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Categories: sociology

समाजशास्त्र के संस्थापक | sociology founder name in hindi , के रचयिता कौन है , जनक का नाम क्या है

sociology founder name in hindi समाजशास्त्र के संस्थापक- II के रचयिता कौन है , जनक का नाम क्या है

प्रस्तावना
पिछली इकाई में आपने ऑगस्ट कॉम्ट और हर्बर्ट स्पेंसर नामक समाजशास्त्र के दो संस्थापकों के मुख्य विचारों के बारे में पढ़ा। आपने यह भी पढ़ा था कि कॉम्ट के मन में समाज से संबंधित विज्ञान की स्थापना का विचार क्यों पैदा हुआ तथा इस विचार को उसने समाजशास्त्र का नाम दिया। आपने हर्बर्ट स्पेंसर के प्रारंभिक विचारों की भी जानकारी प्राप्त की और यह जाना कि उसके अनुसार समाज एक अधि-जैविक (super organic) व्यवस्था है।

इस इकाई में हमने आपको जॉर्ज जिमेल (1858-1918), विल्फ्रेडो परेटो (1848-1923), और थोर्टीन वेब्लेन (1857-1929), तीन सबसे प्रमुख प्रारंभिक समाजशास्त्रियों के मुख्य विचारों के बारे में बताया है। समाजशास्त्र के वैज्ञानिक शास्त्र के रूप में विकास में कई अन्य समाजशास्त्रियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इनके बारे में आपको आगे चलकर बताया जाएगा। यहाँ हमने इन तीन विचारकों को इसलिए चुना है क्योंकि इनमें से प्रत्येक ने अपने अध्ययन के द्वारा समाज के वैज्ञानिक अध्ययन को नई दिशा प्रदान की है। जिमेल उन प्रारंभिक समाजशास्त्रियों में से एक है जिसने संघर्ष के सकारात्मक पक्ष की ओर ध्यान दिया। अभिजात वर्ग और इसकी चक्रीय क्रिया अर्थात् अभिजन परिभ्रमण परेटो का सिद्धांत आज भी राजनैतिक समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शक है। आज चाहे वेब्लेन की पुस्तकें उतनी प्रचलित न हों लेकिन उसके द्वारा आधुनिक संस्कृति का अत्यधिक सूक्ष्म विश्लेषण अभी भी लोकप्रिय है। इसके साथ ही उसने पूँजीवादी समाज के विभिन्न तत्वों के वर्णन के लिए प्रदर्शनकारी उपभोग (बवदेचपबनवने बवदेनउचजपवद), प्रशिक्षित अक्षमता (जतंपदमक पदबंचंबपजल), लुटेरा वर्ग (चतमकंजवतल बसंेेमे) आदि पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया। इन पारिभाषिक शब्दों का बार-बार प्रयोग न केवल समाजशास्त्री करते हैं अपितु अन्य समाज विज्ञानी भी करते हैं।

इस इकाई के भाग 3.2 में जॉर्ज जिमेल के मुख्य-मुख्य विचारों की व्याख्या प्रस्तुत की गई है, भाग 3.3 में विल्फ्रेडो परेटों के विचारों का विवरण दिया गया है, भाग 3.4 में थोस्र्टीन वेब्लेन के आधारभूत विचारों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है और अंत में भाग 3.5 में इस इकाई का सारांश दिया गया है।

समाजशास्त्र के अत्यधिक गहन विचारक और संस्थापक कार्ल मार्क्स, मैक्स वेबर और एमिल दर्खाइम के बारे में ई.एस.ओ.-13 के खंड 2, 3, 4 और 5 में क्रमशः विवेचना की जाएगी।

सारांश
इस इकाई में हमने समाजशास्त्र के तीन संस्थापकों के योगदानों का वर्णन किया है। ये हैं-जॉर्ज जिमेल (1858-1918), विल्फ्रेडो परेटो (1848-1923) और थोर्टीन वेब्लेन (1857-1929)।

सबसे पहले हमने जिमेल के जीवन परिचय का संक्षिप्त विवरण दिया और उसकी सामाजिक-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि दी। उसके बाद हमने जिमेल के कुछ मुख्य विचार प्रस्तुत किए। उसके अंतर्गत हैं, तात्विक समाजशास्त्र, सामाजिक प्ररूपों का वर्णन, समाजशास्त्र में संघर्ष की भूमिका के संबंध में जिमेल के विचार, और अंत में आधुनिक संस्कृति के बारे में उसके विचार । हमने समकालीन समाजशास्त्र पर उसके विचारों के प्रभाव के बारे में भी चर्चा की है।

इसके बाद हमने परेटो के जीवन का संक्षिप्त परिचय दिया और फिर उसकी सामाजिक-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि दी। इसके बाद हमने उसके कुछ प्रांरभिक विचारों के विषय में चर्चा की। ये विचार हैं, तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाएं, अवशिष्ट और व्युत्पाद की अवधारणा, अभिजात वर्ग का सिद्धांत, जिसमें शासकीय और गैर-शासकीय अभिजातों का उल्लेख है। इन दो वर्गों के चरित्रों की व्याख्या के लिए मैकियावेली के ‘‘शेर‘‘ और ‘‘लोमड़ी‘‘ की अवधारणा को लिया है। अंत में समकालीन समाजशास्त्र पर परेटो के विचारों के प्रभाव पर विचार किया।

अंत में हमने वेब्लेन का जीवन परिचय प्रस्तुत किया है और उसकी सामाजिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का विवरण दिया है। उसके बाद वेब्लेन के मुख्य विचारों के बारे में चर्चा की। ये विचार हैं, प्रौद्योगिकी विकास का सिद्धांत, संपन्न वर्ग का सिद्धांत, संपन्न वर्ग और प्रदर्शन उपभोग, प्रकार्यात्मक विश्लेषण और समाज में सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत। अंत में हमने वेब्लेन के विचारों का समकालीन समाजशास्त्र पर प्रभाव का वर्णन किया है।

शब्दावली
अवकाश (समपेनतम) काम से छुट्टी का समय, जब व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार अपना कोई भी काम कर सकता है, जैसे कहीं घूमने जाना, चित्र बनाना, उपन्यास पढ़ना आदि।
अवशिष्ट (तमेपकनमे) सामाजिक व्यवस्था के किसी स्थिर पक्ष की व्याख्या के लिए निर्धारित अवधारणा, जैसे बीमारी के उपचार के लिए कई पद्धतियां हैं। इसमें एक ही बात सतत है, वह है बीमार का उपचार करने का प्रयास। इस स्थिर तत्व को अवशेष कहते हैं।
अतर्कसंगत ऐसे सभी व्यवहार जो तर्कसंगत की श्रेणी में नहीं आते हैं। इसी प्रकार की क्रियाएं समाजशास्त्रीय चिंतन (दवद.सवहपबंस ंबजपवद) के विषय हैं।
लुटेरा वर्ग जो लूटपाट और शिकार द्वारा जीवन निर्वाह करता है। जैसे ‘‘शेर‘‘ अन्य प्राणियों का शिकार करके (चतमकंजवतल बसंेेमे) जीवित रहता है। यह लुटेरा वर्ग समाज में उन लोगों की ओर संकेत करता है जो उत्पादन तंत्र में कोई योगदान नहीं करते लेकिन दूसरों की मेहनत पर अधिकार जमाते हैं।
प्रदर्शनकारी उपभोग ऐसी वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग जो दूसरों का ध्यान आकर्षित करती हैं। तथा उन लोगों की ऊँची (conspicuous हैसियत को दर्शाती है, जैसे कोई व्यक्ति हीरे-मोती लगे जूते पहने हो।
consumption)
प्राकृतिक चयन का नियम यह चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत का अंश है। भौतिक या सामाजिक जगत में अस्तित्व के (the law of natural लिए संघर्ष। चयन की सहज प्रक्रिया, जो लोग भौतिक और सामाजिक वातावरण में सबसे अधिक सशक्त selection) हैं वही जीवित रहते हैं, कमजोर का कोई स्थान नहीं होता।
व्युत्पाद (कमतपअंजपअमे) इसमें सामाजिक व्यवस्था के परिवर्तनशील पक्षों की व्याख्या है। उदाहरण के लिए दुनिया में विभिन्न रोगों के इलाज के लिए आयुर्वेद, होमियोपैथी, ऐलोपैथी आदि कई पद्धतियां हैं। परेटो के अनुसार ये विभिन्न पद्धतियां व्युत्पाद हैं।
सामाजिक प्ररूप जिमेल की यह अवधारणा सामाजिक स्वरूप से संबंधित है। जिमेल ने ‘‘अजनबी‘‘, ‘‘साहसी‘‘,
(social type) ‘‘विश्वासघाती‘‘ आदि बहुत से प्ररूपों का वर्णन किया है। इस अवधारणा के अनुसार ‘‘अजनबी‘‘ से अभिप्राय एक ऐसे व्यक्ति से नहीं है जो एक जगह से दूसरी जगह पर घूमता-फिरता है बल्कि ऐसे व्यक्ति से है जिसकी समाज में एक विशेष हैसियत है। कोई व्यक्ति जब उस सामाजिक वर्ग में शामिल होता है, जिस वर्ग का वह पहले सदस्य नहीं था। ‘‘अजनबी‘‘ की समाज में एक नियत स्थिति है। इस स्थिति के कारण वह समाज में कुछ विशिष्ट भूमिकाएं अदा कर सकता है जैसे वह ‘‘मध्यस्थ‘‘का काम कर सकता है।
सामाजिक स्वरूप इस अवधारणा में सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक क्षेत्र में व्यक्तियों की अंतरूक्रिया के ढाँचे के पीछे (social form) निहित एकरूपता की ओर संकेत है। उदाहरण के तौर पर यदि हम किसी निगम की गतिविधियों का विश्लेषण करें तो हमें उस संगठन के ढाँचे में अन्य रूपों के अतिरिक्त उसमें अंतर्निहित विभिन्न रूप जैसे अधीनता, प्रभुता आदि दिखाई देते हैं।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
कोजर, एल.ए. 1971. मास्टर्स ऑफ सोशियोलॉजिकल थॉट. दूसरा संस्करण, हरकोर्ट ब्रेस. जैवोनोविकः न्यूयार्क
टिमाशेफ, निकोलस एस. 1967. सोशियोलॉजिकल थ्यरी इट्स नेचर एंड ग्रोथ, तीसरा संस्करण. रैंडम हाउसरू न्यूयार्क
 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 1
प) जिमेल द्वारा प्रतिपादित समाजिक स्वरूप की अवधारणा को उदाहरण सहित परिभाषित, कीजिए। उत्तर दस पंक्तियों में लिखिए।
पप) निम्नलिखित वाक्यों में खाली स्थान भरिए।
क) जिमेल के अनुसार सामाजिक वास्तविकता में पाए जाने वाले स्वरूप कभी शुद्ध …………………….. होते हैं।
ख) अपने सामाजिक …………………….. की व्याख्या में जिमेल ने अजनबी व्यक्ति (द स्टेंजर), गरीब व्यक्ति (द पुअर) आदि का उल्लेख किया है।
ग) जिमेल के मत में ऐसा कोई समाज नहीं है जहाँ सामंजस्य के साथ न हो इसके साथ ही ……………… समाज में सकारात्मक भूमिका अदा करता है।
पपप) जिमेल द्वारा वर्णित किए गए आधुनिक संस्कृति के एक पक्ष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अपना उत्तर दस पंक्तियों मे लिखिए।

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) जिमेल के अनुसार सामाजिक स्वरूप व्यक्तिगत अंतःक्रियाओं के विन्यास के निकाले गये निष्कर्ष है। चाहे विभिन्न हितों और प्रयोजनों की दृष्टि से अंतःक्रियाओं की प्रकृति कितनी भी भिन्न क्यों न हो, उनमें अंतर्निहित स्वरूप होता है, जो दोनों में समान हो सकता है।
इस प्रकार किसी अपराधी गिरोह के सरदार और उस गिरोह के सदस्यों के बीच अंतःक्रिया का रूप किसी स्काउट ग्रुप के नेता और स्काउट ग्रुप के अन्य सदस्यों के बीच अंतरूक्रिया के रूप के समान हो सकता है।
पप) क) नहीं
ख) प्ररूप
ग) संघर्ष, संघर्ष
पपप) जिमेल ने औद्योगिक समाजों की आधुनिक संस्कृति के बारे में चर्चा की है। उसका कहना है कि परंपरागत सामंतवादी विश्व की तुलना में आज के विश्व में मनुष्य पहले की अपेक्षा उत्तरोत्तर स्वतंत्र हो गया है। वैयक्तिक अवधारणा के विकास का कारण यह है कि अब सामाजिक अस्तित्व के परस्पर क्रियान्वित क्षेत्रों का विकास हो गया है। अब एक कारखाने के मालिक का कारखाने के समय के बाद कारखाने के मजदूरों पर कोई अधिकार नहीं होता। इस प्रकार आधुनिक संस्कृति में लोग स्वतंत्रता का उपभोग कर सकते हैं।

बोध प्रश्न 3
प) वेब्लेन के अनुसार सामाजिक विकास की प्रक्रिया में आविष्कार और नई तथा उत्तरोत्तर ज्यादा सक्षम प्रौद्योगिकी आवष्यक होती है। प्रौद्योगिकी में परिवर्तन के साथ समाज की सामाजिक संस्थाएं बदलती हैं। किसी समाज की प्रौद्योगिकी या औद्योगिक कलाएं उस समाज के लोगों को अपने प्राकृतिक और सामाजिक वातावरण से अनुकूलन की प्रकृति को निर्धारित करती हैं।
पप) क) परजीवी
ख) महत्व
ग) सामाजिक ढाँचे
पपप) वेब्लेन के अनुसार समाज में सामाजिक परिवर्तन संघर्ष के कारण होता है। संघर्ष तब होता है जब समाज की प्रौद्योगिकी उन्नत हो जाती है और समाज की सामाजिक संस्थाएं पिछड़ जाती हैं। ऐसी स्थिति में दोनों के बीच सामंजस्य नहीं रह सकता और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
जार्ज जिमेल (1858-1918)
जीवन परिचय
सामाजिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मुख्य विचार
तात्विक समाजशास्त्र
सामाजिक प्ररूप
जिमेल के समाजशास्त्र में संघर्ष की भूमिका
आधुनिक संस्कृति के संबंध में जिमेल के विचार
समकालीन समाजशास्त्र पर जिमेल के विचारों का प्रभाव
विल्फ्रेडो परेटो (1848-1923)
जीवन परिचय
सामाजिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मुख्य विचार
तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रिया
अवशिष्ट (तमेपकनमे) और व्युत्पाद (कमतपअंजपअमे)
अभिजात वर्ग सिद्धांत और अभिजन परिभ्रमण (बपतबनसंजपवद व िमसपजमे) का सिद्धांत
समकालीन समाजशास्त्र पर परेटो के विचारों का प्रभाव
थोर्टीन वेब्लेन (1857-1929)
जीवन परिचय
सामाजिक-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मुख्य विचार
प्रौद्यागिक विकास का सिद्धांत
संपन्न वर्ग का सिद्धांत
संपन्न वर्ग और प्रदर्शन उपभोग (समपेनतम बसंेे ंदक बवदेचपबनवने ब्वदेनउचजपवद)
प्रकार्यात्मक विश्लेषण
सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा
समकालीन समाजशास्त्र पर वेब्लेन के विचारों का प्रभाव
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप द्वारा संभव होगा
ऽ जॉर्ज जिमेल, विल्फ्रेडो परेटो और थोर्टीन वेब्लेन आदि प्रारंभिक समाजशास्त्रियों की जीवनी संबंधी विवरण प्रस्तुत करना
ऽ प्रारंभिक समाजशास्त्रियों की सामाजिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की चर्चा करना
ऽ उनके मुख्य-मुख्य विचारों की व्याख्या करना
ऽ समकालीन समाजशास्त्र पर उनके विचारों के प्रभाव के बारे में विचार-विमर्श करना।

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