प्रत्यानयन बल , परिभाषा , क्या है , किसे कहते है ? माध्य स्थिति , कोणीय आवृत्ति , कला कोण या कला restoring force in hindi

restoring force in hindi , प्रत्यानयन बल , परिभाषा , क्या है , किसे कहते है ? माध्य स्थिति , कोणीय आवृत्ति , कला कोण या कला restoring force in hindi :-
माध्य स्थिति क्या है (mean position) : माध्य स्थिति वह बिंदु है जहाँ वस्तु या पिण्ड पर प्रत्यानयन बल का मान शून्य होता है अर्थात वस्तु अपनी मूल स्थिति में रहती है और यहाँ वस्तु की स्थितिज ऊर्जा का मान भी न्यूनतम होता है। अर्थात जब वस्तु पर कोई प्रत्यानयन बल कार्य नहीं कर रहा हो तो वस्तु की उस स्थिति को ही माध्य स्थिति कहते है।
प्रत्यानयन बल (restoring force) : जब पिण्ड अथवा वस्तु को दबाया का खिंचा जाता है तो एक बल कार्य करता है जो वस्तु को इसकी वास्तविक स्थिति अर्थात माध्य स्थिति में लाने का प्रयास करता है , इस बल को ही प्रत्यानयन बल कहते है। प्रत्यानयन बल हमेशा विस्थापन के विपरीत दिशा में लगता है , और वस्तु कितनी विस्थापित हुई , इसको भी माध्य स्थिति से नापा जाता है।
अतः प्रत्यानयन वह बल है जो पिण्ड या वस्तु को इसकी माध्य स्थिति में लाने के लिए लगता है।
आयाम (amplitude) : जब किसी पिण्ड या वस्तु को इसकी माध्य स्थिति से विस्थापित किया जाता है तो वस्तु की माध्य स्थिति से किये गये अधिकतम विस्थापन का मान आयाम कहलाता है।  यह विस्थापन धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी।  अर्थात आयाम का मान धनात्मक या ऋणात्मक , कुछ भी हो सकता है।
कम्पन्न या दोलन (vibration or oscillation) : इसे sin अथवा cos फलन की सहायता से समझ सकते है।
जब कोई कण इसकी माध्य स्थिति से चरम बिंदु पर पहुँचता है और पुन: दूसरी तरफ अपनी माध्य स्थिति से होता हुआ पुन: चरम बिंदु (अधिकतम बिन्दु) पर पहुँच कर पुन: अपनी माध्य स्थिति पर पहुँच जाता है , इस पूरे चक्कर को एक दोलन या एक कम्पन्न कहते है जैसा चित्र में दिखाया गया है –

आवर्तकाल (time period) : किसी भी कण या पिण्ड को एक कम्पन्न या दोलन पूरा करने में जितना समय लगता है उसे आवर्त काल कहते है।
आवृत्ति (frequency) : कोई कण या पिण्ड एक सेकंड में जितने दोलन या कम्पन्न पूरे करता है , उन कम्पन्नो या दोलनों की संख्या को ही उस कण की आवृत्ति कहते है।
कोणीय आवृत्ति (angular frequency) : यदि आवर्त गति कर रहे किसी कण की आवृत्ति को 2π से गुणा कर दिया जाए तो प्राप्त मान को कण की कोणीय आवृत्ति कहते है।
कला कोण या कला क्या है (phase angle or phase) : वह राशी जो आवर्त गति कर रहे कण की साम्यावस्था से स्थिति और गति की दिशा को बताती है उसे कला कोण या कला कहते है।

आवर्त गति : जब कोई वस्तु एक निश्चित समय अंतराल में एक निश्चित पथ पर अपनी गति को बार बार दोहराता है तो इस गति को आवर्त गति कहते है।

जैसे : पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर गति।

अनावर्त गति : जब कोई वस्तु एक निश्चित समय अंतराल में एक निश्चित पथ पर अपनी गति को पुनः नहीं दोहराता अनावर्त गति कहलाती है।

दोलन गति या कम्पन्न गति : यदि आवर्त गति कर रही कोई वस्तु साम्यावस्था के इर्द्ध गिर्द्ध (ईधर उधर) एक निश्चित पथ पर गति करती है तो इसे कम्पन्न गति या दोलन गति कहते है।

जैसे : झुला झूलती लड़की की गति , स्प्रिंग से जुड़े पिण्ड की गति।

सरल आवर्त गति : यदि कोई पिण्ड साम्यावस्था के सापेक्ष इस प्रकार गति करता है कि इस पर कार्यरत प्रत्यानयन बल सदैव विस्थापन के समानुपाती होता है तो इसे सरल आवर्त गति भी कहते है।

F ∝ -y

F = -ky

यहाँ K = प्रत्यानयन बल नियतांक है।

सरल आवर्त गति की विशेषताएँ

  1. वस्तु की गति एक निश्चित बिंदु के इधर उधर होती है। इस निश्चित बिंदु को साम्य स्थिति कहते है।
  2. साम्य स्थिति में कण का विस्थापन न्यूनतम होता है।
  3. प्रत्यानयन बल सदैव विस्थापन के समानुपाती तथा इसकी विपरीत दिशा में होता है।
  4. साम्य अवस्था से कण के अधिक विस्थापन को आयाम कहते है। साम्यावस्था की स्थिति में कण का वेग अधिकतम तथा छोरों पर कण का वेग शून्य होता है।

प्रत्या साम्यावस्था : वह बिन्दु जहाँ कण पर प्रत्यानयन बल शून्य तथा स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम हो साम्यावस्था कहलाती है।

प्रत्यानयन बल : किसी पिण्ड पर कार्यरत वह बल जो उसको साम्यावस्था में लाने का प्रयास करता है , प्रत्यानयन बल कहलाता है। यह बल हमेशा विस्थापन के विपरीत दिशा अर्थात साम्य अवस्था की ओर गति करता है।

कोणीय आवर्ती : किसी कण के प्रति सेकंड कला कोण में होने वाले परिवर्तन को कोणीय आवर्ती कहते है।

w = 2π/T

1/T = n

w = 2πn

आवर्त काल : एक दोलन में लगे समय को आवर्त काल कहते है।

T = 1/n

सरल आवर्त गति , एक समान वृत्ताकार गति के प्रक्षेप के रूप में :

माना एक कण A त्रिज्या के एक वृत्ताकार पथ पर एक समान कोणीय वेग w से घूम रहा है तो कण की गति आवर्त गति कहलाती है परन्तु सरल आवर्त गति नहीं।

जब कण बिन्दु P पर होता है तो बिंदु P से वृत्त के व्यास y , y’ पर डाले गए लम्ब PN का प्रक्षेप N पर है और कण जब y पर है तो लम्ब का प्रक्षेप भी y पर है।

जब कण x’ पर पहुँचता है तो लम्ब का प्रक्षेप व्यास पर चलकर y से O बिंदु पर आ जाता है।

जब कण y’ पर पहुँचता है तो लम्ब का प्रक्षेप भी y’ पर पहुँच जाता है।

और जब कण पुनः x पर पहुँचता है तो लम्ब का प्रक्षेप भी O पर पहुँच जाता है और जब कण लौट कर पुनः बिंदु P पर आता है तो लम्ब का प्रक्षेप भी बिंदु N पर पहुँच जाता है।

अत: एक समान वृत्ताकार पथ पर गति कर रहे कण की तात्क्षणिक स्थितियों से किसी व्यास पर डाले गए लम्ब का प्रक्षेप बिंदु O के इधर उधर एक सरल रेखा में गति करता है। प्रक्षेप की यह गति दोलन गति कहलाती है। जितने समय में कण एक समान वृत्ताकार गति करते हुए एक चक्कर पूरा कर लेता है तो लम्ब का प्रक्षेप भी उतने ही समय में एक कम्पन्न पूरा कर लेता है। इस कम्पन्न को दोलन काल कहते है।

माना कण का द्रव्यमान m है तो कण के केंद्र की ओर F = -mw2A बल कार्य करता है।

इस बल का OY दिशा में घटक –

Fy = -mw2Asinθ

△OPN

Sinθ = L/K = ON/OP

Sinθ = -y/A

Y = Asinθ

Fy = -mw2y

चूँकि mw2 = K

अत: Fy = -Ky

समय के फलन के रूप में विस्थापन : माना एक स्प्रिंग के एक सिरे को एक दिवार से बाँधते है और दुसरे सिरे पर एक m द्रव्यमान की वस्तु को बाँध देते है , अब हम पिण्ड को थोडा सा विस्थापित करके छोड़ देते है तो पिण्ड आवर्त गति करने लगता है इसलिए बिंदु O के सापेक्ष पिण्ड की स्थिति में परिवर्तन होने लगता है और दिवार से पिंड की दूरी को विस्थापन चर कहते है।

यदि किसी समय t पर विस्थापन फलन Ft हो तथा गति का आवर्त काल T हो तो –

Ft = F[t + T] = F [t + 2T] . . . . . .

आवर्त गति में आवर्त फलन को समय के ज्या अथवा कोज्या फलनों के रूप में निम्न प्रकार से व्यक्त किया जाता है।

F(t) = Asinwt

F(t) = Acoswt

यदि wt के मान को 2π के पूर्ण गुणज के रूप में बढ़ाया जाए तो फलन अपरिवर्तित रहता है।

Sinwt = sin(wt + 2π) = sin(wt + 4π) . . . . .

= sin(wt + n2π)

Coswt = cos(wt + 2π) = cos(wt + 4π) . . . . .

= cos(wt + n2π)

अत: स्पष्ट है कि 2π/w के पश्चात् फलन दोहराता है।

अत: 2π/w को गति का आवर्तकाल कहते है।

इसके अतिरिक्त ज्या तथा कोज्या फलनों का रेखीय संयोग भी आवर्त फलन है जिसका वही आवर्तकाल T है तो इसे निम्न प्रकार से भी समझाया जा सकता है।

F(t) = asinwt + bcoswt  समीकरण-1

यहाँ a तथा b एक नियतांक है |

a = AcosΘ  समीकरण-2

b = AsinΘ  समीकरण-3

F(t) = AcosΘsinwt + AsinΘcoswt

= A [cosΘsinwt + sinΘcoswt]

F(t) = Asin[wt + Θ]

समीकरण-2 व समीकरण-3 का वर्ग कर आपस म जोड़ने पर –

a2 + b2 = A2cos2Θ + A2sin2Θ

= A2[cos2Θ + sin2Θ]

a2 + b2 = A2

A = √(a2 + b2)

समीकरण-3 में समीकरण-2 का भाग देने पर –

AsinΘ/AcosΘ = b/a

tanΘ = b/a

Θ = tan-1[b/a]

इसे फूरियर प्रमेय भी कहते है।