एकल संकर संकरण किसे कहते हैं उदाहरण द्वारा समझाइए single cross in hindi hybrid definition

single cross in hindi hybrid definition एकल संकर संकरण किसे कहते हैं उदाहरण द्वारा समझाइए ?

परपरागित फसलों में संकरण (Hybridization in cross pollinated crops )

संकरण की प्रक्रिया का प्रमुख उद्देश्य इच्छित लक्षणों से युक्त दो जनक पौधों में क्रॉस करवाकर F, एवं बाद की संतति पीढ़ियों के पौधों में वांछित लक्षणों की प्राप्ति एवं इनकी गुणवत्ता एवं उत्पादन में सुधार करने का होता है। संकरण के द्वारा प्राप्त संतति पौधे प्रत्येक क्षेत्र में जनक पौधों से बेहतर होते हैं। पर परागित कृष्य पौधों जैसे मक्का, खरबूजा, सेब, कटहल, सरसों, आदि में संकरण की प्रक्रिया स्वपरागित फसलों की तुलना भिन्न होती है। परपरागत कृष्य पौधों में इच्छित लक्षण अलग शुद्ध वंशक्रम (Pure line) अथवा अंतप्रजात वंशक्रम (Inbred lines) में उपस्थित रहते हैं। अंतः प्रजात वंशक्रमों के पौधों की संकरण प्रक्रियाएँ निम्न प्रकार की हो सकती है :-

  1. एकल संकरण या क्रॉस (Single cross ) — इस विधि में संकरण के अंतर्गत दो अंतःप्रजात जनक पौधों का क्रॉस करवाया जाता है तथा संकरण के परिणामस्वरूप प्राप्त F पीढ़ी के संकर पौधों या इनके बीजों को किसानों को उगाने के लिये दे देते हैं।

यदि अंत: प्रजात जनकों की संख्या अधिक हो तो, नीचे प्रस्तुत सूत्र के द्वारा भी सम्भावित एकल संकरणों की संख्या ज्ञात कर सकते हैं-

यदि एकल संकरण (single cross SC) की संख्या n है, एवं अत: प्रजात की संख्या x हो तो

= x (x – 1) 2

उदाहरणतया यदि x = 5 है, अर्थात् अंत: प्रजात 5 है तो एकल संकरण (Sc) की संख्या n निम्न प्रकार से होगी –

n= 5×4 20 = 2 = 10

  1. द्विक या दोहरा संकरण (Double cross)—” संकरण की वह प्रक्रिया जिसमें दो एकल संकरणों से प्राप्त संतति पौधों को क्रास करवाया जावे उसे द्विक या दोहरा संकरण (Double cross or hybridization) कहते हैं।” जैसा कि निम्न उदाहरण से स्पष्ट है

दोहरा क्रास संकर पौधे (Double cross hybrids)

(ABxy)

लेकिन यदि अंत:प्रजात (Inbreds) की संख्या अधिक है, तो निम्न सूत्र का प्रयोग करते हुए दोहरे क्रास की संख्या ज्ञात कर सकते हैं :-

दोहरा क्रास (Double cross) की संख्या = यहां x से हमारा तात्पर्य अंतः प्रजातों (Inbreds) की संख्या से है । इसलिये यदि 5 अंतःप्रजात क्रम हैं तो डबल क्रास की संख्या निम्न प्रकार होगी-

5(5-1)(5-2)(5-3)/ 8

= 5×4×3×2/ 8

या = 120 /8

अतः यहाँ डबल क्रास की संख्या 15 होगी।

  1. थ्री-वे क्रॉस या संकरण (Three-way cross or Hybridization):

संकरण या क्रॉस की इस विधि में एकल संकरण के F, संकर ( hybrids) पौधों का क्रॉस एक अतः प्रजात (Inbred) के साथ करवाया जाता है, जैसा कि निम्न उदाहरण से स्पष्ट है:-

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया में 3 अंत:प्रजात (Inbreds) संकरण में प्रयुक्त होते हैं, 2 अंत:प्रजात (Inbred) नर जनक (Male parent) व xy संकर पौधे को मादा जनक (Female parent) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है । क्योंकि इस विधि में अलग-अलग पौधे दोहरे संकरण (Double cross) में भाग लेते हैं, अतः पौधों की संख्या के आधार पर इस प्रकार के संकरण (cross orhybridization) को थ्री-वे क्रॉस (Three-way cross) कहा जाता है।

  1. अंतः प्रजात संकरण या टॉप क्रास (Inbred Hybridization or Top cross) :

इस प्रक्रिया में एक पादप किस्म (Variety) का क्रास एक अंतःप्रजात पौधे से करवाया जाता है, जैसा कि निम्न प्रारूप से स्पष्ट है

जनकPV (पादप किस्म) I (एक अंत:प्रजात Inbred )

VI (किस्म अंत: प्रजात Hybrid Inbred)

इस विधि में प्रयुक्त पादप किस्म परपरागित (Cross pollinated) होती है। इस क्रास या संकरण का प्रमुख उद्देश्य अंत: प्रजात (Inbred) की संयोजन क्षमता की जानकारी को प्राप्त करने का होता है ।

यहाँ पादप किस्म (V) को मादा जनक ( Female Parent) एवं अंत:प्रजात (I) को नर जनक (Male parent) के रूप में काम में लिया जाता है। इस विधि को डबल टॉप क्रॉस (Double top cross) भी कहा जाता है।

  1. संश्लिष्ट किस्म एवं संश्लिष्ट संकरण (Synthetic cross and Synthetic variety)—–— संकरण (Hybridization) की इस प्रक्रिया में अंत:प्रजात (Inbreds) पौधों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक अर्थात् 4 या 6 से कभी-कभी 10 तक भी हो सकती है। संकरण की इस विधि को प्रयुक्त कर अंतःप्रजात वंशक्रम (Inbred lines) पौधों के विभिन्न इच्छित लक्षणों को एक पादप किस्म में एक साथ विकसित (Combine) किया जाता है। यह प्रक्रिया निम्न प्रकार से सम्पन्न की जाती है :-
  2. संकरण में प्रयुक्त अंतः प्रजात वंशक्रमों (Inbred lines) के बीजों को समान मात्रा में आपस में मिला दिया जाता है एवं बाद में इन बीजों को अलग-अलग क्यारियों में बोया जाता है।
  3. बीजों के अंकुरण से प्राप्त पौधों में प्राकृतिक परपरागण (Natural cross pollination) करवाते हैं एवं इन पौधों से प्राप्त बीजों को एकत्र कर लेते हैं।

III. उपरोक्त बीजों के अंकुरण से प्राप्त पौधों को नई पादप किस्म का नाम दिया जाता है।

ऐसे संकरण द्वारा विकसित पादप किस्म को संश्लिष्ट किस्म (Synthetic variety) कहते हैं। इस प्रकार के क्रास का एक और महत्त्वपूर्ण उपयोग यह भी है कि इसके द्वारा विभिन्न लक्षणों को नियंत्रित करने वाली जीन्स की संयोजन क्षमता (Combining ability) का परीक्षण भी हो जाता है। इसके साथ ही यह प्रक्रिया उन फसलोत्पादक पौधों के लिये भी उपयोगी है, जिनमें परागण कठिनाई से होता है ।

संश्लिष्ट पादप किस्में (Synthetic Varieties) इसलिये भी अंत:प्रजात किस्मों की तुलना में बेहतर कही जा सकती है, क्योंकि उनमें फसल उत्पादन (Crop yield) अधिक होता है एवं ये अंतःप्रजात किस्म की तुलना में सस्ती पड़ती है। यह भी एक उल्लेखनीय तथ्य है कि इनमें आने वाली पीढ़ियों में कोई कमी नहीं होती अतः किसान संश्लिष्ट या कृत्रिम किस्मों का उपयोग कुछ उदाहरणों में तो आगामी 9 पीढ़ियों तक कर सकते हैं। सामान्यतया संश्लिष्ट किस्में चारे वाली फसलों के लिए बहुतायात से विकसित की जाती है।

यही नहीं संश्लिष्ट किस्मों में संकर ओज (Hybrid vigour) की भी उपस्थिति देखी गई है, संभवतः यही कारण है कि हेज एवं गार्बर (Hayes and Garber 1919) ने इन कृत्रिम किस्मों को व्यावसायिक प्रयोग (Commercial use) के लिए बेहतर बताया है। बदलते हुए वातावरण के अनुसार अपने आप को सफलतापूर्वक स्थापित कर लेना संश्लिष्ट पादप किस्मों की अनूठी विशेषता कही जा सकती है।

चारा उत्पादक पौधों के अतिरिक्त चुंकदर (Sugar beet), सूरजमुखी (Sunflower), रिजका (Clover) एवं अल्फा अल्फा में भी संश्लिष्ट किस्मों का विकास किया गया है। चुकंदर में Pant syntehtic-3, एवं फूलगोभी (Cauliflower) में Synthetic-III इत्यादि कुछ प्रमुख संश्लिष्ट कृष्य किस्मों के उदाहरण हैं।

संश्लिष्ट किस्मों के उत्पादन की विधि (Procedure of Synthetic varieties formation)- यह एक सुविदित तथ्य है कि संश्लिष्ट किस्म (Synthetic variety) को विकसित करने के लिये सर्वश्रेष्ठ संयोजन क्षमता (Best combining ability) वाले अंत:प्रजात वंशक्रम (Inbred line) का चुनाव किया जाता है, अतः इनमें संकर ओज (Hybrid vigour) का प्रथम वर्ष में पूरी क्षमता के साथ उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त बाद की पीढ़ियों जैसे F2, F3 व F4 एवं आगे भी उत्पादन क्षमता के यथावत बने रहने की पर्याप्त संभावना होती है। यहाँ अंत: प्रजात (Inbreds) जो उपयोग में लाये गये हैं उनकी संख्या भी संकर ओज की उपस्थिति में सक्रिय भूमिका निभाती है ।

पादप प्रजनन विज्ञानियों के लिये संश्लिष्ट किस्मों का विकास करने के लिये निम्न पहलुओं का ध्यान रखना आवश्यक होता है

  1. वंशक्रमों का चयन एवं मूल्यांकन (Selection and evaluation of lines)

सर्वप्रथम कृत्रिम या संश्लिष्ट किस्म के उत्पादन के लिये उपयुक्त अंतःप्रजात वंशक्रमों को वांछित लक्षणों के आधार पर छांटा जाता है, तत्पश्चात् इनमें शीर्ष संकरण (Top cross) या बहुल संकरण (Poly cross) करवाया जाता है । आने वाली पीढ़ियों में वांछित लक्षणों हेतु किये परीक्षणों के आधार पर सर्वश्रेष्ठ वंशक्रमों का चुनाव किया जाता है। उपरोक्त चुने हुए वंशक्रमों में अन्य वंशक्रमों की तुलना में सामान्य संयोजन क्षमता (General combining ability) अधिक मात्रा में होती है। अंत:प्रजनन (Inbreeding) प्रक्रिया के द्वारा प्रारम्भिक पीढ़ियों में सामान्य संयोजन क्षमता का आकलन किया जाता है। संयोजन क्षमता का परीक्षण टॉप क्रास की विधि के द्वारा किया जाता है । अन्त में सर्वश्रेष्ठ वंशक्रमों का आपस में क्रास करवा कर संश्लिष्ट किस्म (Synthetic variety) को विकसित किया जाता है।

  1. संश्लिष्ट किस्म का विकास (Development of Synthetic Variety)

सर्वश्रेष्ठ चुने हुए वंशक्रमों में बहुल क्रॉस (Poly cross) करवा कर संतति पीढ़ी उत्पन्न की जाती है तथा इनको अविचारित (Random) पद्धति का उपयोग करते हुए बहुल संकरण पौधशाला (Poly cross nurs- ery) में लगाया जाता है। इस प्रक्रिया में कम से कम 10 प्रतिकृतियों (Replications) का उपयोग कर इनमें मुक्त परागण (Open Pollination) करवाया जाता है। फसल के पकने पर इनके बीजों को मिला दिया जाता है, एवं इनकी संयोजन क्षमता का आकलन किया जाता है।

III. पूर्व स्थापित अंतःप्रजात किस्मों से संश्लिष्ट किस्मों का निर्माण (Formation of Synthetic varieties from established inbreds)

इस चरण में 5 से 10 अंतःप्रजात वंशक्रमों में शीर्षक्रॉस (Top cross) करवाया जाता है एवं इनकी सामान्य संयोजन क्षमता का आकलन या परीक्षण किया जाता है। जिन वंशक्रमों में उच्च संयोजन क्षमता पाई जाती है उनका आपस में क्रास करवाया जाता है। इसके बाद इनके पौधों के इच्छित लक्षणों के लिये परीक्षण किये जाते हैं। बाद में इस फसल का नवीन संश्लिष्ट किस्म के रूप में नामकरण किया जाता है।

उपरोक्त प्रक्रियाओं में से किसी भी एक विधि से प्राप्त पौधों में F पीढ़ी के बीजों को बराबर मात्रा में मिलाया जाता है व इन बीजों से पौधे उगाये जाते हैं। इन पौधों को Syn-1 पीढ़ी के रूप में पहचाना जाता है। अविचारित परागण (Random pollination) के द्वारा इनमें Syn-2 व Syn-3 पीढ़ियाँ तैयार की जाती है।