मध्यकालीन साहित्य का इतिहास क्या है ? मध्यकालीन भारतीय इतिहास के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए मध्यकालीन साहित्य का इतिहास क्या है ?

मध्यकालीन साहित्य
1000 ईसवी के आस-पास प्राकृत में स्थानीय भिन्नताएं अधिकाधिक स्पष्ट होती चली गई जिन्हें बाद में अपभ्रंश कहा जाने लगा था और इसके परिणामस्वरूप आधुनिक भारतीय भाषाओं ने आकार लिया तथा इनका जन्म हुआ। इन भाषाओं के क्षेत्रीय, भाषाई तथा जातीय वातावरण द्वारा अनुकूलन के परिणामस्वरूप इन्होंने भाषा संबंधी भिन्न विशेषताएं धारण कर लीं। संविधान में मान्यता-प्राप्त आधुनिक भारतीय भाषाएं जैसे कोंकणी, मराठी, सिंधी, गुजराती (पश्चिमी) मणिपुरी बार ओड़िया और असमी (पूर्वी), तमिल,तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ (दक्षिणी), और हिन्दी, उर्दू, कश्मीरी, डोगरी. पंजाबी मैथिली, नेपाली और संस्कृत (उत्तरी) शामिल हैं। संविधान ने दो जनजातीय भाषाओं-बोडो और संथाली को भी मान्यता प्रदान की है। इन 22 भाषाओं में तमिल प्राचीनतम आधुनिक भारतीय भाषा है जिसने अपनी भाषाई विशेषता को बनाए रखा है और लगभग 2000 वर्षों में इसमें थोड़ा-सा ही परिवर्तन हुआ है। उर्दू आधुनिक भारतीय भाषाओं में सबसे यवा है तथा इसने अपना आकार चैदहवीं शताब्दी ईसवी में लिया था और अपनी लिपि एक अरबी-फारसी मौलिकता से ली लेकिन अपनी शब्दावली फारसी और हिन्दी जैसे भारतीय-आर्य स्रोतों से भी ली थी। संस्कृत जो कि प्राचीनतम शास्त्रीय भाषा है, अभी काफी कुछ प्रयोग में है और भारत के संविधान ने इसे इसीलिए आधुनिक भारतीय भाषाओं की सूची में शामिल किया है।
1000 से 1800 ईसवी के बीच मध्यकालीन भारतीय साहित्य का सर्वाधिक शक्तिशाली रुझान भक्ति काव्य है जिसका देश की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं पर आधिपत्य है। यूरोप के अंधकारमय मध्यकाल से भिन्न, भारत के मध्यकाल ने असाधारण गुणवत्ता से परिपूर्ण भक्ति साहित्य ने एक अति समृद्ध परम्परा को जन्म दिया जो भारत के इतिहास के एक अंधकारमय युग की अंधविश्वासी धारणाओं का खण्डन करती है। भक्ति साहित्य मध्यकालीन युग की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना है। यह प्रेम से भरा काव्य है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर, कृष्ण या राम के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति करता है, जो महान भगवान विष्णु के दो प्रमुख अवतार हैं। इस प्यार को पति और पत्नी के बीच, अथवा प्रेमियों के बीच अथवा नौकर और मालिक के बीच अथवा माता-पिता और सन्तान के बीच के प्यार के रूप में चित्रित किया गया है। यह ईश्वरत्व को व्यक्तिगत बनाना है जिसका अर्थ है – आपके भीतर के ईश्वर का वास्तव में बोध होना, साथ ही जीवन में सौहार्द का होना जो मात्र प्यार ही ला सकता है। सांसारिक प्रेम काम है और ईश्वरीय प्रेम (रहस्यमय काम) है। भक्ति में प्रबल संकत उल्लास तथा ईश्वर की समग्र पहचान है। यह धर्म के प्रति एक काव्यात्मक दृष्टिकोण है और काव्य के प्रति एक तापस्विक दृष्टिकोण है। यह संयोजनों का काव्य है- सांसारिकों का ईश्वर से संयोजन और परिणामस्वरूप प्यार के पंथनिरपेक्ष काव्य के पुराने रूप का सभी भाषाओं में एक नया अर्थ निकलने लगा। भक्ति काव्य में उन्नति के परिणामस्वरूप क्षेत्रीय भाषाओं ने भी उन्नति की। भाषा की संकल्पना ने संस्कृत की सर्वोत्कृष्ट परम्परा को नष्ट कर दिया और जनसाधारण की अधिक स्वीकार्य भाषा को स्वीकार कर लिया। कबीर कहते हैं कि संस्कृत एक निश्चल कूप जल के समान है, भाषा बहते पानी की तरह होती है। सातवीं शताब्दी के एक शैव तमिल लेखक माणिक्कवाचकर का कविताओं की अपनी पुस्तक तिरुवाचकम् में ऐसा ही कुछ कहना है। भक्ति ने शताब्दियों पुरानी जाति प्रथा पर भी हम किया है और स्वयं को मानवता की आराधना के प्रति अर्पित किया है क्योंकि भक्ति का नारा यह है कि हर मनुष्य भगवान है। यह आन्दोलन वास्तव में गौण था क्योंकि इसके अधिकांश कवि तथाकथित ‘निचली‘ जातियों से था मा ब्रह्मविज्ञान से अलग है और किसी भी प्रकार के अवधारणात्मक पाण्डित्य के विरुद्ध है।
तमिल में प्राचीन भक्ति काव्य की उस शक्ति को गति प्रदान की गई जिसे एक अखिल- भारतीय विकसित रूप समझा रहा था। तमिल, के पश्चात, दसवीं शताब्दी में पम्पा के महान राजदरबारी काव्यों की कन्नड़ में रचना की गई थी। कन्नड़ में भक्ति साहित्य, कृष्ण, राम और शिव सम्प्रदायों के विभिन्न सन्तों के वचन काफी प्रसिद्ध हैं। बसवण्णा कन्नड़ के एक प्रसिद्ध कवि थे, शिव के उपासक थे और एक महान समाज सुधारक थे। अल्लमा प्रभु (कन्नड़) ने धर्म के नाम पर महान काव्य का सृजन किया। कालक्रमिक, कन्नड़ की घनिष्ठ उत्तराधिकारिणी मराठी, भक्ति की अगली भाषा बनी। ज्ञानेश्वर (1275 ईसवी सन) मराठी के प्रथम और अग्रवर्ती कवि थे। उनकी किशोर-अवस्था (21 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी ) विठल (विष्णु) भक्ति के संबंध में अपने कविसुलभ योगदान के लिए प्रसिद्ध हो गए थे। एकनाथ ने अपने लघु कविसुलभ वर्णनात्मक तथा भक्तिमय अभंग (एक साहित्यिक रूप) लिखे थे, और इनके पश्चात् तुकाराम (1608-1649 ईसवी सन) के गीतों ने समूचे महाराष्ट को मंत्रमुग्ध कर दिया था। और इसके बाद बारहवीं शताब्दी में गुजराती आई। गुजराती के नरसिंह मेहता और प्रेमानन्द जैसे कवियों का वैष्णव कवियों की विशिष्ट मण्डली में प्रमुख स्थान है। इसके पश्चात् अनुक्रम इस प्रकार से है: कश्मीरी, बांग्ला, असमी, मणिपुरी, ओडिया, मैथिली, ब्रज, अवधी (अन्तिम तीन भाषाए छत्र भाषा हिन्दा क अधीन आती हैं ) और भारत की अन्य भाषा बांग्ला कवि चण्डीदास का इनकी कविताओं मे सुबोधगम्यता और माधुर्य के लिए एक महान प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में अभिनन्दन किया जाता है, इसी प्रकार, मैथिली में विद्यापति ने एक नई कविसुलभ भाषा का सजन किया। कश्मीर की एक कवयित्री लालद्यद ने रहस्यमत भाव को एक नया आयाम प्रदान किया। बारहवीं शताब्दी के संस्कृत के एक गीतात्मक कवि जयदेव ने गोविन्द दास (सालहवा शताब्दी), बलराम दास और अन्यों जैसे बांग्ला के अधिसंख्य भक्ति कवियों को प्रभावित किया। एक महान बांग्ला. सन्त चैतन्य (1486-1537) ने वैष्णवमत को एक धार्मिक तथा साहित्यिक आन्दोलन में परिवर्तित होने में सहायता की, इसे एक जीवित धर्म बनाया। जीव गोस्वामी सहित अनेक कवियों के लिए यह कभी न समाप्त होने वाला प्रेरणा का एक स्रोत बन गया। असमी कवि शंकरदेव (1449-1568) ने वैष्णवमत का प्रचार करने के लिए नाटकों (अंकिया-नट) और कीर्तन (भक्ति गीत) का प्रयोग किया और एक दिव्य-चरित्र बन गए। इस प्रकार, जगन्नाथ दास ओडिया के एक दिव्य-चरित्र भक्ति कवि हैं जिन्होंने भागवत (कृष्ण की कहानी) की रचना की जिसने समस्त ओडिशावासियों को मिला कर आत्मिक रूप से एक कर दिया और एक जीवित चेतना का सजन किया। बाउल (पागल प्रेमी) के नाम से प्रसिद्ध ग्रामीण बंगाल के मुस्लिम और हिन्दू सन्त कवियों ने वैष्णव और सूफी (रहस्यवाद, जो ईश्वरीय भक्ति के सिद्धान्त को प्रस्तुत करता है) दोनों ही दर्शन-शास्त्रों के प्रभाव के अधीन ईश्वरीय लगाव के बारे में मौखिक काव्य का सृजन किया। दौलत काजी और सय्यद अलाउल (सत्रहवी शताब्दी ईसवी सन) जैसे मध्यकालीन मुस्लिम कवियों में इस्लाम तथा हिंदुमत की एक खुशहाल संस्कृति एवं धार्मिक संश्लेषण के साथ सूफी दर्शनशास्त्र पर आधारित वर्णनात्मक कविताओं का सजन किया। वास्तव में, हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए भक्ति एक महान मंच बन गई, कबीर संत परम्परा (एक सर्वव्यापी ईश्वर अनेक ईश्वरों से भिन्न, विश्वास) के कवियों में अग्रगामी थे। कबीर का काव्य भक्ति, रहस्यवाद और सामाजिक सुधार के विभिन्न पहलुओं को छूता है।
हिन्दी ने अपने भारतीय स्वरूप के कारण हिन्दी में साहित्य की रचना करने के लिए नामदेव (मराठी) और गुरु नानक (पंजाबी) को आकर्षित किया जो तब तक कई भाषाओं तथा उपभाषाओं के एक समूह में विकसित हो गई थी एवं एक छत्र भाषा के रूप में जानी जाती थी। हिन्दी की केन्द्रीयता और इसका व्यापक भौगोलिक क्षेत्र इसके कारण थे। सूरदास, तुलसीदास और मीरां बाई (पन्द्रहवीं से सोलहवीं शताब्दी ईसवी सन) ने वैष्णवी गीतात्मकता के क्षेत्र में जो महान ऊंचाइयां हासिल की हैं उनकी ओर इशारा किया है। तुलसीदास (1532 ईसवी सन) राम भक्ति के कवियों में श्रेष्ठतम थे, जिन्होंने अपने प्रसिद्ध महाकाव्य रामचरित मानस (राम के आदर्शों का उल्लेख) की रचना की (वास्तव में, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों का लोकभाषाओं में पुनर्जन्म हुआ था)। इन भाषाओं ने संस्कृत के महान महाकाव्यों को एक नया जीवन, एक नवीनीकृत प्रासंगिकता, और एक अर्थपूर्ण पुनर्जन्म प्रदान किया था और इन महाकाव्यों ने अपने काल में नई भाषाओं को वास्तविकता तथा शैली प्रदान की।
तमिल में कम्बन, बांग्ला में कृत्तिवास ओझा, ओड़िया में सारला दास, मलयालम में एजूत्तच्चन, हिन्दी में तुलसीदास और तेलग में नन्नय भली-भांति जाने जाते हैं। मलिक मोहम्मद जायसी,रसखान, रहीम और अन्य मुस्लिम कवियों ने सफी तथा वैष्णव काव्य की रचना की। मध्यकालीन साहित्य की एक विशेष विशिष्टता धार्मिक और सांस्कतिक संश्लेषण पचर मासा में पाते हैं। उपनिषदों में हिन्दत्त्व के बाद इस्लामी तत्व सबसे अधिक व्यापक है। प्रथम सिख गुरु ने कई भाषाओं में लिखा लेकिन अधिकाशतरू पंजाबी में है। वे अन्तर्धर्म संचार के एक महान कवि थे। नानक कहते है सत्य सर्वोपरि है लोकन सत्यता से भी ऊपर है सच्चा जीवन। गुरु नानक और अन्य सिख गुरुओं का संबंध संत परम्परा से है जो कि सर्वव्यापी एक ईश्वर में विश्वास रखता है न कि राम तथा कृष्ण की भांति कई देवी- देवताओं में। सिख गुरुओं के काव्य का संग्रह गरु ग्रंथ साहिब में है जो कि एक बहुभाषीय पाठ है और जो कभी न बदलने वाले एक सच, ब्रह्माण्ड विधि (हुकुम), मनन (सतनाम), अनुकम्पा और सौहार्द (दया और संतोष) के बारे में बताता है। पंजाबी के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि बल्ले शाह ने पंजाबी कैफी (पद्य-रूप) के माध्यम से सूफामत का लोकप्रिय बनाया। कफी बन्दों में एक छोटी-सी कविता है जिसके बाद टेक आता है और इसे नाटकीय रीति से गाया जाता है सिंधी के प्रसिद्ध कवि शाह लतीफ (1689 ईसवी सन) ने अपनी पावन पुस्तक रिसालो में सूफी रहस्यवादी भक्ति को ईश्वरीय सत्य के रूप में स्पष्ट किया है।