आदि शंकराचार्य जी का जन्म स्थान कहां है , shankaracharya was born in which state hindi

shankaracharya was born in which state hindi आदि शंकराचार्य जी का जन्म स्थान कहां है ?

मध्यकालीन भारत के धार्मिक आंदोलन और धर्म दर्शन।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: शंकराचार्य
उत्तर: 788 ईसवी में केरल में जन्में शंकराचार्य ने वेदांत दर्शनअद्वैतवाद का मत प्रतिपादित किया तथा उन्होंने उत्तर में केदारनाथ, दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में जगन्नाथपुरी तथा पश्चिम में द्वारिका 4 मठ स्थापित किये।
प्रश्न: निम्बार्क
उत्तर: भक्ति आंदोलन के दूसरे नायक रामानज के समकालीन निम्बार्क थे। वे द्वैताद्वैत दर्शन में विश्वास करते थे तथा ईश्वर के प्रति समर्पण पर बल देते थे। इन्होंने सनक संप्रदाय स्थापित किया तथा भेद-भेदात्मक सिद्धान्त दिया।
प्रश्न: माधवाचार्य
उत्तर: माधवाचार्य ने शंकर और रामानज दोनों के मतों का विरोध किया। माधवाचार्य का विश्वास श्द्वैतवादश् में था और वे आत्मा व परमात्मा को पृथक-पृथक मानते थे। वे लक्ष्मी नारायण के उपासक थे। इन्होंने श्ब्रह्म सम्प्रदाय श् की स्थापना की।
प्रश्न: रविदास (रैदास)
उत्तर: ये रामानन्द के अति प्रसिद्ध शिष्यों में से थे। सिक्खों के गुरू ग्रन्थ साहिब में संग्रहीत रविदास के तीस से अधिक भजन हैं। रविदास के अनुसार मानव सेवा ही जीवन में धर्म की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति का माध्यम है। इन्होंने श्रैदासी संप्रदाय श् की स्थापना की। इन्होंने ब्रजभाषा में श्रैदासी पर्चीश् कृष्ण भक्ति की चैपाईयां लिखी।
प्रश्न: नरसी (नरसिंह) मेहता
उत्तर: नरसी या नरसिंह मेहता गुजरात के एक प्रसिद्ध सन्त थे। इन्होंने राधा और कृष्ण के प्रेम का चित्रण करते हुए गुजराती में गीतों की रचना की। ये गीत सुरत संग्राम में संकलित किये गये हैं। महात्मा गाँधी के प्रिय भजन वैष्णवजन तो तेनो कहिए के रचयिता नरसी मेहता थे।
प्रश्न: एकनाथ
उत्तर: महाराष्ट्र के संत एकनाथ की सहृदयता की कोई सीमा नहीं थी। इन्होंने प्रभु की पूजा के लिए काफी दूर से लाये गये गोदावरी के पवित्र जल को उस गधे के गले में उड़ेल दिया (पिला दिया) जो प्यास से मर रहा था।
प्रश्न: मलूक दास
उत्तर: संत मलूक दास का जन्म 1474 ई. में इलाहाबाद में कड़ा नामक स्थान पर हुआ। वे जाति से खत्री थे जाति-पाति के विरोधी थे। वे और
हिन्दू मुस्लिम समन्वय के समर्थक थे।
प्रश्न: तुकाराम
उत्तर: जन्म से तुकाराम शूद्र थे और शिवाजी के समकालीन थे। इन्होंने शिवाजी द्वारा दिये गये विपुल उपहारों की भेंट को लेने से इन्कार कर दिया। इनकी शिक्षाएं श्अभंगोंश् के रूप में संग्रहीत है, जिनकी संख्या हजारों में थी। तुकाराम ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया तथा श्बारकरी पंथश् की स्थापना की।
प्रश्न: निम्न को स्पष्ट कीजिए
. (i) मलफूजात, (ii) तर्क-ए-दुनिया, (iii) खानकाह, (iv) नयनार (v) अलवार।
उत्तर: मलफूजात रू सूफी संतों के विचारों का संकलन श्श्मलफूजातश्श् कहलाता है।
तर्क-ए-दुनिया : भक्ति सुधारकों की तरह अधिकांश सूफियों ने संसार के भौतिकवादी मार्गों का परित्याग किया श्श्तर्क-ए-दुनियाश्श् कहा गया।
खानकाह : सूफी लोगों ने एकान्तवास में जीवन बिताया इनके निवास स्थान “खानकाह” अथवा जमायत कहलाते थें।
नयनार : तमिलनाडु में द्वितीय शताब्दी से नौवीं शताब्दी तक हुए 63 शैव सन्त नयनार कहलाए जिनमें से प्रसिद्ध हुए।
अलवार : तमिलनाडु के मध्ययुगीन 12 वैष्णव सन्त, जो भक्तिरस में डूबे रहते थे। श्प्रबन्धमश् नामक आदर-प्राप्त तमिल ग्रन्थ में इनके गीतों का संग्रह है।
प्रश्न: सूफी संगीत
उत्तर: सूफी सन्तों ने सामूहिक गायन की परम्परा को स्वीकार कर संगीत को लोकप्रिय बनाया। गजल व कव्वाली की गायन उत्तर – शैली प्रसिद्ध हुई। गजल का संग्रह श्दीवानश् कहलाता था। अमीर हसन देहलवी को उसकी गजलों के कारण श्भारत का सादीश् कहा जाता है।
प्रश्न: शेख सुरहानुद्दीन गरीब
उत्तर: दक्षिण भारत में सबसे पहले चिश्ती सिलसिले का विकास श्शेख सरहानददीन गरीबश् के द्वारा किया गया जो श्औलिया के शिष्यष् थे। इन्होंने श्दौलताबादश् में अपना खानकाह स्थापित किया।
प्रश्न: उसैनी गैसुदराज
उत्तर: दक्षिण भारत के सूफी संतों में सबसे प्रमुख श्शेख उसैनी गैसदराजश् थे इन्हें श्बंदानवाजश् कहा गया। इन्हें बहमनी सल्तान ष्फिरोजशाह बहमनीष् ने चार गाँव दान में दिये। इनका खानकाह दौलताबाद था। इन्होंने प्रचलित परम्परा के विपरीत कुछ हद तक इस्लामी कानून को प्रमुखता प्रदान की।
प्रश्न: सत्तारी सिलसिला
उत्तर: सत्तारी सिलसिला की स्थापना लोदी काल में 1485 में सैयद अब्दुल्ला सत्तारी के द्वारा की गई। सैयद अबुल्ला के सबध अकबर से अच्छे नहीं थे। परंतु हुमायूं के साथ अच्छे संबंध स्थापित किये थे। सैयद अब्दुल्ला ने कहा की, जो भी ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है वह मेरे पास आये, मैं उसको ईश्वर तक पहुँचाउंगा।
प्रश्न: फिरदौसी सिलसिल
उत्तर: फिरदौसी सिलसिला बिहार और बंगाल में अधिक फैला। इसके संस्थापक समरकन्द के शेख बदरुद्दीन थे। भारत में पटना के पास मनेर नामक स्थान पर इस संप्रदाय के प्रमुख संत सरफुद्दीन मलेरी ने अपना खानकाह स्थापित किया।
प्रश्न: नक्शबंदी सिलसिला
उत्तर: इस शाखा की स्थापना 14वीं शताब्दी में श्ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदश् ने की थी। बाबर नक्शबंदी संत ख्वाजा ओंवेदुल्ला अहरार का शिष्य था। नक्शबंदियों ने वहदत्त-उल-वुजुद के स्थान पर वहदत-उल-शुहुत की स्थापना की। ख्वाजा महमूद इस शाखा का एक महत्वपूर्ण संत हुआ जिसने कश्मीर को अपना केन्द्र बनाया।
प्रश्न: कादिरी सिलसिला
उत्तर: इस शाखा के संस्थापक बगदाद के शेख मुहीउद्दीन कादिर जिलानी थे। जो शेख मुबारक का शिष्य था। भारत में सर्वप्रथम इस शाखा की
संस्थापना शेख अब्दुल कादिर ने की थी और इसका प्रचार नियामतउल्लाह तथा मकधूम जिलानी ने 15वीं शताब्दी में किया था। मकधूम ने अपना केन्द्र उच्छ को बनाया।
प्रश्न: कलंदरी सिलसिला
उत्तर: इस सिलसिले के संत घमक्कड फकीर होते थे। ये इस्लामी कानून का पालन करने थे एवं नागपंथियों से सम्पर्क रखते थे। इन्होंने नागपंथियों की कई शाखाओं एवं मान्यताओं को अपना लिया था।
प्रश्न: मध्यकालीन सांस्कृतिक समन्वय में सूफी संतों के योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर: इस्लाम के कट्टरवादियों ने शरियत द्वारा हिंदुओं के लिए जो व्यावहारिक दर्जा निश्चित किया था। उसके विपरीत सपनों ने सम्पर्ण मानवता के
प्रति दिव्य-प्रेम, दया एवं सहकर्मिता का पाठ पढ़ाया। सूफीयों ने सांस्कृतिक समन्वय, भक्ति और एकेश्वरवाद का प्रचार किया जिससे बदले हुए वातावरण में इस्लाम को नयी शक्ति दी।
प्रश्न: सल्तनतकाल में सूफी संतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर: सूफी संतों ने कप्रथाओं. आडम्बरों एवं पृथकतावादी तत्वों का विरोध किया और पारस्परिक सहयोग का उपदेश दिया। उन्होंने बदले हुए वातावरण में इस्लाम को खप जाने की ताकत दी। शरियत की पवित्रता की दुहाई का खण्डन करके सूफी संतों ने मानववाद का पक्ष लिया।
प्रश्न: पारसी-धर्म में अग्नि के महत्व पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर: पारसी धर्म में अग्नि को ईश्वर पत्र समान और अत्यन्त पवित्र माना जाता है। इसी के माध्यम से अहरा मज्दा (पारसी देवता) की पूजा की जाती है। पारसी धर्म के मंदिरों में अग्नि की पूजा की जाती है और इसे सभी प्राकतिक तत्वों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। पारसी धर्म में अग्नि को आत्मा को शुद्ध करने वाला माना गया है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: मध्यकालीन युग में भक्ति आंदोलन
उत्तर: श्वेताश्वेत्तर उपनिषद में पहली बार भक्ति का उल्लेख मिलता है। वैष्णव सम्प्रदाय चार प्रमुख शाखाओं में विभाजित प्रथम सम्प्रदाय रामानुज के समर्थकों का था जो लक्ष्मी नारायण की पूजा व भक्ति में विश्वास करते थे। दूसरा सा चैतन्य महाप्रभु का था। तीसरा सम्प्रदाय वल्लभाचार्य के समर्थकों का था। सूरदास व मीराबाई भी इसी सम्प्रदाय के श्री कृष्ण की पूजा करते थे व मूर्ति पूजा पर बल देते थे। चैथा सम्प्रदाय रामानन्द के समर्थकों का था। वे राम-सीता की पूजा करते थे।
प्रश्न: रामानुज
उत्तर: सगुण विचारधारा के संत भक्ति आंदोलन के प्रारम्भिक प्रतिपादक महान वैष्णव गुरु रामानुज थे। उनका जन्म तमिलनाडु राज्य में पेरम्बदूर (तिरुपति) में हुआ था। उन्होंने मनुष्य की समानता पर बल दिया और जाति व्यवस्था की भर्त्सना की। के क्रिया-कलाप का मुख्य केन्द्र काँची और श्रीरंगपट्टम था। रामानुज ने विशिष्टाद्वैत दर्शन (शंकर के अद्वैत के विरुद्धा प्रतिपादन किया। इन्होंने श्श्रीसंप्रदायश् पंथ स्थापित किया। वेदान्तसार, वेदान्त संग्रह, वेदान्त दीपक इनके प्रमुख ग्रंथ हैं।
प्रश्न: रामानन्द
उत्तर: रामानन्द उत्तरी भारत के पहले महान भक्त सन्त थे तथा वे रामानुज के शिष्य थे। रामानन्द ने दक्षिण और उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के बीच सेतु का काम किया अर्थात् भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाये। उनका जन्म इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने विष्णु के स्थान पर राम की भक्ति आरम्भ की। उन्होंने अपने उपदेश संस्कृत के स्थान पर हिन्दी में दिये जिससे यह आंदोलन लोकप्रिय हुआ और हिन्दी साहित्य का निर्माण आरम्भ हुआ। रामानन्द ने चारों वर्णा को भक्ति का उपदेश दिया। उन्होंने सिद्धान्त के आधार पर जाति-प्रथा का
कोई विरोध नहीं किया किन्तु उनका व्यावहारिक जीवन जाति समानता में विश्वास करने का था। रामानन्द के 12 शिष्य थे। उनमें कई जातियों के लोग थे. जैसे – रविदास (रैदास), कबीर-जुलाहा, धन्ना-जाट (किसान), सेना-नाई, सघना-कसाई, पीपा-राजपूत आदि। इन्होंने श्रामावत सम्प्रदाय श् चलाया। वास्तव में मध्ययुग का धार्मिक आंदोलन रामानन्द से आरम्भ हुआ।
प्रश्न: कबीर
उत्तर: रामानन्द के क्रांतिकारी शिष्य कबीर थे। उन्होंने अपने गुरु रामानन्द के सामाजिक दर्शन को सुनिश्चित रूप दिया। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के हिमायती थे। कबीर के ईश्वर निराकार और निर्गुण थे। उन्होंने जात-पात, मूर्ति पूजा तथा अवतार सिद्धांत को अस्वीकार किया। कबीर की शिक्षाएं बीजक में संग्रहीत है, इसके तीन भाग हैं (1) सबद (2) रैमणी, (3) साखी। उनके अनुयायियों को कबीरपंथी कहा जाता था। निर्गुण भक्ति धारा में कबीर पहले संत थे जो संत होकर भी अन्त तक गृहस्थ बने रहे। वे साम्यवादी विचारधारा के थे। जो लोग तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के तीव्र आलोचक थे और हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षपाती थे उनमें से कबीर और नानक का योगदान सबसे अधिक है।