कैल्शियम निष्कासन सिद्धांत क्या है calcium release theory in hindi ?
(2) कैल्शियम – निष्कासन सिद्धान्त (Calcium-release theory )
इस सिद्धान्त को सर्वप्रथम एलेक्जण्डर सेन्डों एवं अन्य सहयोगियों (Alexander shandow and associates) ने प्रतिपादित किया था। ये आयन पेशी-तंतुकों में वेद्युत उद्दीपन के प्रभाव द्वारा सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम द्वारा निष्कासित किये जाते हैं। इसी प्रकार पेशी के शिथिलन की क्रिया Ca2+ के सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम के द्वारा ग्रहण करने के फलस्वरूप होती है। (चित्र 7.11 ) । इस प्रकार संकुचन की क्रिया को नियमित करते हैं।
इस सिद्धान्त को प्रयोगिक तौर पर एशले (Ashley, 1967), वीनेडार्ड (Winegard, 1968) तथा ग्राहम होयले (Graham Huyle, 1970) ने समर्थन दिया है। ऐसा माना जाता है कि एक्टिव सूत्रों से संयुग्मित ट्रोपोनिन प्रोटीन कैल्शियम आयनों के बन्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विराम अवस्था में कैल्शियम आयनों की पेशी – द्रव्य में सान्द्रता 108 मोल से भी कम होती है। इस कारण ट्रोपोनिन एक्टिन एवं मायोसिन तंतुओं के मध्य क्रिया को रोकती है। परन्तु जब कैल्शियम आयनों की सान्द्रता पेशी-द्रव्य में बढ़ती है तो ये ट्रोपोनिन के साथ युग्मित हो जाते हैं। इसके कारण ट्रोपोनिन एवं मायोसिन तंतुओं को एक दूसरे पर सर्पण हेतु प्रेरित करती है।
चित्र 7.15 – ATPase एंजाइम की मायोसिन युग्मित ATP पर क्रिया
इस क्रिया से पेशी संकुचन होता है। शिथिलन के समय Ca2+ पेशी से पुनः सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम में लौट जाते हैं।
पेशीय क्रिया में कैल्शियम ऑयनों के प्रमुख रूप से दो स्त्रोत होते हैं। एक आन्तरिक कैल्शियम internal calcium) तथा दूसरा बाहरी कैल्शियम (external calcium) होता है। आन्तरिक कैल्शियम के संभावित स्त्रोत तंतु सतह की झिल्ली, विदर ( cleft), अर्न्तग्रहित नलिकायें (invaginated tubules), सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम एवं माइटोकॉण्ड्रिया होते हैं। इन सब सरंचनाओं में कैल्शियम ऑयनों की प्राप्ति की प्रमुख स्त्रोत सार्कोप्लाज्मिक रेटीकुलम है।
चित्र 7.16 – पेशीय क्रिया में कैल्शियम आयनों की भूमिका
आन्तरिक कैल्शियम ऑयनों का निष्कासन प्रारम्भिक उद्दीपन के कारण होता है। जिससे तंतु की झिल्ली विध्रुवण दर्शाती है। सार्कोनमा के विध्रुवण के फलस्वरूप अनुप्रस्थ नलिकाओं पर भी आवेश पहुँच जाते हैं। हीमो गोंजेल्ज सेरेटर (Hygo Gonzalez Serrators) के अनुसार मेंढक की पेशीय कोशिकाओं में आवेग के संवहन की दर लगभग 8 से.मी./सैकण्ड होती है। पेशीय शिथिलन की क्रिया सतही झिल्ली के पुनः अपनी स्थिति में लौट आने के कारण होती है। विध्रुवण के तुरन्त पश्चात् की पुन: ध्रुवीकरण (repolarization) की क्रिया होती है जिससे कैल्शियम आयनों की उद्दीपन निष्क्रिय हो जाता है। इससे कैल्शियमों आयनों के निष्कासन की क्रिया बन्द हो जाती है। दूसरे शब्दों में शिथिलन की क्रिया रेटीकुलम में कैल्शिमय आयनों के पुनः लौट जाने के कारण होती है। यद्यपि संकुचन के अपनी चरम सीमा पर होने पर ही स्वतंत्र निष्कासन का की सान्द्रता कम होना प्रारम्भ हो जाती है। इस प्रकार पेशीय संकुचन की क्रिया का प्रारम्भ कैल्शियम आयनों को निष्कासन इन आयनों को पुनः लौट जाने से होता है।
संकुचन के समय होने वाले रासायनिक परिवर्तन (Chemical changes during contraction)
पेशीय संकुचन के समय होने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं को लोएबी एवं सीयकेवीट्ज Loewy and Siekevitz) ने 1906 में वर्णित किया गया है। पेशीय संकुचन के लिये ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत ATP उपस्थित होता है। संकुचन के लिये आवश्यक ATP की मात्रा कोशिकाओं में भिन्न
विधियों द्वारा प्राप्त की जा जाती है।
(1) भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण (Oxidation of food stuffs)
भोज्य पदार्थों का अन्तिम स्त्रोत भोजन की ऑक्सीकरण होता है। विराम पेशी एवं उच्च ऑक्सीकरण धारिता वाली पेशियों में अधिकांश ऊर्जा की प्राप्ति सामान्यतया वसीय अम्लों (fatty acids) एवं एसीटोएसीटेट (acctoacctate) के ऑक्सीकरण द्वारा तथा कुछ मात्रा में ग्लूकोस क ऑक्सीकरण से होता है।
(2) पेशीय फॉस्फोजन्स ( Muscle phosphogens) जैसा कि पूर्व में बताया है कि पेशी संकुचन में ऊर्जा प्राप्ति का प्रमुख स्त्रोत ATP ही होता है परन्तु पेशियों में ATP की मात्रा काफी कम होती है। पेशियों में उपस्थित ATP की मात्रा से पेशियों का संकुचन मात्र कुछ सैकण्ड तक ही हो सकता है। कशेरुकियों की पेशियों में उच्च ऊर्जा स्त्रोत के रूप में
क्रिएटिन फॉस्फेट (सी.पी) उपस्थित रहता है। क्रिएटिन काइनेज नामक एंजाइम की उपस्थिति में यह पदार्थ अपना उच्च ऊर्जा फॉस्फेट समूह एडीपी ( ATP ) पर स्थानान्तरित कर सकता है जिससे ATP तथा क्रिएटिन बनते हैं।
चित्र 7.17 – संचित फॉस्फोजन द्वारा पेशियों को श्वसन से प्राप्त ऊर्जा
क्रिएटिन फॉस्फेट + DPP à क्रिएटिन + ATP
कुछ अशकेरुकियों में फॉस्फो आर्जीनिन (phosphoarginine) पाया जाता है जो क्रिएटिन फॉस्फेट की तरह की कार्य करना है। इन दोनों पदार्थों को फॉस्फोजन्स कहा जाता है।
क्रिएटिन फॉस्फेट के पुर्नजीवन हेतु आवश्यक ATP संकुचन तंत्र के बाहरी स्त्रोतों से प्राप्त होता है। संभवयता पेशी द्रव्य उपस्थित माइटोकॉण्ड्रिया इसके प्रमुख स्त्रोत होते हैं। क्रिएटिन फॉस्फेट के पुनर्जनन हेतु ऊर्जा अन्तिम रूप में ऑक्सीकारी उपापचयी क्रियाओं द्वार प्राप्त होती है। ATP पेशीय प्रोटीन्स एक्टिन एवं मायोसिन के साथ मिलकर एक एक्टोमायोसिन सम्मिश्र (actomyosin-ATP
complex) बनाती है।
(3) लेक्टिक अम्ल का निर्माण (Formatyion of lactic acid)
ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी पेशी में संकुचन की क्रिया जारी रह सकती है जब श्वसन तंत्र से पेशी की आवश्यकतानुसार पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। इन परिस्थितियों में ग्लाइकोलाइसिस से प्राप्त पाइरूविक अम्ल (pyruvic acid) लैक्टिक अम्ल (lactica acid) में परिवर्तित हो जाता है। सामान्यतया पाइरूविक अम्ल कार्बन डाई ऑक्साइड तथ जल में ऑक्सीकृत या जाता है। पाइरूविक अम्ल से लैक्टिक अम्ल के निर्माण की क्रिया लैक्टिक डिहाइड्रोजेनेस (lactic dehydrogenase) नामक एंजाइम की उपस्थिति में होती है।
CH3 CO.COOH + H+ → CH3 CHOH. COOH + NAD लेक्टिक अम्ल
पाइरूविक अम्ल
इस प्रकार प्राप्त लैक्टिक अम्ल अन्तरालीय द्रव्य में विसरित हो जाता है जो अन्त में यकृत पहुँच जाता है। यहाँ लेक्टिक अम्ल का लगभग 4/5 (80 प्रतिशत) भाग पुंन: ग्लाइकोजन में परिवर्तन
हो जाता है।
2C3H603 → H20 + C6H10O5 लैक्टिक अम्ल ग्लाइकोजन इकाई
शेष 1/5 (20 प्रतिशत) भाग का ऑक्सीकरण हो जाता है जिससे उपरोक्त संश्लेषण हेतु ऊर्जा मिल सके।
2C3H603 → 6CO2 6H20
यकृत में इस प्रकार संश्लेषित ग्लाइकोजन फिर ग्लूकोस के रूप में रुधिर में प्रवेश करता है तथा इसे पुनः पेशी में ले जाया जाता है जहाँ वह पुन: ग्लाइकोजन में बदल दिया जाता है। इस प्रकार की समस्त क्रियाओं को कोरी चक्र (cori cycle) में नाम से जाना जाता है। इस चक्र को चित्र 7.18 द्वारा निरूपित किया जाता है।
चित्र 7.18 : कोरी चक्र
चित्र 7.19 : लैक्टिक अम्ल का भविष्य (कोरी चक्र)
(4) पेशियों में मायोकाइनेज की क्रिया (Amyokinase activity in muscle )
पेशियों में ATP का अन्य स्त्रोत माइकोइनेज (mokinase) एंजाइम होता है। वह पेशी एंजाइम एक अणु ATP से उच्च ऊर्जा फॉस्फेट को स्थानान्तरित करने की क्रिया को उत्प्रेरित करता है जिससे ATP एवं एडीनोमीन मोनोफॉस्फेट (AMP) को निर्माण होता है।
पेशी संकुचन के समय होने वाली समस्त रासायनिक क्रिया एवं ऊर्जा संवहन को चित्र (7.16)
भी निरुपित किया जा सकता है।
पेशी संकुचन का साराश (Summary of muscle contraction)
वर्तमान ज्ञात के अनुसार पेशी संकुचन के समय निम्न महत्त्वपूर्ण घटनाएँ होती है। (चित्र 7.17)
चित्र 7.20 : पेशी संकुचन एवं शिथिनल के समय होने वाली घटनाओं का सारांश
(i). आवेश का पहुँचना ( arrival of impulse)
(i) पेशी तंतु झिल्ली का विध्रुवीकरण (depolarization) (iii) कैल्शियम आयनों का निष्कासन (release of Ca2+)
(iv) ATPase का उत्तेजन (ATPase activation) (v) ATP का जल अपघटन (hydrolysis of ATP) इसी प्रकार शिथिलन के समय निम्न घटनाऐं होती है-
(i) तंत्रिका आवेग का निर्वातन ( exhauation of nerve impulse)
(ii) कैल्शियम आयनों का अपनयन (withdrawl of Ca2+)
(ii) पेशी तंतु झिल्ली का पुन: ध्रुवीकरण (repolarization of fibre membrane) (iv) ATPase का संदमन (inhibition of ATPase)
(v) ATP का पुनः संश्लेषण (resynthesis of ATP ) पेशियों के अभिलक्षण (Characteristics of muscles)