महाशक्ति क्या है | अमेरिका कब महाशक्ति बना , महाशक्तियों का उद्गम superpower countries origin
superpower countries origin in hindi महाशक्तियों का उद्गम महाशक्ति क्या है | अमेरिका कब महाशक्ति बना | विश्व में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद महाशक्ति देशों का उद्गम या शुरुआत |
महाशक्तियों का उद्गम
महाशक्ति की अवधारणा द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उस समय विकसित हुई जबकि दो देशों अर्थात् संयुक्त राज्य अमरीका तथा सोवियत संघ शक्ति के दृष्टिकोण से (दूसरे राज्यों के विचारों तथा कार्यों को प्रभावित करने की क्षमता) कुछ पूर्ववर्ती शक्तियों से आगे निकल गये। द्वितीय विश्वयुद्ध की पूर्व संध्या पर ब्रिटिश साम्राज्य, फ्रांस, इटली तथा जापान कुछ मान्यताप्राप्त बड़ी शक्तियों में से थे। जब युद्ध का अंत हुआ तब न केवल जर्मनी अपितु इटली तथा जापान भी पराजित हुए। हम ऊपर देख चुके हैं कि जर्मनी पर चार शक्तियों का अधिकार हो गया और अणु बम के हमलों ने जापान को बर्बाद कर दिया। पराजित देश सैनिक रूप में कमजोर, राजनीतिक तौर पर महत्वहीन तथा आर्थिक रूप में दरिद्र हो गये। विजयी राष्ट्रों में 1947 तक ब्रिटेन इतना कमजोर हो गया था कि साम्यवाद के विरुद्ध यूनान एवं टर्की में उनकी सुरक्षा के लिये अपनी सेनाओं को रखने में असक्षम था। ब्रिटिश साम्राज्य को जारी न रखा जा सकता था। 1947 में जब भारत एक बार स्वतंत्र हो गया तब उपनिवेशवाद के टूटने की प्रक्रिया तीव्र हो गयी। ब्रिटेन को अभी भी एक बड़ी शक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी और संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा सभा का वह एक स्थायी सदस्य भी था, लेकिन उसकी ताकत में काफी कमी आ चुकी थी। फ्रांस उस समय तक जर्मनी की अधीनता का शिकार बना रहा जब तक दूसरा मोर्चा खोला गया और वह सितम्बर, 1944 में मुक्त हो पाया। यद्यपि फ्रांस विजयी रहा था और उसको सुरक्षा सभा का स्थायी सदस्य भी बनाया गया लेकिन युद्ध के बाद कई वर्षों तक वह एक शक्तिशाली राष्ट्र बनने से काफी दूर रहा। इस प्रकार केवल दो मुख्य विजयी शेष रहे अर्थात् सोवियत संघ एवं संयुक्त राज्य अमरीका । ये ऐसे राष्ट्र थे जिन्होंने सैन्य शक्ति तथा राजनीतिक स्तर को प्राप्त किया। इस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध का महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि इन दो विजयी राष्ट्रों का महाशक्तियों के रूप में उद्गम हुआ। ब्रिटेन, फ्रांस तथा चीन नाभिकीय हथियारों को प्राप्त करने के बाद भी संयुक्त राज्य अमरीका तथा सोवियत संघ के महाशक्ति के स्तर को चुनौती न दे सके।
संयुक्त राज्य अमरीका का नाभिकीय शक्ति बनना
युद्ध के अंत में नाभिकीय हथियार केवल एक देश के पास थे, किसी दूसरे देश के पास नहीं। जुलाई, 1945 में मानव इतिहास में पहली बार अमरीकियों द्वारा नाभिकीय बम का परीक्षण किया गया। अगस्त में उन्होंने दो अणु बमों को हिरोशिमा तथा नागासाकी पर गिरा दिया। इसने जापान प्रतिरोध को समाप्त कर दिया और उसने बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण कर दिया। विश्व आश्चर्यचकित हो गया और सोवियत संघ विरक्त हुआ क्योंकि दोनों देश युद्ध में एक दूसरे के सहयोगी थे लेकिन संयुक्त राज्य अमरीका ने उसे ऐसा कोई संकेत न दिया जिससे सोवियत संघ यह जान पाता कि वह अणु बम को विकसित कर रहा है। जिस समय अमरीका ने जापान में अणु बम के प्रयोग का निर्णय कर लिया तब भी अन्य मित्र राष्ट्रों को इसके वास्तविक प्रयोग तक अंधेरे में रखा गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जापान बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण कर गया और अमरीका की इस विजय ने सोवियत संघ को “सुदूर पूर्व की उत्तर-युद्ध-व्यवस्था में सभी कुछ होने के बावजूद प्रतीकात्मक हिस्सा प्राप्त हुआ। आगामी पांच वर्षों में तब तक सोवियत संघ की बहुत अधिक कमजोर स्थिति बनी रही जब तक 1949 में उसने अपने स्वयं के नाभिकीय बम को विकसित नहीं कर लिया। सोवियत संघ की स्थिति काफी कमजोर बनी हुई थी क्योंकि शीतयुद्ध का प्रारंभ हो चुका था और जिसके लिए खुल्लम-खुल्ला पश्चिमी देश सोवियत संघ को दोष दे रहे थे। शीतयुद्ध की तीव्रता के दौर में कोई यह नहीं जानता था कि अमरीका के पास तीसरा अणु बम था या नहीं। यदि अमरीका के पास तीसरा बम था या वह उसको कम से कम समय में बना सकता तब तक अमरीका उसको मास्को पर गिरा कर सोवियत संघ को बर्बाद कर सकता था। इसने एक अजीबो-गरीब स्थिति को उत्पन्न कर दिया जैसा कि पीटर कालवोकोरेसी कहता है- “अमरीकी जो कुछ हिरोशिमा तथा नागासाकी पर कर चुके थे यदि वे ऐसा मास्को तथा लेनिनग्राद पर करने की इच्छा करते तब सोवियत संघ एक बहुत कमजोर राष्ट्र से अधिक कुछ न था, वह बिल्कुल ही उनकी दया पर था।’’ लेकिन अमरीका शायद कभी भी ऐसा करने की इच्छा नहीं रखता था, लेकिन इसने उसको निश्चय ही सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बना दिया था। वह कम से कम पांच वर्षों तक अकेला महाशक्ति बना रहा।
अमरीका के नाभिकीय हथियारों के अतिरिक्त दूसरी चीज क्या थी जिसने उसे महाशक्ति बनने में सहायता की, संपूर्ण युद्ध के दौरान कोई भी युद्ध उसकी अपनी भूमि पर नहीं लड़ा गया। पर्ल हार्बर के पश्चात अमरीकी एक जबरदस्त युद्ध में व्यस्त थे, लेकिन नागरिकों के जीवन एवं सम्पत्ति को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ। इसने अमरीका को एक अतिरिक्त लाभ प्रदान किया क्योंकि अन्य मित्र राष्ट्रों को युद्ध में नागरिकों के भारी नुकसान को उठाना पड़ा। ब्रिटेन पर भारी बमबारी की गयी, फ्रांस चार वर्षों तक अधीन बना रहा और सोवियत संघ जर्मनी का निशाना तब तक बना रहा जब तक जर्मनी के विरुद्ध दूसरा मोर्चा न खोला गया।
1949 में सोवियत संघ ने जब तक नाभिकीय बम का परीक्षण किया तब तक नाभिकीय शक्ति पर अमरीका का एकाधिकार बना रहा। 1949 के बाद भी संयुक्त राज्य अमरीका तकनीकी क्षेत्र में सोवियत संघ से आगे था और 1953 तक सैनिक एवं राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में वह सोवियत संघ के विरुद्ध वर्चस्व बनाये रहा। अमरीका के पास विश्व की सबसे अधिक शक्तिशाली हवाई सेना एवं अग्रिम नौसेना थी। युद्ध के अंत में सोवियत संघ तथा अमरीका दोनों के पास सशस्त्र सेनाओं में प्रत्येक के पास लगभग 1 करोड़ 20 लाख सैनिक थे।
संयुक्त राज्य अमरीका को सोवियत संघ की चुनौती
सोवियत संघ के शक्ति आधार की संयुक्त राज्य अमरीका के साथ कोई तुलना नहीं थी। सोवियत संघ ने पोलैण्ड तथा दूसरे कई पूर्वी देशों में साम्यवादी शासन की स्थापना में सफलता प्राप्त की थी। इन देशों को नाजी सेना के नियंत्रण से सोवियत संघ की सेना ने मुक्त कराया था। लेकिन 1949 में उसके पास उस समय तक नाभिकीय हथियार उपलब्ध नहीं थे, जब तक कि उसने पहली बार इसका परीक्षण किया। युद्ध के दौरान सोवियत संघ को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। न केवल उसकी सेनायें भारी संख्या में मारी गयी और घायल हई अपितु उसकी नागरिक आबादी की भी भारी क्षति हुई। सोवियत संघ की जनसंख्या में लगभग 2 करोड़ की कमी आयी। युद्ध के दौरान जहाँ संयुक्त राज्य अमरीका के स्टील उत्पादन में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई वहीं सोवियत संघ का स्टील उत्पादन आधा रह गया। यही स्थिति कृषि और औद्योगिक उत्पादन में थी। उदाहरण के तौर पर, अमरीका में सत्तर लाख कारों का उत्पादन प्रतिवर्ष हो रहा था वहीं सोवियत संघ में मात्र 65 हजार कारों का उत्पादन प्रतिवर्ष होता था।
संयुक्त राज्य अमरीका तथा सोवियत संघ के बीच आर्थिक स्थिति में भारी भिन्नताएँ होने के बावजूद भी, द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में सोवियत संघ विश्व की दूसरी महाशक्ति हो गया था। कई सामरिक क्षेत्रों में सोवियत संघ का प्रभाव दृढ़ता से स्थापित था। जैसा कि गैर लुण्डेस्टड कहते हैंरू ष्इस देश ने अपने क्षेत्र में बाल्टिक देशों, पूर्वी कारेलिया तथा पेटसामों युद्ध से पूर्व के पोलैण्ड के पूर्वी भागों तथा पूर्वी एशिया के उत्तरी भागों, कारपेथियन, उक्रेन, बस्सरेबिया, तथा उत्तरी बुकोबिना, दक्षिण सखालिन और कुरील द्वीपों को मिलाकर काफी वृद्धि की।
सोवियत संघ 1949 में नाभिकीय शक्ति बना यद्यपि 1953 तक छोड़ने की प्रणाली जैसे क्षेत्रों में अमरीका की सर्वोच्चता बनी रही। लेकिन जब सोवियत संघ एक बार नाभिकीय हथियारों को धारण करने वाला देश बन गया उसके स्तर में सुधार आया और उसको भी एक महाशक्ति मान लिया गया। 1949 में चीन में साम्यवादी शक्तियों के बीच 30 वर्षों के लिए शांति संधि हो जाने से सोवियत संघ की ताकत में और वृद्धि हुई । द्वितीय विश्वयुद्ध के तत्काल बाद सोवियत संघ ने अमरीका से विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करने के भरपूर प्रयास किये। सैन्य तकनीकी में अमरीका की बराबरी करने के लिए सोवियत संघ ने उत्तर युद्ध पुनर्निर्माण सहित सभी कार्यों को अधीन किया। जब एक बार सोवियत संघ ने नाभिकीय हथियारों को विकसित कर लिया तब वह संयुक्त राज्य अमरीका का प्रतिद्वंद्वी बन गया और दोनों को महाशक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त हो गयी। प्रत्येक ने अपने-अपने शक्ति गुटों का निर्माण किया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमरीका का विश्व के विभिन्न भागों में प्रत्यक्ष तौर पर एक दूसरे का मुकाबला हुआ। लुण्डेस्टड के अनुसार, “अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में वे दो मुख्य किरदार थे, जो भोगौलिक दूरी उनको अलग करती थी वह समाप्त हो चुकी थी और राजनीतिक दूरी शीघ्र ही इतनी व्यापक होने वाली थी जो इससे पूर्व कभी भी न थी।‘‘
बोध प्रश्न 4
टिप्पणी: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए स्थान.का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तरों का मिलान कीजिए।
1) द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सबसे अधिक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में संयुक्त राज्य अमरीका के उद्भव का विवरण कीजिए।
2) 1945 के बाद सोवियत संघ ने किस प्रकार संयुक्त राज्य अमरीका की सर्वोच्चता को चुनौती दी?
3) द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद महाशक्तियों के उद्गम का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 4
1) संयुक्त राज्य अमरीका विश्व का पहला देश था जिसने अणु बम का निर्माण किया और उसका प्रयोग भी उसने जापानियों को आत्मसमर्पण करने के लिए किया। संयुक्त राज्य अमरीका की प्रांरभिक भूमिका जर्मनी तथा इटली की पराजय के लिए उत्तरदायी थी। अमरीका की भूमि पर कोई युद्ध नहीं लड़ा गया। 1945 में अमरीका के पास विश्व की सबसे शक्तिशाली वायु सेना एवं अग्रिम नौसेना थी।
2) सोवियत संघ नाभिकीय हथियारों को प्राप्त करने से पूर्व ही विश्व का दूसरा सबसे अधिक शक्तिशाली देश बन चुका था। उसकी सेना ने पोलैण्ड तथा दूसरे पूर्वी यूरोपीय देशों में साम्यवादी सरकारों की स्थापना की। उसका वैचारिक प्रभाव संयुक्त राज्य अमरीका के लिए एक चुनौती था।
3) अन्य विजयी राष्ट्रों की तुलना में अमरीका तथा सोवियत संघ बेहतर स्थिति मे थे। संयुक्त राज्य अमरीका को नगण्य नागरिक नुकसान हुआ था, सोवियत संघ के विशाल भू-भाग तथा विचारधारात्मक प्रतिबद्धता ने उसे बेहतर स्थिति में रखा । संयुक्त राज्य अमरीका ने पूँजीवादी विश्व का नेतृत्व किया और सोवियत संघ विश्व साम्यवाद का केन्द्रबिदु बन गया।
सारांश
द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रारंभ उस समय हुआ जबकि 1 सितम्बर, 1939 को जर्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण किया। दो दिन बाद फ्रांस तथा इंग्लैण्ड ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इससे पूर्व दो कड़े प्रतिद्वन्दियों, जर्मनी तथा सोवियत संघ ने एक गैर आक्रामक समझौते पर हस्ताक्षर किये। आलोचकों ने इस समझौते को दो देशों के बीच पोलैण्ड के विभाजन का समझौता कहा। द्वितीय विश्वयुद्ध के मुख्य कारण थे रू प्रथम विश्वयुद्ध का अंत करने वाली वारसा संधि, इस संधि की शर्तों ने जर्मनी का अपमान किया और जर्मनियों के द्वारा इसे डिक्टेट (क्पबाजंज) एवं अनुचित बताया गया, उस निरस्त्रीकरण की असफलता जिसे युद्ध टालने की निश्चित गारंटी समझा गया, विश्व आर्थिक संकट जिसने जापान जैसे देशों में सैन्य एवं आक्रामक कार्यवाहियों को प्रोत्साहित किया, विश्व व्यवस्था को विध्वंस करने के दृढ़ निश्चय के कारण तीन फासीवादी शक्तियों के गठबंधन द्वारा रोम बर्लिन-टोकियो धुरी का निर्माण किया जाना, अल्पसंख्यकों के असंतोष की समस्या, फासीवादी एवं नाजी तानाशाहों की कृपा प्राप्त करने के लिए ब्रिटेन द्वारा उनके प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाना और फ्रांस द्वारा इसका समर्थन करना, और अंततः जर्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया जो युद्ध का तात्कालिक कारण बन गया।
युद्ध प्रारंभ होने पर ब्रिटेन और उसके सहयोगी राष्ट्रों की ओर कई देश भी इसमें शामिल हो गये। लेकिन अमरीका इस युद्ध से उस समय तक बाहर रहा जब तक जापान ने पर्ल हार्बर पर आक्रमण नहीं किया। जापान की इस कार्यवाही ने अमरीका को मित्र राष्ट्रों की ओर दिसम्बर, 1941 में युद्ध में शामिल होने के लिए बाध्य कर दिया। सोवियत संघ ने तुरन्त ब्रिटेन के साथ गठबंधन कर लिया। इसी बीच इटली ने फ्रांस के विरुद्ध घोषणा करते हुए जून, 1940 में जर्मनी की ओर से युद्ध में प्रवेश किया। जब 1943 में इटली पर पहला आक्रमण किया गया तब धुरी राष्ट्रों को बड़ा आघात पहुँचा। मुसोलिनी को इटली के राजा द्वारा पदच्यूत कर दिया गया और बाद में इटली ने बगैर किसी शर्त के आत्मसमर्पण कर गया। यद्यपि रोम पर कुछ समय तक जर्मन सेनाओं का अधिकार बना रहा। पूर्वी यूरोप को मुक्त कराने के लिए सोवियत संघ जर्मनी के विरुद्ध कड़ा संघर्ष कर रहा था। ब्रिटेन तथा अमरीका द्वारा दूसरा मोर्चा खोले जाने के बाद जर्मनी को न केवल फ्रांस को खोना पड़ा अपितु उसने मई, 1945 में आत्मसमर्पण कर दिया। जापान प्रशान्त क्षेत्र में उस समय युद्ध करता रहा जब तक अमरीका ने अगस्त, 1945 में उस पर न केवल दो अणु बमों को गिराया बल्कि उसे आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य भी कर दिया। इस प्रकार युद्ध का अंत तीन फासीवादी शक्तियों की पराजय तथा मित्र राष्ट्रों की विजय के रूप में हुआ।
युद्ध के उपरांत शांति प्रयासों को चलाना बड़ा मुश्किल साबित हुआ। मित्र राष्ट्रों ने 1945 में पोट्सडम सम्मेलन को जर्मनी के साथ शांति संधि करने के लिए बुलाया। युद्ध के तुरन्त बाद किसी भी पराजित राष्ट्र के साथ कोई शांति संधि न हो सकी। लेकिन लंबी कूटनीतिक गतिविधियों के पश्चात इटली, रूमानिया, हंगरी तथा फिनलैण्ड और बाद में आस्ट्रिया एवं जापान के साथ शांति संधियाँ सम्पन्न की जा सकी। कई वर्षों तक जर्मनी अधीन बना रहा और स्वाभाविक था कि बहुत से वर्षों तक उसके साथ शांति संधि नहीं हो सकी।
युद्ध का महत्वपूर्ण परिणाम जर्मनी का चार अधीनस्थ क्षेत्रों में विभाजन होना था। बाद में तीन पश्चिमी क्षेत्र एक सार्वभौमिक देश बन गये, और पूरब में सोवियत संघ समर्थित सरकार को स्थापित किया गया। क्योंकि पूर्वी यूरोप के देशों को सोवियत संघ की सेना द्वारा मुक्त किया गया था, इसलिए उनमें साम्यवादी सरकारों की स्थापना की गयी। शीतयुद्ध उन शक्ति गुटों के बीच शुरू हुआ जिनके बीच विश्व विभाजित था।
संयुक्त राज्य अमरीका सौभाग्यशाली था कि कोई भी युद्ध उसकी भूमि पर नहीं हुआ था और नागरिक नुकसान नगण्य था। वह ऐसा प्रथम देश था जिसने अणु बम का विकास एवं प्रयोग सर्वप्रथम किया। सोवियत संघ ने इस शक्ति को पांच वर्ष बाद प्राप्त किया। जैसे दूसरी बड़ी शक्तियों ने अपनी अधिकतर क्षमता को खोया वैसे ही संयुक्त राज्य अमरीका तथा सोवियत संघ का दो महाशक्तियों के रूप में उद्गम हुआ और शक्ति के दो गुटों का निर्माण हुआ।
शब्दावली
युद्ध क्षतिपूर्ति ः (युद्ध हर्जाना) वह दण्ड जिसको पराजित देशों पर नागरिक आबादी एवं सम्पति को किये गये नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में थोपा गया।
अनुशास्ति ः एक आक्रामक या अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने वाले देश के विरुद्ध दण्डात्मक प्रतिबंध लगाना। अनुशास्ति आर्थिक या सैनिक या दोनों प्रकार की होती है।
धुरी राष्ट्र ः इस शब्द का प्रयोग तीन फासीवादी शक्तियों अर्थात जर्मनी, इटली, एवं जापान के लिये किया गया है और द्वितीय विश्वयुद्ध की पूर्व संध्या पर इन तीनों ने गठबंधन किया।
गैर आक्रामक समझौता ः यह एक ऐसा समझौता है, जिसके अंतर्गत एक देश दूसरे पर एक निश्चित अवधि के लिए आक्रमण नहीं करता।
शीत युद्ध ः दो शक्ति गुटों के बीच गहरे तनाव की स्थिति लेकिन इसमें एक दूसरे के विरुद्ध किसी भी प्रकार के हथियार का प्रयोग नहीं होता।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
लगसाम, डब्ल्यू सी तथा मितशैल, दि वर्ल्ड सिंस 1919, न्यूयार्क, दि मैकमिलन पब्लिशिंग कम्पनी।
अलब्रेश्त कैरी: ए डिप्लोमैटिक हिस्ट्री ऑफ यूरोप सिंस दि कांग्रेस ऑफ वियना, न्यूयार्क, मार्थर एण्ड रॉ।
जॉन्सन, पौल, ए हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न वर्ल्ड फ्रोम 1917 टू 1980, लंदन, वैडनफिल्ड एण्ड निकल्सन। धर, एस एन, इंटरनेशनल रिलेशन्स एण्ड वर्ल्ड, पॉलिटिक्स, सिंस 1919, नई दिल्ली, कल्याणी प्रकाशन।
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