neurohemal organs in hindi , न्यूरोहीयल अंग किसे कहते हैं , न्यूरोह्यूमरस (Neurohumors) क्या है

जाने neurohemal organs in hindi , न्यूरोहीयल अंग किसे कहते हैं , न्यूरोह्यूमरस (Neurohumors) क्या है ?

तन्त्रिका स्त्रवण की प्रारम्भिक अवधारणा एवं पीयूषिका के कार्यों पर हाइपोथैलेमिक नियन्त्रण (Preliminary Idea of Neurosecretion and Hypothalmic Control of Pituitary Functions)

प्राणी की देह में विभिन्न अंगों द्वारा की जाने वाली क्रियाओं में समन्वय (coordination) एवं समाकलन (integration) को बनाये रखने का प्राथमिक दायित्व तन्त्रिका का तन्त्र ही है। उद्विकास के अन्तर्गत कुछ तन्त्रिका कोशिकाएँ द्वितियक रूप में सामान्य तन्त्रिका कोशिकाओं में आकारिक रूप से भिन्न होकर स्त्रावण का कार्य भी करने लगी। इस प्रकार की तन्त्रिका कोशिकाओं को तन्त्रिकास्रावी कोशिकाएँ (neuro secretory cells) कहते हैं। सभी अकशेरूकी एवं कशेरूकी जन्तुओं के तन्त्रिका तन्त्र में तन्त्रिका स्रावी नाभिकाएँ (neurosecretory neclei) आवश्यक रूप में पायी जाती है।

तन्त्रिकास्रावी कोशिका प्राथमिक रूप में तन्त्रिका का परिवर्तित रूप है। इससे भी सामान्य तन्त्रिका कोशिका की भाँति तन्त्रिका तन्तुक (neurofibrlis), अक्षीय बेलनाकार काय निसल काय (Nissl bodies) एवं सिनेप्टिक आशय (synaptic vesicle) आदि पाये जाते हैं। ये कोशिकाएँ भी प्रारम्भिक क्रिया के रूप में तन्त्रिकीय आवेगों का संचारण करती है, किन्तु ये कोशिकाएँ अभिवाही के स्वरूपवश रासायनिक पदार्थ को मुक्त करती है जिसे न्यूरोहॉर्मोन (neurohormones) कहते हैं। एक प्रारूपिक तन्त्रिका स्रावी कोशिका आवश्यक रूप से तन्त्रिका कोशिका के सभी अभिलक्षणों से युक्त होती है। अत: इन्हें सामान्य तन्त्रिकीय ऊत्तक में अलग से पृथक् करने हेतु केवल मात्र अभिरंजन पद्धति का ही उपयोग किया जाता है। तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं में अभिरंजनशील तन्त्रिका स्रावी कण एवं अत्यधिक विकसित तन्त्रिकाक्ष तन्त्र (axonal system) उपस्थित होता है जो रक्त वाहिकाओं या रक्त गुहाओं (haemocoels) के सन्निकट समाप्त होता है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार आरम्भिक तन्त्रिका स्रावी कण कला द्वारा आबद्ध (membrane bound) आशय (vesicles) होते हैं।

तन्त्रिका स्रावी कोशिकाएँ सामान्य तन्त्रिका कोशिकाओं से यह भिन्नता रखती है इनके तन्त्रिकीय तन्तु कार्यकर अंगों (effector organs) को नहीं भेदते अथवा अन्य तन्त्रिका कोशिकाओं के साथ सिनेप्स (synapse) नहीं बनाते।

चित्र 10.1: (A) तन्त्रिका कोशिका (B) तन्त्रिका स्त्रावी कोशिका तन्त्रिका स्रवण के अध्ययन को तीन पदों में विभक्त किया जाता है : (i) तन्त्रिका स्रवण का संश्लेषण (Synthesis of neuro-secretion) (ii) तन्त्रिकाक्षीय परिवहन (Axonal transport)

(iii) तन्त्रिका स्रवण का मोचन (Release of neuro secretion)

(i) तन्त्रिका स्रवण का संश्लेषण (Synthesis of neuro-secretion) : तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं में अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (endoplasmic reticulum) एवं गॉल्जी काय अत्यधिक विकसित अवस्था में होती है। अतः स्पष्ट रूप से तन्त्रिका स्रवण अथवा इनके पूर्वगामी पदार्थ (precursor substances) अनके द्वारा संश्लेषित होते है। कोशिका के संश्लेषणी तन्त्र द्वारा संश्लेषित पदार्थों को गॉल्जीकाय अन्त में इन्हें कला – आबद्ध आशयों (membrane bound vesicles) के रूप में परिवर्तित कर देती है। वास्तव में इन कला- आबद्ध आशयो में तन्त्रिका स्रावी पदार्थ सक्रिय रूप में अथवा पूर्वगामी पदार्थ के रूप में उपस्थित होते है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन किये गये इन आशयों से विशिष्ट अभिरंजनीय तन्त्रिका सावी कण कला के निकट पाये जाने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।

(ii) तन्त्रिकाक्षीय परिवहन (Axonal transport) : वैज्ञानिकों द्वारा किये विभिन्न परीक्षणें द्वारा यह प्रमाणित किया जा चुका है कि उपरोक्त तन्त्रिका स्रावी आशय अपने संश्लेषण स्थल से अक्षीय द्रव्य के भीतर दूरस्थ सिरे तक मोती की लड़ी के समान गति करते हैं।

 

(ii) तन्त्रिका स्रवण का मोचन (Release of neuro-secretion) : बल्ब (axonal end bulb ) पर तन्त्रिका स्रवणों का मोचन अथवा मुक्ति किस प्रकार होती है इस पर वैज्ञानिक एक मत नहीं है। विभिन्न जन्तुओं पर किये गये अध्ययनों के आधार पर तीन मत प्रस्तुत किये गये हैं।

(a) तन्त्रिका स्रवण किसी प्रकार अन्त्य बल्ब से आबद्ध कण के रूप में मुक्त किया जाता है। केचुओं एवं कीटों के अध्ययन से इस प्रकार के प्रमाण मिलते हैं।

(b) तन्त्रिका स्रवण बाह्याशन (exocytosis) क्रिया द्वारा होता है। यह क्रिया कोशिकापायन (pinocytosis) से विपरीत प्रकार की होती है। तन्त्रिका स्रावी कण के तन्त्रिकाक्षीय कला के निकट आने पर बाहर की ओर खाली कर दिया जाता है। अतः तन्त्रिका स्रावी पदार्थ बाहर की ओर अन्तराकोशिकीय अवकाशिका में मुक्त हो जाता है। कुछ कीटों के कॉर्पोरा कार्डिएका में इस सेतन्त्रिका स्रवण मुक्त किये जाते हैं।

चित्र 10.2: तन्त्रिका स्रवण के माचन की सम्भावित विधियाँ

(c) विसरण द्वारा (By diffusion) : तन्त्रिका स्रावी कला आबद्ध कणिकाओं के तन्त्रिकाक्षीय अत्य बल्ब पर पहुँचने के उपरान्त तन्त्रिका स्रवण तन्त्रिका कोशिका की कला से बाहर को विसरण द्वारा मुक्त कर दिये जाते हैं। इन तन्त्रिका अक्षीय अन्त्य बल्बों के अध्ययन के अनुसार इन स्थलों पर पीले, सुक्ष्म, खाली कण इस क्रिया के उपरान्त पाये गये हैं।

अतः वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि तन्त्रिका । स्रवणों का संश्लेषण, इनका परिवहन एवं मोचन एक जटिल क्रिया है।

स्तनियों में तंत्रिका अंत: स्रावी ग्रन्थियाँ एवं उनके द्वारा स्रावित पदार्थ निम्नलिखित हैं :

न्यूरोहीयल अंग (Neurohaemal organs)

तन्त्रिका कोशिकाओं के द्वारा स्रवण क्रिया का किया जाना एक आवश्यक क्रिया है। तन्त्रिका स्रावी कोशिका के द्वारा त्रावित तन्त्रिका अन्त्य भाग (axonal end) पर संग्रहित होते हैं यह सिरे फूल जाते हैं। अत: इन्हें संयुक्त रूप से न्यूरोहीमल अंग (neurohameal organ) कहते हैं तन्त्रिका स्रावी कोशिकाएँ तन्त्रिका आवेग प्राप्त कर इन्हें हार्मोन उद्दीप्नों के रूप में परिवर्तित कर देती है। यह तन्त्रिका स्रवण विशिष्ट रसायनिक पदार्थ होते हैं जो अपेक्षाकृत स्थायी प्रकार के एवं अधिक समय तथा अधिक दूरी तक क्रियाशील रहते हैं।

फ्लोपी (Flopy; 1962) ने प्रेषी पदार्थ (neurotransmitter) शब्द का उपयोग उन तन्त्रिका स्रवण रसायनिक पदार्थों के लिये किया तो सिनैप्स पर तन्त्रिका आवेग का संचारा करते हैं। कशेरूकी जन्तुओं में इस प्रकार के प्रेषी पदार्थ एसिटाइलकोलीन (acetylchlonie ) तथा एड्रिनेलिन ( adrenaline) हैं। ये पदार्थ एक तन्त्रिका अंत से निकटतम तन्त्रिका कोशिका में आवेग का संचारण करते हैं। इस प्रकार के तन्तु तो एसिटाइलकोलीन का स्त्रवण करते है कोलीनर्जिक ( adrenergic) कहलाते हैं। परानुकम्पी तन्त्रिका तन्तु सामान्यतः कोलिजर्निक तथा अनुकम्पी तन्त्रिकाओं के तन्तु एर्डिजनिक- (adregnic) प्रकार के होते हैं।

न्यूरोह्यूमरस (Neurohumors)

जी. एच. पारकर (GH.Parker) : द्वारा न्यूरॉन्स पर किये गये अध्ययनों के परिमाणस्वरूप खेत्र में अत्यधिक प्रगति हुई है एवं इनके द्वारा प्रस्तुत सिद्धानत को सभी के द्वारा स्वीकारा गया है। पारकर के अनुसार कुछ तन्त्रिका कोशिकाएँ ग्रन्थिल कार्य को अधिक प्राथमिकता देती है। इनके द्वारा स्रवित विशिष्ट रसायनों को न्यूरोह्यूमरस या न्यूरोहार्मोन्स (neurohumors of neurohormones) कहते हैं। इन्ही को वेल्श (Walsh; 1957) एवं कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा तन्त्रिका अन्तः स्रावी स्रवण (neuroendocrine secretions) का नाम दिया गाय है। पारकर द्वारा प्रस्तुत इस सिद्धान्त को ई. बी. शेरर एवं बर्गमान (E.B.sharrer and Bergmanan) आदि वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। ई.बी. शेरर (E.B.scharrer ), बी. हेनेस्ट्रोम (B. Hanstrom) तथा डब्ल्यू बर्गमन (W.Bergmann) ने न्यूरोहार्मोन्स एवं तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं पर अध्ययन कर यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है। तन्त्रिका स्रावी कोशिका एक लम्बी ग्रन्थिल कोशिका होती है। इस शिखरप्रस्थ भाग से जो कि तन्त्रिकाक्ष का बल्ब होता है, से स्रवण अन्तराकोशिक अवकाशिका में रूधिर वाहिकाओं के समीप छोडे जाते हैं, जहाँ से ये रक्त द्वारा विभिन्न अंगों एवं अन्तःस्रावी ग्रन्थियों तक ले जाये जाते हैं। इनके द्वारा जिन अंगों एवं अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को प्रभावित किया जाता है, इन्हें लक्ष्य-अंग (target organ) कहते हैं। कशेरूकी जन्तुओं के हाइपोथैलेमस में इस प्रकार विशिष्ट तन्त्रिका साथी कोशिकाएँ होती है जो विशिष्टीकृत न्यूराहार्मोन स्त्रवित करती है। इनमें से कुछ पीयूष ग्रन्थि के एडिनोहाइपोफाइसिस भाग के विशिष्ट केन्द्रों की कोशिकाओं को उत्तेजित कर हार्मोन के स्रवण हेतु प्रेरित करते हैं। इन्हें मोचक हार्मोन (releasing hormonses) या मोचक कारक या (releasing factors) कहते हैं। हाइपोथेलैमस की कुछ तन्त्रिका स्रवी कोशिकाएँ ऑक्सिटोसिन, वैसोप्रेसिन तथा वेसोटोसियन नामक न्यूराहार्मोन का स्त्रण कर पीयूषिका के न्यूरोहाइपोफाइसिस भाग को प्रेषित कती है। कशेरूकी जन्तुओं के न्यूराहाइपोफाइसिस व कीटों के कॉर्पस-कार्डिएका (Corpus cardiaca) आदि अंग न्यूरोहॉर्मोनो का संग्रह एवं मोचन करने के अंग हैं, अत: इन्हें न्यूरोहीमल अंग (neurohaemal organs) कहा जाता है।

तन्त्रिका तन्त्र एवं अन्तःस्रावी तन्त्र में सम्बन्ध (Relation between Nervous system and Endocrine System)

कशेरुकी जन्तुओं में तन्त्रिका तन्त्र एवं अन्तःस्रावी तन्त्र के मध्य अत्यधिक गहरा सम्बन्ध पाय गया है । अनेक प्रतिवर्ती क्रियाएँ (reflex actions) इस प्रकार की होती है कि इनका अभिवाही (afferent) या संवेदी भाग तन्त्रिकीय किन्तु अपवाही (efferent) या प्रेरक भाग अन्तःस्रावी होता है। इस प्रकार की अनेक प्रतिवर्ती क्रियाएँ स्तनियों में देखने को मिलती है।

शिशुओं को दुग्धपान कराने वाली महिलाओं में स्तनग्रन्थि से दुग्ध का निष्कासन (ejection) शिशु के द्वारा स्तनाग्र (teat) को उत्तेजित करने के फलस्वरूप आरम्भ होता है। यह उद्दीपन हाइपोथैलेमस को जाकर न्यूरोहाइपोफाइसिस द्वारा तन्त्रिका हार्मोन कूपिकाओं ( alveoli) की पेशी उपकला में सकुचन आरम्भ करता है और शिशु के दुग्धपान करने के समय यह निरन्तर उत्पन्न होता रहता है। स्तनपान कराने वाली महिला को इस क्रिया में पर्याप्त आनन्द भी आता है।

अनेक स्तनधारियों में अण्डोत्सर्ग (ovulation) की क्रिया मैथुन (copulation) से उत्पन्न उद्दीपन के फलस्वरूप होता है। यह उद्दीपन आवेग में परिवर्तित होकर हाइपोफाइसिस को प्रेरित कर ल्युटिनाइजिंग हामोन मोचक हार्मोन (LH-RH) का स्रावण होता है जो पीयूष ग्रन्थि के एडिनोहाइपोफ भाग से LH हार्मोन का स्रवण कराता है। यह हार्मोन अण्डाशय से अण्डोत्सर्ग की क्रिया को सम्पन्न कराता है।

कुछ स्तनि प्राणियों जैसे मनुष्य में मैथुन के द्वारा उत्पन्न आवेग हाइपोथैलेमस को उद्दीपित कर ऑक्सिटोसिन का स्रवण कराते हैं। इस हार्मोन योनि एवं गर्भाशय की पेशियों में कुंचन-आकुंचन की क्रिया को बढ़ाता है अतः शुक्राणुओं को ऊपर की ओर बढ़ने में मदद मिलती है तथा नलिका में निषेचन क्रिया होती है। स्तनियों में अण्ड से अण्डाशय से निकलकर नीचे तक आने में भी इस प्रकार की ही क्रिया होती है। स्तनियों के गर्भाशय में ब्लास्टोसिस्ट (blastocyst) के आरोपण (implantation) के समय एवं गर्भाशय में ब्लास्टोसिस्ट के आरोपिण के पश्चात् इसकी वृद्धि हेतु अर्थात् गर्भधारण की स्थिति को बनाये रखने के लिए इस प्रकार प्रतिवर्ती क्रिया होती है। इस प्रकार के उद्दीप्न हाइपोथैलेम्स द्वारा एडीनोहाइपोफाइसिस भाग से LTH अर्थात् ल्युटिओट्रोपिक हार्मोन का स्रवण कराते हैं जो अण्डाशय में कार्पस ल्युटिस द्वारा प्रोजेस्टिरॉन हार्मोन का स्रावण कराते हैं अतः गर्भाशय में गर्भ बना रहता है तथा एस्ट्स, रज चक्र एवं अण्डजनन की क्रिया संदमित हो जाती है।