कायिक प्रवर्धन के लाभ लिखिए (significance of vegetative propagation in hindi) कायिक प्रवर्धन का महत्व क्या है बताइए ? importance of vegetative propagation ?
ऊतक संवर्धन द्वारा (tissue culture techniques) : पादप , ऊतक संवर्धन तकनीक के अंतर्गत किये गए आधुनिक प्रयोगों के द्वारा वैज्ञानिकों ने पौधे के ऊतकों द्वारा अनेक पादपक (छोटे , नवांकुर पादप या plantelets ) तैयार करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। इन प्रयोगों की सफलता से यह भी सिद्ध हो चुका है कि प्ररोह शीर्ष से प्राप्त ऊतक संहति का कृत्रिम संवर्धन माध्यम में आसानी और बहुतायत से संवर्ध के रूप में प्रवर्धन हो सकता है। हालाँकि अन्य पादप भागों का भी कृत्रिम संवर्धन विभिन्न पौधों में करवाकर , इनके संवर्धों से पादपक प्राप्त किये गए है। कायिक प्रवर्धन की इस प्रक्रिया को सूक्ष्म प्रवर्धन कहते है।
वस्तुतः यह प्रक्रिया ऊतक संवर्धन तकनीक का एक व्यावहारिक अनुप्रयोग कही जा सकती है। इस विधि में जनक पौधे के उपयुक्त भाग से छोटा टुकड़ा अथवा ऊतक संहति काटकर अलग कर ली जाती है। इसके पश्चात् यह उतक संवर्धन माध्यम पर वृद्धि करके असंख्य कोशिकाओं की एक अविभेदित संरचना में परिवर्धित हो जाता है , इसे संवर्ध अथवा कैलस कहते है। यह कैलस संरचना असिमित काल तक वृद्धि करने में सक्षम होती है। जब इस कैलस ऊतक के छोटे छोटे टुकडो को दुसरे उपयुक्त पोषण माध्यम में स्थानान्तरित किया जाता है तो ये कैलस संरचनाएँ विभेदित होकर छोटे पादपकों के रूप में विकसित हो जाती है। प्राय: इन पोषण संवर्धन माध्यम में वृद्धि हार्मोन्स विशेषकर आक्सिन्स और साइटोकाइनिन्स की उपयुक्त मात्रा भी एक अनुपूरक पोषक के रूप में मिलाई जाती है , जिससे कैलस संरचना का पादपक में विभेदन और विकास शीघ्रता से होने लगता है।
उपर्युक्त प्रक्रिया द्वारा विकसित पादप को कुछ समय के पश्चात् मिट्टी के गमलों अथवा क्यारियों में स्थानांतरित कर दिया जाता है , जहाँ ये एक परिपक्व और इच्छित लक्षणों वाले वयस्क पादप के रूप में विकसित हो जाते है। इस प्रकार इस विधि के द्वारा किसी भी पौधे के थोड़े से ऊतकों की सहायता से ही असंख्य पादपकों और बाद में वयस्क पौधों को विकसित किया जा सकता है। आजकल इस तकनीक के अनुप्रयोग के द्वारा विभिन्न शोभाकारी पौधों जैसे आर्किड्स , ग्लेडियोलाई , कारनेशन और गुलदाउदी का कायिक प्रवर्धन किया जा रहा है। यही नहीं वनस्पति शास्त्रियों और औषध विज्ञानियों के अनुसार यह सूक्ष्म प्रवर्धन विधि वानस्पतिक विविधता , औषधीय पौधों और दुर्लभ और संकटग्रस्त पौधों के संरक्षण और गुणन के लिए भी अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
इसके अतिरिक्त ऊतक संवर्धन अथवा सूक्ष्म प्रवर्धन विधि को प्रयुक्त करके अनेक आर्थिक रूप से उपयोगी कृष्य पौधों जैसे आलू , टेपियोका और गन्ना आदि में वायरस मुक्त स्वस्थ पौधे तैयार किये जा सकते है। प्रमुख तथ्य यह है कि विभिन्न पौधों में ऊतक संवर्धन की प्रक्रिया के अंतर्गत प्ररोह शीर्ष की ऊतक संहति का उपयोग किया जाता है और प्राय: ये प्ररोह शीर्ष विभाज्योतकी कोशिकाएं वाइरसों से पूर्णतया मुक्त होती है (यदि सम्पूर्ण पादप शरीर वाइरस से संक्रमित हो तब भी इनमें वायरस कण नहीं होते। )
कायिक प्रवर्धन का महत्व (significance of vegetative propagation)
(A) लाभ (advantages) : इस प्रक्रिया के अनेक फायदे है। इनमें से कुछ प्रमुख फायदों का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से है –
1. कायिक प्रवर्धन विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसके द्वारा कुछ ऐसे पौधों का प्रवर्धन भी करवाया जा सकता है , जिनकी लैंगिक जनन क्षमता समाप्त हो चुकी है। इन पौधों में निषेचन के द्वारा बीज निर्माण का गुण नहीं होता। केला , बीज रहित अंगूर , संतरा , चमेली और गुलाब ऐसे पौधों के कुछ प्रमुख उदाहरण है। अत: इन पौधों की वंशवृद्धि केवल कायिक प्रवर्धन के माध्यम से ही संभव है।
2. कुछ पौधों जैसे बरमूडा घास अथवा दूब में बीज बहुत ही कम मात्रा में बनते है। अत: इनमें भी कायिक प्रवर्धन के द्वारा ही पौधे की वंशवृद्धि संभव है।
3. ऐसे पौधों में जिनमें बीज प्रसुप्ति की अवधि बहुत अधिक होती है उनमें पौधों की वंशवृद्धि और प्रसार के लिए कायिक प्रवर्धन एक अपेक्षाकृत सस्ती और शीघ्र परिणाम देने वाली प्रक्रिया है। उदाहरण के तौर पर लिली की अनेक किस्मों में पौधे के अंकुरण से लेकर पुष्पन के मध्य 4 से 7 वर्ष तक का समय लगता है लेकिन यदि इनका कायिक प्रवर्धन करवाया जाए तो पौधे से 1 अथवा 2 वर्ष में ही पुष्प प्राप्त किये जा सकते है। अत: इस प्रक्रिया के द्वारा बीजों के अंकुरण के बाद पुष्प आने तक की विलम्बित अवधि को कम किया जा सकता है।
4. ऐसे नए क्षेत्रों अथवा प्रदेशों में , जहाँ वातावरण सम्बन्धी परिवर्तन के कारण बीजों के अंकुरण द्वारा वयस्क पौधों का विकास सम्भव नहीं हो पाता है , वहां भी कायिक प्रवर्धन विधि के द्वारा ऐसे पौधों को स्थापित किया जा सकता है। मृदा और वातावरण की बदली हुई परिस्थितियों में भी ये पौधे सफलतापूर्वक जीवनयापन कर सकते है।
5. कायिक प्रवर्धन प्रक्रिया का सबसे बड़ा फायदा यह है की इस विधि द्वारा विकसित सभी पौधों में एक समान लक्षण पाए जाते है। आनुवांशिकी रूप से ये जनक पौधे के समान ही होते है। दुसरे शब्दों में किसी भी पादप किस्म की उत्तम गुणवत्ता को इस विधि का उपयोग करके असिमित काल तक बनाये रखा जा सकता है। आनुवांशिक रूप से समान ऐसी पादप समष्टि जिसे एक ही पादप द्वारा विकसित किया जाता है , उसे क्लोन कहते है। आनुवांशिक रूप से एक समान सन्तति प्राप्त करना बीजों के द्वारा सम्भव नहीं है क्योंकि इन बीजों में नर और मादा दोनों जनक पौधों के मिश्रित गुण पाए जाते है।
6. कायिक प्रवर्धन द्वारा प्राप्त पौधों के फल और अन्य पादप भाग (जैसे आलू में कंद) की आकृति और परिमाप में लगभग एकरूपता पायी जाती है। अत: ये मानव समाज के लिए इच्छित लक्षणों से युक्त और आवश्यकतानुसार उपयोगी होते है।
7. अधिकांश शोभाकारी पौधों को उद्यानों में कायिक जनन के द्वारा ही प्रवर्धित किया जाता है , जैसे गुलाब , कारनेशन , गुलदाउदी , डहेलिया और ट्यूलिप आदि।
8. अधिरोपण अथवा कलम बाँधना एक ऐसी विधि है , जिसके द्वारा आर्थिक रूप से उपयोगी , दो उत्तम गुणवत्ता वाले पौधों को भौतिक और कार्यिकी रूप से एकीकृत करके एक पौधे में अधिकाधिक उपयोगी और लाभदायक लक्षण प्राप्त किये जा सकते है।
अत: उपर्युक्त लाभकारी विशेषताओं के कारण आज कायिक प्रवर्धन व्यावसायिक पौधशाला प्रबंधको और बागवानों के लिए अत्यन्त उपयोगी और त्वरित परिणाम देने वाली प्रक्रिया सिद्ध हो चुकी है। इसके उपयोग से अनेक शोभाकारी और फल उत्पादक पौधों की उन्नत किस्में विकसित की गयी है , विशेषकर अध्यारोपण विधि इस दिशा में अत्यंत प्रभावकारी प्रक्रिया के रूप में उभर कर सामने आई है।
B. हानिकारक प्रभाव (disadvantages) :
1. इस विधि के माध्यम से जनक पौधों के अतिरिक्त किसी और पौधे के अच्छे लक्षणों को आने वाली पीढ़ी में न तो समाविष्ट किया जा सकता है और न ही अनुपयोगी अथवा हानिकारक लक्षणों को हटाया जा सकता है।
2. स्पर्श अथवा सम्पर्क के द्वारा जनक पौधों में उत्पन्न रोग , कायिक प्रवर्धन द्वारा आगामी पीढ़ी के पौधों में भी संचरित हो जाते है।
3. कायिक प्रवर्धन की प्रक्रिया को लम्बे समय तक जारी रखने पर आने वाली पीढियों के पौधों में ओज (vigours) और जीवन क्षमता में क्रमिक हास होता जाता है क्योंकि इनमें लैंगिक उद्दीपन अनुपस्थित होता है।
4. कायिक प्रवर्धन द्वारा विकसित पौधों में विविधताओं की अनुपस्थिति के कारण बदलते हुए वातावरण के अनुसार अपने आपको समायोजित अथवा अनुकूल बनाने की क्षमता कम होती है।
5. इन पौधों की कायिक संरचनाओं जो प्रवर्धन के लिए उपयोगी होती है जैसे जड़ें , तना , पत्ती और पत्रकलिकाओं आदि को लम्बे समय के लिए परिरक्षित रखना कठिन कार्य होता है। इनका शीघ्र ही क्षरण अथवा अपघटन हो जाता है। अत: ये बीजों के समान संगृहीत नहीं किये जा सकते।
6. प्रवर्धन में प्रयुक्त कायिक संरचनाओं में प्रकीर्णन के लिए कोई विशेष व्यवस्था अथवा क्रियाविधि नहीं होती। अत: कायिक प्रवर्धन द्वारा प्राप्त पौधों की व्यष्टि के सदस्यों के पास पास उगने से , पौधों को वृद्धि के लिए पर्याप्त मात्रा में स्थान प्राप्त नहीं होता और इन पौधों के स्थान के अतिरिक्त , प्रकाश पोषण और जल आदि के लिए भी कठिन स्पर्द्धा रहती है। परिणामस्वरूप इनकी गुणवत्ता और उत्पादन दोनों ही प्रभावित होते है।
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 : दब्बा बनाकर कायिक जनन करवाते है –
(अ) मुराया
(ब) गुलाब
(स) पोदीना
(द) पीपल में
उत्तर : (अ) मुराया
प्रश्न 2 : कलम द्वारा कायिक जनन होता है –
(अ) सेब
(ब) गुलाब
(स) आम
(द) बरगद
उत्तर : (ब) गुलाब
प्रश्न 3 : पत्र कलिकाओं द्वारा कायिक जनन होता है –
(अ) शलजम
(ब) मूली
(स) अनानास
(द) चुकन्दर
उत्तर : (स) अनानास
प्रश्न 4 : जड़ों द्वारा कायिक प्रजनन होता है –
(अ) आम
(ब) चीकू
(स) मुराया
(द) शतावरी में
उत्तर : (द) शतावरी में
प्रश्न 5 : संवर्धन माध्यम पर ऊतक संवर्धन द्वारा पादपक प्राप्त करने की विधि कहलाती है –
(अ) अध्यारोपण
(ब) स्तरण
(स) सूक्ष्म प्रवर्धन
(द) मुकुलन
उत्तर : (स) सूक्ष्म प्रवर्धन