स्थानकवासी सम्प्रदाय का इतिहास क्या है | डेरावासी किसे कहते हैं , sthanakvasi jainism in hindi

sthanakvasi jainism in hindi , स्थानकवासी सम्प्रदाय का इतिहास क्या है | डेरावासी किसे कहते हैं ?

दिगम्बर और श्वेताम्बर संप्रदायों के अंतर्गत उप-सम्प्रदाय
दिगम्बर परम्पराः के दो प्रमुख उप-सम्प्रदाय हैं।
1. मूल संघः मूल समुदाय
2. बीसपंथी, तेरापंथी और तारणपंथीः आधुनिक समुदाय

तेरापंथी बनाम बीसपंथी
दिगम्बर तेरापंथी, बीसपंथियों की भांति अष्ट-द्रव्य से मूर्ति पूजन करते हैं, परन्तु फूलों और पफलों के स्थान पर सूखे विकल्प का उपयोग करते हैं।
बीसपंथी तीर्थंकरों के साथ यक्ष और यक्षिणी जैसे भैरव, क्षेत्रपाल की भी पूजा करते हैं। उनके धार्मिक प्रथाओं में आरती, फूलों, पफलों और प्रसाद चढ़ाना भी सम्मलित है। भट्टारक उनके धर्मगुरु हैं और वे राजस्थान और गुजरात में अधिक केन्द्रित हैं।
दूसरी ओर, दिगम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय भट्टारक का विरोध करते हैं और केवल तीर्थंकर की पूजा करते हैं।

श्वेताम्बर सम्प्रदायः इसमें तीन उप-सम्प्रदाय सम्मलित हैं।
1. स्थानकवासीः वे मूर्ति पूजा के स्थान पर मन्दिर में अपने संतो की पूजा करने में विश्वास करते हैं। संत, मूर्ति पूजकों के विपरीत अपने मुख के निकट एक मुखपट्टी पहनते हैं।
2. मूर्तिपूजक (डेरावासी)ः वे अपने मन्दिरों में तीर्थंकरों की मूर्तिया रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं और उनके संत मुंहपट्टी नहीं पहनते हैं।
3. तेरापंथीः वे मन्दिरों में मूर्ति के स्थान पर स्थानकवासिकों की भांति संतों की पूजा करते हैं। तेरापंथी संत भी मुंह ढकने के लिए मुंहपट्टी पहनते हैं।

जैन धर्म की लोकप्रिय प्रथाएं
ऽ संल्लेखनाः यह भोजन और तरल पदार्थों के सेवन को धीरे-धीरे कम कर मृत्यु के लिए स्वेच्छा से उपवास की एक धार्मिक प्रथा है। जैन विद्वान इसे आत्महत्या नहीं मानते हैं, क्योंकि यह कोई जुनूनी कार्य नहीं है, न ही इसमें किसी प्रकार के विष या शस्त्रा का उपयोग होता है। इसे जैन तपस्वियों और ग्रहस्थ साधक, दोनों के द्वारा अपनाया जा सकता है।
ऽ सन् 2015 में राजस्थान हाईकोर्ट ने संल्लेखना पर प्रतिबंध लगा दिया था, परन्तु माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उसी वर्ष के अंत में इस प्रतिबंध को हटा दिया।
ऽ प्रतिक्रमणः यह एक प्रक्रिया है, जिसकी अवधि में जैन अपने दैनिक जीवन में किये गये पापों के लिए पश्चाताप करते हैं और स्वयं को याद दिलाते हैं कि उन पापों को दोहराना नहीं है। पांच प्रकार के प्रतिक्रमण में देवसी, राय, पाखी, चैमासी और सम्वतसरी सम्मलित हैं।

इस्लाम
इस्लाम की उत्पत्ति 7वीं शताब्दी में अरब प्रायद्वीप में हुई तथा यह एक विशाल साम्राज्य के माध्यम से विश्व भर में पफैल गया। ‘इस्लाम’ शब्द का अर्थ है अल्लाह के प्रति ‘समर्पण’। अल्लाह के प्रति समर्पित तथा पैगम्बर मुहम्मद के उपदेशों का अनुसरण करने वाले मुसलमान कहलाते हैं। पैगम्बर मुहम्मद अल्लाह के द्वारा पृथ्वी पर भेजे गए पैगम्बरों (जैसे-अब्राहम, मूसा, इत्यादि) की सूची में अंतिम पैगम्बर माने जाते हैं। ईसाई तथा मुसलमान दोनों अब्राहम को अपना पूर्वज मानते हैं।
कहा जाता है कि एक पफरिश्ते ने पर्वतों में पैगम्बर मुहम्मद को अल्लाह का सन्देश दिया। उन्होंने इन हिदायतों को अपने अनुगामियों को सुनाया। आरम्भ में उन्हें बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ा तथा मक्का स्थित अपने गृह को त्याग कर मदीना जाना पड़ा। एक सपफल तख्ता-पलट के बाद वे मक्का लौटने में सपफल हो पाए। मक्का वापसी की यह यात्रा ही वह पवित्रा मार्ग है जो हज (पवित्र तीर्थयात्रा) बन गया तथा प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवन काल में एक बार इस तीर्थयात्रा पर जाने का आदेश है।
पैगम्बर मुहम्मद के निर्देशों को उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके अनुयायियों द्वारा मुसलमानों के पवित्रा धर्म ग्रन्थ हदीस में सम्मिलित किया गया। पवित्रा ग्रंथ कुरान का संकलन पैगम्बर की मृत्यु से पहले हुआ था। इसे किताब के रूप में लाने से पहले उन्होंने दो बार सत्यापित किया। यह पुस्तक तथा सुन्नाह, इस्लामी कानून या शरीयत का आधारभूत ढांचा तैयार करते हैं। भारत में इस्लाम के अंतर्गत चार मुख्य विचारधाराएं (हनप़फी, शाफई, मालिकी तथा हम्बली) प्रचलित हैं।
इस्लाम के आधारभूत सूत्रों में एक अल्लाह (अल्लाह एक स्वरूप) का होना है, जिन्होंने अपने दूत को धरती के लोगों की सहायता के लिए भेजा, तथा पैगम्बर मुहम्मद के अंतिम पैगम्बर होने की बात सम्मिलित हैं।
इस धर्म के अनुयायी पफैसले के दिन अर्थात् कयामत के दिन में भी विश्वास करते हैं। तथा उनका मानना है कि उस दिन हर व्यक्ति की अच्छाइयों तथा बुराइयों का फैसला होगा और तद्नुसार उसे स्वर्ग या नर्क में भेजा जाएगा। उन्हें दिन में पांच बार नमाज अदा करनी चाहिए। शुक्रवार को होने वाली प्रार्थना सामुदायिक प्रार्थना मानी जाती है तथा इसे जुमे की नमाज कहा जाता है। किसी सच्चे मुसलमान के लिए रमज़ान के महीने में भोर से ले कर संध्या तक उपवास करना आवश्यक है, जिसकी परिणति ईद के उत्सव में होती है। पैगम्बर के अनुसार, व्यक्ति को अपनी आय का एक अंश जरुरतमंदों तथा निर्धन लोगों को देना आवश्यक है। इसे जकात कहा जाता है।
यद्यपि इस्लाम में विभिन्न पंथ हैं परंतु मुख्य रूप से यह दो हिस्सों में विभाजित है.शिया (जो अली के पक्षावलम्बी हैं) तथा सुन्नी (जो सुन्नाह का पालन करते हैं)। दोनों के बीच का अंतर पैगम्बर मुहम्मद के उनराधिकारी के संबंध में मत को लेकर है। सुन्नियों का मानना है कि पैगम्बर का उत्तराधिकारी उन्हीं लोगों के बीच का होना चाहिए जो उनके सर्वाधिक निकट थे तथा जो आरम्भ से ही उनके अनुगामी थे, यथा अबू बकर। इसके ठीक विपरीत शियाओं का दावा है कि पैगम्बर का उत्तराधिकारी उनके अपने रक्त-वंशजों में से होना चाहिए तथा वे उनके दामाद अली के दावे का समर्थन करते हैं।
यद्यपि भारत में मुसलमानों का बहुसंख्यक वर्ग सुन्नियों का है, मुहर्रम के समय हुसैन बिन अली की क्रूर मृत्यु का पुनराभिनय करते शिया वर्ग भी अपनी उपस्थिति का अनुभव करा जाते हैं। कुछ ऐतिहासिक क्षण ऐसे भी रहे हैं जब धर्म को परिवर्तनों तथा आन्दोलनों से गुजरना पड़ा है, जिसने इस प्रायद्वीप में इस्लाम की प्रकृति को प्रभावित किया है।
उनमें से कुछ मुख्य आन्दोलन निम्नलिखित हैंः
आन्दोलन प्रवर्तक कारण
अहमदिया आन्दोलन मिर्जा गुलाम अहमद जिन्होंने स्वयं इसका आरम्भ पंजाब में इस्लाम के
को महदी (पथ-प्रदर्शक) कहा। सच्चे मूल्यों को धारण करने वाले लोगों के समुदाय के निर्माण के लिए किया गया।
फरैजी आन्दोलन हाजी शरीयतुल्लाह ने इस आन्दोलन उन्होंने विशुद्ध इस्लाम को वापस (19वीं शताब्दी) का आरम्भ किया। इसके प्रमुख नेताओं में चलन में लाने का आह्नान किया, तथा
नया मियाँ तथा दुदु मियाँ थे। मुसलमानों से इस्लाम के अनिवार्य दायित्वों (फर्ज) का निष्पादन करने का आग्रह किया। वह नहीं चाहते थे कि लोग संतों के पास जाएं तथा उनके बताए रिवाजों का पालन करें।
तारीख-ए- सैय्यद अहमद बरेलवी आरंभिक रूप से यह विशुद्ध इस्लामिक
मुहम्मदिया राज्य की स्थापना को लेकर किया आन्दोलन गया एक सशस्त्र आन्दोलन था।
अलीगढ़ आन्दोलन सर सैय्यद अहमद खां उन्होंने मुसलमानों के लिए आधुनिक शिक्षा की वकालत की, जिससे वे ब्रितानियों के लिए काम कर स्वयं को समृद्ध बना सकते थे।

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