भारत के सरकार के मंत्रालय एवं विभाग कौन कौन से है | Ministries and Departments of the Government of india

Ministries and Departments of the Government of india in hindi भारत के सरकार के मंत्रालय एवं विभाग कौन कौन से है के बारे में जानकारी |

सरकार के मंत्रालय एवं विभाग
(Ministries and Departments of the Government)
’’’(इस खंड का संबंध सिविल सेवा (मुख्य परीक्षा) के पाठ्यक्रम के प्रश्नपत्र-2 के टॉपिक-6 से है। दृष्टि द्वारा वर्गीकृत पाठ्यक्रम के 15 खंडों में से इसका संबंध भाग-5 से है।

प्रशासन के कार्यों में कल्याणकारी अवधारणा जुडं जाने के साथ ही प्रशासन का स्वरूप व्यापक हो गया है। कार्यों के बेहतर क्रियान्वयन के लिये कार्यों को विभिन्न विभागों व मंत्रालयों के अंतर्गत विभाजित किया गया है। शाब्दिक दृष्टि से विभाग से तात्पर्य किसी संगठन या इकाई के भाग या अंग से है। विभाग श्रम-विभाजन संकल्पना की देन है। सरकार कायम रहने के लिये स्थापित किये गये मूलभूत उद्देश्यों की पूर्ति हेतु विभागों की स्थापना की जाती है।
विभागों को संगठित करने का अधिकार संविधान, संसद या कार्यपालिका में निहित हो सकता है। अमेरिका में शासन व संगठन से संबंधित विस्तृत मुद्दों को कांग्रेस नियमित करती है। 1947 में पारित अधिनियम ने ब्रिटिश कार्यपालिका को यह अधिकार दिया है कि जिस प्रकार वह आवश्यक समझे विभागों का संगठन तथा पुनर्गठन कर सकती है। भारत में मंत्रालयों तथा विभागों का निर्माण तथा विघटन कार्यपालिका का कार्य है। प्रोफेसर व्हाईट के अनुसार ‘‘प्रशासन की सुदृढ़ नीति विभागों पर ही निर्भर होती है।‘‘
मंत्रालयों को विभागों में बाँटा गया है। मंत्रालय एव विभागों का उल्लेख गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एलोकेशन ऑफ बिजनेस रूल्स, 1961 (Government of India Allocation of Business Rules 1961) में है। मंत्रालय व विभाग के नीचे विंग, डिवीजन, ब्रांच इत्यादि का प्रयोग होता है।
मंत्रालय के राजनैतिक प्रमुख मंत्री होते हैं और प्रशासनिक प्रमुख सचिव होते हैं। स्पष्ट है कि राजनैतिक प्रमुख राजनैतिक पदाधिकारी होते हैं और प्रशासनिक प्रमुख प्रशासनिक पदाधिकारियों में अनुभव वरीयता इत्यादि के आधार पर चयनित किए जाते हैं।
विभिन्न मंत्रालयों के मध्य समन्वय करने के लिए मंत्रीमण्डल समितियों का गठन किया जाता है। इन समितियों के सदस्य मंत्रीगण होते हैं। अतः ये समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों के मध्य एक तरह से राजनैतिक रूप से समन्वय का कार्य करती हैं। प्रशासनिक स्तर पर समन्वय प्राप्ति में मंत्रिमण्डल सचिव और सचिव स्तरीय समितियों की भूमिका होती है। इस कार्य के लिये संलग्न कार्यालय, अधिनस्थ संगठन, स्वायत्त संस्थाएं, मण्डल, आयोग, सलाहकारी समितियों इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।
वित्त के संबंध में वित्त मंत्रालय, कार्मिक विषयों में कार्मिक प्रशासन मंत्रालय, लोक उपक्रमों के विषयों में भारी उद्योग व लोक उपक्रम मंत्रालय इत्यादि नोडल मंत्रालय और नियोजन संबंधी विषयों में बाहर से योजना आयोग की सहायता ली जाती है। लोकनीतियों के निर्माण में सचिवालय व्यवस्था और लोकनीति कार्यान्वयन में क्षेत्रीय अभिकरण की भूमिका होती है। इनके सचिव विभिन्न राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ सीधे संपर्क रखते हैं। विकास और कल्याण के संदर्भ में वर्तमान में स्थानीय सरकारों का भी सहयोग लिया जाता है।
विभागीय संगठन की संरचना- विभागीय संरचना पिरामिड की भांति है। इसमें पदसोपान पद्धति का प्रयोग किया जाता है। नियंत्रण, निरीक्षण, पर्यवेक्षण, समन्वय इत्यादि कार्यों के सरलतापूर्वक सम्पादन हेतु पदसोपान व्यवस्था एक व्यावहारिक पद्धति है।
विभागीय संरचना के पदसोपानिक पिरामिड में सत्ता शीर्ष से प्रारंभ होकर क्रमशरू नीचे की ओर चलती है। शीर्ष स्तर पर उत्तरदायित्व अधिक होता है और निम्न स्तर पर कार्य सम्पादन की मात्रा बढ़ती जाती है और उत्तरदायित्व की मात्रा कम होती जाती है। आदेश व निर्देश का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है, और प्रतिवेदन व सूचनाओं का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर होता है।
भारत में मोटे तौर पर त्रि-स्तरीय विभागीय संरचना है-
1. राजनैतिक स्तर पर मंत्रालय
2. प्रशासनिक स्तर पर सचिवालय
3. क्रियान्वयन स्तर पर निदेशालय/विभाग या कार्यकारी संगठन।
1. राजनैतिक स्तर पर मंत्रालयः राजनैतिक स्तर पर राजनैतिक प्रमुख मंत्री होते हैं इनकी सहायतार्थ राज्यमंत्री व उपमंत्री होते हैं। ये सभी संसद सदस्य होते हैं एवं अपने कार्यों के लिये संसदे के प्रति उत्तरदायी होते हैं। विभिन्न चुनावों के पश्चात् जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के आधार पर पदाधिकारियों का भी परिवर्तन होता रहता है। स्पष्ट है उनकी नियुक्ति का आधार विशिष्ट ज्ञान एवं योग्यता न होकर, दले के भीतर उनको शक्ति, स्थिति व राजनैतिक छवि होती है। मंत्रियों का प्रमुख कार्य विभागों द्वारा कार्य करने हेतु आवश्यक नीतियों का निर्माण करना, नीति संबंधी महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का निराकरण करना, नीति क्रियान्वयन का सामान्य निरीक्षण करना विभाग की नीति संबंधी प्रश्नों पर संसद के समक्ष स्पष्टीकरण देना है। मंत्री अपने विभाग से संबंधित पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देते हैं। आवश्यक विधेयक प्रस्तत करते हैं एवं जनता के समक्ष अपने विभाग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मंत्रालयों के राजनीतिक मुख्य कार्यकारी वैसे तो मंत्री होते हैं, परन्तु प्रत्यक्ष राजनीतिक मुख्य कार्यकारिणी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रीपरिषद् होती है। मंत्रिमण्डलीय समितियों के सदस्य होने क तोते समन्वय करने और लोकनीति व कार्यक्रम के संदर्भ में राजनैतिक समर्थन प्राप्त करने की भूमिका का निर्वहन मंत्रीयों द्वारा किया जाता है। विभाग में नीतियों व कार्यक्रमों की सफलता व असफलता के संबंध में संबंधित मंत्रालय का दायित्व उभरता है। पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी सिफारिश की थी कि मंत्री स्वयं को लोक नीतियों में ज्यादा केंद्रित करें और नीति क्रियान्वयन के मुद्दों की पहल के लिये सचिवों का प्रयोग करें।
कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री, स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री व उपमंत्री स्तर पर विभाजित होते हैं। वर्तमान में उपमंत्रियों के प्रयोग की प्रवृत्ति नहीं है। मंत्री विभाग की नीति का व्यापक रूप से निर्धारण करता है और विभाग में उत्पन्न विशेष नीति विषयक मामलों को निश्चित करता है। राज्यमंत्री प्रायः अपने विभाग के मंत्री के सामान्य निरीक्षण तथा मार्गदर्शन में कार्य करता है तथा उसे कुछ विशेष प्रकार के कार्य सौंपे जाते हैं। कुछ स्थितियों में राज्यमंत्री अकेला ही पूरे मंत्रालय का कार्यभार ग्रहण कर सकता है। विभाग के कार्यसंचालन के संबंध में उपमंत्री का प्रायः कोई विशिष्ट प्रशासकीय उत्तरदायित्व नहीं होता। उपमंत्री का कर्तव्य संबंधित मंत्रियों की ओर से संसद में उत्तर देना, विधि निर्माण में उसकी सहायता करना, सामान्य जनता तथा निर्वाचन क्षेत्रों में नीतियों एवं कार्यक्रमों को स्पष्ट करना, संसद सदस्यों, राजनीतिक दलों तथा प्रेस से सम्पर्क बनाये रखना तथा संबंधित मंत्रियों द्वारा सौंपी गयी विशेष समस्याओं का विशेष अध्ययन या जाँच करना होता है। संसदीय सचिव संसदीय कार्यों को सम्पन्न करने में मंत्री की सहायता करता है।
2. प्रशासनिक स्तर पर सचिवालयः सचिवालय का प्रधान कार्य मंत्रियों को आवश्यक कार्यों के संपादन में सलाह व सहायता प्रदान करना है। मंत्रालय मुख्य मोर्चे पर अपनी भूमिका संपादित करते नजर आते हैं, परंतु पृष्ठभूमि स्तर पर सचिवालयी कार्यों का संपादन करते हैं। सचिवालय व्यवस्था में अनम्यता के सिद्धांत का अनुपालन किया जाता है। सचिवालय प्रशासकीय विभाग के मस्तिष्क केंद्र की भांति होते हैं। सचिवालय संगठन के शीर्ष पर सचिव होते हैं। सचिव अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य होते हैं। विभाग की सचिवालयी व्यवस्था के दो वर्ग हैं अधिकारी वर्ग और अधीनस्थ वर्ग। अधिकारी वर्ग में सचिव, उपसचिव, अवर सचिव होते हैं। बड़े विभागों में अतिरिक्त व संयुक्त सचिव का भी प्रावधान होता है। अतिरिक्त व संयुक्त सचिव समान श्रेणी या स्तर के होते हैं। इनका सचिवालयी कार्यों के संबंध में मंत्री से सीधा सम्पर्क होता है। सचिवालय के अधीनस्थ कर्मचारियों में अनुभाग अधिकारी, सहायक तथा अवर लिपिक आते हैं।
सचिवालय की आधारभूत भूमिका स्टाफ या सलाहकारी रूप में होती है। सचिवालय और कर्मकारी अभिकरणों की व्यवस्था को अपनाना लोक नीति निर्धारण व कार्यान्वयन में अलगाव को स्वीकारने की ओर संकेत करता है। सचिवालय के शीर्ष प्रबंधन में समानज्ञों की स्थिति सशक्त होती है, तब भी विशेषज्ञों की भी कुछ नियुक्तियाँ होती हैं।
प्रशासनिक स्तर पर विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के मध्य समन्वय के संदर्भ में सचिव स्तरीय समितियों का प्रयोग किया जाता है। लोकनीति निर्माण में शीर्ष का प्रबंधन की भूमिका ज्यादा होती हैं।
राजनीतिक प्रधान के अधीन विभाग का सचिवालयी संगठन कार्य करता है। सचिवालय ही कुशल कर्मचारी प्रदान करता है जो नीतियों तथा कार्यक्रमों के प्रभावशाली क्रियान्वयन के लिऐ अपरिहार्य होतें हैं। जब कोई नीति स्वीकार की जाती है तो उस नीति के निष्पादन पर निंरतर ध्यान रखना सचिवालय का ही काम हैं।
3. क्रियान्वयन स्तर पर निदेशालय/विभाग या कार्यकारी संगठनः सचिवालय विभिन्न नीतियों के निर्माण में मंत्रालयों के प्रमुख मंत्रियों को सलाह व परामर्श देते है। इन नीतियों के क्रियान्वयन का दायित्व जिन संगठनों पर होता है उन्हे विभाग या मंत्रालय का कार्यकारी संगठन कहा जाता है। विभाग का प्रमुख विभागाध्यक्ष कहलाता है। इसें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे- निर्देशक महानिदेशक आयुक्त महानिरीक्षक आदि। इस प्रकार कार्यकारी अभिकरणों के शीर्ष पदाधिकारियों के कई पदनाम हो सकते हैं। इनका प्रमुख कार्य नीतियों का क्रियान्वयन करना होता है। क्षेत्रीय मुद्दों के संदर्भ मे ये सचिवालय को अवगत कराते है तथा उन्हे तकनीकि सहायता देते है। इनके प्रशासनिक के साथ-साथ अर्द्धन्यायिक कार्य भी हो सकते है। यदि इनके समक्ष न्यायिक कार्य आते है तो इनके निर्णयों को संबंधित न्यायाधिकरणों या न्यायालय में चुनौती दी जाती है। विभागों के प्रकार (ज्ञपदके व ि क्मचंतजउमदजेद्धरू संगठन की सरचना एक आकार कार्य को प्रकृति एवं आंतरिक संबंधों के आधार पर विभागों में विभिन्नता होती है।
i. एकात्मक विभागः एकात्मक विभाग विभिन्न प्रकार का कार्य करते हैं और किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिये संगठित होते हैं। उदाहरणार्थ प्रतिरक्षा विभाग, अंतरिक्ष विभाग इत्यादि।
पपण् संघात्मक विभागः संघात्मक विभाग अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। संघात्मक विभाग के अनेक उपविभाग होते हैं। संघात्मक विभाग बहुमुखी होते हैं। उदाहरणार्थ गृह विभागय प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग।
पपपण् प्रचालन विभागः ये विभाग संक्रियात्मक कार्य करते हैं। ये क्रियाओं के परिचालन में अपना योगदान देते हैं जैसे डाक विभाग, रेल विभाग आदि।
iv. समन्वयात्मक विभागः ये विभाग समन्वय एवं पर्यवेक्षणात्मक कार्य करते हैं। जैसे- सामान्य प्रशासन विभाग। इसके अतिरिक्त कुछ विभाग ऐसे होते हैं जिनका अधिकांश कार्य कार्यालय तक ही सीमित रहता है। इनके अंतर्गत कोई क्षेत्रीय इकाई भी नहीं होती है। उदाहरणार्थ वित्त विभाग।
मंत्री इच्छा, सचिव मस्तिष्क और कार्यकारिणी प्रमुख हाथों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जहाँ सरकारी नीतियों के निष्पादन के लिए कार्यकारी निर्देशन के विकेंद्रीकरण तथा क्षेत्रीय अभिकरणों की स्थापना की आवश्यकता होती है वहाँ मंत्रालय के अधीन सहायक संगठन भी होते हैं जिन्हें संलग्न और अधीनस्थ कार्यालय कहा जाता है। सम्बद्ध मंत्रालय द्वारा निर्धारित नीतियों के परिचालन हेतु ये संलग्न कार्यालय आवश्यक कार्यकारी निर्देश देने के लिये उत्तरदायी होते हैं। ये तकनीकी सूचना के भण्डार के रूप में कार्य करते हैं तथा मंत्रालयों को संबंधित प्रश्नों के तकनीकी मामलों में मंत्रणा देते हैं। अधीनस्थ कार्यालय क्षेत्रीय विभागों या अभिकरणों के रूप में कार्य करते हैं और सरकारी निर्णयों के विस्तृत निष्पादन के लिये उत्तरदायी होते हैं। सामान्यतः वे किसी संलग्न कार्यालय के निर्देशन में कार्य करते हैं। जहाँ सन्निहित कार्यकारी निर्देश बहुत अधिक नहीं होता वहाँ ये सीधे मंत्रालय के अधीन कार्य करते हैं।
मंत्रालय प्रशासन के सफल संचालन में मंत्री, सचिवालय, विभाग या कार्यकारी संगठन तथा संलग्न और अधिनस्थ कार्यालय संलग्न रहते हैं। अच्छे प्रशासन के लिये आवश्यक है कि इन सभी घटकों के कार्यों का स्पष्ट उल्लेख और विभाजन किया जाये तथा ये सब आपस में मिलकर कार्य करें। मुख्य कार्यपालिका अभिकरणों को निम्नांकित प्रकारों में बाँटा जा सकता है-
ऽ संलग्न कार्यालय (Attached offices)
ऽ अधीनस्थ कार्यालय (Subordinate offices)
ऽ विभागीय उपक्रम (Departmental Undertaking)
ऽ कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कंपनी (Registered Companies)
ऽ विशेष कानून द्वारा स्थापित बोर्ड या नियम (Board and Corporations)
ऽ सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम के अधीन पंजीकृत सोसाइटी (Registered Societies)
कार्यपालिका अभिकरणों में इनमें से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रकार संलग्न व अधीनस्थ कार्यालय का है। कार्यालय नियम प्रक्रिया में इन कार्यालयों की व्याख्या की गयी है। जहाँ शासकीय नीतियों को लागू करने के लिये विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता होती है वहाँ मंत्रालय के अधीन सहायक कार्यालय होते हैं जिन्हें संलग्न और अधीनस्थ कार्यालय कहते हैं। संलग्न कार्यालय मंत्रालय द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करने के लिए कार्यकारिणी निर्देशन देने के प्रति उत्तरदायी होते हैं। अधीनस्थ कार्यालय क्षेत्रीय कार्यालय के समान कार्य करते हैं या शासकीय निर्देशों के विस्तृत रूप से लागू करने के प्रति उत्तरदायी होते हैं। सामान्य रूप से अधीनस्थ कार्यालय संलग्न कार्यालय के निर्देशन के अधीन कार्य करते हैं।
मंत्रालय व विभागः वर्तमान परिदृश्य (Ministries and Departments eRecent Scenario)ः यद्यपि 91 वें संविधान संशोधन द्वारा मंत्रियों की संख्या सीमित की गई है लेकिन तब भी मंत्रियों की संख्या ज्यादा है। प्रत्यक्ष रूप में कई मंत्रियों के पास दो या अधिक मंत्रालयों की स्थितियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। अनुबधों द्वारा विशेषज्ञों को नियुक्तियों के प्रयास किये गये हैं। सलाहकारी समितियों, आयोगों, मण्डलों आदि का प्रयोग, बढ़ा है। ‘पंचायतीराज का विषय‘ राज्यों को देखना है, फिर भी इसके लिये संघ में मंत्रालय हैं उदाहरणार्थ पंचायती राज्य मंत्रालय। मंत्रालयों के संपर्क में शोध व अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए कुछ नोडल संस्थाओं का विकास किया जा रहा है। उदाहरणार्थ वित्त के विषयों में वित्तीय प्रबंधन का राष्ट्रीय संस्थान (National Institute of Financial Management) फरीदाबाद को विकसित किया जा रहा है। मंत्री-सचिव संबंधों में परिवर्तन के लिए कुछ नवीन परिदृश्यों का वर्णन किया जा सकता है जैसे- आउटकम बजट के माध्यम से त्रैमासिके जवाबदेही उभरी है। सूचना के अधिकार अधिनियम से लोकनीतियों में पारदर्शिता बढी है। नागरिक चार्टरों का प्रयोग उभराव्हा जनशिकायत निवारण में निदेशकों या न्यायाधिकरणों का प्रयोग उभरा है। न्यायपालिका की सक्रियता और न्यायपालिका के प्रति जवाबदेही बढ़ी है। लोकनीति विषयों में मंत्रियों को सचिवों के अतिरिक्त विशेषज्ञों नागरिक समाज या अन्य सलाहकारी समितियों की सहायता भी उपलब्ध हुई है। लोकनीति विषयों में लोकनीति इकाइयों का भी प्रयोग किया गया है। मंत्रियों के सशक्त समूहों के प्रयोग की स्थितियाँ उभरी हैं।