JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Biology

विषाणु किसे कहते हैं , virus definition in hindi in plants and animals विषाणु किस प्रकार के जीव होते हैं

पढेंगे विषाणु किसे कहते हैं , virus definition in hindi in plants and animals विषाणु किस प्रकार के जीव होते हैं ?

विषाणु (Virus)

विषाणु (Virus) अति सूक्ष्मकाय है जो सजीव कोशिकाओं के भीतर रह कर जनन क्रिया करते हैं। इनमें DNA या RNA केन्द्रक अम्ल उपस्थित होता है जिस पर बाह्य प्रोटीन का आवरण केप्सिड (capsid) उपस्थित होता है। केन्द्रीय भाग केन्द्रीय कोड कहलाता है जिसमें न्यूक्लिक अम्ल उपस्थित रहता है। ये अनेक आमाप व आकृति के पाये जाते हैं। इन्हें संक्रमण करने योग्य कोशिकाओं या पोषकों के आधार पर पादप विषाणु (plant virus) एवं प्राणी विषाणु (animal virus) में विभक्त किया सकता है।

  • पादप विषाणु (Plant virus) : इस कोटि में कॉलिमोविषाणु (Caulimoviruses) समूह के विषाणु अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इनका DNA द्विलड़ीय संरचना रखता है, इस समूह के पादप विषाणु में कॉलिफ्लावर मोजेक विषाणु (cauliflower mosaic viruses) CaMv का स्थान प्रमुख हैं। यह अनेक पादपों में बाह्य जीन्स (foreign genes) को निवेशित करने हेतु चुना जाता है। द्विलड़ीय संरचना युक्त होने के कारण इसमें हेराफेरी करना अत्यन्त सुगत होता है। CaMv के पोषक प्रमुख रूप से क्रूसिफेरी (cruciferae) कुल के पादप है, यह विषाणु वैसे पादप में रोगजनक होता है किन्तु इसमें हेराफेरी करके इसे लाभकारी बनाया जा सकता है, यह एफिड्स के द्वारा पादप में निवेशित जाता है।

CaMv विषाणु वृत्ताकार सममिति का लगभग  50m. m व्यास का होता है, यह धारक से यूरिया व आयनिक डिटरजेन्ट द्वारा पृथक किया जा सकता है, इसके DNA अणु में लगभग 50000 क्षारक पाये जाते हैं।

वाहक के रूप में इसको चुने जाने के कारण हैं। इसका DNA नग्न (nacked) अवस्था में संक्रामक होता है तथा पादप कोशिका में मात्र रगड़ से प्रवेश कर सकता है, इसे निवेषित करने हेतु पादप सतह (पत्ती) को हल्के अपघर्षी (abrasive) से रगड़ा जाता है। पादप कोशिकाओं में यह प्रतिकृतियाँ बनाने लगता है व केप्सि (capsid) युक्त हो जाता है, इस केप्सिड युक्त अवस्था में यह अन्य कोशिकाओं को भी संक्रमणित कर देता है, इसका DNA पादप गुणसूत्र के DNA के साथ नहीं जुड़ता किन्तु कायिक प्रजनन में भाग लेता रहता है, इस प्रकार यह पादप के गुणसूत्रों के संगठन में परिवर्तन किये बिना अपने DNA की प्रतिकृतियाँ शीघ्रता के साथ बनाता रहता है, यह पादप में संवहन उत्तक के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है, इस प्रकार पूरे पादप में फैल जाता है। इसमें अनेक विलन (cheavage site) होते हैं, जहाँ पर रेस्ट्रिक्शन एन्डोरयूक्लिऐजेज क्रिया कर सकते हैं एवं लाभकारी DNA अंश को जोड़ा जा सकता है। अतः यह अत्यन्त लाभकारी वाहक के रूप में उपयोग में लाया है। कुचिता विषाणु (curlytop virus) CTV मक्का का रेखित रोग विषाणु (streak disease virus MSV) जेमिनि विषाणु (Gemini virus) है। इनमें उपस्थित DNA एक लडीय होता है।

माइटोकॉन्ड्रियल डी एन ए. सेटेलाइट आर एन ए भी इन्हीं की भाँति उपयोग में लाये जाते हैं। वायराइड्स (Viroids) नामक सूक्ष्म रोगजनक तत्व भी इस कार्य हेतु प्रयुक्त किये जाते हैं। इनमें 300-400 क्षारक युक्त वृत्ताकार एक लड़ीय नग्न आर एन ए पाये जाते हैं। यह भी पोषण में अनेक प्रतिकृतियाँ पोषक के RNA पॉलिमरेज की सहायता से बनाता है। यह पादप ऊत्तकों में उपस्थित तरल द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचता है। यह बीज द्वारा भी एक पादप दूसरे पादपों में रोग फैलाता है। यह पादप कोशिकाओं के केन्द्र में रहता है तथा यहीं प्रतिकृतियाँ भी बनाता है।

(b) प्राणी विषाणु (Animal Virus) : प्राणियों में वाहक पादपों की भाँति दोनों प्रकार से अर्थात् घोषक के डी एन ए के साथ जुड़कर या अलग रहकर अपने डी एन ए की प्रतिकृतियाँ बनाते हैं। प्राणियों में वाहक के रूप में SV 40 नामक पेपोवा विषाणु (papovavirus) काम में लिया जाता है। यह सीमिनय विषाणु-40 से प्राप्त किया गया है। इसके द्वारा बाह्य जीन (foreign genes) को जन्तुओं की कोशिका में निवेशित किया जाता है। इसका DNA एक लड़ीय सहसंयोजक बन्धों से युक्त प्रकार का (covalentely closed) वृत्ताकार आकृति का अणु होता है। इसका केप्सोमियर (capsomere ) विषफलकी समिति युक्त होता है। इसके DNA के भीतर शृंखला में दो भाग प्राथमिक व द्वितियक क्षेत्र होते हैं। कुछ जन्तु कोशिकाओं में यह गुणन करता है इन्हें अनुमेय (permissive) कोशिकाएँ कहते हैं जबकि कुछ कोशिकाएँ इन विषाणुओं से अप्रभावित बनी रहती हैं।

वाहक के रूप में उत्परिवर्ती (mutant) प्रकार का Sv 40 विषाणु प्रयुक्त किया जाता है जिसमें डीएनए में से द्वितीयक क्षेत्र निकाल दिया जाता है व इसके स्थान पर बाह्य (foreign) DNA जोड़ दिया जाता है।

पेपीलोमा विषाणु (Papilloma virus) अन्य वाहक है जिसका उपयोग प्राणियों में किया जाता है, मवेशियों में मस्से उत्पन्न करता है, इसका DNA भी वृत्ताकार होता है, यह गुणसूत्रों से बाहर (extra chromosomal) ही बना रहता है। एक प्रयोग में इसके साथ चूहों में इन्सुलिन का जीन जोड़कर इसे मूसों में प्रवेशित करा दिया गया। मूसे की रूपान्तरित कोशिकाओं में यह 30-50 ‘प्रतिलिपियाँ बनाते हुए प्लाज्मिड्स की तरह बना रहता है तथा उच्च मात्रा में इन्सुलिन का m-RNA व प्रोटीन बनाता है।

रेट्रोवायरस (Retrovirus) एक लड़ीय PJA युक्त विषाणु है, इसका भी उपयोग प्राणियों में किया जाता है, यह क्रिया क्लोनिंग द्वारा की जाती है।

ट्रान्सपोजोन्स वाहक (Transposons as vectors) उच्च पादपों के भीतर परिवर्तनशील (transposons) Ac व Ds नामक महत्त्वपूर्ण वाहक पाये जाते हैं। उदाहरणतः मक्का में। इन्हें पूर्व में सक्रियम-विभाजक (activator-dissociation) Ac-Ds तंत्र के नाम से जाना जाता था । इनमें से प्रत्येक वाहक के रूप में उपयोगी है। इनके अन्तिम सिरे पर छोटा अन्तिम सिरा उपस्थित होता है। जो लम्बे DNA खण्ड के रूप में बार-बार दोहराया जाता है। यह Ac में 45000 bp व Ds में 400 bp युक्त होता है। प्रत्येक में परिवर्तनीय जीन भी उपस्थित होती है जो ट्रान्सपोजेज एंजाइम को कोडित करती है तथा परिवहन करने में सक्षम होती है।

ड्रोसोफिला में P तत्व ट्रान्सपोजोन्स होते हैं। यह सामान्यतः 31 bp युक्त होता है। वाहक (Some cloing vectors)

1 KB = Kilo base pair = 1000 base pars = 0.66 megadation

AmpR = Resistance to Ampicilin TetaR = Resistance to Tetracyline. EryR = Resistance to Erythromycine. KanR = Resistance to Kanamycine Raf Resistance to Rifamycine

StrR=Resistance to Streptornycine

स्तनियों में जीन थैरेपी (gene therapy) हेतु भी इनका उपयोग किया जाता है ।

बाह्य या पैसेन्जर DNA (Foreign or passenger DNA)

DNA के वे अणु जिन्हें एंजाइम्स का उपयोग कर दाता कोशिका से पृथक किया जाता है व क्लोन (clone) किया जाता है पैसेन्जर या बाह्य (passenger or foreign) DNA कहते हैं। इस प्रकार के DNA के रूप में निम्नलिखित प्रकार के DNA भी उपयोग में लाये जाते हैं जो इन्हीं के समान होते हैं-

(i) पूरक DNA (complementary DNA) cDNA

(i) संश्लेषित DNA (synthetic DNA) sDNA

(i) यादृच्छित DNA (random DNA) DNA

CDNA का संश्लेषित m-RNA टेम्पलेट का उपयोग कर उत्क्रम ट्रान्सक्रिप्टेज (reverse transcryptase) एजाइम की उपस्थिति में किया जाता है। चूँकि यह m – RNA की प्रतिलिपि होती है, इसे प्रतिलिपि DNA ( cops DNA ) cDNA भी कहते हैं। यह क्रिया क्षारीय माध्यम में DNA- RNA जटिल द्वारा करायी जाती है। DNA पॉलीमरेस एज्माइम की उपस्थिति में एकल DNA सूत्र पर DNA सूत्र का निर्माण होता है। CDNA विशिष्ट जीन युक्त खण्ड होता है अतः इसे वाहक के DNA से जोड़ने हेतु उपयोग में लाया जाता है। हरगोविन्द खुराना (H.GKhurana) को cDNA का रासायनिक संश्लेषण करने में सफलता मिली। इन्होंने संश्लेषित CDNA प्राप्त किया जिसके चिपचिपे (sticky) सिरे के अतः सिरों पर बाह्य DNA जोड़ा जा सकता था। इस प्रकार एक कोशिका में अनेक m-RNA बनते हैं, जिनसे cDNA बनाये जा सकते हैं जिनको बैक्टिरिया के प्लाज्मिड DNA से जोड़कर पोषक जीव में प्रवेशित कराया जाता है।

DNA संश्लेषण की इस विधि से ही शॉटगन (shotgun) का उपयोग कर DNA के यादृच्छित खण्डों (random segments) का संश्लेषण किया जाता है, इसके लिये प्राणी के सम्पूर्ण DNA को प्रतिबन्धित एन्डोन्यूक्लिऐज ( restricition endonuclease) से क्रिया कराते हैं। अत: DNA अनेक खण्डों में विभक्त हो जाता है DNA के प्रत्येक खण्ड को अलग-अलग वाहक के साथ जोड़कर DNA के अनेक पुनर्योजित DNA प्राप्त किये जाते हैं, जिन्हें पोषक में स्थानान्तरित कर इसके विशिष्ट जीन उत्पाद प्राप्त किये जाते हैं।

cDNA कोष (cDNA bank)

एक यूकैरियोटिक प्राणी की कोशिका में हजारों प्रकार के m-RNA पाये जाते हैं जो विभिन्न प्रोटीन, एज्पाइम या हार्मोन बनाते हैं अतः इनसे इतने ही प्रकार के CDNA बनाये जा सकते हैं जिनका उपयोग औद्योगिक रूप से सम्भव है। विलियम्स (Williams 1981) ने इस आधार पर cDNA क्लोन कोष अथवा लाइब्रेरी बनाने का प्रस्ताव रखा। DNA क्लोन कोष (cDNA clone bank) से अभिप्राय है-

ऐसे जीवाणु रूपान्तरणों की समष्टि (bacterial transformation population) जिनकी प्रत्येक इकाई में एक cDNA प्लाज्मिड के साथ जोड़ा गया।” इस प्रकार प्रत्येक m-RNA के आधार पर . बने C-cDNA तथा प्लाज्मिड DNA युक्त जीवाणु प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार 5000 से 10,000 क्लोन युक्त बैंक या पुस्तकाल (bank or library) बनायी जा सकती है। –

जीन कोष (Gene bank)

किसी भी प्राणी के सम्पूर्ण DNA या जीवोम (genome) का वाहक के साथ संयोजित DNA के खण्डों का संकलन कर जीन बैंक या जीन पुस्तकाल (gene library) बनाना संभव हो गया है, इस प्रकार एक प्राणी के DNA की एक प्रतिलिपि वाहक के DNA के साथ संयोजित हमेशा उपलब्ध रहती है, इस प्रकार प्रत्येक DNA के नाइट्रोजन क्षारक युग्मों का अनुक्रम ज्ञात होता है किसी भी परिवर्तन के होने पर विकार का कारण ज्ञात करने में सहायता मिलती है। चिकित्सा के क्षेत्र में इसके अनेक लाभ हैं। पादपों में नयी किस्मों की खोज का कार्य इससे अधिक आसान हो गया है, इस कार्य शॉट कट विधि का प्रयोग किया जाता है।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now