महासागरीय धाराएं किसे कहते हैं , प्रशांत महासागर की पांच प्रमुख धाराओं के नाम ठंडी जलधारा कौन सी है

ठंडी जलधारा कौन सी है महासागरीय धाराएं किसे कहते हैं , प्रशांत महासागर की पांच प्रमुख धाराओं के नाम क्या है ? आमतौर पर गर्म महासागरीय धाराएं निकट होती है ?

महासागरीय धाराएं
ऽ सागरों में जल के एक निश्चित दिशा में प्रवाहित होने की गति को ‘धारा‘ कहते हैं।
ऽ महासागरों में धाराओं की उत्पत्ति कई कारकों के सम्मिलित प्रभाव के फलस्वरूप सम्भव होती है। जैसे-पृथ्वी की घूर्णन गति, सागर के तापमान में भिन्नता, लवणता में भिन्नता, घनत्व में भिन्नता, वायुदाब तथा हवाएं, वाष्पीकरण और वर्षा आदि ।
ऽ धाराओं की गति, आकार तथा दिशा के आधार पर इसके अनेक प्रकार हैं:
(अ) प्रवाह (äift): जब पवन वेग से प्रेरित होकर सागर की सतह का जल आगे की ओर अग्रसर होता है तो उसे प्रवाह कहते हैं। इसकी गति तथा सीमा निश्चित नहीं होती है। उदाहरण-उत्तर अटलांटिक एवं दक्षिण अटलांटिक प्रवाह ।
(ब) धारा (Current): जब सागर का जल एक निश्चित सीमा के अन्तर्गत निश्चित दिशा में तीव्र गति से अग्रसर होता है तो उसे धारा कहते है। इसकी गति प्रवाह से अधिक होती है।
(स) विशाल धारा (Stream): जब सागर का अत्यधिक जल भूतल की नदियों के समान एक निश्चित दिशा में गतिशील होता है तो उसे विशाल धारा कहते हैं। इसकी गति प्रवाह तथा धारा दोनों से अधिक होती है। उदाहरण-गल्फस्ट्रीम।
तापमान के आधार पर महासागरीय धाराएं दो प्रकार हो होती हैं:
(1) गर्म धारा तथा (2) ठण्डी धारा
ऽ यदि जलधारा का तापमान उस स्थान के जल के तापमान से अपेक्षाकृत उच्च होता है, जहां यह जलधारा पहुंचती है, तो इसे गर्म जलधारा कहते हैं और यदि उस स्थान का तापमान जलधारा के तापमान से अधिक होता है तो यह ठण्डी जलधारा कहलाती है।
ऽ सामान्यतः विषुवत रेखा से ध्रूवों की ओर जाने वाली जलधारा गर्म होती है एवं ध्रूवों से विषुवत रेखा की ओर आने वाली जलधारा ठण्डी होती है।
ऽ कोरिऑलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्ध में जलधारा की दिशा में विक्षेपण दाहिनी तरफ तथा दक्षिण गोलार्ध में बायीं तरफ होता है।
ऽ 20°-40° उत्तर और 35°-75° पश्चिम में स्थित सरगासो सागर धाराओं से घिरा सागर है। अर्थात् इसका कोई तट नहीं है। यह अटलांटिक महासागर का सर्वाधिक लवणयुक्त और गर्म हिस्सा है।

महासागरीय धारा का महत्व
ऽ वायुमंडलीय परिसंचरण की तरह, महासागरीय धाराएं भी ऊष्मा का स्थानान्तरण विषुवत रेखा से ध्रूवों तक करती हैं।
ऽ इसके द्वारा विपुल जलराशि एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जायी जाती है जिससे पृथ्वी की सतह पर तापीय संतुलन को बनाए रखने में महासागर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
ऽ इन जलधाराओं से एक व्यापक जलीय परिसंचरण तंत्र विकसित होता है जो सभी महासागरों को प्रभावित करता है।
ऽ व्यापारिक हवाएं अफ्रीका के तट से बड़ी मात्रा में जल को बहाकर कैरेबियाई एवं मैक्सिको की खाड़ी में ले जाती है। यहां पर जल जमाव के कारण ही गल्फ स्ट्रीम जैसी गर्म जलधारा का आविर्भाव होता है।
ऽ इसी तरह, पछुआ हवाओं द्वारा गल्फस्ट्रीम के जल को ब्रिटेन एवं यूरोप में तट तक बहाकर ले जाया जाता है।
ऽ प्रचलित हवाओं का सर्वाधिक प्रभाव पूर्व-पश्चिम दिशा में प्रवाहित समुद्री जलधारा पर पड़ता है।
ऽ उत्तर-दक्षिण प्रवाह से तापमान में अन्तर पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।
ऽ जब वायु का प्रवाह तट से समुद्र की ओर होता है तो उस तटीय क्षेत्रों में ठण्डी जलधारा का विकास होता है जैसे-केनारी एवं बेंगुला धारा।
ऽ समुद्री जलधारा तटीय क्षेत्रों के जलवायु को प्रभावित करती है। वे तापमान, आर्द्रता एवं वर्षा को प्रभावित करती है।
प्रशान्त महासागर की जलधाराएं
जलधारा प्रकृति
क्यूरोशिवो गर्म
ओयाशिवो/क्युराइल ठण्डी
ओखोत्स्क ठण्डी
अलास्कन गर्म
कैलिफोर्निया ठण्डी
पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई गर्म
पेरू/हम्बोल्ट ठण्डी
प्रति विषुवतरेखीय गर्म
दक्षिण विषुवतरेखीय गर्म
अलनीनो गर्म
अंटार्कटिक धारा ठण्डी
उत्तर विषुवतरेखीय गर्म
अटलांटिक महासागर की जलधाराएं
जलधारा प्रकृति
उ. विषुवतरेखीय धारा गर्म
गल्फ स्ट्रीम गर्म
फ्लोरिडा गर्म
उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट गर्म
नारवेजियन धारा गर्म
इरमिंगेर धारा गर्म
रेनील धारा गर्म
लेब्रोडोर धारा ठण्डी
केनरी धारा ठण्डी
पूर्वी ग्रीनलैंड धारा ठण्डी
द. विषुवतरेखीय धारा गर्म
ब्राजीलियन धारा गर्म
एंटलिज धारा गर्म
द. अटलांटिक ड्रिफ्ट ठण्डी
फॉकलैण्ड धारा ठण्डी
बेंगुला धारा ठण्डी
अंटार्कटिक धारा ठण्डी
हिन्द महासागर की जलधाराएं
जलधारा प्रकृति
मोजाम्बिक धारा गर्म
अगुल्हास गर्म
द. प. मानसूनी धारा गर्म एवं अस्थायी
उ. पू. मानसूनी धारा ठण्डी एवं अस्थायी
सोमाली धारा ठण्डी एवं अस्थायी
प. ऑस्ट्रेलियाई धारा ठण्डी एवं अस्थायी
द. हिन्दमहासागरीय धारा ठण्डी

ज्वार-भाटा (Tides)
ऽ सूर्य तथा चन्द्रमा की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के आवर्ती रूप से ऊपर उठने तथा गिरने को क्रमशः ज्वार तथा भाटा कहते हैं । पृथ्वी के निकट होने के कारण चंद्रमा ज्वार-भाटा पर सर्वाधिक प्रभाव डालता है।
ऽ जब सूर्य, चन्द्रमा व पृथ्वी एक सीधी रेखा में होते हैं तो ज्वार सबसे ऊंचा होता है । यह स्थिति पूर्णमासी तथा अमावस्या को होती है। इसे बृहत् ज्वार (Spring Tide) कहते हैं।
ऽ इसके विपरीत, जब सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा मिलकर समकोण बनाते हैं तो सूर्य तथा चन्द्रमा के आकर्षण बल एक दूसरे के विपरित कार्य करते हैं, जिस कारण निम्न ज्वार (Neap Tide) अनुभव किया जाता है। यह स्थिति प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होती है।
ऽ घूमती हुई पृथ्वी पर स्थित एक ही रेखा को दोबारा चंद्रमा के लंबवत नीचे आने में 24 घंटे व 52 मिनट का समय लगता है। अतः ज्वार-भाटा 12 घंटे व 26 मिनट के नियमित अंतराल पर आता है।
ऽ सामान्यतः ज्वार-भाटा प्रतिदिन दो बार आता है लेकिन इंग्लैण्ड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथम्पटन में दिन में चार बार ज्वार-भाटा आता है।

सुनामी (Tsunami)
सुनामी जापानी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है तट पर आती समुद्री लहरें। इनका ज्वारीय तरंगों से कोई संबंध नहीं होता। ये महासागरीय भूकम्पों के प्रभाव से महासागरों में उत्पन्न होती है। सुनामी लहरों की दृष्टि से प्रशान्त महासागर सबसे खतरनाक है।