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Categories: BiologyBiology

क्लोनिंग में प्रयुक्त तकनीक तथा प्रक्रिया क्या है (Technique and process used in cloning in hindi)

(Technique and process used in cloning in hindi)

क्लोनिंग में प्रयुक्त तकनीक तथा प्रक्रिया
क्लोनिंग का प्रयोग करने हेतु निम्न आवश्यकतायें होती है
ं1. बाह्य डीएनए जिसमें वांछित गुण मौजूद हों।
2. इस डीएनए लक्ष्यध्टारगेट जीन (target gene) प्राप्त करने के लिए इसके विखण्डन हेतु रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम । यह
एन्जाइम बाह्य डीएनए को छोटे-छोटे खण्डों में विशिष्ट डीएनए क्षारक अनुक्रमों पर से विभाजित कर देता है।
3. डीएनए खण्डों को विलगन करने के लिए सर्दन ब्लाटिंग तकनीक का प्रयोग करते हैं।
4. क्लोनिंग वाहक जिसमें बाह्य डीएनए का निवेश विशिष्ट स्थल पर होता है। यह विशिष्ट स्थल रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज द्वारा विशिष्ट
अनुक्रमों पर कट लगने से बनता है जहां डीएनए निवेशित होता है। ,
5. डीएनए लाइगेज एन्जाइम का प्रयोग इन कट लगे विशिष्ट अनुक्रमों को जोड़ने के लिए होता है। रूपान्तरित प्लाज्मिड का श्मिरिक
(chimeric) डीएनए कहते हैं।
6. रूपान्तरित कोशिका की पहचान करने के लिए डॉट कॉलोनी अथवा कॉलोनी संकरण इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।
7. रूपान्तरित कोशिका को परपोषी में प्रवेश करवाते हैं इसके लिए प्रोकेरियोटिक कोशिका में ई. कोलाई के साथ-साथ बेसिलस सब
टिलिस (b-subtilis) तथा यीस्ट सेक्करोमाइसिटिज सर्विसी (saccharomycetes cerevisiae) एवं यूकेरियोटिक कोशिका का
परपोषी की तरह प्रयोग करते हैं।
8. रूपान्तरित कोशिकाओं की पोषक अगर प्लेट्स (nutrient agar plates) पर कॉलोनिया विकसित करते हैं। इन सभी कोशिकाओं को
क्लोन कोशिकायें कहते हैं।
ट्रांसजीन पादप निम्नलिखित प्रक्रिया एवं अन्य परिस्थितियों द्वारा उत्पादित किये जा सकते है।
1. पादपों का पात्रे (पद.vitro) परिस्थितियों में संवर्धन (culture) करते हैं।
2. वांछित जीन का विलगन
3. कल्चर में वृद्धि करते जीवाणु पादपों में वांछित डीएनए का प्रवेश (DNA insert) करवाते है जिसे निवेशित डीएनए कहते हैं ।
4. परिवर्तित जीन की उपस्थिति से रूपान्तरित जीवाणुध्पादप को चिन्हक अथवा मार्कर जीना उपस्थिति से पहचान करके चयन करते हैं।
5. परिवर्तित जीन युक्त जीवाणु पादप का चयन करके इसका पुनर्जनन (regeneration) करवा कर उर्वर (fertile) पादप तैयार करते
हैं जो ट्रांसजीन पादप कहलाते हैं
1. निवेशित डीएनए का वाहक में समाकलन
(Integration of DNA insert into vector)
जिस डीएनए को वाहक से जोड़ना है उसे निवेशित डीएनए (क्छ। पदेमतज) कहते हैं। यह डीएनए की संरचना (DNA construct) के साथ क्लोन होता है। इस वांछित डीएनए खण्ड को चयनित वाहक में प्रवेश करवाने के लिए वाहक को ऐसे रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम द्वारा काटते हैं जो मात्र एक स्थान पर ही कट (nick) लगाते हैं। इसी स्थान चिन्हक अनुक्रम (recognition sequence) स्थित होते हैं जहां डीएनए खण्ड का समाकलन (integration) होता है। डीएनए खण्ड के वाहक के डीएनए के साथ समाकलन होने के लिए निम्नलिखित स्थितियां अनिवार्य होती है
ं1. निवेशित डीएनए तथा वाहक के दोनों ही सिरे बाहर निकले हों, मैच करते हों व ससंजक (cohesive) हों। जब द्विसूत्री डीएनए अणु
के दोनों सिरों पर यदि एकसूत्रीय पूरक न्यूक्लियोटाइड उपस्थित हों तो ऐसे सिरे ससंजक कहलाते हैं।

ससंजन सिरे (Cohesion ends) सपाट सिरे (blund ends)
2. डीएनए को दोनों सिरे बहिसारित (protruding) होते हैं परन्तु वाहक के दोनों सिरे तथा निवेशित डीएनए के दोनों सिरे एक दूसरे
से अलग होते हैं। वाहक का एक सिरा निवेशित डीएनए का पूरक होता है।
3. वाहक एवं निवेशित डीएनए के दोनों सिरे ससंजक हाते हैं मगर वाहक के सिरे निवेशित डीएनए से मैच नहीं करते।
4. दोनों के ही एक-एक सिरे कुठिंत (blunt) व मैच करते हैं परन्तु दूसरे सिरे सपाट होत है।
1. ससंजक व मैच सिरे (Cohesive and Matched ends)
वाहक तथा निवेशित डीएनए को जब एक ही रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम से उपचारित करते हैं तो इन दोनों (वाहक व निवेशित डीएनए) के सिरे ससंजक व पूरक होते हैं। ऐसी परिस्थिति में कटे सिरे आता से T4 डीएनए लाइगेज एनील (anneal) हो जाते हैं।
2. ससंजक एव अलग-अलग मैच सिरे (Cohesive ends but mismatched)
वाहक का एक रेस्ट्रीक्शन एन्जाइम द्वारा व निवेशित को किसी अन्य रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम से कट लगाया जाता है तब इनके सिरे ससंजक तो होते हैं मगर पूरक नहीं होते। इस परिस्थिति में मात्र पनर्योगज डीएनए अणु ही गोलाकार अवस्था में होता है परन्तु निवेशित डीएनए हमेशा वाहक में एक ही दिक्-विन्यास (bi-directional) में उपस्थित रहता है।
3. ससंजक सिरे परन्तु बेमैच (Cohesive ends but not matched)
निवेशित डीएनए तथा वाहक का विदलन (cleavage) करने के लिए (कट लगाने के लिए) एक ही रेस्टिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम से न करके भिन्न-भिन्न एन्जाइम का प्रयोग किया जाता है ऐसी स्थिति में निम्न प्रयोग करते हैं
(1) निःसारित सिरों को सपाट सिरों में परिवर्तित करके T4 लाइगेस से जोड़ देते हैं।
समाकलित डीएनए को वाहक से पुनः अलग-अलग करना हो तो भी उसी रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम द्वारा कट लगाया जाता है जिसके द्वारा इसको समाकलित किया गया था।
पुनर्योगज डीएनए के अतिरिक्त वाहक के दोनों सिरे आपस में जुड़ने से तथा निवेशित डीएनए के भी सिरे आपस में जुड़ने से अपरिवर्तित सामान्य वाहक तथा निवेशित वर्तुल डीएनए (circularised DNA insert) अणु बनने लगते हैं। क्लोनिंग में गोलाकार डीएनए का कोई महत्व नहीं रहता अतः इसको गोलाकार बनने से रोकने के लिए इसके कटे सिरे को क्षारीय फास्फेटेस एन्जाइम (alkaline phosphatase eæyme) से क्रिया करवाते हैं जिसके फलस्वरूप वाहक के 5श्-सिरे से फास्फेट अवशिष्ट हट जाता है। फॉस्फेट रहित 5 सिरे के कारण लाइगेशन नहीं हो पाता व सिरे जुड़ते नहीं है। इस प्रकार जो पुनर्योगज वाहक बनते हैं इनमें दो कट स्थल उपस्थित रहते हैं। पुनर्योगज अणुओं के परपोषी (host) कोशिकाओं में प्रवेश करने के बाद लाइगेस द्वारा कट सिरे जोड़े जाते हैं।
उदाहरण –
(2) सपाट सिरों पर लिंकर लगाकर रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम से कट लगा कर ससंजक व मैच पूरक सिरे प्राप्त करते हैं।
लिंकर रासायनिक रूप से संश्लेषित (synthesçed) द्विसूत्री डीएनए ओलिगोन्यूक्लियो होते हैं जहां रेस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम सक्रिय होते हैं। इनमें EcoRI, Hind III तथा BamHI हो सकते हैं । यह लिंकर्स सपाट सिरों पर T4, डीएनए लाइगेज द्वारा जुड़ जाते हैं।
यह वाहक प्लाज्मिड के साथ रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम से उपचारित करने पर ससंजक (cobe sive) सिरे बनाते हैं। यह पुनः T4, डीएनए लाइगेज द्वारा आसानी से जुड़ कर पुनर्योग प्लाज्मिड डीएनए (श्मिरिक डीएनए जिसमें बाह्य डीएनए संलग्न रहता है) बनाता है।
2. पुनर्योगज डीएनए का उपयुक्त परपोषी में प्रवेश
(Introduction of recombinant DNA into suitable host)
पुनर्योगज डीएनए को पात्रे (पद vitro) निर्माण करने के पश्चात् इसको क्लोन करने के लिए उपाय परपोषी जैसे ई.कोलाई में प्रवेश करवाते हैं। ..
प्रवेश करने के पश्चात् पुनर्योगज डीएनए अणुओं का अपरिवर्तित वाहक अणुओं से विलगन होता है। पुनर्योगज डीएनए (निवेशित डीएनए) की अधिक संख्या में क्लोनों की प्राप्ति होती है। अन्त में निवेशित डीएनए की ई.कोलाई में रूपान्तरित होकर अभिव्यक्ति (expressd) होती हैं।
ई.कोलाई कोशिकाओं के डीएनए में बाह्य स्वतंत्र डीएनए का प्रवेश बर्फीला ठण्डा (ice cold) कैल्शियम क्लोराइड (Cacl2) की उपस्थिति में 120 सेकण्ड के लिए 42°C पर रखने से अधिक सुविधाजनक रूप से हो जाता है। निवेशित डीएनए के समाकलन के साथ ही ई.कोलाई की कोशिका रूपान्तरित हो जाती है तथा अभिव्यक्त होती है।
इसके अतिरिक्त जीनगन, इलेक्ट्रोपोरेसिस तथा सूक्ष्म इन्जेक्शन से भी सीधा जीन स्थानान्तरण होता है।
रूपान्तरित पुनर्योगज डीएनए युक्त कोशिका की पहचान के पश्चात् इसका विलगन कर लिया जाता है। इनको सुरक्षित करके ब डीएनए लाइब्रेरी में रखा जाता है।
यह रूपान्तरित कोशिका यदि जीवाणु है तो बायो रिएक्टर द्वारा इससे बड़े पैमाने पर ट्रांसजीन द्वारा उपयुक्त पदार्थ उत्पन्न किये जाते हैं।
3. मार्कर द्वारा परिवर्तित जीन की पहचान
(Recognition of transferred gene using marker)
रूपान्तरण के पश्चात् निम्न तीन प्रकार की अरूपान्तरित, अपरिवर्तित वाहक से रूपान्तरित कोशिकायें तथा पुनर्योगज डीएनए से रूपान्तरित कोशिकायें तथा पुनर्योगज डीएनए से रूपान्तरित कोशिकायें निर्मित होती हैं। पुनर्योगज डीएनए युक्त रूपान्तरित ई.कोलाई की पहचान निम्न प्रकार से की जाती है-
(1) कॉलोनी संकरण (Colony Hybridçation)
(2) साउथ वेस्टर्न ब्लोटिंग (South Western blotting)
(3) डाट ब्लॉट तकनीक (Dot Blot Technique)
विस्तारपूर्वक इनकी विधियां डीएनए पुनर्योगज तकनीक (techniques ofrecombinant DNA) अन्तर्गत वर्णित हैं।

Sbistudy

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