जीन कितने प्रकार के होते हैं | types of gene in hindi जम्पिंग जीन (Jumping Gene) कोडिंग जीन (Coding Gene)

types of gene in hindi जीन कितने प्रकार के होते हैं जम्पिंग जीन (Jumping Gene) कोडिंग जीन (Coding Gene) किसे कहते है ?

बेन्जर तथा जीन की परिकल्पना (Beæer and Gene Concept)

बेन्जर (Beæer) ने 1962 में जीन को तीन भागों में बाँटा-
(1) रिकोन (Recon)- यह शब्द बेन्जर ने दिया। यह पुनः संयोजन (recombination).की सूक्ष्मतम इकाई (smallest unit) है और सूक्ष्मतम रिकोन न्यूक्लिओटाइड के एक युगल (nucleotide nair) से व्यक्त किया जाता है अर्थात् डीएनए में संलग्न न्यूक्लिओटाइड के मध्य की दूरी इसकी न्यनतम अभिव्यक्ति है। यह रेखीय अनुक्रम में व्यवस्थित होकर जीन का निर्माण करती है। यह आदान-प्रदान (crossing over) के द्वारा अलग हो सकती हैं। बेन्जर (Beæer) ने 1955 में T4 बेक्टीरियो फाज (जीवाणुभोजी वाइरस) में रिकॉन जीन में क्रॉसिंग ऑवर प्रदर्शित किया।
(2) सिस्ट्रोने (Cistron)- यह शब्द भी बेन्जर ने ही दिया था। यह जीन की क्रियात्मक (functional) इकाई है और डीएनए के सबसे बड़े भाग को प्रदर्शित करती है। सिस्ट्रॉन को एक इकाई के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसके तत्त्व (एलील) सिस-ट्रान्स व्यवस्था प्रदर्शित करते हैं। इस आधार पर जीन्स को कार्यिकी क्रिया की इकाई (unit of physiological activity) माना जाता है।
बेक्टीरिया के एक सिस्ट्रॉन में, न्यूक्लीयोटाइड जोड़ों की संख्या 1500-30,000 तक होती है। प्रत्येक सिस्ट्रोन एक m RNA अणु को कोड करता है जो कि बदले में पोलीपेप्टाइड श्रृंखला (एंजाइम या प्रोटीन) को कोड करता है। एक सिस्ट्रॉन में उत्परिवर्तन की सेकड़ों इकाइयाँ (hundred units of mutation) या पुनर्नियोजन (recombination) होते हैं अतः सिस्ट्रोन गुणसूत्रो में, ज्यादा जगह पर उपस्थित रहते है।
उदाहरण के लिए बेक्टीरिया ई. कोलाई (Eschscherichia coli) में टिष्ट्रोफेन सिन्थेटेज (Tryptophan Synthetase) उत्पन्न करने वाले जीन में दो सिस्ट्रोन्स A व B भाग लेते हैं। ये दोनों एंजाइम की एक-एकं पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का निर्माण करते हैं। अतः एक सिस्ट्रॉन एक सम्पूर्ण पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का कोड (code) बनाती हैं।
बेन्जर का कार्य जीन को डीएनए की भौतिक इकाई को वर्णित करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
(3) म्यूटॉन (Muton)- म्यूटॉन उत्परिवर्तन (mutation) की सूक्ष्मतम इकाई है डीएनए का वह सूक्ष्मतम भाग, जिसमें उत्परिवर्तन की क्षमता होती है, म्यूटॉन कहलाती है। न्यूक्लिओटाइड के एक युगल में होने वाला परिवर्तन इसकी न्यूनतम अभिव्यक्ति को निरूपित करता है।
जीन्स की अन्य तकनीकी परिभाषायें इस प्रकार हैं-
कम्पलॉन (Complon)- इसे सिस्ट्रॉन के स्थान पर प्रयोग में लाते हैं। यह अनुपूरकता (complementation) की इकाई है। कुछ एन्जाइम जो दो या दो से अधिक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के बने होते हैं इनके सक्रिय समूह एक दूसरे के पूरक (complement) होते हैं। पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में किसी भी प्रकार के परिवर्तन या न्यूनता की पूर्ति अनुपूरक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं द्वारा हो जाती हैं।
ऑपरॉन (Operon)- ऑपरॉन क्रियात्मक इकाई है जो आपरेटर जीन (operator gene) व संरचनात्मक जीन (structural gene) दोनो के द्वारा सम्मिलित रूप से प्रदर्शित होती हैं। ये डीएनए से प्रसारित आनुवंशिक सूचनाओं के प्रभाव को परिवर्तित कर देते हैं।
रेप्लिकॉन (Replicon)- रेप्लीकॉन डीएनए का वह खण्ड) (भाग) होता है जो एकमात्र उत्पत्ति स्थल से प्रतिकृतिक (replicate) होता है। प्रोकेरियोट तथा यूकेरियोट जीवों में डीएनए प्रतिकृतिकरण (DNA replication) असतत् इकाईयां (discrete units) से होता है. जिसे रेप्लीकॉन कहते हैं। प्रोकेरियोट जैसे प्लाज्मिड, जीवाणु, फॉज एवं वायरस इत्यादि में प्रतिकृति सामान्यतः, एकमात्र उत्पत्ति स्थल से होता है तथा सम्पूर्ण डीएनए अणु एकमात्र रेप्लीकॉन की तरह कार्य करता है। ई.कोलाई बेक्टीरिया में एकमात्र उत्पत्ति स्थल के आनुवंशिक स्थल को oric कहते हैं जो 245 इच लम्बा होता है।
यूकेरियोटिक जीवों में डीएनए में अनेक उत्पत्ति स्थलों से प्रतिकृतिक होता है अतः इनमें अनेक रेप्लीकॉन पाये जाते हैं जहां से डीएनए विभिन्न स्थलों पर प्रतिकृतिक होकर ऑकाजाकी खण्ड निर्मित करता है।
प्रोकेरियोट व यूकेरियोट पादपों में उपस्थित रेप्लीकॉन
क्र.सं पादप रेप्लीकॉन की संख्या लम्बाई (kb)

1. जीवाणु ई. कोलाई 1 4200
2. विसिया फाबा (Vicia faba) 35,000 300
3. यीस्ट (Yeast) 500 400

विभिन्न प्रकार के जीन (Various types of genes)
(I) जम्पिंग जीन (Jumping Gene)
गुणसूत्र में जीन के विस्थल (loci)नियत स्थान पर होते हैं। मक्का में कुछ ऐसे जीन देखे गये (मेक्लिनटाक, 1950) जो अपना स्थान एक गुणसूत्र पर एक जगह से दूसरी जगह तथा एक गुणसूत्र से दूसरे गुणसूत्र पर बदलते रहते हैं। स्थान परिवर्तन करने वाले ऐसे जीनों को जम्पिंग जीन अथवा ट्रांसपोजोन कहते हैं।
(II) पुनरावृति डी एन ए (Repeatitive DNA)
विभिन्न जातियों में डीएनए की मात्रा अलग-अलग पायी जाती है। ई. कोलाई नामक बेक्टीरिया से 700 गुना अधिक डीएनए मनुष्य में पाया जाता है। इसी तरह ट्रेडीस्कॅशिया में मनुष्य से 10 गुना अधिक डीएनए उपस्थित होता है। निम्न से उच्च जीव जन्तुओं व पादपों में उनके बढ़ते आकार व शारीरिक जटिलता के साथ-साथ क्रियाशील जीनों (functional genes) की संख्या उनमें उपस्थित डीएनए की अधिक मात्रा के हिसाब से आनुपातिक (proportionately) रूप से अधिक नहीं होती है।
यूकेरियोटिक कोशिकाओं में अतिरिक्त (extra) डीएनए अधिक मात्रा में पाया जाता है। सन् 1964 में सर्वप्रथम आश्चर्यजनक तथ्य समाने आया था कि चूहे में अधिकतर डीएनए की एक से अधिक प्रतियाँ (copies) मौजूद रहती हैं, जिन्हें अतिरिक्त डीएनए कहा गया। यह अतिरिक्त डीएनए कुछ विशिष्ट अनुक्रमों में ही उपस्थित होता है। ब्रिटन तथा कोहने (Britten and Kohne) ने 1968 में बताया कि इस अतिरिक्त डीएनए (जो विशिष्ट अनुक्रम में ही पाया जाता है) की अनेक प्रतियाँ (copies) यूकेरियोटिक कोशिकाओं में उपस्थित होती हैं। ऐसे पुनरावर्ती अनुक्रम भागों (repeated sequence components) मे rRNA, mRNA, tRNA, तथा हिस्टोन इत्यादि होते है जो हजारों की संख्या में पुनरावर्ती भाग में उपस्थित रहते हैं परन्तु इनका कोई विशिष्ट व प्रत्यक्ष कार्य नहीं होता। यह सरल अनुक्रम अथवा सेटेलाइट डीएनए है जो अधिकतर हीटरोक्रोमेटिन भाग में उपस्थित होते हैं। इसलिये यह गुणसूत्र बिन्दु (centromere) अन्तखण्ड (टिलोमियर) स्थलों पर मौजूद रहते हैं परन्तु यह अनुलेखित (transcribed) नही होते हैं।
अन्तस्थ खण्ड (telomeres) में विशिष्ट डीएनए के छोटे पुनरावर्ती अनुक्रम उपस्थित रहते हैं । यह 5 से 350 बार तक पुनरावर्ती होते हैं। पादप में T3, AG3, एरेबिडोप्सिस (Arabidopsis) तथा (TC)1-3 A(G)1.3 यीस्ट में पुनरावर्त होते है।
(III) कोडिंग जीन (Coding Gene)
प्रोटीन कोडित करने वाले लगभग सभी जीन विशिष्ट (unique) प्रकार के होते हैं तथा एक ही प्रति के रूप में उपस्थित रहते हैं परन्तु ज-आरएनए r-आरएनए तथा इम्यून तंत्र (immune system) में प्रोटीन्स के जीन एक से अधिक प्रतियों (copies) में मिलते हैं। बिशप 1974 तथा लेविन (Lewin) ने 1975 में बताया यूकेरियोट के डीएनए अनुक्रम का ज्यादातर भाग m- आरएनए नहीं उत्पन्न करता बल्कि अतिरिक्त डीएनए का मात्र छोटा सा भाग ही जीन नियंत्रण में भाग लेता है। बरनार्ड (Bernard) ने 1979 में बताया कि मनुष्य के β ग्लोबिन (globins) का डीएनए 40 किलो क्षार (kilobase) लम्बा होता है परन्तु इसका मात्र 10 किलो क्षार युग्म ही उ- आरएनए निर्मित करता है। शेष बेकार) (junk) डीएनए होता है। ऑरगिल तथा क्रिक (Orgel and Crick 1980) के अनुसार इनका जीव के स्वस्थ होने (fitness) में कोई भूमिका ज्ञात नहीं है।
(IV) जन्क जीन (Junk Gene)
इसमें नॉन कोडिंग, पुनरावर्ती जीन सम्मिलित है जो प्रोटीन के लिए कोड नहीं करते। इसको इन्ट्रॉने कहते है। यह यूकेरियोटिक में सामान्यतः मिलते हैं। प्रोकेरियोट में यदा कदा पाये जाते हैं।
(v) स्पिल्ट जीन (Split Gene)
प्रोकेरियोट में स्पिल्ट जीन रिपोर्ट किये गये हैं जो नॉनकोडिंग अनुक्रमों द्वारा विभेदित होकर दूरी पर स्थित होते हैं। शार्प तथा राबर्ट ने 1977 में एडेनोवायरस (Adenovirus) में स्पिल्ट जीन का आविष्कार किया तथा 1993 में नोबल पुरस्कार प्राप्त किया।
(vi) आत्मघाती (सूसाइडल) जीन (Suicidal Gene)
ऐसे जीन जो एन्टीबायोटिक के लिए कोड करते हैं तथा यह जीवाणु कोशिकाओं को नष्ट करते हैं, आत्मघाती जीन कहलाते हैं। यह आनुवंशिक रूप से जीवाणु कोशिका में रूपान्तरित हो जाते हैं। इनकी सक्रियता वातावरण में पोषकतत्वों के हाथ में रहती है जो स्विच का कार्य करते हैं। जब खनिज पदार्थ समाप्त हो जाते हैं तब आत्मघाती जीन का स्विच ऑन हो जाता है तथा जीवाणु कोशिकायें मर जाती हैं।
(vii) स्यूडो जीन (Pseudo Gene)
यह सक्रिय जीन (functional gene) की कॉपी होती है जो उत्परिवर्तन (mutation) के पश्चात् द्विगुणन (duplication) द्वारा बनती हैं। यह क्रियाशील नहीं होते हैं।