उपसंघ : कशेरुकी अथवा वर्टिब्रेटा (subphylum vertebrata) :
कशेरुकी अथवा वर्टिब्रेट्स क्या है ? (what is vertebrates)
कशेरुकी अथवा वर्टिब्रेट्स कॉर्डेटा संघ के उपसंघ कशेरूकी या वर्टिब्रेटा से सम्बन्धित होते है। उनका नाम श्रृंखलाबद्ध व्यवस्थित कशेरुकाओं अथवा वर्टिब्री से उद्धृत किया गया है जो उनके अक्षीय अंत: कंकाल के कशेरुक दंड अथवा रीढ़ की प्रमुख भाग होती है। एक अन्य विशेषता , जो सभी कशेरुकियों में एक सामान्य नैदानिक लक्षण है , वह अग्र कंकालीय अवयवों का “कपाल” अथवा “करोटि” का रूप धारण करना है जिसमे विभिन्न संवेदी अंग और जटिल मस्तिष्क आवासित रहते है। इससे एक अन्य नाम “क्रेनिएटा” बनाया गया है जो कभी कभी इस समूह के लिए प्रयोग किया जाता है। यह विश्वास करने का कारण है कि विशिष्ट कशेरुकी कपाल और मस्तिष्क कशेरुक दंड से भी पहले विकसित हुए थे , अत: ये दोनों कशेरुकियों के कशेरुकदंड से भी अधिक मौलिक नैदानिक लक्षण है।
एक कशेरुकी अथवा वर्टिब्रेट को ऐसे विशेष प्रकार के कॉर्डेट जन्तु की भाँति परिभाषित किया जा सकता है जिसका उपास्थीय अथवा अस्थिल अंत:कंकाल मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए क्रेनियम तथा तंत्रिका रज्जू के लिए कशेरुकदण्ड बनाता है। जन्तुओं के किसी अन्य समूह में ये दोनों आधारभूत तथा सम्बन्धित लक्षण (क्रेनियम तथा कशेरुक दण्ड) नहीं होते जो कशेरुकियों में उत्तर कैम्ब्रियन तथा ऑर्डोविशन कल्पो से अस्तित्व में है।
कॉर्डेट्स बनाम वर्टिब्रेट्स (chordates vs vertebrates)
अनेक लोग सामान्यतया कॉर्डेट्स को वर्टिब्रेट्स का पर्यायवाची समझते है अर्थात दोनों को एक ही समझते है। अब तक यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कॉर्डेट्स तथा वर्टिब्रेट्स पर्यायवाची शब्द नहीं है। इसके अतिरिक्त सब वर्टिब्रेट्स केवल उपसंघ वर्टिब्रेटा में सम्मिलित है। निस्संदेह वे कॉर्डेटा संघ के जंतुओं में अत्यधिक बहुसंख्यक होते है। लेकिन वे उपसंघों यूरोकॉर्डेटा तथा सिफैलोकॉर्डेटा और संदेहास्पद उपसंघ हेमीकॉर्डेटा में सम्मिलित कुछ अस्पष्ट तथा आदिकॉर्डेट जन्तुओ की भाँती तीन बड़े लक्षणों (खोखला पृष्ठ तंत्रिका तंत्र , नोटोकॉर्ड तथा ग्रसनीय क्लोम छिद्र) वाले होते है। अत: वर्टिब्रेट्स तथा प्रोटोकॉर्डेट्स के दोनों समूह मिलकर कॉर्डेट्स होते है। हालाँकि यूकॉर्डेटा तथा क्रेनिएटा नामक शब्द वर्टिब्रेटा के समतुल्य माने जा सकते है।
वर्टिब्रेटा उपसंघ के सामान्य लक्षण
जैसा कि परिभाषित किया जा चूका है , उपसंघ वर्टिब्रेटा को इसका यह नाम प्रदान करने वाला सबसे प्रमुख लक्षण कशेरुकियों अथवा वर्टिब्री की उपस्थिति है। दूसरा महत्वपूर्ण नैदानिक लक्षण करोटि अथवा क्रेनियम की उपस्थिति है जिससे उपसंघ का दूसरा नाम क्रेनिएटा रखा गया है। इसके अतिरिक्त , उनमे प्रोटोकॉर्डेट्स में पाए जाने वाले तीनों आधारभूत अथवा प्रमुख नैदानिक कॉर्डेट लक्षण , यथा नोटोकॉर्ड , ग्रसनीय क्लोम छिद्र तथा पृष्ठ खोखला तंत्रिका रज्जू भी होते है। ये मिलाकर पांच बड़े नैदानिक कशेरुकी लक्षण बनाते है। दुसरे केवल अनुगामी लक्षण होते है जो कशेरुकियो में अनिवार्यत: अद्वितीय नहीं होते।
ये निम्नलिखित प्रकार के है –
- निम्नतर कशेरुकी जलीय जबकि उच्चतर कशेरुकी मुख्यतः स्थलीय।
- शरीर मध्यम से बड़ा , द्विपाशर्वीय सममित तथा विखंडी रूप से खण्डयुक्त होता है।
- शरीर प्राय: सिर , धड तथा एक पश्चगुदिय दुम का बना होता है। ग्रीवा , विशेषतया स्थलीय प्रकारों में पाई जा सकती है।
- धड में प्राय: दो जोड़ी संधित पाशर्वीय उपांग होते है। ये सहारे , प्रचलन तथा अन्य विशेष कार्यो में सहायक होते है। कुछ में उपांग लघुकृत या अनुपस्थित।
- शरीर का आवरण अथवा अध्यावरण एक बाहरी अधिचर्म , तथा एक आंतरिक चर्म से बनी एक स्तरीय उपकला होती है। जलीय जातियों में इसमें अनेक श्लेष्मा ग्रंथियाँ होती है।
- त्वचा शल्कों , परों , बालों , पंजो , नखो , सींगो आदि के रक्षक बाह्य कंकाल से आच्छादित होती है।
- प्रगुहा अथवा सिलोम बड़ी , लगभग सदैव दीर्णगुहीय तथा अधिकतर आंतरांगीय तंत्रों से भरी होती है।
- उपास्थि अथवा अस्थि से आवृत नोटोकॉर्ड ठीक अग्रमस्तिष्क के निचे समाप्त होता है अथवा कशेरुक दंड द्वारा प्रतिस्थापित हो जाता है।
- अस्थि अथवा उपास्थि अथवा दोनों का बना करोटी , कशेरुक दंड , मेखलाओं तथा भुजाओं की अस्थियो से निर्मित जीवित संधित अंत: कंकाल।
- गति तथा प्रचलन हेतु अनेक पेशियाँ अंत: कंकाल से संलग्न होती है।
- पाचन नाल न्यूनाधिक कुंडलित। यकृत स्थूल , नालवत नहीं। कुछ साइक्लोस्टोम्स को छोड़कर क्लोम छिद्र 7 जोड़ी से अधिक नहीं होते।
- श्वसन निम्न जलीय प्रकारों में युग्मित क्लोमों द्वारा , स्थलीय प्रकारों में फेफड़ो द्वारा।
- रुधिर परिसंचरण तंत्र बंद। ह्रदय 2 , 3 अथवा 4 कक्षों का , अधरीय तथा पेशीय। रुधिर प्लैज्मा में श्वेता और लाल दोनों कणिकायें होती है। श्वसन वर्णक हीमोग्लोबिन लाल कणिकाओं में होता है।
- उत्सर्जन युग्मित वृक्कों द्वारा मेसोनेफ्रिक अथवा मेटानेफ्रिक , खंडित अथवा अखंडित , जो अवस्करीय या गुदिय क्षेत्र में नलिकाओं द्वारा विसर्जन करते है।
- पृष्ठ तंत्रिका रज्जु का अग्रछोर करोटि द्वारा सुरक्षित एक परिवर्धित जटिल मस्तिष्क बनाता है। शेष तंत्रिका रज्जु कशेरुकाओं द्वारा आच्छादित तथा सुरक्षित रीढ़ रज्जू बना लेता है। सिर में कपाल तंत्रिकाओं के 10 अथवा 12 जोड़े होते है। साइक्लोस्टोम्स को छोड़कर रीढ़ तंत्रिकाओं पृष्ठ तथा अधर मूलों के संयोग से बनती है।
- विशेष संवेदी अंगो में एक एक जोड़ी नेत्र तथा श्रवण अंग है जो आंशिक रूप से मस्तिष्क से व्युत्पन्न होते है।
- शारीरिक क्रियाओं , वृद्धि तथा प्रजनन के नियमन के लिए नलिकाहीन ग्रंथियों का एक अन्त: स्त्रावी तंत्र शरीर में फैला रहता है।
- लिंग पृथक। युग्मित जनद लिंग कोशिकाओं को वाहिनियों द्वारा गुदा में अथवा उसके निकट विसर्जित करते है।
- परिवर्धन प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष। प्रारूपिक अन्तर्वलित कन्दुक कभी नहीं होता। मध्यजनस्तर एक जोड़ी अनुदैधर्य पट्टियों की भाँती उत्पन्न होता है जो तत्पश्चात खंडित हो जाता है।
वर्टिब्रेट्स की विविधता
वर्टिब्रेट्स अनेक बातों में जन्तुओं के सभी समूहों से सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा प्रगामी होते है। वे अनेक रोचक लक्षणों को प्रदर्शित करने वाले अत्यंत विविधतापूर्ण समूह होते है तथा महत्वपूर्ण पारिस्थितिकीय भूमिकाएं निभाते है।
- संख्यात्मक शक्ति: उपसंघ वर्टिब्रेटा कॉर्डेट समूहों में सबसे बड़ा है। जन्तुओं की लगभग 9000 जातियों में कशेरुकदंड पाया जाता है। इनमे से 40,000 जातियां जीवित है तथा शेष विलुप्त हो चुकी है।
- वर्टिब्रेट्स के प्रकार: वर्टिब्रेट्स के विभिन्न प्रकार क्या है ? मत्स्यो , उभयचरों , सरीसृपों , पक्षियों तथा स्तनधारियों जैसे परिचित रीढ़युक्त जन्तुओं के अतिरिक्त उनमे मनुष्य भी सम्मिलित है जो आजकल सर्वश्रेष्ठ जन्तु है तथा पृथ्वी पर सर्वाधिक प्रभावशाली शक्ति है।
- वर्टिब्रेट्स के संवर्ग: वर्टिब्रेट्स को कई प्रकार से समूहगत किया जा सकता है। तालिका 1 सामान्य संवर्गो को प्रदर्शित करती है। साधारणतया , वर्टिब्रेट्स के अंतर्गत 9 वर्ग रखे जाते है। इनमे से 2 वर्ग , ऑस्ट्रेकोडर्मी तथा प्लैकोडर्मी , लुप्त हो चुके है। प्रथम दो वर्गों , ऑस्ट्रेकोडर्मी तथा साइक्लोस्टोमेटा , में जबड़ो का अभाव होता है , उन्हें एग्नेथा समूह में रखा जाता है। शेष 7 वर्गों में जबड़े होते है तथा उन्हें नैथोस्टोमेटा समूह में रखा जाता है। नैथोस्टोम्स को फिर दो अधिवर्गों , पंखयुक्त जलीय पीसीज तथा 4 पैरो वाले स्थलीय टेट्रापोडा , में व्यवस्थित किया जाता है। प्रथम 5 वर्ग जलीय होते है , अत: उनका प्रचलित नाम मछलियाँ है। जबकि अंतिम चार वर्ग मुख्यतया अजलीय अथवा स्थलीय होते है।
- वर्गों के चयनित लक्षण: सभी वर्टिब्रेट वर्गों में सामान्य कॉर्डेट वर्टिब्रेट लक्षण सम्मिलित होते है। तथापि , प्रत्येक वर्ग कुछ मूल बातों में अन्यों से भिन्न होता है। इस प्रकार आदिम जबड़े रहित मछलियों से अत्यंत जटिल स्तनधारियों तक विकासशील परिवर्तनों के क्रम का प्रदर्शन होता है।
समूह | अधिवर्ग | उदाहरण सहित वर्ग |
1. एग्नेथा | 1. ऑस्ट्रेकोडर्मी : लुप्त कवचयुक्त मछलियाँ
2. साइक्लोस्टोमेटा : लैम्प्रेज तथा हैगमीन |
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3. नैथोस्टोमेटा | (a) पिसीज
(b) टेट्रापोडा |
3. प्लैकोडर्मी : आद्य जबड़ो वाली विलुप्त मछलियाँ
4. कोंड्रीक्थीज : उपास्थितमय शार्कस , रेज तथा स्केट्स 5. ऑस्टिक्थीज : अस्थिल मछलियाँ 6. एम्फिबिया : मेंढक , भेक , सैलामेंडर्स 7. रेप्टिलिया : कछुए , छिपकलियाँ तथा सर्प 8. एवीज : पक्षी 9. मैमेलिया : चूहे , हेल्स , मनुष्य
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निम्नतर वर्टिब्रेटा तथा उच्चतर वर्टिब्रेटा की तुलना
निम्नतर वर्टिब्रेट्स अथवा एनम्ननियोटा | उच्चतर वर्टिब्रेट्स अथवा एम्नियोटा |
1. निम्नतर वर्टिब्रेट्स जिसमे साइक्लोस्टोमेटा , कोंड्रीक्थीज , ऑस्टिक्थीज तथा एम्फिबिया वर्ग मिलकर ऐनम्नियोटा समूह बनाते है | | उच्चतर वर्टिब्रेट्स जिसमे रेप्टिलिया , एवीज तथा मैमेलिया वर्ग मिलकर ऐम्नियोटा समूह बनाते है | |
2. मुख्यतया जलीय | मुख्यतया स्थलीय |
3. शरीर में प्राय: 3 भाग – सिर , उदर तथा दुम | ग्रीवा प्राय: नहीं होती | | ग्रीवा बहुधा होती है जिससे शरीर में प्राय: 4 भाग होते है | |
4. पंखो अथवा पादों के दो जोड़े उपांग होते है | | पंख कभी नहीं होते | प्राय: पंचागुली पाद होते है | |
5. बाह्य कंकाल नहीं होता अथवा चर्मीय शल्क होते है | | बाह्य कंकाल में अधिचर्मीय शल्क , पर , बाल , पंजे , सिंग आदि | |
6. ग्रसनीय क्लोम विदर अधिकतर जीवन पर्यंत रहते है | | क्लोम विदर वयस्क में तिरोहित हो जाते है | |
7. नोटोकॉर्ड प्राय: स्थायी , उपास्थि से आवेष्ठित तथा खंडयुक्त पाया जाता है | | वयस्क में नोटोकॉर्ड तिरोहित होकर अस्थिल कशेरुकाओं की एक श्रेणी से बने कशेरुकदंड द्वारा प्रतिस्थापित हो जाता है | |
8. अंत: कंकाल अधिकतर उपास्थिल | | अन्त:कंकाल अधिकतर अस्थिल | |
9. ह्रदय 2 अथवा 3 कक्षों का बना | | कुछ रेप्टाइल्स को छोड़कर ह्रदय 4 कक्षों का | |
10. परिवर्तनशील शारीरिक तापक्रम वाले असमतापी अथवा अनियततापी जन्तु | | अधिकतर रेप्टाइल्स को छोड़कर स्थिर तापक्रम वाले समतापी अथवा नियततापी जन्तु | |
11. श्वसन प्राय: क्लोमो से | | श्वसन फेफड़ो से | |
12. वृक्क मेसोनेफ्रिक होते है | | वृक्क मेटानेफ्रिक होते है | |
13. कपाल तंत्रिकाओ के 10 जोड़े होते है | | कपाल तंत्रिकाओ के 12 जोडे होते है | |
14. नर में मैथुन अंग नहीं होता | | अधिकतर पक्षियों को छोड़कर नर में मैथुन अंग होता है | |
15. निषेचन बाह्य होता है | | निषेचन आंतरिक होता है | |
16. परिवर्धन कायांतरण सहित अप्रत्यक्ष होता है | | परिवर्धन कायांतरण के बिना प्रत्यक्ष होता है | |
17. परिवर्धन के उल्ब अथवा ऐम्नियोटा प्रकट नहीं होती , अत: समूह का नाम ऐनम्नियोटा है | | परिवर्धन में ऐम्नियन नामक एक विशेष कला प्रकट होती है , अत: समूह का नाम ऐम्नियोटा होता है | |