स्वप्रेरण की परिभाषा क्या है ,स्व प्रेरण का प्रायोगिक प्रदर्शन Self induction in hindi स्वप्रेरण किसे कहते हैं

Self induction in hindi स्वप्रेरण किसे कहते हैं स्वप्रेरण की परिभाषा क्या है : जब किसी कुण्डली में परिवर्तित धारा का मान प्रवाहित किया जाता है तो इसमें चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है तथा जिसके कारण इससे सम्बद्ध परिवर्तनशील चुम्बकीय फ्लक्स का मान उत्पन्न हो जाता है। चुम्बकीय फ्लक्स के मान में परिवर्तन होने से प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है इस घटना को ही स्वप्रेरण कहते है।
परिभाषा : किसी कुण्डली में धारा परिवर्तन के कारण प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है इस घटना को स्व प्रेरण कहते है।

स्वप्रेरण का प्रायोगिक प्रदर्शन

स्व प्रेरण की घटना को समझने के लिए एक प्रयोग करते है तथा इसे इस प्रयोग के माध्यम से समझने की कोशिश करते है।
चित्रानुसार एक बल्ब , कुण्डली , बैट्ररी तथा कुंजी को आपस में जोड़ते है।  जब कुंजी को लगाया जाता है तो स्वभाविक है की बल्ब जलेगा लेकिन जब कुन्जी को हटाया जाता है तो बल्ब एकदम से बंद न होकर धीरे धीरे बंद होता है अर्थात कुंजी निकालने के बाद बल्ब कुछ देर पर जलता रहता है।
ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि जब कुंजी को निकाला जाता है तो स्वप्रेरण के कारण धारा के विपरीत दिशा में एक प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है , जब कुंजी को हटाया जाता है तो यह प्रेरित धारा मूल धारा के कम होने का विरोध करती है , इसलिए बल्ब कुछ देर तक जलता रहता है जब तक की प्रेरित धारा मूल धारा का विरोध कर उसको शून्य न होने दे।

स्वप्रेरण अथवा आत्म प्रेरण (self induction in hindi) : स्व प्रेरण की घटना की खोज अमेरिकी वैज्ञानिक “जोसेफ हेनरी ” ने सन 1832 में की थी। “किसी चक्र में धारा परिवर्तन के कारण उसी चक्र में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होने की घटना स्वप्रेरण कहलाती है। ”

किसी चक्र के इस गुण की तुलना जड़त्व से की जा सकती है। जब किसी कुण्डली युक्त चक्र में धारा बढने पर कुंडली के चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता बढती है अत: कुण्डली से गुजरने वाली क्षेत्र रेखाओं की संख्या में वृद्धि होती है। ऐसा होने पर कुण्डली में एक प्रतिकूल विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जो प्रधान धारा का विरोध करता है। इसलिए प्रधान धारा अपने उच्चतम मान को ग्रहण करने में कुछ समय लेती है (यद्यपि यह नगण्य होता है ) | जैसे ही प्रधान धारा अधिकतम मान को प्राप्त कर लेती है , फ्लक्स परिवर्तन समाप्त हो जाता है जिससे प्रेरित विद्युत वाहक बल शून्य हो जाता है। इसी प्रकार परिपथ तोड़ते समय चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की संख्या घटती है अत: समान दिशा में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है जो प्रधान धारा को एकदम शून्य नहीं होने देती है। चित्र में उक्त दोनों स्थितियां प्रदर्शित की गयी है। स्पष्ट है कि स्वप्रेरण के कारण ही किसी कुण्डली में धारा न तो एकदम अधिकतम हो पाती है और न ही एकदम शून्य हो पाती है।
जिस स्थान पर परिपथ टूटता है , उस स्थान पर दोनों बिन्दुओं के मध्य यह प्रेरित धारा विभवान्तर उत्पन्न कर देती है जो इतना अधिक हो सकता है कि दोनों बिन्दुओं के मध्य विद्युत प्रवाह को हवा का पृथककारी गुण न रोक सके तथा धारा वास्तव में प्रवाहित हो जाए। इस धारा प्रवाह से उत्पन्न ऊष्मा चिंगारी के रूप में देखी जा सकती है। इस प्रकार स्वप्रेरण के कारण मुख्य धारा की वृद्धि तथा पतन दोनों का समय बढ़ जाता है परन्तु समय की यह वृद्धि परिपथ को तोड़ने की अपेक्षा जोड़ने के समय अधिक होती है क्योंकि तोड़ने की स्थिति में प्रेरित धारा को विद्युत चक्र पूर्ण नहीं मिलता है।

प्रायोगिक प्रदर्शन : स्वप्रेरण की घटना का प्रदर्शन चित्र में दिखाए गए परिपथ की सहायता से किया जा सकता है। कुंजी दबाने पर बल्ब जलना कोई विशेष बात नहीं है परन्तु कुंजी को खोलने पर बल्ब एकदम चमकना बंद न करके कुछ देर तक चमकता रहता है अर्थात धीरे से बंद होता है , यह विशेष बात है। उक्त व्यवहार स्वप्रेरण के कारण होता है। कुंजी को खोलते समय स्वप्रेरण के कारण समान दिशा में धारा उत्पन्न हो जाती है जो प्रधान धारा के घटने का विरोध करती है तथा वह यकायक शून्य नहीं हो पाती है। इसलिए कुंजी खोलने के बाद भी बल्ब कुछ समय के लिए चमकता रहता है।