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हेगेल का इतिहास दर्शन किस नाम से प्रसिद्ध है hegel philosophy of history in hindi hegel’s historical method known by which name
hegel’s historical method known by which name hegel philosophy of history in hindi हेगेल का इतिहास दर्शन किस नाम से प्रसिद्ध है ?
हीगल का तर्कशास्त्र
मार्क्स ने हीगल के प्रत्ययवाद (idealism) को नहीं माना परन्तु उसने हीगल की वाद-संवाद प्रक्रिया पद्धति को अपना लिया। इस खंड की इकाई 9 में वाद-संवाद प्रक्रिया की अवधारणा पर विस्तारपूर्वक चर्चा की जाएगी। आइए, यहाँ हम वाद-संवाद प्रक्रिया पर हीगल की मूल धारणा पर दृष्टिपात करें।
हीगल के अनुसार हर वाद (thesis) का एक प्रतिवाद (antithesis) होता है। वाद किसी विचार के सकारात्मक दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जबकि वाद का विपरीत अथवा नकारात्मक दृष्टिकोण प्रतिवाद कहलाता है। इसका अभिप्राय है कि हर सत्य कथन का एक विपरीत कथन होता है। ऐसा प्रतिवाद अथवा विपरीत कथन भी अपने आप में एक सत्य होता है। समय के साथ वाद तथा प्रतिवाद संवाद के रूप में घुल मिल जाते हैं। संवाद एक सम्मिश्रित दृष्टिकोण होता है। कालांतर में यह संवाद फिर से एक नया वाद बन जाता है। इस नए वाद का फिर एक नया प्रतिवाद उत्पन्न होता है। इस नए वाद तथा प्रतिवाद से मिलकर एक और नए संवाद की संभावना हो जाती है। इस तरह वाद-संवाद की प्रक्रिया चलती रहती है।
हीगल ने इतिहास में विचारों की प्रगति को द्वंद्ववाद की प्रक्रिया से समझा। मार्क्स ने द्वंद्ववाद की अवधारणा को अपनाया लेकिन उसे, हीगल की तरह, विचारों की प्रगति की अवधारणा में कोई सार नहीं दिखाई दिया। मार्क्स के अनुसार सत्य का मूल आधार विचार न होकर पदार्थ होता है। उसने भौतिकवाद द्वारा सत्य को अभिव्यक्त करने की कोशिश की। इसीलिए मार्क्स के सिद्धांत को ऐतिहासिक भौतिकवाद कहा जाता है जबकि हीगल की विचारधारा वाद-संवाद प्रक्रियापरक प्रत्ययवाद कहलाती है।
यहाँ एक आधारभूत सवाल उठता है कि भौतिकवाद क्या है? भौतिकवाद में सभी वस्तुओं, यहाँ तक कि धर्म की भी, वैज्ञानिक व्याख्या की जाती है। भौतिकवाद को प्रत्ययवाद (idealism) की अवधारणा के विपरीत देखा जा सकता है। प्रत्ययवाद वह सिद्धांत है जिसमें अंतिम यथार्थ पारलौकिक होता है। परंतु भौतिकवाद इस बात में विश्वास करता है कि सभी वस्तुयें स्थूलकाय पदार्थ पर आधारित हैं। भौतिकवाद की चर्चा तीन प्रकार से की जा सकती है। उदाहरणार्थ दार्शनिक भौतिकवाद, वैज्ञानिक भौतिकवाद तथा ऐतिहासिक भौतिकवाद। प्रथम दो प्रकार के भौतिकवादों की परिभाषा में न जाते हुये यह बता दें कि ऐतिहासिक भौतिकवाद मानवीय इतिहास के विकास में भौतिक दशाओं के उत्पादन की मूलभूत और कारणात्मक भूमिका पर जोर देता है। यथार्थ की इस भौतिकवादी व्याख्या के सन्दर्भ में ही मार्क्स ने ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन किया। आइए देखें कि इतिहास के बारे में मार्क्स का दृष्टिकोण क्या है।
सारांश
सारांशतः, इस इकाई में आपने निम्नलिखित तीन बिंदुओं को विस्तार से समझा।
प) ऐतिहासिक भौतिकवाद सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक तथ्यों की भौतिकवादी व्याख्या है। इसके अनुसार इतिहास की व्याख्या में विचारों का स्थान नहीं है अपितु हमें समझना चाहिए कि सामाजिक संस्था और उनसे संबंधित मूल्य उत्पादन के तरीकों से निर्धारित होते हैं। ध्यान रहे कि मार्क्स के संदर्भ में निर्धारितश् शब्द का तात्पर्य निर्धारणवाद से नहीं लिया जाना चाहिये।
पप) ऐतिहासिक भौतिकवाद मानवीय प्रगति का वाद-संवाद प्रक्रियापरक सिद्धांत है। इसके अनुसार प्रकृति की शक्तियों पर नियंत्रण करने के मानवीय प्रयासों का ही विकास इतिहास है। दूसरे शब्दों में उत्पादन के विकास को इतिहास कहा जा सकता है। सारा उत्पादन सामाजिक संगठन के अन्तर्गत होता है, अतः इतिहास सामाजिक व्यवस्थाओं में परिवर्तनों का क्रम है। इस क्रम में मानवीय संबंधों का विकास उत्पादक गतिविधियों पर आधारित होता है। उत्पादक गतिविधि या उत्पादन की प्रणाली का आधार अर्थव्यवस्था होती है तथा सभी अन्य प्रकार के संबंध, संस्थायें, गतिविधियां तथा विचार अधिसंरचनात्मक (superstructural) होते हैं।
पपप) इतिहास प्रगति है, क्योंकि मनुष्य की उत्पादन की शक्तियां, उत्पादन की क्षमतायें निरंतर बढ़ती रहती है। यह अवनति भी है, क्योंकि उत्पादन की शक्तियों को सर्वश्रेष्ठ बनाने के प्रयास में हमने अधिकाधिक जटिल तथा शोषक सामाजिक संगठन का सृजन भी कर लिया है।
ऐतिहासिक भौतिकवाद
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
ऐतिहासिक भौतिकवाद
पृष्ठभूमि
लोकतंत्र में मार्क्स का विश्वास
लोकतंत्र तथा साम्यवाद
इतिहास की अवधारणा
इतिहास के प्रति समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण
मूल मान्यताएं
अन्तर्संबंधित समष्टि के रूप में समाज
समाज की परिवर्तनशील प्रकृति
मानवीय प्रकृति तथा सामाजिक संबंध
सिद्धांत
व्यक्तियों से परे सामाजिक संबंध
अधोसंरचना (infrastructure) तथा अधिसंरचना (supersturecture)
उत्पादन की शक्तियां और संबंध
सामाजिक वर्गो के संदर्भ में सामाजिक परिवर्तन
उत्पादन की शक्तियां और संबंधों के मध्य वाद-संवाद प्रक्रियापरक
क्रांति तथा समाजों का इतिहास
यथार्थ तथा चेतना
ऐतिहासिक भौतिकवाद आर्थिक निर्धारणवाद नहीं है
समाजशास्त्रीय सिद्धांत में ऐतिहासिक भौतिकवाद का योगदान
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
यह इकाई ऐतिहासिक भौतिकवाद के बारे में है। इसको पढ़कर आपके द्वारा संभव होगा
ऽ ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धांत की व्याख्या करना
ऽ समाज व सामाजिक परिवर्तन पर मार्क्स के दृष्टिकोण का वर्णन करना
ऽ ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धांत का समाजशास्त्र में योगदान समझना।
प्रस्तावना
जिस संदर्भ में समाजशास्त्र का उदय यूरोप में हुआ, इसके बारे में आपने खंड 1 में पढ़ा है। इसमें आपको यह बताया जा चुका है कि फ्रांसीसी तथा औद्योगिक क्रांति का समाजशास्त्र के संस्थापकों के विचारों पर काफी प्रभाव पड़ा। खंड 2 में समाजशास्त्र के एक संस्थापक अर्थात् कार्ल मार्क्स पर चर्चा की गई है। उसके विचार इन क्रांतियों के बारे में समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि से परिपूर्ण थे। इस इकाई की विषय वस्तु, ऐतिहासिक भौतिकवाद, मार्क्स के समाजशास्त्रीय विचारों का वैज्ञानिक केन्द्र है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि हम ऐतिहासिक भौतिकवाद को समाजशास्त्रीय सिद्धांत में मार्क्स के एक योगदान की तरह देखें और इसे मार्क्स की सभी कृतियों के सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में देखें।
इसी उद्देश्य के साथ इस इकाई के भाग 6.2.1 में सर्वप्रथम उस दार्शनिक एवं सैद्धांतिक पृष्ठभूमि की संक्षिप्त चर्चा की गई है, जिसके बौद्धिक और सामाजिक सन्दर्भ में ऐतिहासिक भौतिकवाद का उदय हुआ। तदुपरान्त भाग 6.2.2 में उन मूल मान्यताओं की चर्चा की गई है जिन पर ऐतिहासिक भौतिकवाद का सिद्धान्त आधारित है। इसके बाद भाग 6.2.3 में ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धान्त की व्याख्या की गई है तथा भाग 6.3 में आर्थिक निर्धारणवाद के खण्डन के लिये मार्क्स के विचारों को बताया गया है। अंततः यह इकाई भाग 6.4 में समाजशास्त्रीय सिद्धान्त में ऐतिहासिक भौतिकवाद के कुछ प्रमुख योगदानों को सूचीबद्ध करती है। उपरोक्त भागों की सही समझ मार्क्स के विचारों से संबंधित अगली इकाइयों के अध्ययन में आपको मदद देगी।
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