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safe period of menstrual cycle in hindi , सुरक्षित काल क्या है , रजोनिवृति (Menopause) किसे कहते है

सुरक्षित काल क्या है , रजोनिवृति (Menopause) किसे कहते है safe period of menstrual cycle in hindi

सुरक्षित काल (Safe period)

अण्डोत्सर्ग क्रिया का अध्ययन करने से स्पष्ट है कि यह क्रिया ऋतु स्राव के 14वें दिन होती है। द्वितीयक अण्डाकोशिका अण्डोत्सर्ग के 1 दिन के बाद तक जीवित रहती है तथा शुक्राणु अधि कतम दो दिन तक मादा की जनन वाहिनियों में जीवित रह सकते हैं। अतः गर्भ ठकरने के दिन, ऋतुस्राव के 10 से 17वें दिन तक हो सकते हैं। यदि सामान्य स्थिति में 28 दिन का चक्र सही तौर पर ठीक बना रहता है तो ऋतु स्राव आरम्भ होने के प्रथम नौ दिन व 18वें दिन से अगले स्राव के होने तक का समय सुरक्षित काल होता है। इन दिनों में मैथुन होने पर मादा के गर्भधारण

करने की सम्भावना नहीं रहती है।

रजोनिवृति (Menopause)

ऋतु चक्र प्रत्येक माह लगभग 28वें दिन के आसपास गर्भ धारण न करने की स्थिति में ऋतु आरम्भ होने के बाद हमेशा होता है। यदि यह समय बढ़ता है या ऋतु स्राव बन्द हो जाता है यह अवस्था रजोनिवृति (menopause) कहलाती है। 40-50 वर्ष की महिला में यह लक्षण उत्पन्न हाता है। पीयूष ग्रन्थि से स्रवित जनन हार्मोन इस अवस्था में अण्डाशय को प्रभावित कर पाने में असमर्थ रहते हैं अतः हार्मोनों का संतुलन विक्षुब्ध (disturb) हो जाता है तथा यह क्रिया नहीं होती है।

मादा प्राणियों, विशेषत: प्राइमेट्स में हार्मोनों का नियंत्रण सम्पूर्ण देह के अतिसंवेदी अंगों पर अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट होता है। अतः हार्मोनों के संतुलन के विक्षुब्ध होने पर अनेक उपापचयी क्रियाएँ भी असंतुलित हो जाती है। इसके कारण अधिक पसीना आने, सिर दर्द रहने, बालों के गिरने, पेशियों में दर्द रहने, नींद के न आने, वजन का बढ़ने जैसी तकलीफ होती है एवं सामान्य अवसाद का उठना (depression) आदि लक्षण दिखाई देते हैं। अधेड अवस्था होने पर जनदों, गर्भाशय नलिका, योनि, बाह्य जनेन्द्रियाँ व स्तन सभी में क्षीणता आने लगती है।

उपरोक्त लक्षण यदि समय से पूर्व दिखाई देने लगे तो रोग का कारण हार्मोनों का कम बनना अथवा असंतुलन होना है जिसका उपचार अपेक्षित है।

अण्डोत्सर्ग (Ovulation)

स्तनियों के अण्डाशय (ovary) में दो चक्र नियमित रूप से पाये जाते हैं। पुटक प्रावस्था (follicular phase) (ii) ल्यूटिकल प्रावस्था (luteal phase)

  • पुटक प्रावस्था (Follicular phase) : यह सभी कशेरूकियों के समान प्रकार की पायी जाती है। इसके अन्तर्गत पीयूष ग्रन्थि से FSH हार्मोन के निर्देशन में अण्डाशय की जननिक उपकला में विभाजन होता है। अण्डजनन की क्रिया आरम्भ होती है एवं पुटक कोशिकाएँ विभाजित होती है तथा वृद्धि करती है। इस प्रकार अण्डाशय में ग्रेफियन पुटिका (graafian follicle) बनने परिपक्व होने, अण्डाशय की सतह पर आकर फटने तक की क्रिया FSH के निर्देशन में होती है। अण्डा के अण्डाशय से बाहर निकलने की क्रिया को अण्डोत्सर्ग (ovulation) कहते हैं जो पीयूष ग्रन्थि से स्रवित LH, ICSH हार्मोन्स द्वारा नियंत्रित होती है। मादा में अण्डाशयों के ये पुटक भी एस्ट्रोजन हार्मोन्स का स्रावण करते हैं।

एस्ट्रोजन हार्मोन्स के प्रभाव से मादा में गर्भावस्था की उपकला शृंगिक होती है। अण्डवाहिनियों वस्तनियों का विर्वधन होता है। मादा में द्वितियक लैंगिक लक्षण जैसे कोमल त्वचा व देह, आवाज का पतला होना, दुग्ध ग्रन्थियों का विकास, गर्भाशय योनि आदि का विकास, रोगों का कम पाया जाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

(ii) ल्यूटियल प्रावस्था (Luteal phase) : अण्डोत्सर्ग के बाद बनती है द्वितियक अण्डोकोशिका से निकल जाने से हुए रिक्त स्थान में कणीय स्तर (granulosa layer) एवं थीका स्तरों से कोशिकाएँ भर जाती है। ये कोशिकाएँ वृद्धि कर पीत द्रव्य से भर जाती है। यह क्रिया ल्युटिनाइजेशन (lutenization) कहलाती है तथा वसा समान यह पदार्थ ल्युटिन कहलाता है। इस क्षेत्र को रक्त का सम्भरण बढ़ जाता है एवं यह संरचना कार्पस ल्युटियम (corpus luteum) कहलाती है।

अण्डोत्सर्ग पर अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों का नियंत्रण ( Endocrine contol of ovulation) अण्डोत्सर्ग में पुटक प्रावस्था ( follicular phase) तक की विभिन्न क्रियाओं पर विभिन्न स्तर पर निम्न प्रकार नियन्त्रण रहता है :

चित्र 9.8 : अण्डोत्सर्ग में अन्तःस्त्रावी स्त्रावणों का नियन्त्रण

  1. हाइपोथैलेमस द्वारा स्रवित FSH एवं LH-RH हार्मोन्स पीयूष ग्रन्थि को अत्तेजित कर FSH

एवं LH हार्मोन का स्रवण कराते हैं अतः मादा में अण्डाशय की पुटिका कोशिकाओं में वृद्धि होती है। LH एवं FSH परस्पर क्रियाशील होकर ही अण्डाशय को अण्डोत्सर्ग हेतु प्रेरित करती है।

  1. अण्डाशय से स्रवित होने वाले हार्मोन्स एस्टोजन्स पुटिका से स्रवित होते हैं। 3. एस्ट्रोजन्स ही मादा में मैथुनेच्छा जागृत करने में सहायक होते हैं।’

अण्डोत्सर्ग से पूर्व एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। यह हार्मोन हाइपोथैलेमस को प्रभावित कर LH-RH कारक का मोचन कराता है अतः पीयूष ग्रन्थि के एडिनोहाइपोफाइसिस (adenohypophysis) पर धनात्मक पुनर्भरण (positive feed back) द्वारा क्रिया कर LH हार्मोन का स्रावण बढ़ाता है। LH के ग्रेफियन पुटिका पर पहुँचने से अण्डोत्सर्ग की क्रिया सम्पन्न होती है। इस समय FSH की मात्रा LH की अपेक्षा कम होती है यद्यपि यह हारमोन भी उसी मोचक कारक द्वारा प्रभावित होता है जो LH-RH के लिये आवश्यक होता है। अनेक स्तनधारियों में अण्डोत्सर्ग क्रिया मैथुन से उत्पन्न प्रतिवर्ती क्रिया के रूप में LH-RH के हाइपोथैलेम्स से स्त्रावित होने के कारण होती है।

रोपण (Implantation)

स्तनधारियों में अण्डोत्सर्ग की क्रिया के पश्चात् द्वितिय अण्डाणु फेलोपियन नलिका में उतराता है जहाँ निषेचन होता है। ग्रेफियन पुटिका अण्डाणु के अण्डोत्सर्ग के पश्चात् रिक्त होकर कापर्स ल्युटियम में परिवर्तित हो जाती है। कापर्स ल्युटियम अन्तःस्रावी संरचना है जो प्रोजेस्टिरॉन एवं एस्ट्रोजन हार्मोन्स का स्त्रवण आरम्भ करती है। कापर्स ल्युटियम द्वारा यह क्रिया पीयूष ग्रन्थि से स्त्रवित LH हार्मोन के द्वारा नियंत्रित रहती है।

चित्र 9.9 : स्तनधारियों में विभिन्न प्रकार के रोपण की स्थिति

निषेचित अण्ड अर्थात् युग्मनज (zygote) फेलोपियन नलिका की पेशियों के कुंचन-आकुंचन द्वारा नीचे उतरकर गर्भाशय में आता है तथा गर्भाशय के अन्तःस्तर (endometrium) पर चिपकता या रोपित (implant) होता है। गर्भाश्य युग्मनज (zygote) रोपण हेतु पूर्व तैयारी करता है। पूर्व तैयारी से हमारा तात्पर्य है गर्भाशय आन्तरिक उपकला का स्रवण आरम्भ करना, अन्त:स्तर (endometrium) का मोटा व संवहनीय (vascularization) होना, संग्रहित पोषक पदार्थों का जमाव, इस प्रकार इस ऊत्तक में इनकी वृद्धि के कारण यह स्तर अधिक संवेदी होकर रोपण हेतु तैयार हो जाता है । प्रावस्था में एण्डोमेट्रियम लगभग दो गुना मोटाई 4-6 मि.मी. प्राप्त कर लेता है।

निषेचन एवं रोपा न होने की स्थिति में कापर्स ल्युटियम द्वारा स्त्रवित प्रोजेस्टिरॉन एवं एस्ट्रोजन पर प्रभाव उत्पन्न कर LH-RH के स्रावण का संदमन कर पीयूष ग्रन्थि के एडिनोहापोफाइसिस भाग से LH का स्रवण रोक देते हैं अतः कापर्स ल्युटियम निष्क्रिय हो जाता है व कापर्स एल्बिकेन्स (Corpus albicans) कहलाता है। प्रोजेस्टिरॉन व एस्ट्रोजन की कमी से FSH RH सक्रिय हो FSH हार्मोन का स्रवण कराकर पुनः अण्डाशय में पुटकों की वृद्धि अर्थात् अण्ड निर्माण की क्रिया को उत्तेजित कर देता है।

 

भ्रूण गर्भाशय के भीतर कितनी दूर तक प्रविष्ट करता है इस आधार पर स्तनधारियों में तीन

प्रकार के निरोपण पाये जाते हैं-

  1. सतही निरोपण (Superficial implantation) 2. अकेन्द्री निरोपण (Eccentric implantation)
  2. अन्तराली निरोपण (Interstital implantation)
  3. सतही निरोपण (Superficial implantation) : कोरियॉन सेक वृद्धि कर के गर्भाशय गुहा के सम्पर्क में आ जाता है। इस प्रकार के निरोपण को मध्य निरोपण (central implantation) भी कहते हैं। उदाहरण : बंदर, कुत्ता, आदि ।
  4. अकेन्द्री निरोपण (Eccentric implantation) : इस प्रकार के निरोपण में कोरियॉनिक सेक कुछ समय के लिए ऐसे फोल्ड में रहता है जो कि प्रमुख गुहा के सम्पर्क में नहीं होता है। उदाहरणत: चूहे, गिलहरी आदि ।
  5. अन्तराली निरोपण (Interstital implantation) : इसमें कोरियॉनिक सेक गर्भाशय में अन्दर प्रवेश कर जाता है। उदाहरण सुअर, चमगादड़, गिनिपिंग, मनुष्य आदि । रोपण में हार्मोन्स द्वारा नियन्त्रण को इस प्रकार समझा सकते हैं :

(i) अण्डाशय के कणीय स्तर (theca granulosa) से स्रवित एस्ट्रोजन द्वारा गर्भाशय के अन्तःस्तर का स्रावी व मोटा होना ।

(ii) उपरोक्त दोनों क्रियाएँ हाइपोथैलेमस द्वारा स्रवित FSH-RH व LH-RH कारकों के एडिनोहाइपोफासिस पर प्रभाव उत्पन्न कर FSH व LH हार्मोन्स के स्रवण द्वारा नियंत्रित रहत है।

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