पवित्र और लौकित क्षेत्र दर्खाइम के अनुसार विश्व को इन दो क्षेत्रों में बांटा जाता है। पवित्र क्षेत्र, शुद्ध और उच्च स्तर का होता है। जबकि लौकिक क्षेत्र साधारण या आम वस्तुओं से संबद्ध है।
टोटमवाद प्राचीन धर्म जिसमें किसी पशु, पेड़ पौधे आदि को समूह का पूर्वज माना जाता है, जिसकी पूजा होती है।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
आरों, रेमों, 1970. मेन करैंट्स इन सोशियोलॉजिकल थॉट खंड 1 और 2, पेंगगुइन बुक्सः लंदन (वबर और दर्खाइम से संबंधित भाग देखें)
कालिन्स, रैंडल, 1986. मैक्स वेबरः ए स्केलेटन की सेज पब्लिकेशन इंकः बेवर्ली हिल्स
जोन्स, रॉबर्ट एलन, 1986. एमिल दर्खाइमः ऐन इंट्रोडक्शन टू फोर मेजर वर्क्स सेज पब्लिकेशन इंकः बेवर्ली हिल्स
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 4
प) क) सरलतम, विश्व के धर्मो
ख) नैतिक पैगम्बर
ग) प्रतीकात्मकता
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics