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Categories: Biology

bacteriophage in hindi , बैक्टीरियोफेज का जैविक महत्व क्या है , खोज किसने की , चक्र समझाइये

पढ़िए bacteriophage in hindi , बैक्टीरियोफेज का जैविक महत्व क्या है , खोज किसने की , चक्र समझाइये ?

बेक्टिरिओफेज (Bacteriophage)

यह एक प्रकार का विषाणु है जो जीवाणु कोशिका पर परजीवी के रूप में जीवन का सक्रिय भाग बिताया है। इसे जीवाणुभोजी (bacterio= जीवाणु, phagos =भक्षण करना) भी कहते हैं। इ. टवार्ट (E. Twort, 1915) एवं डी. हेरले (de Herelle, 1917) ने इनका विस्तृत अध्ययन किया एवं पाया कि बैक्टीरियोफेग ई. कोलाई जीवाणुओं को संक्रमित कर नष्ट कर देते हैं। ई. कोलाई को नष्ट करने वाले बैक्टीरियोफेज को कॉलीफेज (coliphage) नाम दिया गया। जीवाणुओं की भाँति फेज भी वायु, मृदा, जल, सजीवों को देह, दुग्ध, फल सब्जियों आदि में पाये जाते हैं। उदाहरण के लिये 6 × 174, फेज (phage) 2, M13, Fd. व R209 बैक्टिरिओफेज प्रमुख हैं जिनका उपयोग वाहक के रूप में किया जाता है। इन्हें फेग (phage) भी कहते हैं इनका निरीक्षण करना एवं प्रयोग में लिया जाना अधिक सुगमकारी है अतः यीस्ट, चूहे तथा मनुष्य की भाँति इनका भी जीन बैंक बनाकर आनुवंशिक अभियांत्रिक के औजारों का भण्डार बनाना बहुत उपयोगी रहा है।

फेग में सामान्यत: रेखित प्रकार का DNA अणु उपस्थित होता है अतः एक स्थान से काटे जाने पर दो टुकड़ों (fragments) में विभक्त हो जाता है जिन पर बाह्य DNA जोड़कर काइमेरिक या हाइब्रिड फेग बनाया जाता है। फेग वाहक प्लाज्मिड वाहकों की अपेक्षा एक प्रकार से अधिक लाभकारी है कि इनमें DNA पर आवरण या सम्पुट (capsule) पाया जाता है अतः स्थानान्तरित किये जाने पर दक्षता के साथ वह अन्य कोशिकाओं में पहुँचा दिये जाते हैं।

एक प्रारूपित जीवाणुभोजी की रचना टेडपोल जैसी होती है। यह स्पष्ट रूप से शीर्ष (head) एवं गुच्छ (tail) में विभक्त किया जाता है। अधिकांश जीवाणुभोजियों (T2, T6) में शीर्ष भाग प्रिज्मीय (prismoid) होता है, पूँछ लम्बी व बेलनाकार होती है जो शीर्ष से जुड़ी रहती है। गुच्छ की सहायता से ही ये जीवाणु की देह से संलग्न होते हैं। प्रिज्मीय शीर्ष भाग प्रोटीन अणुओं से बना होता है। इनके भीतर प्रोटीन्स का बाह्य क्रोड (outer core) व एक भीतरी क्रोड (inner core) पाया जाता है। यह भीतर क्रोड एक 50 nm लम्बे डी एन ए अणु को ढके रहता है। शीर्ष व पूँछ के मध्य कॉलर (collar) एवं एंक षटकोणीय प्लेट होती है जिसे आधारी प्लेट (basal plate) भी कहते हैं। आधार प्लेट से 6 पुच्छ तंतु (tail fibres) जुड़े रहते हैं। जीवाणुभोजी दो विधियों संलयन (lysis) एवं लाइसोजेनी (lysogeny) द्वारा प्रजनन कर अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं।

फेज वाहक प्लाज्मिड की अपेक्षा निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर अधिक कारगर होते हैं।

(i) फेज वाहक में 25 Kb लम्बाई के बाह्य डी एन ए सूत्रों का रोपण संभव है।

(ii) फेज कण में बाह्य डी एन ए को पात्रे (in vitro) प्रकार के रोपित किया जा सकता है।

(iii) इनमें पुनर्योगज डी एन एं का संभारण सरल होता है।

फेज को वाहक के रूप में प्रयुक्त करते हेतु रेक्ट्रिक्शन एंजाइम द्वारा अनावश्यक जीनोम को हटाया जाता है। क्लोनिंग वाहक दो प्रारूप में बनाये जाते हैं-

  • निवेशक वाहक (Insertion vector)- निवेशन वाहकों में एक विशिष्ट विदलन स्थल होता है जिसमें बाह्य डी एन ए का अपेक्षाकृत लघु खण्ड रोपित किया जा सकता है। रोपित खण्ड फेज के कार्यों को प्रभावित नहीं करता । रोपित खण्ड 30-60 Kb आकार का हो सकता है अतः वाहक का आमाप 30 Kb से बड़ा होना चाहिये ।

(b) प्रतिस्थापनकारी

वाहक (Replacement vector)- प्रतिस्थापनकारी वाहक में डी एन ए अणु को रेस्ट्रिक्शन एंजाइम द्वारा विदलित करने पर इसके दोनों ओर एक एक विदलन स्थलों दाँयी व बाँयी भुजाओं का निर्माण होता है जिस पर बाह्य डी एन ए खण्ड प्रतिस्थापित किये जा सकते हैं। फेज डी एन ए के अनावश्यक जीनोम को इलेक्ट्रोफरोरेसिस विधि द्वारा पृथक कर पुनर्योगज डी एन ए बनाया जाता है।

EMBL 3 एवं EMBL4 ऐसे प्रतिस्थापनकारी वाहक है जिन्हें इस प्रकार से निर्मित किया गया है कि एक केन्द्रीय अनावश्यक भाग को जो कि 44Kb लम्बाई का फेज होता है। इसे बाह्य DNA से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। इनका उपयोग कर यूकैरियोट्स में जीनोमिक लाइब्रेरिज बनाई जा चुकी है।

कॉस्मिड वाहक (Cosmid vectors)

कॉस्मिड व हॉन (Collins and Hohn, 1978) ने फेज व प्लाज्मिड के लाभकारी गुणों को मिलाकर क्लोनिंग हेतु कॉस्मिड वाहक का उपयोग किया। कॉस्मिड्स एक प्रकार के संकर वाहक (hybrid vector) है जिनमें लेम्ड फेग़ (A. फेग) पर cos स्थल उपस्थित होता है ये प्लाज्मिड्स के व्युत्पन्न होते हैं। इस स्थल की उपस्थिति के कारण ही प्लाजिम्ड अनुक्रम के जुड़ने एवं ई. कोली के पहचाने एवं प्रतिकृति बनाने में यह उपयोगी होता है।

कॉस्मिड वाहक में λ फेग डी एन ए का छोटा खण्ड होता है जिसमें दोनों सिरों पर संसजी सिरें (cohesive ends) होते हैं।

कॉस्मिड में प्लाज्मिड के समान कुछ लक्षण पाये जाते हैं जो निम्नलिखित प्रकार से हैं-

(i) इनमें प्रतिलिपिकरण स्थल पाया जाता है।

(ii) प्रतिजैविक जीन मार्कर उपस्थित होता है।

(iii) बाह्य डी एन ए के निवेशन हेतु विदलन स्थल उपस्थित होता है।

(iv) ये प्लाज्मिड के समान लघु आमाप के होते हैं।

कॉस्मिड में 50Kb लम्बाई का डी एन ए होता है अतः इनमें 45Kb तक के बाह्य डी एन ए की प्रविष्टि करायी जा सकती है। जीवाणुभोजी के द्वारा ई. कोलाई को संक्रमित करने के पश्चात cos स्थल युक्त पुनर्योगज डी एन ए प्रतिलिपिकृत होता है।

कॉस्मिड के उपयोग द्वारा जीन बैंक का निर्माण किया जा चुका है।

कॉस्मिड्स में विषाण्विक प्रोटीन को कोडित करने वाले जीन नहीं होते अतः पोषक कोशिका में न तो विषाणु बनते हैं न ही लयनचक्र का निर्माण होता है। इनमें प्लाज्मिड्स की भाँति प्रतिकृतिकरण करने की क्षमता, प्रतिजैविक औषधियों के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न करने वाले जीन, बाह्य DNA को ग्रहण करने हेतु विदलन स्थल पाया जाता है, यह भी अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं। प्लाज्मिड से भिन्न जो लक्षण इनमें पाया जाता है वह फेज DNA की उपस्थिति, एवं cos स्थल जिस पर लगभग 12 क्षारक होते हैं। DNA के अंश (fragments) इन वाहकों में निवेशित कर दिये जाते हैं. तथा इन वाहकों को फेग कण में पेक (pack) कर देते हैं। जब यह फेग कण ई. कोली कोशिका को संक्रमणित करता है तो यह कॉस्मिड बाह्य गुणसूत्री प्लाज्मिड (extra chromosomal plasmid) की भाँति प्रतिकृति बनाता है। इन क्लोन्स को जीवाण्विक निवह के रूप में छाँटकर की अलग कर लिया जाता है।

केज्मिड (Phasmid)

फेज्मिड का निर्माण कृत्रित तौर पर फेज तथा प्लाज्मिड के द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है। फेज्मिड p bluescript II ks एक बहुउपयोगी प्रकार को फेज्मिड है जिसकी उत्पति puc-19 से की गयी है। यह 2961 bp (base pairs) की लम्बाई का होता है। फेज्मिड्स का उपयोग अनेक प्रकार से संभव है ये फेज क्लोनिंग वाहक के रूप में प्रयुक्त किये। हैं जिनसे पुनर्योगज प्लाज्मिड हो सकता है। फेग कणों को लम्बी अवधि तक संग्रहित किया जा सकता है। फेमिड p bluescriprt II KS में में निम्न लक्षण पाये जाते हैं-

(i) इनमें अनेक क्लोनिंग स्थल होते हैं।

(i) इसमें एक प्रेरित Lac I स्थल तथा एकं Lac Z स्थल होता है।

(ii) इनमें fl (+) व fl (-) प्रतिलिपि स्थल होते हैं।

(iv) इसमें ई. कोलाई जीवाणु से प्राप्त rol प्रतिलिपिकरण उत्पति स्थल उपस्थित होता है।

(v) इनमें एम्पिसिलिन प्रतिरोधी जीन (ampR) उपस्थित होता है।

(vi) यह प्लाज्मिड व फेग डी एन ए दोनों के रूप में क्रियाशील हो सकता है।

Sbistudy

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