seed dormancy and germination notes in hindi , बीज प्रसुप्ति के कारण (Causes of seed dormancy)

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बीज प्रसुप्ति एवं अंकुरण (Seed Dormancy and Germination)

प्रसुप्तावस्था (Dormancy)

परिचय (Introduction)

सामान्यतः पादप के जीवन चक्र की कोई भी ऐसी अवस्था जिसमें सक्रिय वृद्धि अस्थायी तौर पर रूक गई है, प्रसुप्ति अथवा प्रसुप्तावस्था (dormancy) कहलाती है। अधिकांश स्थलीय पादप कभी न कभी प्रसुप्तावस्था से अवश्य गुजरते हैं। निम्न वर्ग के पादपों में यह बीजाणु (spores) के रूप में होती है। उच्च वर्ग में अनेक पादपों में विश्रामी अंग पाये जाते हैं, जैसे विभिन्न प्रकार के कंद – कंद (tuber). शल्ककंद (bulb ), प्रकंद (rhizome ) एवं विश्रामी कलिकाएँ आदि। लगभग सभी आवृतबीजियों में बीज एवं कलिकाओं में प्रसुप्तावस्था पाई जाती है।

पुष्पी पादपों में “बीज” पादप विकास (evolution) के इतिहास की सर्वाधिक श्रेष्ठ व विलक्षण उपलब्धि मानी जा सकती है। बीज वातावरणीय परिस्थितियों से निपटने के लिए एक विशिष्ट प्रतिरोधी (resistant) संरचना है जिसमें पादप सूक्ष्म भ्रूणीय अवस्था में एक विशेष कठोर रक्षी आवरण बीज चोल से ढका रहता है। बीजों की संरचना इस प्रकार की होती है कि अनेक वर्षों तक बिना क्षति के पादप भ्रूण इसमें सुरक्षित रह सकता है तथा अंकुरण के समय इसमें संग्रहीत पदार्थ भ्रूण के विकास एवं नवोद्भिद (seedling) की वृद्धि में सहायता करते हैं।

बीज प्रसुप्तावस्था (Seed dormancy)

अधिकांशतः पादपों के बीज अंकुरण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ यथा उपयुक्त तापमान, आर्द्रता, हवा एवं प्रकाश इत्यादि मिलने पर अंकुरित हो जाते हैं व नवोद्भिद (seedlings) बनाते हैं। अनेक पादपों के बीज जीवनक्षम (viable) हो हुए भी अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद अंकुरित नहीं हो पाते। कुछ पादपों में तो बीजांकुरण कई महीनों अथवा सालों तक निलंबित हो जाता है।

बीजों की ऐसी अवस्था जिसमें अंकुरण हेतु आवश्यक सभी पर्यावरणीय कारकों (environmental factors) की उपस्थिति में भी वे अंकुरित नहीं हो पाते, बीज सुषुप्तावस्था (seed dormancy) कहलाती है। ऐसर (Acer) के अनुसार प्रसुप्तावस्था आंतरिक कारकों द्वारा नियंत्रित एवं पर्यावरणीय कारकों द्वारा आरोपित वृद्धि का अस्थायी निलंबन है जिसमें उपापचयी क्रियाएँ न्यूनीकृत होती हैं। यह पादप की लाक्षणिक परिवर्धन के व्युत्क्रमणीय (reversible) रुकावट (interruption) में मदद करता है । सुषुप्तावस्था बीज के आंतरिक कारण अथवा परिस्थितियों के कारण होती है। इसे जन्मजात प्रसुप्ति (innate dormancy) अथवा प्राथमिक प्रसुप्ति (primary dormancy) भी कहते हैं।

इसके विपरीत शांत अवस्था (quiscence) वह स्थिति होती है जिसमें अंकुरण हेतु उपयुक्त वातावरण अथवा कार उपलब्ध न होने के कारण बीजांकुरण नहीं हो पाता। यह बाहरी कारकों अथवा परिस्थितियों के कारण होती है। इसे द्वितीयक प्रसुप्ति (secondary dormancy) अथवा आरोपित प्रसुप्ति (imposed dormancy) भी कहते हैं।

अधिकांश बीज शुष्कन (drying) अथवा हिमकारी ताप (-196°C) को सरलता पूर्वक झेल सकते हैं ऐसे बीज पारंपरिक बीज (orthodox seeds) कहलाते हैं। सामान्यतः प्रसुप्ति (dormancy) बीजों को प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहने में मदद करती हैं।

बीज प्रसुप्ति के कारण (Causes of seed dormancy)

बीजों में प्रसुप्तावस्था (dormancy) अनेक कारणों से हो सकती है, जैसे- बीजों की संरचना के कारण, बीजों में कार्यिकी (physiological) कारणों से अथवा पर्यावरणीय कारणों (environmental reasons) से तुरंत बीजांकुरण नहीं हो पाता।

  1. प्राथमिक प्रसुप्ति (Primary dormancy)

बीज के अंतनिर्हित कारणों से बीजांकुरण का विलंबन (delaying ) प्राथमिक प्रसुप्ति (primary dormancy) कहलाती है। यह निम्न कारणों से हो सकती है-

  1. बीजावरण अथवा फल भित्ति के कारण
  2. भ्रूण की अवस्था के कारण
  3. विशिष्ट प्रकाश आवश्यकताओं के कारण
  4. बीजों में अंकुरण दमनकों की उपस्थिति के कारण
  5. निम्न तापमान की आवश्यकताओं के कारण
  6. प्रकाश एवं तापमान का सम्मिति प्रभाव
  7. बीजावरण अथवा फल भित्ति के कारण (Dormancy due to seed coat or fruit wall)

बीजों के परिवर्धन एवं परिपक्वन के दौरान बीज में विभिन्न परिवर्तन होते हैं जो बीजों को विपरीत परिस्थितियों को सहन करने में मदद करते हैं। अनेक बार यही परिवर्तन कभी-कभी उनके अंकुरण में अवरोधक बन जाते हैं।

बीजों में विभिन्न पोषक पदार्थ यथा मंड, प्रोटीन, शर्करा इत्यादि संग्रहीत होते हैं तथा जल की मात्रा बहुत कम होती है। बीज व बीज चोल की संरचना के कारण जल, वायु इत्यादि भीतर प्रवेश नहीं कर पाते, अतः अंकुरण प्रभावित होता है। बीजावरण तथा अन्य आवरणों के कारण निम्न 5 प्रकार से प्रसुप्ति को प्रभावी बनाते हैं-

(i) जल के प्रति अपारगम्यता (Impermeability to water)

अनेक पादपों के बीजों में लिग्निन, मोम, वसीय पदार्थों तथा अन्य बहुशर्करा के निक्षेपण व एकत्रण के कारण ये जल के लिए अपारगम्य हो जाती है। जल अंकुरण की प्राथमिक आवश्यकता है, अतः जल उपलब्ध नहीं होने की अवस्था में अं नहीं हो पाता ।

कुछ पादपों में फल की संरचना भी बीज प्रसुप्ति में मदद करती है। उदाहरणतया ‘पवित्र कमल’ की फलभित्ति इस प्रकार की होती है कि जल इसमें किसी प्रकार प्रवेश नहीं कर पाता जब तक कि फलभित्ति को तोड़ा न जाये तथा इसमें बीज का बीज चोल भी स्थूलित होता है। अतः वर्षों तक अंकुरण संभव नहीं हो पाता ।

लेग्यूमिनोसी कुल के अधिकांश सदस्यों, मालवेसी व लेबिएटी (Malvaceae and Labiatae) कुल : कुछ सदस्यों में बीज चोल जल के लिए अपारगम्य होते हैं, जैसे ट्राइफोलियम (Trifolium) एवं एल्फाफा (Medicago sp.) इत्यादि । इनमें जल नाभिक (hilum) से ही प्रवेश कर सकता है जो सामान्य परिस्थिति में प्लग (plug) द्वारा अवरुद्ध होता है, जो विशिष्ट परिस्थितियों में ही हट सकता है।

कालांतर में बीज में कवकों एवं जीवाणुओं के संक्रमण, आग के कारण बीज चोल व अस्फुटनशील फलों में फलभित्ति नरम हो जाती है तथा अंकुरण संभव हो पाता है। उदाहरण- मेलीलोटस (Melilotous), ट्राइगोनेला (Trigonella) इत्यादि । कुछ पादपों में विशिष्ट संरचनाओं से बना छिद्र बीजों में जल के आवागमन को नियंत्रित करता हैं।

ल्यूपिनिस आर्बोरियस (Lupinus arboreus) में जलावशोषण आर्द्रताग्राही वाल्व के द्वारा नियंत्रण होता है। जल बीज में से भीतर प्रवेश नहीं कर पाता तथा केवल नाभिक (hilum) में से ही जल भीतर प्रवेश कर पाता है। जब वायु में अधिक आर्द्रता होती है तो नाभिक की कोशिका जलावशोषण कर फूल जाती है तथा नाभिक (hilum) वाले प्रवेश मार्ग को अवरुद्ध कर देती है।

(ii) गैसों के प्रति अपारगम्यता (Impermeability to gases) – अनेक पादपों में बीज जल के लिए तो पारगम्य (permeable) होते हैं परन्तु वायु के लिए अपारगम्य होते हैं। सामान्यतः बीज O2 एवं CO2 में से किसी एक गैस के लिए अपारगम्य होते हैं। उदाहरणतया – जैन्थीयम पैनीसिल्वेनिकम (Xanthium pennysylvanicum) बीज में ऑक्सीजन के लिए पारगम्यता बहुत कम होती है। जैन्थीयम के फल में दो बीज होते हैं। इनमें से एक ऊपरी बीज की O2 के लिए अल्प पारगम्यता के कारण प्रसुप्त (dormant) होता है। अतः भ्रूण में पर्याप्त O2 नहीं मिल पाने के कारण अंकुरण नहीं हो पाता। बहुत अधिक मात्रा में ऑक्सीज़न देने पर बीज प्रसुप्तावस्था से बाहर आ जाते हैं। इस प्रकार की प्रसुप्ति घास वर्ग तथा कम्पोसिटी (Compositae) कुल के बीजों में भी पाई जाती है। सफेद सरसों अथवा साइनेपिस एल्बा ( Sinapis alba) में प्रसुप्ति संभवतः CO2 के लिए अपारगम्यता के कारण होती है। अनेक बीजों में अंदर CO2 की सांद्रता बढ़ जाने के कारण ऊतक क्षय ( necrosis ) हो जाता है अथवा संदमक बन जाते हैं।

(iii) यांत्रिक प्रतिरोध (Mechanical resistance)- अनेक पादपों में बीज चोल बहुत सख्त एवं कठोर होता है। इस कारण अंकुरित भ्रूण का मूलांकुर इसको भेदकर बाहर नहीं निकल पाता। अनेक पादपों में यह प्रसुप्तावस्था का एक मुख्य कारक (main factor) होता है, उदाहरण – कैप्सेला ( Capsella) | सख्त, लिग्निीकृत (lignified) बीज चोल युक्त दृढ़फल (nuts) इसी प्रकार के फल हैं। कुछ पादपों जैसे (lettuce) में भ्रूणपोष जैसे मृदूतकी भाग के कारण भी भ्रूण को फैलने के लिए स्थान नहीं मिल पाता तथा अंकुरण संदमित हो जाता है। ज्वार (Sorghum halepensis) में बीज ग्लूम्स (glumes) से संलग्न हो जाते हैं तथा बाह्य कारणों से अंकुरण नहीं हो पाता। बीजांकुरण के लिए भ्रूणपोष की भित्तियों को कमजोर करना आवश्यक होता है।

(iv) वृद्धि संदमकों का उत्पादन एवं धारणा (Production and/or retention of growth inhibitors)- अनेक बीजों में वृद्धि संदमक पाये जाते हैं जो बीज चोल में से बाहर नहीं निकल पाते। उदाहरणतः जैन्थीयम (Xanthium) में उपस्थित संदमक भ्रूण में से बाहर आ जाते हैं परन्तु बीज चोल में से नहीं निकल पाते, अतः अंकुरण नहीं हो पाता ।

अनेक पादपों की फलभित्ति तथा/अथवा बीज चोल में उच्च सांद्रता में वृद्धि संदमक पाये जाते हैं जो भ्रूण की वृद्धि को अवरुद्ध कर सकते हैं। आमतौर पर एबसिसिक अम्ल (Abscisic acid) संदमक के रूप में पाया जाता है।

  1. भ्रूण की अवस्था जनित प्रसुप्ति (Dormancy due to state of embryo)

अनेक पादपों में बाहरी कारक अर्थात् बीज चोल, भ्रूणपोष अथवा फलभित्ति का कोई प्रभाव नहीं होता परन्तु भ्रूण की अवस्था (state) ऐसी होती है कि वह विकसित नहीं हो पाता ।

(i) अर्ध विकसित भ्रूण की उपस्थिति (Poorly developed embryo)

अनेक पादपों में परिपक्व बीज में भ्रूण अल्पविकसित ( rudimentary) अथवा अर्धविकसित होते हैं जैसे ऑर्किडेसी (Orchidaceae) व ऑरोबैक्केसी (Orobanchaceae) के सदस्य तथा एनीमोन नीमोरोसा (Anemone nemorosa)। इन में भ्रूण की विकास दर आसपास की कोशिकाओं से कम होती है, अतः बीजों के प्रकीर्णन के समय भ्रूण अल्पविकसित रह जाता है। ऐसे कुछ बीजों में भ्रूण का विकास प्रसुप्ति काल के दौरान होता है तथा बाद में अंकुरण हो सकता है।

(ii) अनुपक्वन वांछित भ्रूण (Embryo needing after-ripening

अनेक पादपों में भ्रूण पूर्ण विकसित होने के बावजूद पुनः वृद्धि प्रारंभ नहीं करवाते जैसे सेब, मटर, चेरी इत्यादि में। इनमें बीज चोल हटाने पर भी अंकुरण नहीं होता। ये भ्रूण कार्यिकी (physiologically) स्तर पर वृद्धि के लिए तैयार नहीं होते। इन्हें निम्नताप, नम, खुले हवादार स्थान में रखने (store) के बाद ही अंकुरण संभव हो पाता है। यह प्रक्रिया अनुपक्चन (after-ripening) अथवा (stratification) कहलाती है, जिसमें प्रसुप्त भ्रूण में अनेक शरीरक्रियात्मक परिवर्तन होते हैं व वृद्धि के लिए तैयार होता है।

(iii) अन्य कारणों से (Due to other reasons )

अनेक पादपों में भ्रूण बीजों में पूरी तरह से विकसित होता है परन्तु अन्य कारणों से अंकुरण नहीं हो पाता है। लैट्यूस (Lactuca) में भ्रूण पूर्ण विकसित होता है परन्तु भ्रूणपोष चारों ओर से इसे घेरे रहता है तथा इसके मोटी भित्ति युक्त होने के कारण भ्रूण बाहर नहीं आ पाता ।

अनाज वर्ग के पौधों में (जैसे गेहूँ, बाजरा, जौ, मक्का आदि) बीज परिपक्वन के एकदम बाद अंकुरित नहीं होते परन्तु कुछ समय बाद (इनके वृद्धि काल के समय के आस पास ये अंकुरित हो जाते हैं। संभव है कि भ्रूण पहले पूर्ण रूप में विकसित नहीं हो पाया हो ।

  1. अंकुरण दमनकों के कारण (Due to presence of germination inhibitors)

अनेक बीजों से विभिन्न प्रकार के पदार्थों का विलगन (isolation) किया गया है जिनमें से अनेक बीजांकुरण के लिए दमनकारी होते हैं। कुछ ऐसे पदार्थ भी स्त्रावित होते हैं जो बीजांकुरण को बढावा भी देते हैं। ये पदार्थ कार्बनिक अम्ल, फीनोलिक पदार्थ, टैनिन, एल्कलॉइड, असंतृप्त लैक्टोन, इन्डोल, जिबरेलिन तथा अमोनिया एवं साइनाइड देने वाले पदार्थ व अन्य पदार्थ (विशेषकर लैग्यूमी पौधौ में) होते हैं। ये सभी उनकी प्रकृति के आधार पर वृद्धि रोक सकते हैं अथवा बढ़ावा दे सकते हैं। उदाहरणतया टमाटर के बीज में फेरुलिक अम्ल ( ferulic acid) पाया जाता है जो भ्रूण की वृद्धि नहीं होने देता। इनके अतिरिक्त कूमेरिन (coumarin), एबसिसिन ( abscisin) इत्यादि भी प्राकृतिक संदमक हैं जो बीजों में पाये जाते हैं।

जैन्थीयम (Xanthium) में पाया गया कि प्रसुप्तावस्था ऑक्सीजन की कमी की अपेक्षा भ्रूण में अंकुरण दमनक के कारण होती है जो बीज चोल से बाहर नहीं निकल पाते। अधिक मात्रा में ऑक्सीजन शायद उसके निक्षालन अथवा ऑक्सीकरण में मदद कर उसकी सांद्रता में कमी द्वारा अंकुरण में मदद करती है।

  1. विशिष्ट प्रकाश की आवश्यकताओं के कारण (Due to specific light requirement )

कुछ पादपों में बीजांकुरण प्रकाश की अवधि उसकी गुणवत्ता व मात्रा पर भी निर्भर करता है। ये बीज फोटोब्लास्टिक बीज (photoblastic seeds) कहलाते हैं। इनमें कुछ पर धनात्मक प्रभाव होता है। वे धनात्मक फोटोब्लास्टिक तथा जिनमें प्रकाश के कारण अंकुरण कम हो जाता है, वे ऋणात्मक फोटोब्लास्टिक (negatively photoblastic) कहलाते हैं।

कैप्सेला बर्सा-पैस्टोरिस (Capsella bursa pestoris), डिजिटेलिस परपूरिया (Digitalis purpurea), तम्बाकू एवं चीनोपोडियम रूब्रम (Chenopodium rubrum) धनात्मक फोटोब्लास्टिक पादप हैं। इसके विपरीत नाइजेला डेमेसेन्स (Nigella damascens), साइलीन आर्मेरिया (Silene armeria) इत्यादि ऋणात्मक फोटोब्लास्टिक पादप हैं। ये पादप सफेद प्रकाश में अकुरित नहीं होते ।

प्रकाश की विभिन्न रंगों की तरंगों का भी अंकुरण पर प्रभाव पड़ता है। बोर्थविक एवं साथियों (Borthwick et al. 1962) ने प्रकाश की गुणवत्ता का अंकुरण पर प्रभाव देखने का प्रयास किया व पाया कि अंकुरण के लिए लाल प्रकाश (650 nm) अधिक प्रभावी होते हैं तथा दूरस्थ लाल (far red) प्रकाश (730 nm) अंकुरण को रोक देते हैं।

कुछ पादपों जैसे- टमाटर, खीरा एवं लेट्यूस के बीज प्रकाश संवेदी नहीं होते। अंधेरे एवं प्रकाश में समान रूप से अंकुरित होते हैं।

साल्विया (Salvia) की दो प्रजातियों में रीज की उम्र का भी अंकुरण के लिए प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता पर अन्तर पड़ता है। ये जल्दी ही प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता खो देते हैं। कुछ अन्य पादपों में प्रकाश सवेदनशीलता एक वर्ष तक अथवा अधिक काल के लिए रहती है। उदाहरण-रूमेक्स एसिटोसैला (Rumex acetosella) |