पुनर्भरण क्रियाविधि क्या है? एक उदाहरण की सहायता से समझाओ, हार्मोन नियमन की पुनर्भरण क्रियाविधि क्या है

जाने पुनर्भरण क्रियाविधि क्या है? एक उदाहरण की सहायता से समझाओ, हार्मोन नियमन की पुनर्भरण क्रियाविधि क्या है ?

पीयूषिका के कार्यों पर हाइपोथैलेमस द्वारा नियन्त्रण (Control of Pituitary Functions for Hypothalamus)

हाइपोथैलिमस केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भागों में से हैं, स्तनि सहित सभी कशेरूक प्राणियों में मस्तिष्क देह के अन्य सभी भागों में विशिष्ट तन्त्रिकीय क्षेत्रों (nerve tracts द्वारा जुड़ा रहता है। मानव मस्तिष्क में अभी भी अनेकों ऐसे क्षेत्र हैं जिनके बारे में वैज्ञानिकों को अभी और अनुसंधान करने की आवश्कयता है, यह क्षेत्र इनमें से एक माना जाता है। इस विचार से सभी वैज्ञानिक सहमत हैं कि हाइपोथैलेमस द्वारा पीयूष ग्रन्थि (pituitary gland) का नियमन किया जाता है। इस प्रकार पीयूष ग्रन्थि के द्वारा नियंत्रित अनेक अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों पर हाइपोथैलेम के कुछ भाग को शल्यक्रिया द्वारा पृथक किये जाने पर यह पाया गया है कि इन जन्तुओं की अनेक अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों (थॉयरॉइड, पेराथायरॉइड, अधिवृक्क ग्रन्थि एवं जनद आदि) में क्षीणता (atrophy) के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, अतः अनेक उपापचयी क्रियाएँ प्रतिकूल दिशा में होने लगती है तथा अनेक जनन सम्बन्धी चक्र भी अव्यवस्थित हो जाते हैं। हाइपोथैलेमस के कुछ भागों को शल्यक्रिया द्वारा पृथक किये जाने पर इसके निकटस्थ वृन्त समान भाग पर तन्त्रिका स्त्रावी स्रवणों (neuro secretory secretions) को अधिक मात्रा से एकत्रित अवस्था में पाया गया।

इस प्रकार के परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि हाइपोथेलेमस भागसे कुछ विशिष्ट तन्त्रिका स्रावी स्रवण (neuro secretory secretions) स्रवित होते हैं जो इस क्षेत्र की तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं द्वारा संश्लेषित किये जाते हैं तथा पीयूष ग्रन्थि के विभिन्न भागों में मुक्त होते हैं। इन तन्त्रिका स्रावी स्रवणों के द्वारा पीयूष ग्रन्थि में सम्भवतः दो प्रकार की क्रियाएँ सम्पन्न होती है । प्रथम क्रिया के रूप में :

(i) इन तन्त्रिका स्रावी स्रवणों की पीयूष ग्रन्थि में अपनी वास्तविक अवस्था में संग्रहित किया जाता है जिन्हें बाद में पीयूष ग्रन्थि से अन्य ग्रन्थियों एवं ऊत्तकों को स्रवित किया जाता है अथवा हाइपोथैलेमस द्वारा स्रवित ये तन्त्रिका स्रावी स्रवण पूर्वगामी (precursor) पदार्थों के रूप में पीयूषिका द्वारा ग्रहण किये जाते हैं तथा इन्हें तन्त्रिका हार्मोन्स (neurohormones) के रूप में परिवर्तित कर मुक्त किया जाता है।

द्वितीयक प्रकार की क्रिया के रूप में :

(ii) हाइपोथेलेमस द्वारा स्रवित तन्त्रिका स्रावी स्रवण रक्त के प्रवाह द्वारा पीयूष ग्रन्थि के विभिन्न भागों को ले जाये जाते हैं जहाँ यह विशिष्ट हार्मोनों के संश्लेषण एवं स्रवणकारी क्रियाओं को प्रभावित करते हैं।

चित्र 10.5 : पश्च पीयूष ग्रन्थि तथा इसका हाइपोथेलेमस से संबंध

हाइपोथैलेमो तन्त्रिका हाइपोफाइसिस जटिल (hypothalamo neurohypophysial complex) क्षेत्र में तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं के तन्त्रिकाक्ष (axons) अपने स्रवणों को सीधे न्यूरोहाइपोफाइसिस या पश्य पिण्ड (neurohyphosis of posterior lobe) नामक पीयूष ग्रन्थि के भाग में मुक्त कर हैं जो कि न्यूरोहीमल अंग (neurohaemal organ) के रूप में कार्य करता है। द्वितीय प्रकार की क्रिया के रूप में न्यूरोहार्मोन्स को हाइपोथैलेमो-हाइपोफाइसियल निर्वाहिका तन्त्र (hypothalamo hypophysial portal system) में प्रवाहित होकर एडीनोहाइपोफाइसिस या अग्र पिण्ड (adenohypophysisis or anterior lobe) नामक पीयूष ग्रन्थि के भाग को प्रभावित कर एडीनोहाइपोफाइसिस द्वारा स्रवित हारमोनों का नियंत्रण किया जाता है।

चित्र 10.6 : पीयूष ग्रन्थि का हाइपोथैलेमस से सम्बन्ध

पीयूषिका पश्य पिण्ड मस्तिष्क से विकसित एवं इन्फण्डीबुम द्वारा संलग्न भाग होता है। यह भाग तन्त्रिका तन्तुओं, तन्त्रिका कोशिकाओं के तन्त्रिकाक्ष या एक्सॉन (axons) आदि से रचित होता है। इन्हीं का कोशिकीय भाग हाइपोथैलेमस के प्री ऑप्टिक या सुप्रा ऑप्टिक (Preoptic or supraoptic) एवं पेरापेंट्रीकुलर नाभिकाओं (paraventricular nuclei) में स्थित होता है। हाइपोथैलेमस से उद्गमित ये तन्तु हाइपोथैलेमिक हाइपोफाइसियल प्रदेश (hypothalamic-hypophysealtract) बनाते हैं. पश्च पिण्ड की रक्त केशिकाओं तक व्यवस्थित होते हैं।

सभी उच्च कशेरूकी जन्तुओं में पीयूष ग्रन्थि का एडीनोहाइपोफाइसिस भाग हाइपोफाइसियल निर्वाहिका तन्त्र (hypophyseal portal system) द्वारा हाइपेथैलेमिक नाभिकों से लायी गई रासायनिक सूचनाओं को प्राप्त करता है। पीयूषिका के पश्य पिण्ड में, हाइपोथैलेमस में स्थित तन्त्रिका कोशिकाओं (neurosecretory cells) द्वारा स्रवित पदार्थ ही एक्सॉन के द्वारा लाये एवं संग्रहित किये जाते हैं। इन तन्त्रिका स्रावी स्रवणों को न्यूरोहार्मोन्स (neurohormones) कहते हैं। ये नियमनकारी कारक (regulatory factors) RH का कार्य करते हैं। इन्हीं नियमनकारी कारकों या हार्मोन्स के द्वारा लाई गयी जैव रसायनिक (biochemical) सूचनाओं द्वारा पीयूष ग्रन्थि अपने द्वारा स्रावित स्रवणों का नियंत्रण करती है।

  1. हाइपोथैलेमस से स्रवित नियमनकारी कारकों द्वारा नियंत्रण (Control of Regulatory Factors Secreted by Hypothalamus)
  2. एड्रिनोकॉर्टिकोट्रापिक नियमनकारी कारक (Adrenocorticotropic Regulatory factors) CRFs हाइपोथैलेमस से स्रवित होकर एडिनोहाइपोफाइसिस द्वारा स्रवित होने वाले एड्रिनोकॉर्टिकों ट्रोपिक हार्मोन (ACTH) को प्रभावित करते हैं। एड्रिनोकॉर्टिकों ट्रापिक हारमोन अधिवृक्क या एड्रिनल ग्रन्थि से स्रवित हारमोनों को नियंत्रित करता है। अधिवृक्क ग्रन्थि से स्रवित हार्मोन हाइपोथैलेमस का ऋणात्मक पुनर्भरण तन्त्र (negative feed back system) द्वारा नियंत्रण करते हैं।
  3. वृद्धि हार्मोन नियमनकारी (Growth Hormone Regulatory factor) GHRF : हाइपोथैलेमस से स्रवित होते हैं इसका मोचक कारक (growth hormone releasing factor) जन्तुओं की देह में वृद्धिकारी क्रियाओं को उत्तेजित करते हैं। इसका संदमनकारी कारक (inhibitory स्रवित हार्मोन द्वारा अस्थियों एवं पेशियों में वृद्धि कर प्रकट किये जाते हैं। factor) देह की वृद्धिकारी क्रियाओं को संदमित करता है। उपरोक्त प्रभाव एडिनोहापोफाइसिस द्वारा
  4. पुटक उद्दीपक हार्मोन नियमनकारी कारक (Follicle Stimulating Hormone Regulatory Factor) FSH-RH : हाइपोथैलेमस से स्रवित होकर एडिनोहाइपोफाइसिस से उद्दीपक हार्मोन FSH के स्रवण को प्रभावित करते हैं। जनदों द्वारा स्रवित एन्ड्रोजन्स (androgen) ऋणात्मक पुनर्भरण तन्त्र द्वारा FSH-RH के स्रवण को नियंत्रित करते हैं।
  5. ल्युटिनाइजिंग हार्मोन नियन्त्रणकारी कारक (Luteinizing Hormone Regulating Factor) LRF : हाइपोथेलेमस से स्रवित होकर एडिनोहाइपोफाइसिस से स्रवित होने वाले हामीन LII या ICSH का नियमन करता है। जनदों द्वारा स्रवित एन्ड्रोजन व एस्ट्रोजन LRF के उत्पादन को संदमित करते हैं। LH व लिंग हार्मोनों के मध्य ऋणात्मक पुनर्भरण तन्त्र द्वारा नियमन किया जाता है।
  1. ल्युटिओट्रोपिक हार्मोन नियमनकारी कारक (Luteotropic Hormine Regulating Factor ) : या प्रोलैक्टिन नियमनकारी कारक (Prolactin Regulating Factor) LTH-RF or PRF हाइपोथैलेमस से स्रवित होकर एडिनोहाइपोफाइसिस भाग से स्रवित ल्युटिओटोपिक या प्रोलैक्टिन हार्मोन के स्रवण को प्रभावित करते हैं। इसके मोचक कारक व संदमनकारी कारक अलग-अलग होते हैं तथा भिन्न-भिन्न प्रकार से नियंत्रण की क्रिया करते हैं। अधिवृक्क ग्रन्थि के मध्यांश से स्रवित हार्मोन एपिनेफ्रीन व नारएपिनेफ्रीन प्रोलैक्टिन नियमनकारी कारकों को संदमित तथा एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टिरॉन हार्मोन जो जनद से स्रवित होते हैं प्रोलैक्टिन के मोचक कारकों की क्रिया को उत्तेजित करते हैं।
  2. मेलेनोफोरस् नियमनकारी कारक (Melanephores Regulating Factors) : MRF हइपोथैलोमस से दो कारकों मेलेनोफोर उत्तेजक हार्मोन मोचक कारक (melanophore stimulating hormone releasing factor) MSH-RF तथा मेलेनोफोर उत्तेजकर हार्मोन संदमनकी कारक (melanophore stimulating hormone inhibitory factor) MSH – IF पीयूष ग्रन्थि के एडिनोहाइपोफाइसिस भाग से स्रवित मेलेनोफोर उत्तेजक हार्मोन (mealanphore stimulating hormone) MSH को प्रभावित करता है। यह हार्मोन इन्टरमिडियन (Intermedin) भी कहलाता है।
  3. ऑक्सीटोसिन एवं वैसोप्रेसिन का वातावरणी परिवर्तनों या प्रतिवर्ती क्रियाओं द्वारा नियमन (Regulation of oxytocin and vasopressin by atmospheric changes or reflex actions) : हाइपोथैलेमस के सुप्राऑटिक तथा पेरावेन्ट्रीकुलर नाभिकों द्वारा ऑक्सीटोसिन (oxytocin) तथा वेसोप्रेसिन (vasopressin) नामक न्यूरोहार्मोन उत्पन्न कर पीयूष ग्रन्थि के न्यूरोहाइपोफाइसिस या पश्य पिण्ड (posterior lobe) में लाये जाते हैं। इनका यहाँ संग्रह भी होता है तथा आवश्यकतानुसार इनको देह में रक्त प्रवाह के साथ मुक्त किया जाता है। रक्त के परासरण दाब, मानसिक उद्वेग, देह में उत्पन्न विभिन्न तन्त्रिकीय प्रतिवर्ती क्रियाओं तथा वातावरणीय उद्दीपनों एवं अन्य कशेरूकी जन्तुओं में वैसोटोसिन के मोचन एवं संदमनकारी प्रभाव उत्पन्न किये जाते हैं।

प्रसव (parturition) के समय अभिवाही तन्त्रिकीय आवेगों के फलस्वरूप ऑक्सिटोसिन धनात्मक पुनर्भरण तन्त्र (positive feed back system) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। वैसोप्रेसिन या अतिमूत्र निरोधक हार्मोन (antidiuretic hormone) ADH वृक्कों द्वारा जल का अधिक अवशोषण करने का प्रभाव उत्पन्न कर रक्त के आयतन में वृद्धि व मूत्र मात्रा में कमी करता है। यह धमनियों का संकुचन कर रक्त दाब को बढ़ाता है। देह में आवश्यकतानुसार निर्जलीकरण की स्थिति में अधिक गर्मी से या नशीली वस्तुओं के सेवन से देह से लवण, जल अनुपात में परिवर्तन के कारण हाइपोथैलेमस भाग के ग्राही (receptors) उत्तेजित हो जाते हैं तथा हाइपोथैलेमस के नाभिकों को उक्त हार्मोन स्रवित कने की क्रिया कर देह में सामान्य अवस्था लाने का कार्य करते हैं।

चित्र 10.9 : ऋणात्मक पुनर्भरण द्वारा नियमन

पुनर्भरण क्रियाविधि की अवधारणा (Concept of Feed Back Mechanism) : देह में किसी अन्तःस्रावी ग्रन्थि से स्रवित हार्मोन की मात्रा का नियंत्रण इस हार्मोन के लक्ष्य अंग से स्रवित किसी रसायनिक पदार्थ द्वारा या हार्मोन द्वारा किया जा सकता है। यह कार्य अन्य जटिल क्रियाओं के रूप में भी सम्पन्न होता है। कुछ स्थितियों में वातावरणीय प्रभावों से देह के विभिन्न भागों में उपस्थित ग्राही (receptors) उत्तेजित होकर अपने क्षेत्र की अन्तःस्रावी ग्रन्थि से स्रवित हार्मोन की मात्रा नियमन करते हैं। इस प्रकार की नियमनकारी क्रियाओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत करते हैं

(i) ऋणात्मक- पुनर्भरण तन्त्र (Negative feed back system) : किसी अन्तःस्रावी ग्रन्थि (EG) से स्रवित हार्मोन (H) का नियमन रक्त में इस हार्मोन की प्रवाहित मात्रा लक्ष्य अंग (targat organ) TG को प्रभावित कर R नामक रसायनिक पदार्थ का मोचन (release) करती है। R की रक्त में प्रवाहित मात्रा EG को प्रभावित कर H की मात्रा का नियमन करती है। H की मात्रा में वृद्धि होने पर R की मात्रा बढ़ जाती है, जो EG पर संदमनकारी प्रभाव उत्पन्न कर H की मात्रा को कम करती है। H की मात्रा कम स्रवित होने पर TG से R की मात्रा कम होती है जो EG को उत्तेजित कर H की मात्रा कम स्रवित होने पर TG से R की मात्रा कम होती है जो EG को उत्तेजित कर H की मात्रा बढ़ाने का कार्य करती है। इस प्रकार के नियमन को ऋणात्मक पुनर्भर तन्त्र कहते हैं। इस विधि से रक्त में ग्लूकोस की मात्रा पर इन्सुलिन हार्मोन का ग्लूकोस की मात्रा द्वारा ‘लुकागोन का, प्लाज्मा में Ca’ आयन द्वारा पेराथोरमोन का प्लाज्मा में Ca” द्वारा थायरोकैल्सिटोनिन का एवं प्लाज्मा में Nat द्वारा एल्डोस्टिरॉन नामक हार्मोनों का नियमन किया जाता है।

 (ii) धनात्मक पुनर्भरण तन्त्र (Positive Feed Back System) : किसी अन्त: स्रावी EG से स्त्रावित  H की मात्रा से TG प्रभावित होकर R का मोचन करती है। R की मात्रा H की मात्रा का नियमन निम्न प्रकार से करती है। H की मात्रा कम स्रवित होने से R की मात्रा भी कम स्रवित होती