sliding filament theory of muscle contraction in hindi , अपसर्पी सूत्र सिद्धांत क्या है , कार्य कैसे करता है

जाने sliding filament theory of muscle contraction in hindi , अपसर्पी सूत्र सिद्धांत क्या है , कार्य कैसे करता है ?

पेशीय संकुचन की कार्यिकी (Physiology of muscle contraction)

पेशीय संकुचन के समय रासायिनक ऊर्जा (chemiacal energy) का परिवर्तन यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) के रूप में होता है। पेशीय संकुचन की कार्यिकी को निम्न पदों द्वारा समझाया जा सकात है-

(1) पेशी का उत्तेजन (Excitation of muscle)

पेशी में संकुचन की क्रिया तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित रहती हैं प्रत्येक पेशी प्रेरक तंत्रिका (motor nerve) से सम्बन्धित रहती है। साधारणतया शरीर में उपस्थित कंकाल पेशियाँ प्रेरक तंत्रिकाओं द्वारा आने वाले तंत्रिका आवेगों की अनुक्रिया (innervation) कहते हैं। कंकाल पेशी में प्रवेश करते समय प्रेरक तंत्रिका का एक्सॉन (axon) अनेक शाखाओं में विभाजित हो जाता है। प्रकार प्राप्त प्रत्येक शाखा सार्कोलेमा ( sarcolemma) पर एक चपटी पेशीय रचना में समाप्त हो जाती है जिसे प्रेरक अन्त्य पट्टिका (motor end plate) कहा जाता है। इस प्रकार प्रेरक तंत्रिका के अंतिम सिरे एवं प्रेरक अन्त्य पट्टिका के बीच सम्बन्ध को तंत्रिका-पेशीय संधि (neuromuscular junction) या तंत्रिका प्रभावी सन्धि (neuro effector junction) कहा जाता है।

प्रत्येक तंत्रिका शाखा का अन्तिम सिरा फूला हुआ होता है जिसे आधार पद (sole foot) कहते हैं। इसके चारों ओर सार्कोलेमा अनेक अन्तर्वलन (infolding) बनाती है। जो साइनेप्टिक गटर (synapti gutter) कहलाता है। यह स्थान लगभग 200-300A चौड़ा होता है। प्रत्येक आधार पाद में अनेक उत्तेजक प्रेषी (transmitter) उपस्थित रहते हैं जो एसीटाइल कोलीन (acetyle choline) नामक रसायन के बने होते हैं। ये प्रेषी आशय आधार पाद में उपस्थित अनेक माइटोकॉण्ड्रिया द्वारा संश्लेषित किये जाते हैं।

पूर्व में वर्णित तंत्रिका तंतु की तरह विरामावस्था (resting stage) में पेशी-तंतु अपनी सार्कोलेमा पर विद्युत ध्रुवित (electrically polarised) रहता है। इसकी आन्तरिक सतह बाह्य सतह की अपेक्षा ऋण-आवेशित (negatively 7 charged) रहती है। दोनों के बीच लगभग 0.1 वोल्ट का विभावान्तर (potential difference) होता है। तंत्रिका आवेग के पहुँचने पर प्रेरक तंत्रिका का अंतिम सिर विध्रवण (depolarization) की क्रिया दर्शाता है। जैसा कि तंत्रिका आवेग की कार्यिकी में समझाया गया है कि विध्रुवण की स्थिति में एक्सॉन की आन्तरिक सतह – धन-आवेशिक होती है तथा इस पर कला-विभव (membrane potential ) + 30 mV होता है। इस कला विभव के प्रभाव से आधार- पाद से अनेक एसीटाइल- कोलीन के आशय मुक्त होकर साइनेष्टिक विदन में आ जाते हैं। ये एसीटाइल- कोलीन आशय सार्कोलेमा पर उपस्थित अर्न्तवलन, साइनेष्टिक गटर द्वारा ग्रहर कर लिये जाते हैं। एसीटाइल कोलीन के आशय सार्कोलेमा को धन आयनों के प्रति पारगम्य बना देते हैं जिससे यह तंत्रिका तंतु की तरह विधुवित ( depolarized) हो जाती है। एक समय में आधार-पाद में लगभग 50-60 एसीटाइल कोलीन के आशय मुक्त हो जाते हैं। लगभग 2 मिली सैकण्ड में ही ये आशय सार्कोलेमा द्वारा ग्रहणं कर लिये जाते हैं। सार्कोलेमा के विधुवित होने के तुरन्त बाद ही ये आशय कोलीलएस्टारेज ( cholinesterase) नामक एंजाइम द्वारा नष्ट कर दिये जाते हैं। एसीटाइलकोलीन आशयों के नष्ट होने की क्रिया भी कुछ मिली सैकण्ड में पूर्ण हो जाती है।

यदि तंत्रिका तंतु को 150 बार प्रति सैकण्ड की दर कई मिनटों तक लम्बे समय तक उत्तेजित किया जाये तो प्रत्येक तंत्रिका आवेग के पश्चात् एसीटाइल कोजलीन के आशयों के संख्या कम होने लगती है तथा अन्त में आवेग पेशी तक संचरित नहीं होता है। इस स्थिति में पेशीय संकुचन की क्रिया अवरुद्ध हो जाती है जिससे तंत्रिका पेशी संधि में श्रांति (fatigue) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

(2) उत्तेजन-संकुचन युग्मन (Excitation-contraction coupling)

सामान्यतया ऐसा माना जाता है कि पेशी तंतु में होने वाली संकुचन की क्रिया इसमें उपस्थित सभी पेशी तंतुओं (myofibrils) के सामूहिक क्रियाशीलता के कारण सम्पन्न होती है। सभी प्रकार की पेशियों में कंकालीय पेशी-तंतु का व्यास अपेक्षाकृत अधिक होता है इस कारण यह कह पाना कठिन है कि तंत्रिका आवेग का सक्रिय विभव नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि पेशी में गहराई पर स्थित तंतुओं पर विद्युत धारा देर से पहुँचेगी तथा इसकी क्रियाशीलता भी कम हो जायेगी। पेशी तंतुओं की सामूहिक क्रियाशीलता एवं उत्तेजित का तेजी से फैलना पेशी तंतु के कोशिका द्रव्य में उपस्थित सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम तथा टी – तंत्र ( T-system) द्वारा संभव होता है।

‘टी-तंत्र’ पेशी तंतु में उपस्थित एक महत्त्वपूर्ण रचना है तो अनुप्रस्थ जालिका तंत्र (transerse tubular system) के नाम से जाना जाता है। यह तंत्र पेशी-द्रव्य जालिका अर्थात् साकप्लाज्मिक रेटीकुलम के साथ मिलकर पेशी संकुचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ‘टी – तंत्र’ पेशी तंतु के भीतर सार्कोलेमा के अर्ज्वलन (infolding) द्वारा बनता है। यह तंत्र बहुत की महीन अनुप्रस्थ (transverse) या अनुदैर्ध्य (longitudinal) नलिकाओं के रूप में ‘जेड रेखा’ (Z-line) के क्षेत्र पर सम्पूर्ण सार्कोप्लाज्म में संकुचनशील (contractile) पेशी तंतुओं (myofibrils) के रूप में फैला रहता है। सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम कोषों (sacs) एवं नलिकाओं (rublulse) के एक संगठित जाल की बनी होती है। नलिकाएँ पेशी – तंतुओं के समानान्तर व्यवस्थित रहती है। ये नलिकाएँ जेड-रेखा एवं एच-क्षेत्र में संयोजित होकर कोष बनाती है। अनुप्रस्थ नलिका तंत्र की नलिकाएँ सार्कोलेमा से लेकर सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम की सिस्टर्नी के बीच में होती हुई सार्कोप्लाज्म में खुलती है। इनका बाहर खुले वाला स्थान पास वाली विस्टर्नी के द्वार से मिलकर डायेड (diad) या ट्रायेड (triad) कहलाता है। इन संरचनाओं का पेशी संकुचन के समय विशेषकर उत्तेजन-संकुचन युग्मन (excitation contraction coupling) में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

तंत्रिका आवेग के तंत्रिका-पेशीय संधि पर पहुँचन पर सार्कोलेमा उत्तेजित हो जाती है। इस क्रिया के फलस्वरूप विभिन्न आयनों में उत्पन्न गतिशीलता के कारण सार्कोलो का विध्रुवीकरण (depolarization) हो जाता है। सार्कोलेमा का विध्रुवीकरण तंत्रिका के अन्तिम सिरे पर स्थित आधार पाद से बाहर निकले एसीटाइल कोलीन के सार्कोलेमा पर उपस्थित ग्राहीओ (receptors) के सम्पर्क में आने से होता है। विध्रुवीकरण ही यह तरंग (wave), सार्कोलेमा पर उपस्थित नलिकाओं के मुख्य द्वार से पेशियों के अंदर प्रवेश करती है। अनुप्रस्थ नलिकाओं एवं सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम में आपस में जुड़े रहने कारण तरंग साकप्लाज्मिक रेटीकुलम का भी विध्रुवीकरण कर देती है।

सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम में कैल्शियम आयनों (Ca2+) का संग्रह किया जाता है। सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम की झिल्ली के विध्रुवीकरण के फलस्वरूप ये कैल्शियम आयन बाहर निकाल जाते हैं। ये केल्शियम आयन सार्कोप्लाज्म में देखे जा सकते हैं। ये कैल्यिम आयन सार्कोप्लाज्म में, उपस्थित संकुचनशील सूत्रों (contractile filaments) का सक्रियण (activation) कहते हैं। इसके फलस्वरूप एक्टिन एवं मायोसिन तंतुओं के बीच अनुप्रस्थ सेतु (cross bridge) बनते हैं। पेशीय तंतुओं में संकुचन की क्रिया समाप्त हो जाने के पश्चात् कैल्शियम आयनों को पुनः सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम में वापस की क्रिया सान्द्रता प्रवणता (concentration gradient) के विपरीत होती है। अत: इसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

(3) अपसर्पी – सूत्र सिद्धान्त (Stiding – filament theory)

पेशीय संकुचन का अपसर्पी सूत्र सिद्धान्त (Sliding filament theory) या अन्तरांगुलन सिद्धान्त (interdigitation theory) स्वतंत्र रूप में ए.एफ. हक्सले एवं आर. नीडेरेंक (A.F. Huxley and R. Niederenke) तथा जेहेन्सन एवं ई हक्सले (J. Hanson and H. E. Huxley) ने 1958 में प्रस्तुत किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार पेशीय तंतुक में उपस्थित प्राथमिक एवं द्वितीय सूत्र एक दूसरे पर सर्पण (slids) करते हैं जिससे ऐच्छिक पेशियों की लम्बाई में परिवर्तन होता है।

 

चित्र 7.10 – पेशीय में – उत्तेजन-संकुचन युग्मन

ऐसी देखा गया है कि संकुचन एवं तननता (stretching) दोनों क्रियाओं के समय ए-पट्टी की लम्बाई में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है परन्तु आई पट्टी की लम्बाई पेशी की लम्बाई के साथ बदलती है। जैसा कि हम जानते हैं कि ए-पट्टी की लम्बाई मोटे सूत्रों की लम्बाई के बराबर होती है जिससे यह पता चलता है कि इन सूत्रों की लम्बाई भी स्थिर रहती है। इसी प्रकार एच-क्षेत्र (H-zone) की लम्बाई आई पट्टी की लम्बाई के साथ बढ़ती एवं घटती रहती है जिससे कारण एक एच-क्षेत्र के अन्त से दूसरे एच- क्षेत्र के प्रारम्भ की दूरी लगभग समान बनी रहती है। यह दूरी द्वितीय अथवा एक्टिन सूत्रों की लम्बाई के बराबर होती है जिससे यह पता चलता है कि संकुचन के समय इन सूत्रों (एक्टिन या पतले सूत्र ) की लम्बाई भी लगभग समान रहती है। इन प्रेक्षणों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है। कि जब पेशी की लम्बाई में परिवर्तन होता है तो सूत्रों की लम्बाई में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है परन्तु इन सूत्रों में परिवर्तन के दोनों समुच्चय (sets) एक दूसरे पर संर्पण (slide) की क्रिया को दर्शाते हैं। क्रिया को दर्शातें है। इस क्रिया में पहले सूत्र संकुचन के समय ए-टी में दूर तक गमन करने हैं तथा ये तननता (stretching) के समय इन पट्टियों से दूर तक बाहर आते हैं।

पेशीय संकुचन के समय अनुप्रस्थ सेतु (cross bridges) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा (सर्पण गति वास्तव में अनुप्रस्थ सेतुओं की क्रियाशीलता परिणाम होती है।

एच.ई.इक्सेल (H.E. Huxley) ने 1965 में यह बताया कि मायोसिन अणुओं के शीर्ष पर एंजाइम एवं एक्टिव- बन्धुता के क्रियाओं के गुण पाये जाते हैं तथा ये अनुप्रस्थ सेतुओं को एक्टिव से जोड़ने का कार्य करते हैं मायोसिन अणुओं का हमे गुण बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। क्योंकि इसमें अपसस सूत्र सिद्धान्त को आण्विक स्तर पर समझाने में मदद मिलती है। अपसर्पी तंत्र में एक्टिन एवं मायोसिन अणुओं के मध्य एक आपेक्षिक बल उत्पन्न होता है जिससे किसी तरह सर्पण हेतु एक उपयुक्त दिशा निर्धारित हो पाती है। संकुचन के समय पतले सूत्र ए-पट्टी में एक दूसरे की ओर गमन करते है। जिससे ए-पट्टी के आधे भाग में अनुप्रस्थ सेतु एक दिशा एक और उन्मुख होते हैं तथा शेष दूसरी दिशा की ओर। इस प्रकार एक्टिन एवं मायोसिन की क्रियाशीलता के समय उत्पन्न हुये बल की दिशा एक्टिल एवं मायोसिन अणओं के अभिविन्यास पर निर्भर करती है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के मध्यनन द्वारा एच.ई.हक्सेल (H.E.Huxley) ने 9165 में यह बताया कि पेशीय संकुचन के यम सूत्रों की दिशा परिवर्तन मायोसिन अणुओं के व्यवस्थापन पर आधारित होती जैसा कि चित्र 7.8 से पता चल रहा है, मायोसिन सूत्र में आधे अणुओं की दिशा एक ओर तथा शेष आधे अणुओं की

चित्र 7.11 पेशीय संकुचन

दूसरी ओर होती है। सामान्य संकुचन के समय सार्कोमियर की लम्बाई लगभग 20 प्रतिशत परिवर्तन देखा जाता है तथा ए-पट्टी के आधे भाग में पतले सूत्र । माइक्रोन के चौथाई हिस्सा करते हैं। इससे यह मालूम चलता है कि सम्पूर्ण क्रिया में अनुप्रस्थ-सेतु एक्टिन सूत्र से एक ही स्थान पर संलग्न नहीं रहते हैं। एच.ई. हक्सले (H. E. Huxley) के अनुसार सकुंचन के थोड़े समय में ही अनुप्रस्थ- सेतु एक्टिन सूत्र से एक स्थान पर संलग्न रहते हैं। ये सेतु कुछ समय पश्चात् इस स्थान से स्वतंत्र होकर नये स्थान पर संलग्न रहते हैं। ये सेतु कुछ समय पश्चात् इस स्थान से स्वतंत्र होकर नये स्थान से संलग्न हो जाते हैं। इसके अलावा प्रत्येक स्थान पर जहाँ-जहाँ एक्टिन एवं अनुप्रस्थ सेतु आपस में क्रिया करते हैं, वहाँ पर ATP का एक अणु टूटता है। इसे टूटने से दोनों प्रकार के सूत्रों के मध्य एक सर्पण बल (sliding force) उत्पन्न होता है ।

सुत्रों के सर्पण’ सिद्धान्त को विस्तार से निम्न दो मान्यताओं द्वारा समझाया जा सकता है — (1) डेवीस सिद्धान्त (Davis throy)

आर.ई.डेविस (R.E.Davis; 1963) के अनुसार मायोसिन सूत्र की किनारे की श्रृंखलायें इस सिद्धान्त में अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। इस प्रकार की प्रत्येक श्रृंखला ATP के रूप में समाप्त होती है। प्रत्येक श्रृंखला का आधार पर भाग ऋणावेशित होता है। यह संभवतया ग्लूटामिन अथवा एम्पार्टिक अम्ल पर उपस्थित –COO- के कारण होता है। दोनों सिरों पर ऋण आवेश के कारण अनुप्रस्थ से अवस्था में भी फैली हुई अवस्था में रहता है। इस अवस्था को चित्र 7.8 में दर्शाया गया है।

पेशीय क्रिया के समय सार्कोलेमा में विध्रुवण की क्रिया होती है जिसके फलस्वरूप साकप्लाज्मिक रेटीकुलम से पेशी द्रव्य में कैल्शियम आयनों का निष्कासन होता है। ये आयन अनुप्रस्थ सेतु के दूरस्थ सिरे एवं समीप के एक्टिन सूत्र के मध्य एक रासायनिक बन्ध (chemical bond) बनाते हैं। सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम से प्राप्त कैल्शियम आयन अनुप्रस्थ-सेतु के दूरस्थ ऋण 7.9 इससे सेतु के दोनों सिरों का प्रतिकर्षण समाप्त हो जाता है। प्रतिकर्षण के समाप्त होते ही सेतु ‘एक हेलिक्स के रूप में कुण्डलित होने लगता है। कुण्डलित होने के कारण यह आकार में छोटा “हो जाता है। इसके छोटा होने से न केवल एक्टिन सूत्र का खींचा जाता है बल्कि इसके दूरस्थ सिरे पर उपस्थित ATP अणु भी अनुप्रस्थ सेतु के आधार भाग की ओर गमन करने लगता है।

चित्र 7.12 – विराम अवस्था में अनुप्रस्थ सेतु

दूरस्थ सिरे पर उपस्थित ATP अणु समीपस्थ सिरे पर उपस्थित AT Pase एंजाइम के क्रियास्थल की ओर आता है वैसे ही यह ADP एवं अकार्बनिक फॉस्फेट (inorganic phosphate) में टूट जाता है। इसी के साथ इसका कैल्शियम – एक्टिन सम्मिश्र (calcium actin complex) मैं सम्बन्ध टूट जाता है।

इस प्रकार प्राप्त ADP पेशी द्रव्य में उपस्थित क्रिएटिन फॉस्फेट (creatine phosphate) द्वारा पुनः निर्माण हो जाता है तथा अनुप्रस्थ सेतु के दोनों सिरों के मध्य पुनः वैद्युत प्रतिकर्षण स्थातिप होता जाता है जिससे दोनों सिरों के मध्य प्रतिकर्षण होता है तथा अनुप्रस्थ सतु पुनः फैल जाते हैं। यह सम्पूर्ण क्रिया बार-बार दोराई जाती है जिससे अनुप्रस्थ सेतु बनते रहते है। एवं टूटते रहते हैं तथा एक्टिन एवं मायोसिन सूत्रों के मध्य सपर्ण की क्रिया जारी रहती है।

कैल्शियम आयनों की पेशी द्रव्य में उपस्थित शिथिलन क्रिया को प्रेरित करती है। जिससे कैल्शियम आयन पुनः सार्कोप्लाज्मिक रडीकुलम में चल जाते हैं। उन कैल्शियम आयन पूरी तरह से हट जाते हैं तो पेशी में संकुचन की क्रिया बन्द हो जाती है। इस प्रकार हक्सले द्वारा प्रस्तावित पेशी संकुचन में मॉडल को डेनीस ने आण्विक आधार दिया है।