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यूटोपियन समाजवाद क्या है | Utopia समाजवादी कौन नहीं था किसे कहते है Utopia in hindi अर्थ वर्णन

By   November 7, 2020

Utopia in hindi यूटोपियन समाजवाद क्या है | Utopia समाजवादी कौन नहीं था किसे कहते है अर्थ वर्णन समाजवादी के विचारों का वर्णन करें ?

शब्दावली
विचलन (deviance) समाजशास्त्र में इस शब्द का तात्पर्य ऐसे अनैतिक व्यवहार से है जो समाज के स्वीकृत नैतिक आदर्शों के विपरीत हो। जैसे नशीले पदार्थों का सेवन एक ऐसा व्यवहार है जो सामान्य और स्वस्थ जीवन के समाज-स्वीकृत आदर्शों के मार्ग से हमें “विचलित‘‘ करता है या अलग ले जाता है। (“डीविएंस‘‘ का शाब्दिक अर्थ ‘‘विचलन‘‘ या सही रास्ते से हटना है)।
प्रभुत्व (hegemony) ऐसी प्रक्रिया, जिसमें समाज का कोई वर्ग विशेष उदाहरण के लिए, सत्ताधारी वर्ग, अपने जीवन-मूल्यों और आदर्शों को बाकी समाज पर थोपता है। परिणाम यह होता है कि बाहर से तो समाज में सर्वसम्मति का वातावरण दिखता है, पर वास्तव में समाज बंटा हुआ रहता है।
युटोपिया (utopia) पूर्ण आदर्श समाज की कल्पना-ऐसा समाज जो यथार्थ से एकदम भिन्न हो, ऐसा ही समाज बनाने के लिए क्रांतिकारी और शोषित वर्ग अक्सर संघर्ष करते हैं।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
मर्टन, रॉबर्ट के. 1968. सोशल थ्योरी एंड सोशल स्ट्रक्चर फ्री प्रेसः न्यूयार्क
टर्नर, जे. एच. 1987. स्ट्रक्चर ऑफ सोशियोलॉजिकल थ्योरी. रावत पब्लिकेशंसः जयपुर

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 3
प) व्यक्त और अव्यक्त प्रकार के पीछे चार कारण है:
क) ‘‘तर्कहीन‘‘ लगने वाली चीजें सार्थक बन जाती हैं।
ख) शोध के नये क्षेत्र विकसित होते हैं।
ग) समाजशास्त्रीय ज्ञान का क्षेत्र विस्तृत होता है।
घ) स्थापित नैतिक मूल्यों को चुनौती मिलती है।

पप) उदाहरण के लिए, हमारे समाज में बढ़ते उपभोक्तावाद को अव्यक्त प्रकार्य की धारणा से समझाया जा सकता है। कारें, टेलीविजन सेट और कपड़े धोने का साबुन आदि चीजे केवल उनके व्यक्त प्रकार्यों, अर्थात् उनसे प्राप्त सुविधाओं के कारण ही नहीं खरीदी जातीं । ज्यादा से ज्यादा चीजों के उपभोग के पीछे ऊंचे सामाजिक स्तर की पुष्टि करने की इच्छा छिपी है। यह उपभोग का अव्यक्त प्रकार्य है। उपभोक्तावाद प्रतिस्पर्धात्मक, भौतिकवादी संस्कृति को बनाए रखता है। ऐसी संस्कृति में ही पूंजीपति अपना प्रभुत्व बनाए रखते हैं। ऐसे ही विश्लेषणों से अव्यक्त प्रकार्य की धारणा समाजशास्त्रीय ज्ञान के क्षेत्र का विस्तार करती है।

पपप) ग)

व्यक्त और अव्यक्त प्रकार्य – मर्टन
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
प्रकार्य की अवधारणाएं
प्रकार्य शब्द के विभिन्न अर्थ
निष्पक्ष परिणाम (objective consequences) और स्वपरक मनोवृत्तियां (subjective dispositions)
प्रकार्य, दुष्प्रकार्य (dysfunction) व्यक्त प्रकार्य और अव्यक्त प्रकार्य
प्रकार्यात्मक विश्लेषण के आधार तत्व (postulates of functional analysis)
प्रकार्यात्मक एकता का आधार तत्व (postulate of functional unity)
सार्विकीय प्रकार्यवाद का आधार तत्व (postulate of universal functionalism)
अपरिहार्यता का आधार तत्व (postulate of indispensability)
प्रकार्यात्मक विश्लेषण का प्रतिरूप (paradigm)
वे तथ्य जिनके प्रकार्य देखे जा सकते हैं
निष्पक्ष परिणामों की अवधारणाएं
जिसका प्रकार्य देखा जा रहा है उस इकाई की अवधारणा
प्रकार्यात्मक विश्लेषण के वैचारिक दृष्टिकोणों में समस्याएं
व्यक्त और अव्यक्त प्रकार्य -यह विभेद क्यों?
‘‘तर्कहीन” लगने वाली बातें सार्थक हो जाती हैं
खोज के नये सवालों का उदय
समाजशास्त्रीय ज्ञान का विस्तार
स्थापित नैतिक मूल्यों को चुनौती मिलती है
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के बाद आपके लिए संभव होगा
ऽ व्यक्त तथा अव्यक्त प्रकार्यों की अवधारणाओं में अंतर स्पष्ट करना
ऽ यह समझाना कि रॉबर्ट के.मर्टन ने क्यों और कैसे प्रकार्यात्मक विश्लेषण को नया अर्थ दिया तथा किस प्रकार मर्टन द्वारा किया गया विश्लेषण उसके परंपरागत आधार तत्वों और प्रतिरूपों से भिन्न है
ऽ यह दिखाना है कि कैसे अव्यक्त प्रकार्य की अवधारणा समाज के प्रति हमारे बोध को मुखरित करती है
ऽ अपने समाज की संस्थाओं और सांस्कृतिक गतिविधियों को नयी दृष्टि से देखना।

प्रस्तावना
इस खंड की इकाई 27 और 28 में आपने समाजशास्त्र में टालकट पार्सन्स के योगदान के बारे में पढ़ा। इस इकाई में आपको प्रकार्यात्मक विश्लेषण के क्षेत्र में एक अन्य जाने माने अमरीकी समाजशास्त्री और पार्सन्स के विद्यार्थी रॉबर्ट के मर्टन के योगदान के बारे में बताया जाएगा। प्रकार्यात्मक विश्लेषण के बारे में कुछ बातों की जानकारी आपको पहले से है। लेकिन इस इकाई में, खासतौर से इसके भाग 29.2 में समाजशास्त्रियों की दृष्टि में प्रकार्य के अर्थ के साथ-साथ इसके दो प्रकारों, व्यक्त तथा अवयक्त प्रकार्य को भी समझाया जाएगा। आपको दुष्प्रकार्यों (कलेनिदबजपवदे) की जानकारी भी मिल सकेगी।

भाग 29.3 में प्रकार्यात्मक विश्लेषण के आधार तत्वों (चवेजनसंजमे) की चर्चा होगी, खासतौर से मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन जैसे सामाजिक नृशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित परंपरागत प्रकार्यवाद के आधार तत्वों के बारे में चर्चा के बाद यह बताया जाएगा कि रॉबर्ट मर्टन किस तरह इन परंपरागत आधार तत्वों से असहमत है और नये सिद्धांत प्रस्तुत करता है।

भाग 29.4 में प्रकार्यात्मक विश्लेषण के प्रतिरूप (चंतंकपहउ) की चर्चा की गई है। रॉबर्ट मर्टन का कहना है कि किसी भी समाजविज्ञानी को इस प्रतिरूप की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए ताकि वह अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित कर सके कि उसे किन क्षेत्रों में और किस दिशा में काम करना है। ऐसे प्रतिरूप (चंतंकपहउ) की आवश्यकता अध्ययन में अनियमितता और गड़बड़ी को रोकने के लिए जरूरी होती है। अंत में भाग 29.5 में आपको अव्यक्त प्रकार्य की अवधारणा की जानकारी मिलेगी। मर्टन का कहना है कि इस अवधारणा से समाजशास्त्री के ज्ञान के क्षेत्र का विस्तार होता है और समाजशास्त्रीय शोध के नये क्षेत्रों का पता लगता है।

बोध प्रश्न 3
प) व्यक्त और अव्यक्त प्रकार्य के विभेद के पीछे चार कारण क्या हैं? लगभग चार पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पप) अव्यक्त प्रकार्य से समाजशास्त्रीय ज्ञान का क्षेत्र कैसे विस्तृत होता है? एक उदाहरण सहित लगभग दस पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पपप) निम्न कथनों में से कौन सा कथन सही है?
क) प्रकार्यात्मक विश्लेषण निश्चित रूप से रूढ़िवादी होता है।
ख) प्रकार्यात्मक विश्लेषण निश्चित रूप से आमूल परिवर्तन होता है।
ग) प्रकार्यात्मक विश्लेषण की अपने आप में कोई वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं होती।

 सारांश
इस इकाई में आपने पढ़ा कि रॉबर्ट मर्टन ने प्रकार्यात्मक विश्लेषण को किस प्रकार नया रूप दिया, और परंपरागत आधार तत्वों और प्रतिरूपों से उसने किस तरह अपनी असहमति व्यक्त की। आपने यह भी पढ़ा कि कैसे मर्टन ने प्रकार्यात्मक विश्लेषण का अपना तरीका सामने रखा, जो ज्यादा लचीला है और दुराग्रहों से मुक्त है। मर्टन के तरीके की परिधि में गतिशीलता, परिवर्तन और दुष्प्रकार्यों जैसे सामाजिक अनुभवों को शामिल किया जा सकता है। विशेष महत्वपूर्ण बात यह है कि अव्यक्त प्रकार्यों की अपनी समझ से मर्टन ने समाजशास्त्रीय ज्ञान और शोध का क्षेत्र विकसित करने का प्रयास किया। मर्टन ने ऐसी सामाजिक गतिविधियों के छिपे अर्थ हमारे सामने उजागर किए जिसे सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है।