टोरिसेली का प्रमेय (द्रव का बहि:स्राव वेग) (Torricelli’s Theorem in hindi)

(Torricelli’s Theorem in hindi) टोरिसेली का प्रमेय (द्रव का बहि:स्राव वेग) : इसे टौरिसेल का नियम , सिद्धांत अथवा समीकरण भी कहते है। यह प्रमेय सबसे पहले 1643 में Evangelista Torricelli नामक वैज्ञानिक द्वारा दी गयी।

इस प्रमेय में Evangelista Torricelli ने बताया कि जब किसी पात्र में तरल भरा हुआ रहता है और तल से कुछ ऊंचाई पर यदि इस पात्र में छिद्र कर दिया जाए तो तरल उस छिद्र से बाहर जिस वेग से निकलता है उस वेग को द्रव का बहि:स्राव वेग कहते है।
टोरिसेली का यह नियम या समीकरण द्रव के बहि:स्राव वेग और द्रव की ऊंचाई में एक सम्बन्ध स्थापित करता है जिसके द्वारा किसी पात्र में भरे द्रव का बहि:स्राव वेग ज्ञात किया जा सकता है और इसके आधार पर यह भी ज्ञात कर लिया जाता है कि पात्र कितनी देर में खाली हो जायेगा।

टोरिसेली का समीकरण या सूत्र

माना किसी  पात्र में H ऊँचाई तक द्रव या तरल भरा हुआ है तथा इस द्रव का घनत्व p है , अब इस पात्र में द्रव के स्वतंत्र तल से h गहराई पर एक छिद्र निकाल दिया जाता है , इस छिद्र से द्रव v वेग से बहि:स्रावित होने लगता है तो इस छिद्र से होने वाले द्रव के बहि:स्राव वेग v और तरल के तल से गहराई h में निम्न सम्बन्ध होगा –

V = √2gh
 
यहाँ V = द्रव का बहि:स्राव वेग
g = गुरुत्वीय त्वरण
h = द्रव की स्वतंत्र तल से गहरे
अत: इस प्रमेय के अनुसार “गुरुत्वाकर्षण बल के तहत किसी छिद्र से बह रहे द्रव का वेग V का मान द्रव की सतह से छिद्र तक की गहराई h तथा गुरुत्वीय त्वरण के दो गुना 2g के , दोनों के वर्गमूल के समानुपाती होता है। 
द्रव का बहि:स्राव वेगद्रव की प्रकृति , पात्र में द्रव की मात्रा और छिद्र के क्षेत्रफल अर्थात आकार पर निर्भर करता है। 
छिद्र तल से जितनी अधिक गहराई में होता है बहि:स्राव वेग का मान उतना ही अधिक होता है जैसा चित्र में दर्शाया गया है –