सरल वंशागत उत्परिवर्तन उत्परिवर्तन प्रजनन क्या है ? इससे विकसित किसी फसल की दो नस्लों का नाम दें।

simple inheritance mutation in hindi  सरल वंशागत उत्परिवर्तन उत्परिवर्तन प्रजनन क्या है ? इससे विकसित किसी फसल की दो नस्लों का नाम दें।

सरलतरू वंशागत उत्परिवर्तन (Simply Inherited’k~ Mutations)
यदि किसी जीन को क्षेत्रवासी समष्टि में बड़ी संख्या में जबर्दस्ती प्रविष्ट कराया जाए तो किसी एकल जीन में होने वाले आनुवंशिक परिवर्तनों से क्षेत्रवासी की योग्यता में ह््रास आ सकता है। ऐसे परिवर्तनों के कुछ उदाहरण अप्रभावी घातक उत्परिवर्तन होंगे जैसे आंख के रंग-परिवर्तन (जिनसे प्रकाश के लिए संवेदनशीलता बढ़ायी अथवा घटायी जा सकती है), प्यूपा अथवा वयस्क के शरीर के रंगों में परिवर्तन, अथवा ऐंटे नों, टांगों या पंखों में आने वाली विकृतियां। उदाहरणतः, पात गोभी के लूपर ट्राइकोप्लूसिया (Trichoplusia) में पैदा होने वाला गहरा देह-रंग उत्परिवर्तन एक प्रभावी ऐलील (allele) होता है और उसके अप्रभावी घातक प्रभाव होते हैं।

सरलतरू वंशागत उत्परिवर्तनों में से अनेक को बहुत सी स्पीशीज के सामूहिक पालन-पोषित प्रभेदों में प्रविष्ट कराए जा चुके हैं ताकि पालन के दौरान नर प्राणियों को मादा प्राणियों से पृथक पहचाना जा सके (आनुवंशिक नर-मादा पृथक्करण)।

 पीड़क प्रबंधन कार्यक्रमों में आनुवंशिक विधियों का समाकलन
बंध्य कीट विमोचन विधि तथा अन्य स्वघाती नियंत्रण तकनीकें उन सब अन्य प्रकार के पीड़क नियंत्रण के साथ पूर्णतरू मेल खाती हैं जिन्हें प्च्ड कार्यक्रमों में इस्तेमाल किया जा सकता है। वास्तव में, ई.एफ. निप्लिंग ने सदैव इस बात पर जोर दिया कि स्वघातीय नियंत्रण को अन्य उपायों के साथ समाकलित किया जाना चाहिए तभी इसका सर्वाधिक प्रभावकारी उपयोग होगा। स्वघाती नियंत्रण प्रौद्योगिकियां केवल तभी सर्वाधिक प्रभावकारी एवं कमखर्च हो सकती हैं जब उन्हें समष्टियों के पहले से ही निम्न स्तरों के होने पर इस्तेमाल किया जाए। इसका एक कारण यह है कि इन तकनीकों में आमतौर से प्रयोगशाला में पाले गए कीट काम में आते हैं। अतरू कितने बड़े क्षेत्र में कीटों का विमोचन किया जाए यह पाले जाने वाले कीटों की संख्या पर निर्भर करेगा। यदि मोचन क्षेत्र में क्षेत्रवासी कीट कम हुए तब उच्चतर मोचन अनुपात प्राप्त होगा या फिर और ज्यादा बड़े क्षेत्र में मोचन किया जा सकता है।

स्वघाती नियंत्रण कार्यक्रम के अनुप्रयोग के पूर्व अथवा उसके दौरान समष्टि घनत्वों को कम कर देने वाले किसी भी कीट नियंत्रण उपाय से इन दोनों ही प्रक्रमों की प्रभावशीलता बढ़ जाएगी। उदाहरणतः जैवनियंत्रण जीवों का उपयोग प्रायरू उच्च पीड़क घनत्वों पर ही सर्वाधिक प्रभावशाली होता है, भगर जैसे-जैसे पीड़क घनत्व घटता जाता है, वैसे-वैसे इसकी प्रभावशीलता भी कम होती जाती है। अतरू किसी भी प्रकार के जैविक नियंत्रण कार्यक्रम में बंध्य कीट तकनीक एक प्राकृतिक संयोजन सिद्ध होगी। यही तर्क उस समय भी लागू होगा जब उच्च पीड़क समष्टियों को कम करने हेतु कीटनाशकों का उपयोग हो रहा हो और साथ ही साथ भ्रमजनी कार्यक्रमों में फीरोमोन इस्तेमाल किए जा रहे हों। सस्य नियंत्रण विधियों को आमतौर से तब इस्तेमाल किया जाता है जब वर्ष के दौरान पीड़क समष्टियां सर्वाधिक सुनष्टय अवस्थाओं में होती हों, ये विधियां स्वघाती नियंत्रण कार्यक्रमों के साथ पूर्णतरू सुसंगत होती हैं क्योंकि स्वघाती नियंत्रण विधियां लक्ष्य स्पीशीज के सर्वाधिक जनन संभावना के समय के दौरान इस्तेमाल की जाएगी। ऐसे किसी भी समाकलित पीडक प्रबंधन कार्यक्रम की कल्पना नहीं की जा सकती जिसे स्वघाती नियंत्रण तकनीक द्वारा और आगे न बढ़ाया जा सके।

 आनुवंशिक इंजीनियरी तथा पीडक प्रबंधन में इसकी भूमिका
आनुवंशिक इंजीनियरी, जैव प्रौद्योगिकी (biotechnology) की एक शाखा है। परिभाषा के रूप में आनुवंशिकी इंजीनियरी वे तकनीकें हैं जिनके द्वारा किसी भी जीव (पौधे अथवा प्राणी) की आनुवंशिक संरचना को रूपातरित किया जा सकता है, और यह रूपांतरण या तो किसी जीन के निकाल देने अथवा उसे अवरुद्ध कर देने के रूप में हो सकता है या इसमें जीनों को एक जीव से दूसरे जीव में रूपांतरित किया जाता है। इन जीन-रूपांतरकारी तकनीकों द्वारा रूपांतरित फसलों को आनुवंशिकतः रूपांतरित जीव (genetically modified organisms]GMOs) कहते हैं। ळडव् शब्द को पारजीनी पौधे (transgenic plants) नाम से भी एक ही अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है। पारजीनी पौधे वे होते हैं जिनमें जीन को अण्विक अथवा पुनर्योजनी DNA तकनीकों द्वारा प्रविष्ट कराया जाता है। आनुवंशिकतः रूपांतरित पौधों को प्रचलित तौर पर ष्पारजीनीष् ष्जतंदेहमदपबेष् कहा जाता है और इस समय इनकी ओर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। आज अनेकानेक विविध पादप स्पीशीजों में पारजीनी बनाए जा रहे हैं।

रासायनिक कीटनाशियों की तुलना में पारजीनी पौधों के कई लाभ हैं, जैसे

(प) संबद्ध पदार्थ केवल उसी पौधे तक सीमित रहता है जिसमें उसकी अभिव्यक्ति है, इसलिए वह पर्यावरण में नहीं फैलता।
(पप) सक्रिय कारक जैवनिम्नकरणीय होता है तथा उपयुक्त जीनों अथवा जीन-उत्पादों के चयन से सुनिश्चित किया जा सकता है कि
यह मानवों एवं जानवरों के लए आविषी तो नहीं होगा।
(पपप) उपभोक्ता स्वीकृतिरू हाल के वर्षों में खाद्य फसलों के भीतर पीड़कनाशियों के अवशेषों का मौजूद होना एक चिंता का विषय बना रहा है, वंशागत रूप में प्रतिरोधी फसलों में उपभोक्ता को एक ऐसा उत्पाद विकल्प मिलेगा जिसमें एक सुनिश्चित लाक्षणिक जीन उत्पाद होगा न कि कोई पीडकनाशी अवशिष्ट होंगे और वे भी पता नहीं कौन-कौन से।

पिछले कुछ दशकों के दौरान आनुवंशिक इंजीनियरी ने एक के बाद एक ऐसे अनेक उपयोगी जीन तथा तकनीकें उपलब्ध करायी हैं जिनके द्वारा विजातीय जीनों को पौधों में प्रविष्ट कराया जा सकता है। आज ऐसे विलक्षण अवसर उपलब्ध हैं जिनसे फसली पौधों को एकदम नए-नए तरीकों द्वारा रूपांतरित किया जा सकता है – उनमें ऐसे-ऐसे जीन डाले जा सकते हैं जो पीड़कों, रोगों, शाकनाशियों के लिए प्रतिरोध पैदा कर सकते हैं एवं उनमें ऐसे जीन प्रविष्ट किए जा सकते हैं जिनसे पादप उत्पादों की प्रकृति में बदलाव लाने के लिए जैव संश्लेषण प्रक्रिया को ही रूपांतरित किया जा सकता है।

आनुवंशिकीय इंजीनियरी द्वारा कीट पीड़कों के नियंत्रण की दिशा में जो सम्भावनाएं सामने आ रही हैं उनमें अधिकाधिक उन्नति के लिए नयी-नयी रणनीतियां खोजी जा रही हैं। एक मार्ग तो यह हो सकता है कि उन जीवों में जो कीटों के प्राकृतिक रोगजनक होते हैं कुछ ऐसे फेर-बदल किया जाए जिससे जैवनियंत्रण साधनों के रूप में वे अधिक प्रभावकारी हो सकें। बेसिलस थुरिंजिएन्सिस (Bt) कुछ कीटों का एक जीवाणु रोगजनक है, इस जीवाणु में कीटनाशकी क्रिया पायी जाती है और इस क्रिया के लिए जिम्मेदार कीट नियंत्रण प्रोटीनों का कोडन करने वाले जीन होते हैं, इन जीनों के क्लोन बनाए गए हैं और उन्हें कुछ अन्य जीवाणु परपोषी स्पीशीज में डाला-बदला गया है ताकि खेत में उनकी बेहतर मौजूदगी बनी रह सके। एक और हाल ही में घोषित उदाहरण है ऐसे जीनों का जो कीटभक्षी मकड़ियों अथवा कुटकियों (mites) के विष के टॉक्सिन के कोडनकारी जीनों को कीट रोगजनकी बैकुलोवायरसों (baculoviruses) के वायरल जीनोम में प्रवेश करा दिया जाए ताकि वायरल संक्रमण के कारण कीट और भी तेजी से मरने लगे। बेसिलस थुरिंजिएंसिस अथवा ठज को हाल के वर्षों में बहुत लोकप्रियता मिली है। ठज की सारी दुनिया में हुई बिक्री अन्य किसी भी जैवपीड़कनाशी उत्पाद की बिक्री से कहीं ज्यादा रही है।