पौधों में सल्फर के मुख्य स्रोत क्या है , पादपों में कैल्शियम के कार्य , मृदा में मैग्नीशियम की कमी के लक्षण , आयरन बोरोन की न्यूनता के उपचार

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  1. सल्फर (Sulphur, S)

स्रोत (Source)

मृदा में सल्फर घुलनशील सल्फेट (SO23-), सल्फर तत्व (S) अथवा लोहे के सल्फाइड (FeS, FeS) के रूप में उपलब् होता है। इनमें से उच्च पादपों के लिए सल्फेट ही उपलब्ध होता है। कभी-कभी कुछ पादप SO2 को भी स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं।

कार्य (Function)

  1. सल्फर सल्फहाइड्रिल (-SH) समूह के रूप में अनेक अमिनो अम्ल में पाए जाते हैं जैसे सिस्टाइन (cystine), सिस्टीन (cysteine), मीथीओनिन (methionine) ।
  2. कुछ विटामिन भी सल्फर युक्त होते हैं जैसे बायोटिन (biotin) एवं थायमिन (thiamine)। कोएन्जाइम में भी सल्फर पाया जाता है।
  3. अनेक पादपों जैसे ब्रेसीकेसी कुल के पादप व तीखी गंध वाले पादप जैसे प्याज, लहसन इत्यादि मे सल्फर युक्त वाष्पशील (volatile) तैल होते हैं।
  4. सल्फर युक्त अमिनो अम्ल प्रोटीन में इसकी त्रिआयामी रचना बनाने में सहायक होते हैं। अनेक एन्जाइमों में उनके सक्रिय विस्थल (active site) में सल्फर युक्त अमिनों अम्ल भी समाहित होते हैं।
  5. वृद्धि, कोशिका विभाजन को बढ़ाता है।
  6. लेग्यूमी पादपों में राइजोबियम द्वारा ग्रंथिका निर्माण को बढ़ाता है।
  7. क्लोरोफिल संश्लेषण को विपरीत रूप से प्रभावित करता है।

न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)

सल्फर में कमी के लक्षण पहले तरुण पत्तियों में दिखाई पड़ते हैं, बाद में अन्य पंत्तियों व भागों पर दिखाई देते हैं।

  1. पत्ती के आकार में कमी आती है तथा लाल अथवा नीले धब्बे बनते हैं व पीलापन दिखाई देता है।
  2. अधिक कमी होने पर तरुण पत्तियों के शीर्ष एवं किनारों पर ऊतकक्षय ( necrosis ) तथा छोटे पर्व बनती हैं।
  3. पत्ते छोटे रह जाते हैं व समय से पूर्व झड़ जाते हैं एवं फलों का निर्माण भी कम हो जाता है।
  4. स्थूलित भित्ति युक्त ऊतकों जायलम, स्थूलकोणोतक (collenchyma) एवं दृढ़ोतक (sclerenchyma) की मात्रा बढ़ जाती है।
  5. सल्फर युक्त अमिनो अम्ल ( सिस्टीन, मीथीयोनिन ) एवं प्रोटीन की कमी हो जाती है।
  6. अनेक अमिनो अम्ल यथा ग्लूटेमिन (glutamine) एवं आर्जिनिन इत्यादि की सांद्रता बढ़ जाती है।

उपचार (Treatment )

अत्यधिक कमी होने पर जिप्सम मिलाया जाता है, अन्यथा सामान्यतः यह कमी नाइट्रोजन एवं फास्फोरस उर्वरकों में उपस्थित सल्फर से पूरी हो जाती है।

  1. कैल्शियम (Calcium, Ca)

स्रोत (Source)

मृदा में विभिन्न खनिजों के साथ पादपों के यह Ca++ के रूप में उपलब्ध होता है। चट्टानों में यह एपेटाइट (calcium phosphate), कैल्साइट (CaCO3) इत्यादि अयस्कों के रूप में होता है। चूने के पत्थर में उपस्थित CO- की मिट्टी में में घुली CO2 से विलेयता बढ़ जाती है एवं कैल्शियम का अवशोषण शीघ्रता से हो जाता है। रेतीली मिट्टी में Ca की कमी रहती है। सामान्य मृदा में विनिमय होने वाले क्षारक तत्वों में एक Ca होता है। इसका अधिकांश भाग मृदा के सूक्ष्मकणों (micelle) पर अधिशोषित ( adsorbed ) होता है, जिसे चारों ओर से ऋणात्मक आयन घेरे रहते हैं। ये दोनों H+ एवं Ca++ आयन को आकर्षित करते हैं। PH बढ़ने पर Ca++ निकल जाते है व उनका स्थान H+ आयन ले लेते हैं। इसे धनायन विनिमय (cation exchange) कहते हैं।

कार्य (Functions)

  1. यह कोशिकाभित्ति के मध्यपटलिका में Ca पैक्टेट के रूप में पाया जाता है।

2 यह कोशिकाओं में पारगम्यता को नियंत्रित करता है।

  1. यह विभिन्न कोशिकांगो की झिल्लियों के निर्माण में सहायक है।
  2. इसका समसूत्री विभाजन के समय तर्क (spindle) की व्यवस्था में महत्वपूर्ण होता है, अतः समसूत्री विभाजन के “अथवा शीर्ष स्थल पर सामान्य विभाजन के लिए आवश्यक है।
  3. यह कुछ एन्जाइम के सक्रियण में मदद करता है जैसे ATP ऐज, काइनेज (kinase), सक्सीनेट डिहाड्रोजिनेज़ (succinate dehydrogenase), एमाइलेज ( amylase) इत्यादि ।
  4. यह कुछ आविषालु पदार्थों को उदासीन करने का कार्य करता है विशेषकर कार्बनिक अम्लों के साथ क्रिया कर उनके लवण बनाकर उदासीन करता है।
  5. यह कार्बोहाइड्रेट एवं अमिनो अम्लों के स्थानांतरण में मदद करता है।
  6. अनेक पादपों में यह अविलेय आक्सलेट (oxalate), क्रिस्टल व रेफिइड (raphides) के रूप में पाया जाता है।
  7. जड़ों की वृद्धि में सहायक होते हैं।
  8. पादपों में कैल्शियम का संचलन अपेक्षाकृत कम होता है, अतः कैल्शियम की मात्रा तरुण ऊतकों एवं अंगों में कम तथा प्रौढ़ एवं परिपक्व अंगों में अधिक होती है।

न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms )

  1. कैल्शियम बहुत महत्त्वपूर्ण तत्व है तथा इसकी कमी से जड़ें बहुत प्रभावित होती हैं। उनमें अधिचर्म का अपघटन हो जाता है तथा वह श्लेष्मी (mucilaginous) हो जाती हैं।
  2. कैल्शियम का संचलन कम होने के कारण सर्वाधिक प्रभाव विभज्योतकों पर पड़ता है। मूल शीर्ष तथा पार्श्व मूल मृत हो जाते हैं। अत्यधिक कमी होने पर पादप क्षीण होते होते अंततः मृत हो जाता है।
  3. कोशिका विभाजन के पश्चात् मध्य पलिका न बन पाने के कारण नवीन तरुण कोशिकाएं बहुकेन्द्रकी (multinucleate) हो जाती हैं।
  4. कोशिकाओं का लचीलापन (elasticity) कम हो जाता है तथा कोशिकाओं का विवर्धन (enlargement) नहीं होता। 5. तरुण पर्ण शीर्ष अंकुश की भांति हो जाते हैं तथा किनारे, पीछे अथवा आगे की ओर मुड़ जाते हैं। तम्बाकू, चुकन्दर, पत्तागोभी इत्यादि में यह लक्षण बहुत अधिक होता है।
  5. अनेक पादपों में तरुण पत्तियों के शीर्ष बिना किसी चकते अथवा हरिमाहीनता के पर्ण शीर्ष बिन्दु पर मुरझा जाते हैं।
  6. कभी-कभी पत्तियों में हरिमाहीन पट्टियाँ भी दिखाई देती हैं।
  7. टमाटर में पुष्प अन्त्य विगलन रोग. (blossom end rot) हो जाता है। इसमें सर्वाधिक तरुण पुष्प / फल के दूरस्थ छोर पर एक गड्डा (depression) सा बन जाता है जो गहरे हरे ऊतकों से घिरा रहता है। गूदा संतरी रंग का हो जाता है।

उपचार (Treatment)

मृदा में कैल्शियम, अमोनियम सुपर फास्फेट या नाइट्रेट मिलाया जाता है। भारत में यह गंभीर नहीं है।

  1. मैग्नीशियम (Magnesium, Mg

स्रोत (Source)

यह भी कैल्शियम के समान अधिकतर कार्बोनेट (MgCO3) के रूप में पाया जाता है एवं विलेय तथा विनिमय योग्य (exchangeable) क्षार के रूप में रहता है। कभी-कभी डोलोमाइट (MgCO3. CaCO3) एवं ओलीवीन [olivine, (MgFe)2 Sio4] के रूप में भी पाया जाता है। यह शीघ्र ही निक्षालित (leached) हो जाता है, अतः वर्षा काल में इसकी कमी हो सकती है।

कार्य (Functions)

  1. यह क्लोरोफिल का महत्त्वपूर्ण घटक है तथा इसके टेट्रापायरोल (tetrapyrole ) के केन्द्र में स्थित होता है। पत्तियों के कुल मैग्नीशियम का 10% क्लोरोफिल में होता है।
  2. यह अनेक एन्जाइमों यथा हैक्सोकाइनेज (hexokinase), कार्बोक्सीलेज (carboxylase); डीहाइड्रोजिनेज ( dehydro- genase), फास्फोराइलेज (phosphorylase), इनोलेज (enolase), राइबोकाइनेज (ribokinase) एवं फ्रक्टोकाइनेज (fructokinase) इत्यादि को सक्रिय (activate) करता है तथा उनके सहकारक (cofactor) के रूप में आवश्यक होता है। अतः यह अनेक उपापचयी अभिक्रियाओं के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  3. यह लेसिथीन युक्त व उच्च तैल युक्त बीजों में फास्फेट वाहक के रूप में कार्य करता है।
  4. राइबोसोम की उपइकाइयों के जुड़ने में भी इसका योगदान रहता है।
  5. ATP से PO के स्थानांतरण वाली क्रियाओं में एन्जाइम – क्रियाधार संकुल बनाने में सहायता करता है।

न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)

मैग्नीशियम सरलतापूर्वक चलायमान होता है इसलिए इसकी न्यूनता के लक्षण सर्वप्रथम परिपक्व, प्रौढ़ पत्तियों में परिलक्षित होते हैं जो धीरे-धीरे तरुण पत्तियों की ओर अग्रसर होते हैं।

  1. पत्तियों में शिराओं के बीच में हरिमाहीनता (chlorosis) उत्पन्न हो जाती है तथा शिराजाल भी पीला अथवा सफेद हो जाता है। अंततः अत्यधिक कमी होने पर पत्तियाँ मुरझाकर झड़ जाती हैं।
  2. कभी-कभी ऊतकक्षयी (necrotic) धब्बे विकसित हो जाते हैं।
  3. पत्ती में एन्थोसायनिन बनने के कारण लाल बैंगनी अथवा पीले धब्बे बन जाते हैं।
  4. कैरोटीन भी कम हो जाता है।
  5. तना पतला पीताभ हरा हो जाता है।
  6. तम्बाकू में सैंण्ड ड्राउन (sand drown) रोग हो जाता है, जिसमें निचली पत्तियों के शीर्ष पर व शिराओं के मध्य पत्ती का रंग उड़ जाता है।

उपचार (Treatment)

मैग्नीशियम की कमी को दूर करने के लिए मैग्नीशियम सल्फेट दिया जाता है। इसे 20% विलयन में सीधे ही पत्तियों पर भी छिड़का जा सकता है।

  1. आयरन (Iron, Fe)

स्रोत (Source)

सूद्रा में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जबकि पौधों को इसकी अधिक आवश्यकता नहीं होती। क्षारीय मृदा में यह अघुलनशीलं आक्साइड के रूप में मिलता है तथा मिट्टी भूरी-लाल दिखाई देती है। अम्लीय मृदा में यह आसानी से पादपों को उपलब्ध होता है। सामान्यतः पादपों द्वारा फेरिक आयन (Fe3+ ) का अवशोषण अधिक होता है हालांकि पादप में Fe2+ अवस्था उपाचयी रूप से अधिक सक्रिय होती है।

कार्य (Functions)

  1. यह मुख्यतः इलैक्ट्रान अभिगमन तंत्र (electron transport system) में इलैक्ट्रान वाहक के रूप में कार्य करता है क्योंकि यह आक्सीकृत (oxidised) एवं अपचयित (reduced) दोनों अवस्थाओं में रह सकता है।
  2. यह क्लोरोफिल के संश्लेषण के लिए आवश्यक है, संभवतः यह उत्प्रेरक (catalyst) का कार्य करता है। 3. यह साइटोक्रोम (cytochromes), फैरेडॉक्सिन ( ferredoxin), परॉक्सीडेज, हेमाटीन (hematin) एवं एल्यूरॉन कण (aleurone grains) का एक घटक है।
  3. यह नाइट्रेट रिडक्टेज एवं एकोनाइटेज एन्जाइमों को भी सक्रिय करता है।

न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)

पादप ऊतकों में आयरन अपेक्षाकृत कम चलायनान होता है तथा इसका संचलन अनेक कारकों से प्रभावित होता है। यथा उच्च प्रकाश तीव्रता व Mg की उपस्थिति, पोटाशियम की कमी एवं फास्फोरस की अधिकता। संचालन कम होने के कारण न्यूनता के लक्षण तरुण पत्तियों में परिलक्षित होते हैं।

  1. 1. तरुण पत्तियों में हरिमाहीनता ( chlorosis) उत्पन्न होती है तथा शिराओं के मध्य का भाग सफेद सा प्रतीत होता है। पत्ती चितकबरी (mottle) दिखाई देती है अथवा पूरी सफेद भी हो जाती है।

2 पत्ती में ऊतकक्षय ( necrosis ) भी हो जाता है।

  1. श्वसन की दर कम हो जाती है।
  2. अत्यधिक कमी होने पर पत्ती के किनारे व शीर्ष झुलस से जाते हैं।
  3. क्लोरोप्लास्ट संश्लेषण संदमित (inhibit) हो जाता है।

उपचार (Treatment )

सामान्यतः कृषि पादपों में आयरन की कमी नहीं होती। कीलेटीकृत आयरन (chelated irons) जैसे Fe-EDTA, से कमी दूर की जा सकती है। फैरस सल्फेट (0.5%) एवं चूना मिला कर पत्ती पर छिड़काव किया जा सकता है। सामान्यतः आयरन देने पर भी हरिमाहीनता पूर्ण रूप से ठीक नहीं हो पाती।

  1. बोरॉन (Boron. B)

बोरॉन समुद्री अवसाद (marine sediment) तथा शिलाखंडों में पाया जाता है। पादपों द्वारा यह बोरेट आयन (BO3- ) के रूप में अवशोषित किया जाता है। मृदा में उपस्थित कैल्शियम, पोटाशियम तथा अन्य के साथ निरोध (antagonism) प्रदर्शित करता है। कैल्शियम के साथ लवण बनाता है जो अवशोषित न हो पाने के कारण, BO-पादपों को उपलब्ध नहीं हो पाता ।

कार्य (Functions)

1.यह शर्कराओं व कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण में महत्त्वपूर्ण होता है। संभवतः वे बौरॉन यौगिकों के रूप में चालन करते हैं।

  1. यह जनन तथा परागकण अंकुरण में सहायता करता है।
  2. कोशिकाओं में जल के आवागमन का नियमन (regulation) करता है।
  3. पादप में पोटाशियम की मात्रा पर नियंत्रण रखता है।
  4. पादप में कैल्शियम को विलेय अवस्था में बनाए रखने में सहायक होता है।
  5. आक्सीकरण एवं अपचयन क्रियाओं में संतुलन बनाये रखता है ।
  6. अनेक एन्जाइमी अभिक्रियाओं को संदमित करता है जिनसे आविषालु (toxic) पदार्थ बनते हैं तथा उनके विषैले प्रभाव से बचाता है ।

न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)

  1. बोरॉन की न्यूनता के कारण शर्करा का वांछित स्थानों तक स्थानांतरण नहीं हो पाता, अतः पादप बौने से हो जाते हैं। शीर्ष विभज्योतक (मल एवं प्ररोह) भोज्य पदार्थ के अभाव में मृत हो जाते हैं तथा वृद्धि रूक जाती है। इससे पादप स्तम्भित (stunted) हो जाते हैं।
  2. पत्तियां गहरे हरे रंग की व मोटी हो जाती हैं।
  3. सीमान्त अथवा शीर्षस्थ पत्तियों में ऊतकक्षय ( necrosis ) होने के बाद वे झड़ जाती हैं।
  4. पुष्पन नहीं होता अथवा पुष्प कम संख्या में बनते हैं अथवा बन्ध्य रहते हैं।
  5. फल विकसित नहीं होते अथवा बदरंग व अनियमित आकार के हो जाते हैं।
  6. तने में शीर्षारंभी क्षय ( die back), असामान्य शाख्वन तथा भंगुर विक्षत (brittle lesion) बन जाते हैं।
  7. पत्तियों में विभाजित मध्यशिरा, श्वेत धारियां, अल्पवृद्धि तथा विकृतियां भी हो जाती हैं।
  8. कुछ पादपों जैसे चुकंदर एवं गेंदें में जड़ में हॉर्ट रॉट अथवा शुष्क गलन (heart rot or dry rot) रोग हो जाता है, जिसमें मूल के केन्द्रीय भाग में ऊतकक्षय (necrosis) हो जाता है। पत्तियाँ ऐंठी हुई व शिराएं पीली व पर्णवृत भंगुर (brittle) हो जाते हैं। शीर्ष बिन्दु मृत हो जाते हैं।
  9. मटर में कैंकर (canker of garden pea) रोग होता है जिसमें जड़ में मध्य भीतरी भाग बन जाते हैं।

उपचार (Treatment)

उपयुक्त लवण (BO3-3 ) का उपयोग करना चाहिए ।