scandium electron configuration in hindi , स्कैंडियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्या है , टाइटेनियम (Titanium) ?
तत्वों के गुण (Properties of the elements)
प्रथम संक्रमण श्रृंखला के सभी तत्व सामान्य हैं तथा सभी औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। सभी धातुएँ प्रकृति में संयुक्त अवस्था में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है तथा अधिकांश धातुओं को वाल्या भट्टी में अपचयन द्वारा बनाया जाता है. यद्यपि कुछ धातुओं के लिए कार्बन अपचयन विधि उपयुक्त न रहने के कारण उन्हें अलग विधियों से प्राप्त किया जाता है।
ये धातुएँ क्रियाशील एवं विद्युतधनीय हैं। ये दोनों ही गुण श्रृंखला में दार्यी ओर बढ़ने पर घटते हैं। 3d धनायन अपेक्षाकृत छोटे होते हैं जिसके कारण धनायन पर आवेश घनत्व अधिक होता है। उदाहरण के लिए, जल में Fe- आयन अत्यधिक जलयोजित [Fe(H2 O)6 ] 3+ आयन के रूप में पाया जाता है तथा यह धनायन जल अणु से इलेक्ट्रॉन घनत्व ग्रहण करके उसे आयनित कर देता है:
[Fe(H2O)g]3+ +H2O ((H2O)5 (OH) ] 2 + + H3 O+
फलतः, जलयोजित संक्रमण धातु धनायन अम्लों की भांति आचरण करते हैं। हलके माध्यम में धनायन का विप्रोटॉनीकरण (deprotonation) हो जाता है जिसे रोकने के लिए विलयन में H’ आयन सान्द्रता अधिक होनी चाहिए। सुविधा के लिए सामान्यतः जलयोजित आयन में H2O अणुओं को नहीं लिखा जाता है तथा यदि आयन में दो हाइड्रॉक्साइड आयन भी हैं तो उसमें से भी H2 O निकल जाता र (V(OH)2 (H2O)4 2+ आयन को [VO (H2O) 5] 2+ या VO2+ आयन लिखते हैं। संक्रमण तत्व नॉन – स्टाइकियोमितीय हाइड्रॉइड, कार्बाइड, ऑक्साइड आदि यौगिक बनाते हैं जिन्हें अन्तराकाशी (interstitial) यौगिक कहते हैं। इन यौगिकों में छोटे अधात्विक परमाणु धातु जालक में प्रवेश कर जाते हैं। इन यौगिकों की विशेषता यह है कि इनमें अधातु परमाणु की सामान्य से अधिक समन्वय संख्या पाई जाती है- उदाहरण के लिए TiC में C की समन्वय संख्या 6 होती है। ये अन्तराकारी यौगिक से धात्विक गुण प्रदर्शित करते हैं, यथा उच्च कठोरता, चालकता एवं गलनांक । उदाहरण के लिए 4TIC + ZrC यौगिक का सर्वोच्च ज्ञात गलनांक ( 4215°C) है। इसी प्रकार, हीरे की कठोरता मोह मापक्रम पर 10 है तथा इनकी भी लगभग इतनी ही पाई जाती है। उदाहरणार्थ,
ये यौगिक अत्यधिक अक्रिय हैं। टाइटेनियम, वैनेडियम तथा क्रोमियम जैसी श्रृंखला के आरम्भ में आने वाले तत्वों के अन्तराकाशी यौगिकों में धातुः अधातु अनुपात कम होता है।
टाइटेनियम से श्रृंखला के सभी सदस्य एक से अधिक ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं। टाइटेनियम के लिए वर्ग ऑक्सीकृत अवस्था IV सर्वाधिक स्थाई है तथा निम्नतर अवस्थाओं की अपचायक शक्ति बढ़ती जाती है। श्रृंखला में आगे बढ़ने पर वर्ग ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व घटता चला जाता है तथा ऑक्सीकारक शक्ति बढ़ती चली जाती है। इस प्रकार, मैंगनीज के VII ऑक्सीकरण अवस्था प्रबल ऑक्सीकारक हैं। मैंगनीज से आगे तत्व वर्ग ऑक्सीकरण अवस्था से बहुत कम यौगिक ज्ञात हैं प्रदर्शित नहीं करते हैं तथा +3 से अधिक ऑक्सीकरण अवस्था अस्थाई तथा प्रबल ऑक्सीकारक होती है। क्रोमियम से आगे के तत्वों की +2 या +3 ऑक्सीकरण अवस्था सर्वाधिक स्थाई होती है, तथा इन दोनों अवस्थाओं का आपेक्षिक स्थायित्व d इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करता है। श्रृंखला के अन्त में +2 अवस्था सर्वाधिक स्थाई हो जाती है, उदाहरणार्थ, Ni(II) तथा Cu(II)
वर्ग ऑक्सीकरण अवस्था तथा +2 या +3 अवस्थाओं के मध्य आने वाली ऑक्सीकरण अवस्थाओं में असमानुपातन (disproportionation) की प्रवृत्ति पाई जाती है। उदाहरण के लिए, Cr(IV) तथा Cr(V) एवं Mn(V) व Mn(VI) के बहुत कम यौगिक ज्ञात हैं ।
आरम्भ में आयनिक आकार सबसे बड़ा होता है। लेकिन परमाणु संख्या बढ़ने के साथ-साथ यह घटता चला जाता है। अतः टाइटेनियम, वैनेडियम आदि प्रथम श्रृंखला के आरम्भ में पाये जाने तत्व अपने चारों ओर छः परमाणुओं से बंध बना सकते हैं जिससे अष्टफलकीय संरचना के उपसहसंयोजक यौगिक प्राप्त होते हैं। लेकिन, क्रोमियम से 4 समन्वय संख्या प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति भी धातुओं में पाई जाती है यद्यपि छः समन्वय संख्या अति सामान्य है। उदाहरण के लिए CTO 2- तथा Cr20, 2- चतुष्फलकीय संरचनायें ज्ञात हैं लेकिन अधिकांश यौगिकों की संरचनायें अष्टफलकीय होती है। कोबाल्ट तक प्रमुख समन्वय संख्या 6 होती है, जबकि निकल के लिए 4 समन्वय संख्या अधिक सामान्य है तथा दोनों प्रकार के वर्गाकार समतलीय तथा चतुष्फलकीय यौगिक बनते हैं। कॉपर की भी मुख्य समन्वय संख्या 4 है। लेकिन बहुत से अष्टफलकीय यौगिक भी ज्ञात है। श्रृंखला में दायीं ओर के तत्व छोटे आकार के कारण कम समन्वय संख्या के संकुल बनाते हैं लेकिन Cu में d कक्षक पूर्ण रूप से भर जाने के कारण आकार में वृद्धि हो जाती है जिससे 6- उपसहसंयोजित यौगिक निर्माण की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। आगामी पृष्! में प्रथम संक्रमण श्रृंखला के तत्वों के प्रमुख गुणों का पृथक-पृथक वर्णन किया गया है।
- स्कैन्डियम (Scandium), Z= 21 (1s2 2s2p6, 3s2p6d14s2)
स्कैन्डियम का मुख्य खनिज थार्टवाइटाइट (thortveitite), Sc2 Si2O2 है । अब स्कैन्डिमय में बनता Sc203 से प्राप्त करते हैं जो यूरेनियम के निष्कर्षण में उपोत्पाद (by-product) के रूप ट्राईफ्लुओराइड के कैल्सियम धातु द्वारा अपचयन से स्कैन्डियम धातु को प्राप्त किया जा सकता है
स्कैन्डियम उच्च गलनांक एवं क्वथनांक की एक धातु है जिसके प्रथम तीनों आयनन विभवों के भए इतने कम हैं कि अभिक्रिया के समय तीनों इलेक्ट्रॉन निकल जाते हैं। यही कारण है कि स्कैन्डिय आग्रनिक यौगिकों में केवल +3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है। इस ऑक्सीकरण अवस्था में या मुख्यतः आयनिक यौगिक बनाता है तथा संक्रमण तत्वों की परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करने की विशिष्टता यहां देखने को नहीं मिलती है । उपसहसंयोजक यौगिक निर्माण की भी इस तत्व में बहुत कम प्रवृत्ति पाई जाती है। Sc 3+ आयन प्रतिचुम्बकीय है तथा इसका विन्यास होने के कारण रंगहीन यौगिक बनाता है।
IIIB वर्ग में स्कैन्डियम की रासायनिक क्रियाशीलता सबसे कम होती है। वायु में जलकर यह S20 बनाता है तथा कक्षीय ताप पर हैलोजेनों से एवं गर्म करने पर अधिकांश अधातुओं से अभिक्रिया कर द्विअंगी यौगिक बनाता है। यह तनु अम्ल में घुल जाता है तथा गर्म करने पर जल को H में अपचयित कर देता है। प्रबल अम्लों के साथ धातु के विलेय लवण बनते हैं लेकिन दुर्बल अम्ल, उदाहणार्थ HF, H3 PO4 H2C204 अल्प विलेय या अविलेय लवण बनाते हैं।
- टाइटेनियम (Titanium), Z = 22, 1s2, 2s2p6 3s2p6d2 4s2
यह संक्रमण धातु ऑक्सी यौगिकों के रूप में पृथ्वी में बहुतायत से पाया जाता है । इलमेनाइट (IIlmenite), FeTiO3 तथा रूटाइल, TiO, इसके मुख्य खनिज हैं जिनका कार्बन द्वारा धातु में अपचयन सम्भव नहीं है क्योंकि कार्बन के साथ गर्म करने पर धातु कार्बाइड बनता ही वायुमण्डलीय O♭ तथा N2 भी अभिक्रिया कर जाती है। इसे निम्न प्रकार प्राप्त किया जा सकता है :
TiO2 + Cl2 →TiCl4 → TiCl4 → Ti + Mg + MgCl2
यह उच्च क्वथनांक व गलनांक वाली कठोर तथा उच्च तापसह (refractory) धातु है जो ऊष्मा तथा विद्युत सुचालक है।
संक्षारण (corrosion) के प्रति प्रतिरोधी होने के कारण टाइटेनियम का टर्बाइन (turbine) में उपयोग किया जाता है।
टाइटेनियम की +4 अतिसामान्य ऑक्सीकरण अवस्था है । यद्यपि यह बहुत सी निम्नतर ऑक्सीकरण अवस्थायें प्रदर्शित करता है +3 अन्य सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था है। ये सभी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अपेक्षाकृत अस्थाई हैं तथा वायु, जल तथा अन्य अभिकर्मकों द्वारा तेजी से +4 ऑक्सीकरण अवस्था में ऑक्सीकृत हो जाती है। अत्यधिक आवेश घनत्व होने के कारण Ti4+ नहीं बनता है तथा यौगिकों में विचारणीय मात्रा में सहसंयोजकीय गुण पाये जाते हैं। यह धातु अपेक्षाकृत अक्रिय है तथा उच्च ताप पर H2, X2, O2, N2, C, B, S आदि अधातुओं से सीधे ही अभिक्रिया कर जाती है। इस प्रकार से निर्मित द्विअंगी यौगिक अन्य स्थाई कठोर तथा उच्चतापसह जो कक्षीय ताप पर अम्लों तथा गर्म क्षारकों द्वारा अप्रभावित रहते हैं। तथापि, गर्म HCI में घुलकर यह +3 ऑक्सीकरण अवस्था यौगिक बनाता है लेकिन नाइट्रिक अम्ल में जलीय ऑक्साइड बनते हैं जो अम्ल तथा क्षारकों में अविलेय हैं।
टाइटेनियम (IV) ऑक्साइड दुर्बल अम्लीय है। सभी टेट्राहेलाइड तेजी से जल अपघटित हो जाते हैं। इनमें TiF, सर्वाधिक स्थाई है। TiX, यौगिक इलेक्ट्रॉन ग्राही का कार्य करते हैं तथा दाताओं (L) के साथ TiXL, योगात्मक यौगिकों का निर्माण करते हैं। Ti(IV) यौगिक रंगहीन होते हैं क्योंकि इस अवस्था में कक्षक रिक्त (d° विन्यास) होते हैं जिसके कारण d d स्थानान्तरण नहीं हो पाता है।
टाइटेनियम (III) यौगिक अपेक्षाकृत अधिक क्षारकीय होते हैं। इस अवस्था में dl इलेक्ट्रॉन दृश्य-क्षेत्र में विकिरण का अवशोषण कर लेता है जिससे जलीय विलयन रंगीन दिखाई देते हैं। Ti(III) यौगिकों का चुम्बकीय अध्ययन करने पर उनमें अनुचुम्बकत्व गुणों तथा एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की उपस्थिति का पता चलता है।
टाइटेनियम यौगिकों का मुख्य उपयोग त्सीग्लर-नट्टा उत्प्रेरक (Ziegler- Natta Catalyst) के रूप में होता है। इस प्रक्रम में TiCl तथा ऐलुमिनियम ट्राइऐल्किल के मिश्रण का उपयोग ऐल्कीनों के बहुलकीकरण (polymerization) हेतु किया जाता है। TiO2 का उपयोग (paint) उद्योग में भी बहुतायत से किया जाता है।
- वैनेडियम (Vanadium) Z = 23, 1s2 2s2 p6 3s2 p6d3 4s2
वैनेडियम के प्रमुख खनिज ये हैं- पैट्रोनाइट (patronite ), VS4 वैनेडिनाइट (Vanadinite)] [Pb5(VO4)3Cl] तथा कार्नाटॉइट (carnotite), [K (UO2) VOH2O)], वैनेडियम अयस्कों का कार्बन द्वारा अपचयन नहीं किया जा सकता क्योंकि टाइटेनियम की तरह यह भी कार्बन, नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन से अभिक्रिया कर लेता है। विशुद्ध धातु प्राप्त करने के लिए VCI5 का H2 या Mg से या V2O5 का Ca से अपचयन किया जाता है I
यह चाँदी की तरह सफेद चमकदार धातु है जिसके गलनांक तथा क्वथनांक उच्च होते हैं। अशुद्धि बढ़ने पर धातु की कठोरता तथा भंगुरता (brittleness) बढ़ती है। यह धातु टाइटेनियम की तुलना में कम विद्युतीय तथा आकार में छोटा होता है ।
वैनेडियम अपने पूर्ववर्ती तत्व टाइटेनियम से कई गुणों में समानता दर्शाता है। यह बहुत सी अधातुओं के साथ अभिक्रिया करके अन्तराकाशी (interstitial ) तथा नॉन – स्टाइकियोमीट्री यौगिक बनाता है, यद्यपि ये अभिक्रियाएँ अपेक्षाकृत उच्चतर तापक्रम पर होती हैं इस प्रकार, इनके हाइड्राइड, बोराइड, कार्बाइड तथा नाइट्राइड कठोर एवं उच्चतापसह पदार्थ हैं जिनकी सुचालकता भी उच्च होती है। हैलोजनों के साथ विभिन्न परिस्थितियों में गर्म करने पर ट्राई – टेट्रा, तथा पेन्टाहेलाइड प्राप्त होते हैं। अत्यधिक विद्युतऋणीय तत्व F2 तथा O2 के साथ अभिक्रिया से वैनेडियम पंचसंयोजकीय यौगिक बनाता है जबकि अन्य अधातुओं के साथ निम्नतर ऑक्सीकरण अवस्था से यौगिक बनते हैं। इसके यौगिकों का मुख्य उपयोग स्टील निर्माण में किया जाता है जहां V2O5 तथा Fe2 O3 के मिश्रण को AI से अपचयित करके फैरोवैनेडियम बनाया जाता है जिसे सीधे ही स्टील के उत्पादन में काम में ले लिया जाता है। इस प्रकार से प्राप्त स्टील का उपयोग स्प्रिंग तथा उच्चगति औजार निर्माण में किया जाता है।
वैनेडियम की – 1 से +5 तक की ऑक्सीकरण अवस्थायें ज्ञात हैं जिनमें से +2 से +5 तक की अवस्थायें महत्वपूर्ण हैं। V(V)तथा V(IV) दोनों ही स्थाई हैं जिनमें से V(V) मन्द ऑक्सीकारक है। यह ऑक्सीकरण अवस्था मुख्यतः VF, तथा ऑक्सी यौगिकों, जैसे V2O5 , VO2 X तथा VOX3 (X = F, CI) में स्थाई होती है। V(IV) स्थाई है लेकिन इसमें असमानुपातन (disproportionation) की प्रवृत्ति पाई जाती है|
V(III) अपचायक है लेकिन Ti(III) की तुलना में दुर्बल है; यह जल में स्थाई है तथा वायु से धीरे-धीरे ऑक्सीकरण होता है। V(II) प्रबल अपचायक है। यह तेजी से जल से अभिक्रिया करता है तथा वायु द्वाराऑक्सीकृत हो जाता है ।
प्रबल क्षारीय माध्यम में एकनाभिकीय वैनेडेट आयन, VO4 3- पाया जाता है। लेकिन pH घटाने पर V-O-V बंध बनाते हुए इनका बहुलीकरण होने लगता है | pH 6 पर V2O5. nH2O का अवक्षेप प्राप्त होता है। pH और कम करने पर यह घुल जाता है तथा अन्ततः बहुवैनेडेट (polyvanadate) प्राप्त होते हैं। विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं से बहुत से उपसहसंयोजन यौगिक ज्ञात हैं। निम्नतर ऑक्सीकरण अवस्था में d-कक्षकों में इलेक्ट्रॉन उपस्थित रहने के कारण ये दृश्य क्षेत्र में विकिरणों का अवशोषण करते हैं जिससे जलीय विलयन रंगीन होते हैं।