सामाजिक संरचना की परिभाषा एवं विशेषताएँ | रैडक्लिफ ब्राउन सामाजिक संरचना किसे कहते है social structure in hindi

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रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा विकसित सामाजिक संरचना की अवधारणा
रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार किसी भी विज्ञान के लिये संबद्ध अवधारणाओं की आवश्यकता होती है। इन अवधारणाओं को पारिभाषिक शब्दावलियों द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है जिनका कि उस विषय के सभी विद्यार्थियों द्वारा एक ही अर्थ लिया जाता है। उदाहरण के लिये, भौतिक शास्त्रियों द्वारा परमाणु (atom), अणु (molecule), दहन (combustion) आदि शब्दावलियों का प्रयोग किया जाता है। इन शब्दावलियों का अर्थ और प्रयोग प्रत्येक विद्यार्थी के लिए एक ही होता है। क्या यही बात समाजशास्त्र और सामाजिक शास्त्र पर भी लागू होती है? रैडक्लिफ-ब्राउन ने। माना कि समाजशास्त्रीय लेखन में भी विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग विभिन्न लेखकों द्वारा एक ही अर्थ में किया जाता है। दूसरी ओर, कई शब्दों का प्रयोग बिना किसी पूर्वनिश्चित अर्थों के साथ भी किया जाता है। यह स्थिति इस विज्ञान (समाजशास्त्र) की अपरिपक्वता की सूचक है।

उसका कहना है कि अध्ययन किये जाने वाले आनुभाविक तथ्यों की प्रकृति को बराबर ध्यान में रखकर अस्पष्ट और अवैज्ञानिक बोध से बचा जा सकता है। सभी अवधारणाओं और सिद्धांतों का यथार्थ से संबंध होना आवश्यक है। रैडक्लिफ-ब्राउन (1958ः 67) के अनुसार “एक विशिष्ट क्षेत्र और समयावधि में सामाजिक जीवन की प्रक्रिया ही वह आनुभाविक यथार्थ है जिसका नृशास्त्रीय विवरण, विश्लेषण और तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।‘‘ ‘सामाजिक जीवन की प्रक्रिया‘ से हमारा क्या अर्थ है? इसके अंतर्गत मनुष्य के विभिन्न कार्यकलाप, विशेषकर सामूहिक क्रियाएं और अंतःक्रियाएं आते हैं। उदाहरण के तौर पर ग्रामीण भारत में कृषि संबद्ध कार्यकलाप सामूहिक कार्य हैं। युवा और महिला मंडलों और सहकारी संस्थाओं में भी सामूहिक क्रिया होती है।

सामाजिक जीवन का विवरण देने के लिए सामाजिक नृशास्त्री कार्यकलापों की सामान्य विशेषताओं का उल्लेख करते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण भारत में कृषि संबद्ध कार्यो का विवरण करते हुए समाजशास्त्री द्वारा कुछ सामान्य विशेषताओं को दर्शाने का प्रयास होता है, जैसे, विभिन्न कार्य कब, कहां और किसके द्वारा किये जाते हैं? बीज बोने, फसल काटने और बेचने में कौन से व्यक्ति एक दूसरे का सहयोग करते हैं? कृषि मजदूरों का गठन, कृषि के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका आदि जैसी विशेषताओं का उल्लेख भी समाजशास्त्रियों द्वारा किया जा सकता है। इसी प्रकार का सामान्य विवरण ही विज्ञान की आधार सामग्री होता है। इसे कई तरह से प्राप्त किया जा सकता है, जैसे कि सहभागी प्रेक्षण (चंतजपबपचंदज वइेमतअंजपवद) से, ऐतिहासिक विवरणों आदि से।

क्या ये सामान्य विशेषताएं समय के साथ बदलती हैं? हाँ। और अलग-अलग विशेषताएं अलग-अलग गति से बदलती हैं। पहले दिये गये उदाहरण को ही लें। इसमें यह देखा जा सकता है कि समय के साथ-साथ कृषि संबद्ध कार्यो में अनेक परिवर्तन आये हैं। आज जब चाहो कृषि मंजदूर सरलता से नहीं मिलते हैं। अब वे पहले की तरह क्रूर शोषण को सहते नहीं हैं। मशीनों, रासयानिक खादों और कीटाणु नाशक दवाइयों का अधिक उपयोग किया जा रहा है। इन परिवर्तनों के बावजूद यह भी तथ्य है कि देश के ज्यादातर भागों में महिलाएं आज भी कृषि के क्षेत्र में बहुत श्रम करती हैं। उनके योगदान को पहचाना तक नहीं जाता है। समय के साथ-साथ होने वाले परिवर्तन को ध्यान में रखकर विवरण देने वाले अध्ययन को डायक्रानिक विवरण कहा जाता है, जबकि सिंक्रानिक विवरण वह है जिसमें विशिष्ट समयावधि में पाई जाने वाली सामाजिक जीवन की विशेषताओं पर जोर दिया जाता है। रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार तथ्यपरक स्पष्ट अवधारणाएं सामाजिक नृशास्त्र को एक विशिष्ट विज्ञान के रूप में विकसित करने में सहायता देती हैं। साथ ही ये सिंक्रानिक और डायक्रानिक व्याख्या के आधार पर सामाजिक जीवन को समझने में मदद देती हैं। इस संदर्भ में सामाजिक संरचना की अवधारणा महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके बारे में अगले अनुभाग में चर्चा की जा रही है।

 सामाजिक संरचना और सामाजिक संगठन
रैडक्लिफ-ब्राउन (1958ः68) का कहना है कि सामाजिक संरचना की अवधारणा से हमें एक बड़ी समग्रता के विभिन्न भागों की व्यवस्था तथा उनके आपसी संबंधों का बोध होता है। यदि मनुष्य शरीर की संरचना देखी जाये तो पहली नजर में मनुष्य शरीर विभिन्न उत्तक (tissues) और अंगों (organs) का योग प्रतीत होता है। यदि और गहराई से देखा जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि यह कोशाणुओं (cells) और तरल पदार्थों (fluid) की एक व्यवस्था है। इसी तरह यदि सामाजिक संरचना को देखें तो स्पष्ट है कि इसके मूल तत्व हैं सामाजिक जीवन में लिप्त सारे व्यक्ति। एक दूसरे से संबद्ध व्यक्तियों की व्यवस्था ही सामाजिक संरचना है। उदाहरण के लिए भारतीय सामाजिक जीवन की व्यवस्था प्रायरू विभिन्न जातियों के रूप में पाई जाती है। अतः जाति-व्यवस्था को भारतीय सामाजिक जीवन की संरचनात्मक विशेषता कहा जा सकता है।

इसी तरह एक परिवार की संरचना का बोध परिवार के बच्चों, माता-पिता, दादा-दादी आदि के बीच परस्पर संबंधों से होता है। रैडक्लिफ-ब्राउन के लिए संरचना एक अमूर्त कल्पना न होकर एक आनुभाविक तथ्य है। सामाजिक संरचना की अवधारणा का प्रयोग विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न तरीकों से किया जाता है। कोष्ठक 24.1 में आपको इस संबंध में और अधिक जानकरी दी गई है।

कोष्ठक 24.1ः सामाजिक संरचना की अवधारणा
द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत वाले दशक के दौरान सामाजिक नशास्त्र में सामाजिक संरचना की अवधारणा बहुत लोकप्रिय हो गई थी। यों तो इस अवधारणा का इतिहास काफी पुराना है तथा इसका प्रयोग विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग ढंग से किया है। यहां इसके तीन अर्थों की चर्चा की जा रही है।
प) अंग्रेजी भाषा में ‘संरचना‘ शब्द का अर्थ भवन निर्माण से है। प्रारंभिक मार्क्सवादी साहित्य में संरचना की अवधारणा का प्रयोग इमारत बनाने के रूप में ही किया गया है। मार्क्स ने उत्पादन के संबंधों को आर्थिक संरचना का तत्व बताया था। मार्क्स एवं एंजल्स दोनों ही विकासवादी विद्वान मॉर्गन की पुस्तक सिस्टम्स ऑफ कॉन्सन्गुइनिटि एण्ड अफिनिटि से बहुत प्रभावित थे और यह पुस्तक आज भी सामाजिक संरचना का पहला समाजशास्त्रीय अध्ययन माना जाता है।
पप) सोलहवीं सदी तक संरचना शब्द का प्रयोग शरीर विज्ञान (ंदंजवउल) में किया जाने लगा था। हर्बर्ट स्पेंसर के विचार में समाज को एक शरीर की उपमा से समझा जा सकता है और स्पेंसर को ही संरचना तथा प्रकार्य जैसे शब्दों को समाजशास्त्र में लाने का श्रेय है। यही उपमा हमें दर्खाइम के लेखन में भी मिलती है। दर्खाइम से रैडक्लिफ-ब्राउन ने अनेक विचार लिए थे और यह विचार भी उसने वहीं से लिया। रैडक्लिफ-ब्राउन का अनुसरण करते हुए इवंस प्रिचर्ड, फोर्टीस एवं फोर्ड ने समाज के कुछ पक्षों पर विशेष ध्यान दिया जैसे राजनीतिक संरचना, नातेदारी की संरचना आदि।
पपप) फ्रेंच संरचनावादी लेवि-स्ट्रॉस के लेखन में हमें संरचना की अवधारणा का एक अन्य आयाम देखने को मिलता है। उसने संरचना का अपना बोध भाषा-शास्त्र से लिया है एवं उसके लिए संरचना की अवधारणा एक अमूर्त एवं विश्लेषणीय मॉडल है जिसकी तुलना में आज विद्यमान सामाजिक व्यवस्थाओं को देखा जा सकता है। इस प्रकार की तुलना से कुछ नियमितताएं अथवा निश्चित विन्यास परिलक्षित होते हैं जिनकी व्याख्या समाजशास्त्री द्वारा की जाती है।

प्रश्न यह उठता है कि सामाजिक जीवन की संरचनात्मक विशेषताओं का कैसे पता लगाया जाये? रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार हर प्रकार के सामाजिक समुदायों को खोज कर उनकी संरचना का परीक्षण करना जरूरी है। इन समुदायों के अंदर लोग– वर्गों, श्रेणियों, जातियों आदि में विभाजित होते हैं। रैडक्लिफ-ब्राउन के मतानुसार सबसे महत्वूपर्ण संबंध एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच का युग्मीय (कलंकपब) संबंध हैं, जैसे–मालिक-नौकर, मामा-भांजे के संबंध। सामाजिक संरचना का स्पष्ट बोध तभी होता है जब व्यक्तियों या समूहों के बीच अंतःसंबंधों को देखा जाये। सामाजिक संरचना की अवधारणा पर प्रथम दृष्टि डाल कर आइए अब यह देखें कि रैडक्लिफ-ब्राउन का सामाजिक संगठन से क्या तात्पर्य है। अभी हमने देखा संरचना का अर्थ व्यक्तियों के बीच स्थापित व्यवस्था है। संगठन का तात्पर्य गतिविधियों (ंबजपअपजपमे) की व्यवस्था से है। उदाहरणतः आपने इस खंड को पढ़ने के लिए अपनी गतिविधियां संगठित की होंगी। जैसे कि पहले किसी विशेष भाग को पढ़ना फिर प्रश्नों के उत्तर ढूंढना, जहां आवश्यक हो शब्दावली को देखना आदि। यह व्यक्तिगत स्तर पर गतिविधियों को संगठित करना दिखाता है। इसी प्रकार रैडक्लिफ-ब्राउन (1958ः 169) के अनुसार सामाजिक संगठन “दो या दो से अधिक व्यक्तियों की क्रियाओं की वह व्यवस्था है जिससे सामूहिक क्रियाएं संभव होती है‘‘। उदाहरण के लिए क्रिकेट टीम में बल्लेबाजों, गेंदबाजों, खेल के मैदान में दौड़ने वालों और विकेट-कीपर की सम्मिलित क्रियाओं से ही खेल संभव होता है।

सामाजिक संरचना और संगठन की अवधारणाएं स्पष्ट करने के लिए रैडक्लिफ-ब्राउन ने आधुनिक सेना का उदाहरण दिया है। सामाजिक संरचना में सबसे पहले व्यक्तियों को समूहों में विभाजित किया जाता है जैसे कि सेना में ‘डिवीजन‘, ‘रेजीमेंट‘, ‘कम्पनी‘ आदि समूह होते हैं। इन समूहों की अपनी आंतरिक व्यवस्था होती है, जैसे सेना में ‘रैंक‘ या पद, के अनुसार ‘कॉर्पोरल‘, ‘कर्नल‘, ‘ब्रिगेडियर‘ आदि। सेना का संगठन उसके विभिन्न कार्यों के विभाजन के माध्यम से देखा जा सकता है। इनमें से कुछ कार्य हैं देश की सीमाओं पर तैनात रहना, राष्ट्रीय संकट में सरकार की सहायता करना आदि। इस बिंदु पर सोचिये और करिये 1 को पूरा कीजिए।

सोचिये और करिये 1
निम्नलिखित में से किसी एक की संरचना और संगठन के विषय में दो पृष्ठ का लेख लिखें। प) अस्पताल पप) ग्राम पंचायत पपप) नगर पालिका । यदि संभव हो तो अपने लेख की तुलना अध्ययन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों के लेखों से करें।

सामाजिक संरचना और सामाजिक संस्थाएं
जैसा कि आपको स्पष्ट हो चुका है, सामाजिक संबंध ही सामाजिक संरचना का आधार है। सामाजिक संबंध मूलतः इस अपेक्षा पर आधारित है कि व्यक्ति कुछ प्रतिमानों या नियमों का पालन करेंगे। समाज द्वारा माने गये नियम और तरीकों की प्रणालियों को संस्थाश् कहा जाता है। ये संस्थाएं सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबद्ध है। उदाहरण के तौर पर समाज की परिवार संबद्ध संस्थाएं कुछ विशिष्ट तौर तरीकों को सामने रखती हैं जिनको मानना परिवार के सदस्यों के लिये अनिवार्य है, जैसे हमारे समाज में यह अपेक्षित है कि बच्चे माँ-बाप का आदर करें, दूसरी ओर बच्चों और बूढ़ों का पालन-पोषण माँ-बाप की जिम्मेदारी है।

रैडक्लिफ-ब्राउन (1958ः 175) के अनुसार संस्थाएं “व्यक्ति के और उसके प्रति दूसरों के अपेक्षित बर्ताव को परिभाषित करती है‘‘ लेकिन कई बार लोग इन नियमों का उल्लंघन भी करते हैं। इससे निपटने के लिये अनेक प्रतिबंध (ेंदबजपवदे) होते है। रैडक्लिफ-ब्राउन मानता है कि सामाजिक संरचना का वर्णन उन संस्थाओं के संदर्भ में करना होगा जो व्यक्तियों और समूहों के संबंधों को नियमित करती हैं। रैडक्लिफ-ब्राउन (1958ः 175) कहता है कि ष्क्षेत्र विशेष के सामाजिक जीवन की संरचनात्मक विशेषताएं संस्थागत संबंधों की व्यवस्था में दृष्टिगत होती है। यह व्यवस्था व्यक्तियों द्वारा किए कार्यों तथा अंतः कार्यों में निहित होती है एवं इन्हीं से सामाजिक जीवन की समग्रता का आभास होता है।

 संरचनात्मक निरंतरता (structural continuity) और संरचनात्मक रूप (structural form)
रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार सामाजिक संरचना के निर्माण में व्यक्तियों तथा उनके बीच संबंधों का हाथ होता है। तो क्या यह समझा जा सकता है कि व्यक्ति विशेष की मृत्यु के साथ ‘संरचना‘ भी नष्ट हो जाती है? नहीं, ऐसा नहीं होता है। व्यक्ति विशेष पैदा होते हैं और मर जाते हैं परंतु सामाजिक संरचना बनी रहती है। सामाजिक समूहों, वर्गों और जातियों के सदस्य सदैव बदलते रहते हैं। जहाँ एक ओर कुछ सदस्यों की मृत्यु हो जाती है तो वहीं नये सदस्य जन्म भी लेते हैं। उदाहरण के तोर पर लोक सभा के कई सदस्य मरते है या इस्तीफा देते हैं या फिर अगला चुनाव हार जाते हैं, लेकिन शीघ्र ही नये सदस्य उनकी जगह ले लेते हैं। जनजातियों में मुखिया की मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी उसकी जगह लेता है।

इस संदर्भ में यह स्पष्ट करना ठीक रहेगा कि रैडक्लिफ-ब्राउन सामाजिक संरचना और संरचनात्मक रूप के बीच अंतर देखता है। सामाजिक संरचना में हमेशा अदल बदल की स्थिति बनी रहती है। जन्म और मृत्यु हों के सदस्य बदलते रहते हैं। रैडक्लिफ-ब्राउन मानता है कि सामाजिक संरचना में गतिमानता होते हुए भी समाज के संरचनात्मक रूप में काफी स्थायित्व होता है। समाज का संरचनात्मक रूप समाज के माने हुए तौर तरीकों और नियमों में प्रतिबिंबित होता है। व्यक्ति आते हैं और चले जाते हैं परंतु ये तौर तरीके कायम रहते हैं। संरचनात्मक रूप की स्थिरता उसके विभिन्न अंगों के आपस में सुव्यवस्थित रूप से जुड़े होने पर निर्भर करती है। समाज के कई अंग हैं उदाहरणतः परिवार, शिक्षा व्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था आदि। इन अंगों के विशिष्ट प्रकार्यों से समाज का संरचनात्मक स्थायी रूप बना रहता है। उदाहरण के लिये, परिवार का विशिष्ट कार्य है बच्चों का पालन पोषण। शैक्षिक संस्थाएं प्रशिक्षण प्रदान करती हैं, राजनैतिक व्यवस्था सरकार चलाती है। इन प्रकार्यों के संबंध में रैडक्लिफ-ब्राउन के विचार अगली इकाई में विस्तृत रूप से प्रस्तुत किये गये हैं। संक्षेप में ‘सामाजिक संरचना‘ रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा विकसित एक महत्वपूर्ण सामाजिक नृशास्त्रीय अवधारणा है। इस अवधारणा से अनुभवसिद्ध तथ्यों के आधार पर समाज के सदस्यों के पारस्परिक संबंध और उनके गठन का अध्ययन किया जा सकता है।

यहाँ समाज में पाए जाने वाले संगठन की चर्चा आवश्यक है। दूसरे शब्दों में लोग अपने कार्य-कलापों को कैसे संगठित करते हैं। सामाजिक संरचना के अध्ययन में सामाजिक संस्थाओं को लिया जाता है। ये समाज द्वारा माने गये नियमों और तौर तरीकों की परिभाषा देती है। सामाजिक संरचना में सदैव गतिमानता बनी रहती है, परंतु जैसा हमने ऊपर देखा संरचनात्मक रूप में काफी हद तक स्थायित्व बना रहता है। यह स्थायित्व तब तक बना रहता है जब तक समाज के विभिन्न अंग अपने-अपने प्रकार्य, प्रभावशाली रूप से करते रहते हैं।

सामाजिक संरचना के संबंध में हमारी अब तक की चर्चा काफी अमूर्त (abstract) रही है। इन विचारों को उदाहरण द्वारा अधिक स्पष्ट किया जा सकता है। रैडक्लिफ-ब्राउन ने क्षेत्रीय अध्ययन के लिये विश्व के अनेक भागों की यात्रा की जैसे कि अंडमान द्वीपसमूह, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया। रैडक्लिफ-ब्राउन ने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की जनजातियों की संरचनात्मक व्यवस्था का अध्ययन किया था। अब उसकी चर्चा की जायेगी। इससे साफ दिखाई देगा कि किस प्रकार सामाजिक संबंध सामाजिक संरचना को रूप देते हैं। इसके पहले हम पश्चिमी आस्ट्रेलिया की जनजातियों की सामाजिक संरचना पर रैडक्लिफ-ब्राउन के विचार पढ़कर सामाजिक संरचना की अवधारणा को पूरी तरह से समझें। आपको बहुत संक्षेप में, आइए, यह बात दें कि स्वयं रैडक्लिफ-ब्राउन भी अपने लेखन में कभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर पाया कि उसके विचार में ‘सामाजिक संरचना‘ तथा ‘संरचनात्मक रूप‘ में आखिर अंतर क्या है। बहुधा तो ऐसा ही लगता है कि उसके लिए समाज के संरचनात्मक रूप तथा सामाजिक संगठन एक ही अवधारणाएं है। यही कारण है कि हमने संरचनात्मक रूप की विशेष चर्चा न कर अब एक उदाहरण के माध्यम से रैडक्लिफ-ब्राउन की सामाजिक संरचना की अवधारणा को समझाने का निश्चय किया है। चर्चा के उपरोक्त बिंदुओं को आत्मसात करने हेतु बोध प्रश्न 2 को पूरा करें।

बोध प्रश्न 2
प) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पाँच पंक्तियों में लिखें ।
क) ‘सामाजिक संरचना‘ और ‘सामाजिक संगठन‘ से रैडक्लिफ-ब्राउन का क्या तात्पर्य है?
ख) ‘सामाजिक संस्थाएं‘ क्या हैं? उदाहरण सहित उत्तर दें।
पप) निम्नलिखित वाक्यों में सही या गलत में किसी एक कोष्ठक को चुनें।
क) लोग संस्थाओं का उल्लंघन कभी नहीं करते हैं। सही/गलत
ख) सामाजिक संरचना स्थिर होती है जबतिक संरचनात्मक रूप अस्थिर होता है। सही/गलत
ग) रैडक्लिफ-ब्राउन का मानना है कि सामाजिक नृशास्त्र स्पष्ट अवधारणाओं को विकसित करके ही एक विज्ञान बन सकता है। सही/गलत

बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) क) रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार सामाजिक संरचना समाज के व्यक्तियों के अंतर्संबंधों की रचना है। सामाजिक संगठन से उसका मतलब है वे कार्य या गतिविधियाँ जो समूह विशेष करता है और उनको गठित करने का ढंग भी इसी में शामिल है।
ख) सामाजिक संस्थाएं पारस्परिक संबंधों को मानने के लिए समाज द्वारा दिये गये तौर-तरीकों का योग है। किसी संबंध को बनाने में व्यक्तियों की आपसी अपेक्षाएं भी इसमें शामिल होती हैं। उदाहरण के तौर पर स्कूल की कक्षा में यह अपेक्षित है कि शिक्षक पाठ पढ़ाये और विद्यार्थी ध्यान दें।
पप) क) गलत
ख) गलत
ग) सही

 पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में संरचनात्मक व्यवस्था
इस भाग में रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा दिये गये इन जनजातियों की सामाजिक संरचना के आधार का उललेख किया जा रहा है।

 क्षेत्रीय आधार
रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार भू-भाग का क्षेत्रीय या प्रांतीय विभाजन ही पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के जनजातीय समाज की संरचना का प्रमुख आधार था। जन्म से मृत्यु तक प्रत्येक पुरुष किसी एक विशिष्ट क्षेत्र का वासी माना जाता था। उसके बेटे और पोते इस क्षेत्रीय पहचान के उत्तराधिकारी बनते थे। एक विशिष्ट क्षेत्र विशेष से संबंधित पुरुषों के योग से ‘कुल‘ (clan) बनता था जो सामाजिक संरचना में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता था। दूसरे, महिलाओं का क्या स्थान था? लड़की अपने पिता के कुल की सदस्या मानी जाती थी। क्योंकि कुल से बाहर विवाह होने का कठोर नियम था। अतः लड़की को अपने कुल को छोड़कर दूसरे कुल में पुरुष से विवाह करना पड़ता था।

कुल के पुरुष, उनकी पत्नियाँ और बच्चे मिलकर जिस समूह का निर्माण करते थे उसे दल या झुंड (horde) कहते थे। हर दल का अपना विशिष्ट क्षेत्र होता था। आर्थिक और राजनैतिक स्तरों पर दल एक आत्मनिर्भर इकाई थी। इसमें बुजुर्गों की सत्ता होती थी। हर दल की जनसंख्या सीमित हुआ करती थी। इसमें पचास से ज्यादा सदस्य नहीं होते थे। हर दल एकल (nuclear) परिवारों में विभाजित था। हर परिवार का अपना घर और चूल्हा होता था। परिवार पुरुष प्रधान थाय पुरुष की मृत्यु के बाद परिवार बिखर जाता था। जहाँ एक ओर परिवार एक अस्थायी इकाई था वहीं दूसरी ओर कुल एक स्थायी इकाई था। दल अस्थिर स्थिति में रहता था। पुरुष इसके केन्द्र थे, परंतु विवाह के माध्यम से स्त्रियाँ इसमें आती थीं और इससे बाहर जाती थीं। संक्षेप में, किसी विशिष्ट क्षेत्र या प्रान्त के पुरुषों से ‘कुल‘ संगठित होता था। कुल के पुरुषों, उनकी पत्नियों और बच्चों से ‘दल‘ निर्मित होता था।

 जनजातियाँ
समान रीति-रिवाज और भाषा वाले कुलों से एक जनजाति बनती थी। रैडक्लिफ-ब्राउन इस बात पर ध्यान आकृष्ट करता है कि कुछ अन्य क्षेत्रों से विपरीत, ये जनजातियां राजनैतिक रूप से एक नहीं थी, न ही वे किसी सामूहिक कार्य में इकट्ठे होकर शामिल होती थीं। नातेदारी के माध्यम से ही विभिन्न जनजातियाँ और दल एक दूसरे से जुड़े थे। रैडक्लिफ-ब्राउन के शब्दों में नातेदारी की सरंचना से विभिन्न व्यक्तियों के बीच युग्मीय (कलंकपब) संबंध स्थापित होते थे। अपनी माँ के माध्यम से व्यक्ति विशेष का माँ के कुल और उस कुल के सदस्यों से जुड़ाव रहता था। वह कभी भी उनके क्षेत्र में प्रवेश कर दल के साथ रह सकता था। इसके बावजूद कि वह न ही उस कुल का सदस्य था और न ही कभी बन सकता था वह सदा माँ के दल के क्षेत्र में जाने के लिए स्वतंत्र था। इस प्रकार एक कुल विशेष के विभिन्न व्यक्ति दूसरे कुलों से जुड़े रहते थे। इसी तरह हर व्यक्ति पुरुषवाचक अपनी नानी, अपनी पत्नी के कुलों से भी जुड़ा होता था। साथ ही वह उन कुलों से भी संबद्ध था जिनमें उसकी बहनों का विवाह होता था। इस प्रकार नातेदारी की संरचना के अंतर्गत नाना प्रकार के और बहुविधीय सामाजिक संबंध शामिल थे।

 ‘मोइटी‘ (moieties)
इस अनुभाग को धीरे-धीरे और ध्यानपूर्वक पढ़ें, क्योंकि इसमें अनेक अपरिचित और जटिल बातें हैं। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया जनजातीय समाज दो ‘मोइटी‘ में विभाजित था। समाज जिन दो बड़े समूहों में बाँटा जाता है उन्हें ‘मोइटी‘ कहते हैं। प्रत्येक जनजाति दो में से किसी एक मोइटी में शामिल होती है। आइए, यहाँ हम इन मोइटियों को प् और प्प् कहें। दूसरी ओर, समाज का विभाजन दो एकांतरित पीढ़ियों (alternating generations) के संदर्भ में भी होता है। आइए, इन एकांतरित पीढ़ियों को ‘क‘ और ‘ख‘ कहें। यदि आप के पिता ‘क‘ पीढ़ी के सदस्य हैं, तो आपकी ‘ख‘ पीढ़ी होगी और आपके बच्चे ‘क‘ में आएंगे। इस तरह हर कुल में दोनों पीढ़ियों के व्यक्ति पाए जाते हैं।

इस प्रकार, समाज चार भागों (sections) में बाँटा जाता हैय ये हैं प् क, ख, प्प् क और प्प् ख। इन भागों के कुछ नामों का उल्लेख रैडक्लिफ-ब्राउन ने किया हैः उदाहरण के लिश्ये ‘बनाकाश्य ‘बुरोंग‘, ‘कारिमेरा‘ और ‘पाल्डजेरी‘।

जनजातीय नियमों के अनुसार विवाह विपरीत मोइटी और समान पीढ़ी के व्यक्तियों के बीच ही हो सकता है। इस प्रकार प् ख के पुरुष का विवाह प्प् ख की महिला से ही हो सकता है। उदाहरण के लिये श्करीराश् जनजाति में ‘बनाका‘ भाग के पुरुष का विवाह ‘बुरोंग‘ स्त्री से ही हो सकता है।

उपरोक्त विवरण को अधिक अच्छी तरह से समझने व आत्मसात करने हेतु सोचिये और करिये 2 को पूरा करें।

सोचिये और करिये 2
किन्हीं पाँच शादी-शुदा रिश्तेदारों का चयन करें (जैसे कि माँ, भाई/बहन, मामा का बेटा/बेटी, चाचा का बेटा/बेटी आदि।) इनके जीवन-साथी कैसे चुने गये थे? क्या दोनों परिवारों में पहले से ही कोई नाता रहा है? अपने जाँच-परिणाम लिखें और यदि संभव हो तो अपने अध्ययन केन्द्र के अन्य विद्यार्थियों के जाँच परिणामों से इनकी तुलना करें।

 टोटम समूह
सामाजिक संरचना का एक और आधार टोटम है। आपने इस पाठ्यक्रम के खंड 3 और खंड 5 में पढ़ा है कि किस प्रकार टोटम वस्तु (totemic object) को कुल के सारे सदस्यों का पूर्वज माना जाता है। प्रत्येक कुल के अपने पवित्र टोटम-केन्द्र, मिथक, अनुष्ठान आदि होते हैं। टोटम की मान्यता से समूह को एकता और स्थायित्व मिलता है। रैडक्लिफ-ब्राउन ने यह दिखाया है कि किस प्रकार टोटम से जुड़े समारोहों के दौरान, जैसे कि लड़कों का दीक्षा समारोह, कई कुल एक साथ मिलकर काम करते है। इन सहकारी कुलों का एक होना उनके समाज की धार्मिक-संरचना की पहचान है। समारोहों में सहकारिता के फलस्वरूप राजनैतिक एकता भी उत्पन्न होती है, क्योंकि ये कुल अपने मतभेद भुलाकार आपसी विश्वास और मित्रता के आधार पर ही एक दूसरे को सहयोग देते हैं।

इस विवरण से क्या निष्कर्ष निकलता है? स्पष्ट है कि रैडक्लिफ-ब्राउन के इस संरचनात्मक विवरण से अनेक महत्वपूर्ण मुद्दे हमारे सामने आ जाते हैं। जैसे, संरचनात्मक विवरण के दौरान सामाजिक समूहों (जैसे कि परिवार, कुल, दल) को समझने के साथ-साथ पारस्परिक सामाजिक संबंधों पर ध्यान देना आवश्यक होता है। ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समाज में नातेदारी व्यवस्था के अपने अध्ययन में रैडक्लिफ-ब्राउन ने यही किया है। यद्यपि रेडक्लिफ-ब्राउन द्वारा विकसित सामाजिक संरचना की अवधारणा की आलोचना हुई है कि यह अवधारणा बहुत सामान्य (general) है। परंतु रैडक्लिफ-ब्राउन ने अपने अध्ययन में इसका सफल उपयोग किया है। उसने सामाजिक जीवन के रूप (form) पर ध्यान केन्द्रित किया और देखा कि सामाजिक जीवन कैसे संगठित होता है। इस तरह उसने मलिनॉस्की द्वारा किये गये अत्यंत व्यक्तिपरक विवरण को नई दिशा दी और सामाजिक पक्ष की व्याख्या पर अधिक जोर दिया।

यह बात सही है कि इन दोनों विद्वानों में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा थी फिर भी समाजशास्त्र में उनके योगदान एक दूसरे से विपरीत नहीं बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं।

अब समय है बोध प्रश्न 3 को हल करने का।

बोध प्रश्न 3
प) निम्नलिखित के सही मेल बनाइए।
क) बुरोंग प) भाषा पर आधारित समूह
ख) जनजाति पप) आर्थिक और राजनैतिक आत्मनिर्भरता
ग) कुल पपप) क्षेत्रीय पहचान
घ) दल पअ) करीरा जनजाति

बोध प्रश्न 3 उत्तर
क) पअ)
ख) प)
ग) पपप)
घ) पप)