sharda sadan was established by in hindi शारदा सदन की स्थापना किस स्थान पर हुई थी , किसने की , संस्थापक कौन थे ?
प्रश्न: शारदा सदन
उत्तर: शारदा सदन 1889 ई. में रमाबेन द्वारा महाराष्ट्र में स्थापित एक सामाजिक संस्था थी, जो बाल विवाह के विरोध एवं विधवा पुनर्विवाह द्वारा नारी विकास के लिए कार्य करती थी। 1930 में इसी सदन के नाम पर सरकार ने शारदा अधिनियम द्वारा विवाह के लिए कन्या की न्यूनतम आयु 14 और युवकों की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निश्चित की।
प्रश्न: दारूल-उलूम
उत्तर: यह एम.क्यू. नानावती एवं रशीद अहमद गंगोही द्वारा सन् 1867 में स्थापित इस्लामी संगठन था, यह अंग्रेज विरोधी संगठन था।
प्रश्न: शारदा अधिनियम श्री हरविलास शारदा के प्रयासों से बाल विवाह को रोकने के लिए 1929 में शारदा एक्ट बना, जिसके द्वारा विवाह की न्यूनतम आयु सीमा बढ़ा कर बाल विवाह पर रोक लगाने की कोशिश की गयी।
प्रश्न: एगमोर दल
उत्तर: दक्षिण भारत में जस्टिस पार्टी का गठन ब्राह्मणों के प्रभाव की समाप्ति हेतु किया गया था। परंतु एगमोर गुट जिसमें ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनों ही समूह के विद्वान शामिल थे, ने ब्राह्मणों के वर्चस्व का विरोध किया। टी.एम. नायर इसी ग्रुप में शामिल थे।
प्रश्न: भारत की थियोसोफिकल सोसाइटी
उत्तर: 1882 में मद्रास के निकट अड्यार में थियोसोफिकल सोसाइटी का मुख्यालय बनाने के बाद भारत में थियोसोफिकल आन्दोलन का विकास हुआ, जिसे बाद में एनी बेसेंट ने आगे बढ़ाया।
प्रश्न: विलियम जोंस
उत्तर: प्रसिद्ध अंग्रेज विद्वान, जिन्होंने 1784 में ‘एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल‘ की स्थापना की, जिसने प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के अध्ययन हेतु महत्वपूर्ण प्रयास किये।
प्रश्न: केशवचन्द्र सेन
उत्तर: ये राजा राममोहन राय के प्रारंभिक अनुयायी तथा समाज सुधारक थे। इन्होंने इंडियन रिफार्म एसोसिएशन (1870) की स्थापना की थी।
प्रश्न: नारायण गुरू
उत्तर: केरल के 20वीं शताब्दी के महान संत, दार्शनिक तथा समाज सुधारक, जिन्हें केरल में शंकराचार्य के बाद सर्वाधिक आदर दिया जाता है। जात-पांत, छुआछूत तथा असमानता को दूर करने में इन्होंने उल्लेखनीय भूमिका निभायी।
प्रश्न: सैय्यद अहमद
उत्तर: 1817 में जन्में प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री तथा भारतीय मुसलमानों के समाज सुधारक नेता, जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना कर अलीगढ़ आंदोलन चलाया।
प्रश्न: पंडित रमाबाई
उत्तर: ये आधुनिक भारत में नारी उत्थान के प्रति अपना जीवन समर्पित करने वाली अग्रणी महिला थी। उन्होंने, नारी शिक्षा हेतु सन् 1904 में पूना सेवा-सदन प्रारंभ किया।
भाषा एवं साहित्य
मलयालम
पाचा मलयालम यानी विशुद्ध मलयाली में लिखे लोक-गीतों और वीर रस के गीतों का समय बताना कठिन है। 10वीं शताब्दी के आस-पास मलयालम ने अपनी पहचान बनाई। साहित्य की भाषा के रूप में मलयालम पर अपने शुरुआती दिनों में तमिल का प्रभाव था। इसी समय चिरमन ने रामचरितम (12वीं शताब्दी) लिखा। इसके बाद निरनम की कृतियां हैं, जिन पर तमिल का प्रभाव कम दिखता है। संस्कृत ने भी मलयालम पर प्रभाव डाला, नतीजतन मणिप्रवलम नामक साहित्यिक बोली की विशेष किस्म सामने आई। 14वीं शताब्दी में ‘लीलाथिलकम’ लिखा गया। यह व्याकरण है और यह खास तौर पर मणिप्रवलम में रची गई रचनाओं के लिए था। ऐसी रचनाएं या तो संदेश काव्य थीं या चम्पू। संदेश काव्य में सबसे प्रसिद्ध है उन्ननली संदेशम (14वीं शती)। इसके लेखक का पता नहीं है। चम्पू में उत्कृष्ट कृति है उन्नियतिचरितम। पंद्रहवीं शताब्दी में संस्कृत या तमिल मुहावरों के अत्यधिक प्रयोग से बचने की मुहिम चली। इसके प्रणेता थे रामा पनिक्कर, जिन्होंने कन्नस्सा रामायणम लिखा।
रामानुज एझुथाचेन (16वीं शताब्दी) ने कविताओं में चमत्कार दिखाया। इनका अध्यात्म रामायण और भागवतम मलयालम साहित्य की सर्वत्कृष्ट रचनाओं में आता है। हालांकि इनके साहित्यिक ओज की पूर्ण झलक चेरूस्सेरि नम्बूदरी के कृष्णगाथा में देखी जा सकती है। एझुथाचेन ने किलिपट्टु या तोते के गीत को काफी लोकप्रिय बनाया।?
अठारहवीं शताब्दी में कंचन नाम्बियार हुए, जो साहित्य को आम आदमी तक ले गए। थुल्लाल्स कथारूप में इन कविताओं में सामाजिक आलोचना और प्रहसन भरा पड़ा था। इसी समय अट्टा-कथा लिखी गयी। यह कथकली नर्तकों के लिए था। कोट्टरकारा थम्पूरन का रामनट्टम सबसे पहली और संपूर्ण अट्टा कथा है।
उन्नीसवीं सदी में दो कारणों से साहित्यिक भाषा के रूप में मलयालम के विकास को प्रोत्साहन मिला पहला, शिक्षा की नई प्रणाली, जिसके मूल में मिशनरी थे और दूसरा, 1857 में मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना। सभी कक्षाओं के लिए पाठ्य पुस्तकें बनाकर इस भाषा के विकास हेतु कार्यक्रम निर्धारित करने का श्रेय केरल वर्मा को जाता है। वेनमणि कवियों ने संस्कृत की बेड़ियां तोड़ी और जनसाधारण तक साहित्य को पहुंचाने के लिए एक लोकप्रिय वाक्यविन्यास और मुहावरों का विकास किया। इसके अलावा बेंजामिन बुले और हरमैन गुंडर्ट जैसे मिशनरी थे, जिन्होंने शब्दकोश बना,। राजराजा वर्मा ने मलयालम को अधिकृत व्याकरण केरल पाणिनियम दिया और मलयालम छंदों का मानकीकरण किया। कुमारन असन और वल्लठोल नारायण मेनन ने आधुनिकता को बढ़ावा दिया। वल्लठोल ने मलयालम साहित्य में राष्ट्रवाद को महत्वपूर्ण स्थान दिया। असन ने सामाजिक सरोकारों को अपने लेखन का आधार बनाया। उल्लूर एसपरमेश्वर अय्यर ने शास्त्रीय और आधुनिक दोनों का समुचित समन्वय प्रारंभ किया। 1930 के दशक तक एक नई क्रांति सामने आई। चंगमपुझा कृष्णा पिल्लै इसके अगुआ थे। प्रतीकवाद को प्रमुखता मिली और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता जी. शंकर कुरूप इसके प्रबल प्रणेता थे।
केरल में प्रगतिशील साहित्य का उदय 1940 के दशक के उत्तरार्द्ध में हुआ। बेक्कोम मुहम्मद बशीर ख्बाल्यकाल सखी, और तुप्पकोरानेन्दा-रूनू (1951), ने अपनी अद्वितीय शैली और समझ द्वारा मुस्लिम समुदाय को चित्रित करने वाली कृतियों की रचना की।
मलयट्टूर रामकृष्णनन् अपनी कृतियों-वेरूक्कल एवं यंत्रोम के माध्यम से लोकप्रिय हुए। थकाजी शिवशंकरा पिल्लई ने निम्न समुदाय पर केन्द्रित रनटिटनगझि लिखा।
19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के प्रारंभ पर, सामाजिक क्रांति के प्रयास के चलते, वी.टी. भट्टथिरिपद (वी.टी.), एमण्आर. भट्टथिरिपद (एमआर. बी.), और एमण्पी. भट्टथिरिपद (एमण्पी.), ने सामाजिक बुराइयों पर केंद्रित कार्य किया। वी.टी. के नाटक अत्तुकल्लयिल निन्नू अरंगथेक्कू और आत्मकथा कार्य कन्नीरूम किन्नावुमएएमण्आर.बी. का मरक्कूतेक्कूलिले महानरकम और लघु कथाएं एवं यात्रा वृतांत, और एमण्पी. की रितुमति प्रसिद्ध हैं। मूथिरिगोड भावथरथन नम्बूदिरिपाद ने अफांटे मकल और ललिथम्बिका अंथेरजनम ने अग्निसाक्षी लिखी जिसमें समुदाय में परम्परागत एवं आधुनिक तत्वों के बीच मतभेदों को प्रतिबिम्बित किया गया।
के. सारस्वती अम्मा ने अपने कार्य में मुक्ति उन्मुख एवं महिला की अत्यंत शक्ति को उजागर किया (लघु कथाएं चोलमरंगल, और ओरुकट्टिनटे ओटुविल)। के. सुरेन्द्रन ने अपने कार्य तालम और कट्टूकुरंगु में मानव मस्तिष्क की जटिलता को प्रस्तुत किया है। एमण्पी. नारायण पिल्लई ने परिनामम के माध्यम से सामाजिक मूल्यों पर टिप्पणी की। वी.के.एन. विवाहपिट्टेन्नू, पिट्टामहन, अरोहनम, पायन्स और छाथम के रूप में अपने उच्च व्यंगयात्मक शैली के लिए जागे जाते हैं।
सारा जोसेफ अलाह्युट्टे पेनमक्कल उपन्यास के लेखक हैं। आनंद एक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने जीवन के अत्यंत दुःख एवं पीड़ा को अपने उपन्यासों एवं लघु कहानियों में चित्रित किया है (मारूभूमिकल उनतकून्नाटू, अरामटे विराल, और नाल्लमेट अनी)।
मलयालम फिक्शन के समकालीन प्रमुख लेखकों में जचिरियाह,एन.एसमाधवन, ग्रेसी, टी.वी. कोचूबावा, के.बी. श्रीदेवी, वल्साला, गीथा हिरणनयन, रोजमेरी,ए.एस. प्रिया, के.एल. मोहनवर्मा, पुन्नतिल, कुनहाबदुला, सी.आरपरमेश्वरम्, अशोकन चारूविल, वैसखान, उन्नीकृष्णन तिरुविझियोडु, सेथूअरविंदक्शन और सी.वी. बालकृष्णन शामिल हैं।
थाकाझी शिवशंकर पिल्लै चेम्मीन और एस.के. पोट्टेकट ने उपन्यास लेखन में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त किए। अन्य चर्चित उपन्यासकार हैं मोहम्मद बशीर, ओ.वी. विजयन और एमण्टी. वसुदेवन नायर। नाटक के क्षेत्र में ई.वी. कृष्णा पिल्लै,सी.जे. थाॅमस, जी.शंकर पिल्लै प्रमुख हैं।
हाल ही के समय के दौरान मलयालम साहित्य ने बेहद शक्ति एवं सृजनात्मकता का प्रदर्शन किया है।