पादप में नाइट्रोजन का कार्य , फास्फोरस की कमी के लक्षण , पोटैशियम के स्रोत , पौधों में न्यूनतम के उपचार

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  1. नाइट्रोजन (Nitrogen,N)

कार्बन, ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन के बाद नाइट्रोजन ही पादपों में सर्वाधिक उपलब्ध तत्व है।

स्रोत (Source)

पादपों को यह मुख्यतः मृदा से एवं कुछ विशेष समूह के पादपों (यथा लेग्यूमिनोसी कुल) में वायुमण्डलीय N स्थिरीकरण (fixation) द्वारा उपलब्ध होती है। मिट्टी में नाइट्रोजन प्राकृतिक स्रोत जैसे बिजली चमकना, जीवाणुओं की क्रियाओं तथा रासायनिक खाद से मिलती है। अनेक प्रोकेरियोटिक जीव-जीवाणु, नीलहरित शैवाल तथा फ्रैंकिया (Frankia) नामक कवक भी वायुमण्डलीय N को अमोनिया में परिवर्तित कर उपलब्ध करवाते हैं ।

पादप द्वारा नाइट्रोजन मुख्यतः नाइट्रेट (NO3 ) एवं अमोनिया (NH ) के रूप में ग्रहण की जाती है।

कार्य (Function)

यह पादप के सभी अंगों में पाई जाती है तथा प्रोटीन, जीवद्रव्य, पर्णहरित ( chlorophyll), एन्जाइम, न्यूक्लिक अम्ल क्षारक ( प्यूरीन एवं पाइरिमिडीन, purine and pyrimidines), कोएन्जाइम, NAD, NADP इत्यादि का मुख्य घटक होती है।

न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)

पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी के कारण हरिमाहीनता (chlorosis) आ जाती है। हरिमाहिनता सर्वप्रथम बड़ी व परिपक्व (mature) पत्तियों में दिखाई देती है तथा इस से नाइट्रोजन तरुण पत्तियों व अवयवों की ओर जाती है।

  1. फूल एवं फल कम लगते हैं।
  2. तरुण पत्तियां कम चौड़ी व सीधी होती हैं।
  3. पत्तियों की शिराओं एवं तने में प्रचुर एन्थोसायनिन के कारण वे लाल अथवा बैंगनी दिखती हैं।
  4. वृद्धि दर कम हो जाती है। पार्श्व कलिका सुषुप्तावस्था (dormancy) में ही रहती हैं अतः पादप स्तम्भित (stunted) प्रतीत होता है।
  5. अनाज ( cereals) में तल शाखन (tillering) नहीं होता ।
  6. कुछ पौधों (यथा गेंहू) में जड़ें लंबी हो जाती है।
  7. कोशिकाओं में लिग्निन का अधिक निक्षेपण (deposition) होता है।
  8. प्रोटीन की मात्रा कम व मंड की मात्रा अधिक हो जाती है।

10 कोशिकाएं छोटी एवं मोटी भित्ति युक्त तथा केन्द्रक भी छोटे होते हैं।

नाइट्रोजन की अधिक कमी में पादप अत्यधिक स्तम्भित एवं बीमार लगते हैं तथा उनकी स्थिति को सामान्य निम्नपोषण अथवा कुपोषणता (general starvation) कहते हैं।

उपचार (Treatment)

पादप शरीरक्रियाविज्ञान एवं जैव रसायन

अमोनियम सल्फेट, कैल्शियम एवं अमोनियम नाइट्रेट एवं यूरिया आदि की आपूर्ति की जाती है। नाइट्रोजन की अधिकता के कारण कायिक (vegetative) वृद्धि अधिक होती है। तना निर्बल व कोमल हो जाता है। पत्तियाँ सघन, अधिक हरी व गूदेदार होती हैं। स्थूलकोणोतक (collenchyma) बढ़ जाता है तथा तल शाखवन अधिक होता है।

  1. फास्फोरस (Phosphorus, P)

स्रोत (Source)

मृदा में घुलनशील फॉस्फेट (H2 PO4 एवं HPO4 आयन) के रूप में उपलब्ध होता है। पादपों द्वारा फास्फेट का अवशोषण कुछ अन्य कारकों पर भी निर्भर करता है।

(i) मृदा का pH (ii) ऋणायन विनियम (ii) मृदा में सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति (iv) घुलनशील लोहा, कैल्शियम एवं एल्यूमिनियम की उपस्थिति ।

कार्य (Functions)

  1. यह बीज, फल एवं अन्य संचय अंगों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह तीव्र वृद्धि काल में विभज्योतकी कोशिकाओं में भी पाया जाता है।
  2. यह जीवित कोशिकाओं का आवश्यक घटक है। प्लाज्मा झिल्ली व सभी कोशिकांगों की झिल्ली में फास्फोलिपिड के रूप में, न्यूक्लिक अम्ल, कोएन्जाइम, न्यूक्लिओ प्रोटीन, ATP, NAD, NADP इत्यादि का मुख्य तत्व है। 3. अनेक ऊर्जा से संबंधित उपापचयी क्रियाओं जैसे आक्सीकरण अपचयन संबंधी क्रियाओं, श्वसन इत्यादि में यह बहुत महत्वपूर्ण होता है तथा ATP के रूप में इनमें भाग लेता है अथवा मोचित होता है ।
  3. अनेक एन्जाइमों को सक्रिय करने में इसका योगदान होता है।
  4. विभिन्न प्रोटीन व अनेक अन्य उत्पादों के संश्लेषण में इसकी आवश्यकता होती है।
  5. यह कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण में सहायता करता है तथा फलों के पकने व जड़ों की वृद्धि में सहायक होता है।

न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)

  1. इसकी न्यूनता से अधिकांश उपापचयी अभिक्रियाएं विशेष ऊर्जा से संबंधित सीधे ही अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती हैं।
  2. नाइट्रोजन के समान तेजी से स्थानांतरण की क्षमता के कारण इसकी न्यूनता के लक्षण पहले परिपक्व एवं पूर्णतः फैली हुई पत्तियों में प्रकट होते हैं। वे पीली पड़ जाती हैं तथा सूख कर समय से पहले ही झड़ जाती हैं।
  3. पादप स्तम्भित (stunted) प्रतीत होते हैं। तरुण पत्तियाँ गहरी नीली, हरी, कभी-कभी नीली रक्ताभ बनती हैं तथा वृद्धि रूक जाती है।
  4. एधा (cambium) निष्क्रिय हो जाती है।
  5. वृद्धि रूकने के कारण पत्ती, पर्णवृन्त एवं फलों पर ऊतकक्षय के बाद मृत ऊतकों के चकत्ते (patches) बन जाते हैं।
  6. अनाज वर्ग में तल शाखन (tillering) कम हो जाते हैं।
  7. सुषुप्तावस्था बढ़ जाती है।

कुछ पादपों में न्यूनता के कारण हंसिया पत्ती रोग (sickle leaf disease) हो जाता है। इनमें मुख्य शिराओं के पार्श्व में हरिमाहीनता आ जाती है तथा पत्ती असमान (symmetrical) हो जाती है।

उपचार (Treatment)

फास्फेट उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।

  1. पोटाशियम (Potassium, K

स्रोत (Source)

मृदा में यह विभिन्न चट्टानों के अपक्षय (weathering) से धीरे-धीरे घुलनशील लवणों के रूप में उपस्थित होता है। मृदा में यह घुलनशील एवं विनिमय योग्य (exchangeable) अवस्था में पाया जाता है। पादपों को इसकी आवश्यकता अधिक मात्रा में होती है, हालांकि यह किसी महत्वपूर्ण बृहताणु (macromolecule) का हिस्सा नहीं होता है। मृदा में इसका निक्षालन (leaching) सरलता से हो जाता है, अतः रेतीली मिट्टी में यह अपेक्षाकृत कम मात्रा में पाया जाता है। पादपों को आसानी से उपलब्ध होता है।

कार्य (Function)

  1. यह किसी पदार्थ की संरचना में भाग नहीं लेता है। यह तेजी से विभाजित होने वाली विभज्योतकी कोशिकाओं जैसे प्ररोह शीर्ष, मूल शीर्ष, एधा, तरुण पत्तियों, विकासशील कायिक एवं पुष्प कलिकाओं में अधिक मात्रा में पाया जाता है। पादपों की संतुलित वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक होता है।

2 पोटाशियम अधिकांशतः कोशिका रस, (cell sap) एवं जीवद्रव्य में घुलनशील अवस्था में उपस्थित होता है तथा इसका उपयोग ऋणायन उदासीनीकरण (neutralisation of anions), परासरण विभव बनाए रखने व परिवर्तन (main- taining and changing osmotic potential) तथा प्लाज्मा झिल्ली व अन्य कलाओं के आर पार परिवहन (transport across membranes ) में मुख्य है।

  1. यह एन्जाइमों के सक्रियण के लिए महत्त्वपूर्ण होता है, जैसे फ्रक्टोकाइनेज (fructokinase).
  2. विभिन्न जैवरासायनिक अभिक्रियाओं में सक्रिय उपयोगिता के फलस्वरूप इसका वाष्पोत्सर्जन नियमन, कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल एवं क्लोरोफिल संश्लेषण, प्रकाश संश्लेषण, फास्फोरिलीकरण इत्यादि क्रियाओं में उपयोग होता है।
  3. पोटाशियम आयन की उपस्थिति में अन्य खनिज तत्वों की अवशोषण दर बढ़ जाती है।
  4. यह रंधों में द्वार कोशिकाओं की परासरण सांद्रता को नियंत्रित करता है तथा रंध्रों को नियंत्रित करता है।

न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)

पोटाशियम की न्यूनता कम अथवा अधिक होने के अनुसार पादपों में लक्षण प्रकट होते हैं।

पोटाशियम की बहुत अधिक कमी होने (acute deficiency) की स्थिति में शीर्षारम्भी क्षय (die back) प्रारंभ हो जाता है तथा पादप वृद्धि रूक जाती है एवं पुष्पन लगभग नगण्य ही होता है। सामान्यतः पोटाशियम की थोड़ी मात्रा में कमी होने पर निम्न लक्षण देखे जा सकते हैं :-

  1. नाइट्रोजन की भांति इसका चालन तेजी से होता है इसलिए कमी के लक्षण पहले परिपक्व पत्तियों में परिलक्षित होते हैं। इनमें पत्तियों के शीर्ष व कोनों का जल कर भूरा होना, पत्तियों के किनारों का झुलसना, पत्तियों का कर्वुरण (mottling) एवं कभी-कभी – कभी हरिमाहीनता, ये सभी पोटाशियम की कमी से हो सकते हैं।.
  2. कभी-कभी पत्ती के उपांतों व शीर्ष पर ऊतक क्षयी (necrotic areas) बन जाते हैं।
  3. कुछ पादपों जैसे गाजर, अजवायन इत्यादि में पादप की वृद्धि रूक जाती है तथा वे क्षुपिल (bushy) अथवा रोजैट के आकार के हो जाते हैं।
  4. पर्व छोटे हो जाते हैं।
  5. रोग प्रतिरोधक क्षमता (disease resistance) कम हो जाती है।
  6. उपापचयी क्रियाएं मंद हो जाती हैं तथा शर्करा और अमिनो अम्ल की सांद्रता बढ़ जाती है।
  7. कोशिकाओं में लिग्निन की मात्रा बढ़ जाती है।
  8. पोषवाह ऊतक का अपहास (degeneration) होता है।
  9. प्राथमिक एवं द्वितीयक एधा की सक्रियता कम हो जाती है।