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Categories: Biology

श्वेत रुधिर कणिकाएं क्या है , White blood corpuscles in hindi , ल्यूकोसाइट्स किसे कहते हैं (Leucocytes)

जाने श्वेत रुधिर कणिकाएं क्या है , White blood corpuscles in hindi , ल्यूकोसाइट्स किसे कहते हैं (Leucocytes) ?

 श्वेत रुधिर कणिकाएँ (White blood corpuscles) or ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes)

ये लाल रक्त कणिकाओं की अपेक्षा काफी बड़ी (large), अनियमित (irregular) एवं परिवर्तनशील आकार (changeable shape). संख्या में कम (lesser in number) तथा केन्द्रकमय (nucleated) होती है। केन्द्रक की उपस्थिति के कारण ही इन्हें वास्तविक कोशिका (true cells) कहा जाता है। प्रायः इनका कोशिकाद्रव्य रंगहीन किन्तु कणिकमय ( granular) होता है।

(i) संरचना (Structure ) — ल्यूकोसाइट्स में केन्द्रक के निकट एक सेन्ट्रीओल (centriole) भी पाया जाता है परन्तु वयस्क अवस्था में इन कोशिकाओं से समसूत्री (moitosis) विभाजन पाया जाता है। ल्यूकोसाइट्स, इरिथ्रोसाइट्स की अपेक्षा संख्या में कम एवं आकार में बड़ी होती है परन्तु इनमें केन्द्रक उपस्थित रहता है। इनका आकार लगभग 8 से 15 होता है ।

(ii) संख्या (Number )—–— ल्यूकोसाइट्स की सामान्य संख्या किसी स्वस्था व्यक्ति में 6000 से 10,000 प्रति घन मि.मी. होती है। बच्चों में श्वेताणुओं (WBC) की संख्या वयस्क की अपेक्षा कम होती हैं रोगजनक (pathogenic) स्थिति में यह संख्या सामान्य से अधिक या कम हो सकती है। श्वेताणुओं की संख्या में वृद्धि की स्थिति को ल्यूकोसाइटोसिस (leucoytosis) कहा जाता है। रुधिर में 12000 प्रति घन मि.मी. से अधिक श्वेताणुओं पाया जाना किसी बीमारी ( disease) का संकेत होता है । रुधिर में श्वेत कणिकाओं का असाधारण एवं अनियमित निर्माण अस्थि मज्जा का कंन्सर अर्थात् ल्यूकेमिया (leukemia) उत्पन्न करता है जिससे व्यक्ति की मृत्यु ( death) हो जाती है। श्वेताणुओं की संख्या में कमी ( 6000 / घन मि.मी से कम) की स्थिति ल्यूकोपोनिया (leucopenia) कहलाती है जो मियादी बुखार / (typhoid fever) एवं तपेदिक (tuberculosis) में देखी जा सकती है।’

(iii) श्वेताणुओं का वर्गीकरण (Classification of WBC) – राइट्स (Wright’s) के अनुसार ल्यूकोसाइट्स को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है-

(A) कणिकामय श्वेत रक्त कणिकाएँ या ग्रैन्यूलोसाइट्स (Granulocytes)

इन ल्यूकोसाइट्स के कोशिकाद्रव्य में अनेक कणिकाएँ पाई जाती है। इनका केन्द्रक प्राय: 2 से 5 परस्पर जुड़े पिण्डों (lobes) में बँटा तथा असीमित (asymmetrical) होता है। इसी कारण इन्हें पॉलीमॉर्फी-न्यूक्लिअर (polymorphonuclear) रक्त कणिका भी कहा जाता है। इनका उत्पादन लाल ग्रन्थि अस्थि मज्जा की रेटिकुलर कोशिका ( reticular cells) या माइलोब्लास्ट कोशिका (myelobast cells) कहते हैं। ये अभिरंजक ( stain ) के प्रति धनात्मक सक्रियता (positive acitvity) के आधार पर तीन प्रकार की होती है।

  • इओसिनिफिल्स (Eosinophils) या ऐसीडोफिल्स (Acidophils)—ये श्वेत रक्त कणिकाएँ संख्या में लगभग 1 से 4 प्रतिशत होती है। इनका व्यास ( diameter) लगभग 10 से 15 होता है। इनका केन्द्रक दो स्पष्ट पिण्डों (lobes) में बँटा होता है जो एक महीन सूत्र या तन्तु द्वारा जुड़े रहते हैं। इनके कोशिकाद्रव्य में बड़ी-बड़ी एंजाइमयुक्त कणिकाएँ पाई जाती है जो अम्लीय अभिरंजक (acidic dye) जैसे इओसिन ( eosin) द्वारा अभिरंजित (stained ) की जा सकती है। इनका औसत जीवन काल (average life span) लगभग 8-12 दिन का होता है। ये विषैली (toxic) प्रकृति की प्रोटीन्स के निराविषीकरण (detoxification) एवं विनाश ( destruction) का कार्य करती है। इस प्रकारन के श्वेताणुओं की संख्या ऐलर्जी (allergy ) की दशा में बहुत अधिक बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि इन कोशिकाओं में हिस्टैमीन (histamine) की मात्रा बहुत अधिक होती है जो ऐलर्जी क्रियाओं के लक्षण प्रगट करता है।

(ii) बेसोफिल्स (Basophis) ये श्वेत रक्त कणिकाओं का लगभग 0.5 से 4.0 प्रतिशत भाग बनाती है। इनका व्यास इओसिनोफिल्स की तरह 10 से 15 होता है। इनका केन्द्रक बड़ा वृक्काकार (kidney shaped) या ‘S’ आकार का तथा 2-3 पिण्डों का बना होता है। इनके कोशिकाद्रव्य में कणिकाएं बड़ी किन्तु संख्या में कम (10 से 100 तक) पाई जाती है जो मैथिलीन ब्ल्यू (methylene blue) द्वारा रंग ग्रहण करती है। इनका औसत जीवन-काल 12 15 दिन का होता है। ये कोशिकाएँ हिपैरिन (heparin) का निर्माण करती हैं तथा हिस्टैमीन एवं सीरोटोनीन का वहन करती है। इन कणिकाओं की संख्या चिकन पॉक्स (chicken pox) से समय बहुत अधिक बढ़ जाती है।

(iii) न्यूट्रोफिल्स या हिट्रारोफिल्स (Neutrophils or Heterophils)  ये श्वेत रक्त कणिकाओं का लगभग 60-70 प्रतिशत ( सबसे अधिक ) भाग बनाती है। इनका व्यास लगभग 12 से 15 u होता है। इनका केन्द्रक 2 से 5 या अधिक पिण्डों का बना होता है जो एक सूत्र द्वारा जुड़े रहते हैं। इस कारण इन्हें पॉलीमॉस्फोन्यूक्लिर ल्यूकोसाइट्स (polymorphonuclear leucocoytes) भी कहा जाता है। इनके कोशिकाद्रव्य में उपस्थित कणिकायें उदासीन अभिरंजक (neutral stain ) द्वारा अभिरंजित की जाती है। इनका जीवनकाल 2-4 दिन का होता है ।

मादा से कुछ न्यूट्रोफिल्स के केन्द्रक से एक सूक्ष्म गोल सा पिण्ड जुड़ा रहता है। इसे ड्रमस्टिक (drumstic) कहते हैं। यह रचना बॉर काय (barr body) की भाँति एक X – गुणसूत्र के रूपान्तरण के फलस्वरूप बनती है। ये कोशिकाओं डाइपेडेसिस ( diapedesis) की क्रिया द्वारा कोशिकाओं (capillaries) से बाहर निकल कर अमीबीय गति (amoeboid movement) दर्शाती हैं। इनके भ्रमण की गति 40 गति मिनट होती है। इस प्रकार ये शरीर की बाहरी रोगाणुओं से रक्षा करती है। इन श्वेताणुओं की संख्या मवाद पड़ने वाले संक्रमण (pus forming infection) के समय बढ़ जाती है ।

(B) कणकाविहीन श्वेत रक्त- – कणिकाएँ या अग्रैन्यूलोसाइट्स (Agranular type WBC or Agranulocytes)

ये सम्पूर्ण ल्यूकोसाइट्स का लगभग 25 से 30 प्रतिशत भाग बनाती है। इनके कोशिकाद्रव्य में कणिकाएँ नहीं पाई जाती हैं अर्थात् जीवद्रव्य समांगी (homogenous) होती है। इनका केन्द्रक पिण्डाकार (lobular) न होकर गोल या कटा हुआ अथवा वृक्काकार (kidney shaped ) होता है। ही केन्द्रक होने के कारण इन्हें मोनोन्यूक्लिअर रुधिराणु (mononuclear corpuscles) कहा जाता है। इनका निर्माण थाइमस (thymus). प्लीहा (spleen) एवं लसीका गाँठों (lymph glands) द्वारा होता है। केन्द्रक की स्थिति व आकार पर इन्हें दो श्रेणियों में बाँटा जाता है।

(i) लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) ये समस्त ल्यूकोसाइट्स का लगभग 20 से प्रतिशत भाग बनाती है। इनका आमाप लगभग 8 से 16 होता है। इनका केन्द्रक गोलाकार, एवं केन्द्र में स्थित होता है। इनमें केन्द्रक की अपेक्षा कोशिकाद्रव्य का परिमाण बहुत कम होता है। ये अन्य ल्यूकोसाइट्स से कम भ्रमणशील होता है। इनका निर्माण लिम्फोब्लास्ट (lyphobloast) कोशिकाओं से होता है। इनका प्रमुख कार्य बीटा (3) एवं गामा (7) ग्लोब्यूलिन का निर्माण करना होता है। गामा ग्लोब्यूलिन से ऍण्टीबॉडी (antibodies) का निर्माण होता है जिससे शरीर में रोग प्रतिरोधकता (immunity) उत्पन्न होती है। ये कणिकाएँ ऊत्तकों की मरम्मत (tissue repair) में भी सहायका होती है। इनकी संख्या कूकर खाँसी (whoping cough) की स्थिति में बढ़ जाती है।

(ii) मोनोसाइट्स (Monocytes) – ये समस्त ल्यूकोसाइट्स का लगभग 4-8 प्रतिशत भाग बनाती है इनका परिमाण लगभग 15 से 20 1 (सबसे बड़ा ) होता है। इनका केन्द्रक बड़ा, वृक्काकार तथा परिधि की ओर (eccentric) स्थिर रहता है परन्तु इनमें कोशिकाद्रव्य की मात्रा लिम्फोसाइट्स की तुलना में अधिक होती है। इनका निर्माण मोनोब्लास्ट्स (monoblasts) कोशिकाओं से होता है। ये न्यूट्रोफिल्स की तरह शरीर में प्रवेश करने वाले सूक्ष्मजीवों का अन्तर्ग्रहण (ingestion) कर भक्षण (phagocytosis) करती है। ये मृत कोशिकाओं के निस्तारण का भी कार्य करते हैं। अत: अपमार्जक (scavangers) कहलाते हैं। इनकी संख्या तपेदिक (turberculosis) की स्थिति में बढ़ जाती है।

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